recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

अग्निपुराण अध्याय १५२

अग्निपुराण अध्याय १५२            

अग्निपुराण अध्याय १५२ में गृहस्थ की जीविका का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय १५२

अग्निपुराणम् द्विपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 152              

अग्निपुराण एक सौ बावनवाँ अध्याय

अग्निपुराणम्/अध्यायः १५२       

अग्निपुराणम् अध्यायः १५२– गृहस्थवृत्तिः

अथ द्विपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः

पुष्कर उवाच

आजीवंस्तु यथोक्तेन ब्राह्मणः स्वेन कर्मणा ।

क्षत्रविट्शूद्रधर्मेण जीवेन्नैव तु शूद्रजात् ॥१॥

कृषिवाणिज्यगोरक्ष्यं कुशीदञ्च द्विजश्चरेत् ।

गोरसं गुडलवणलाक्षामांसानि वर्जयेत् ॥२॥

भूमिं भित्वौषधीश्छित्वा हुत्वा कोटपिपीलिकान् ।

पुनन्ति खलु यज्ञेन कर्षका देवपूजनात् ॥३॥

पुष्कर कहते हैं- परशुरामजी ! ब्राह्मण अपने शास्त्रोक्त कर्म से ही जीविका चलावे; क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र के धर्म से जीवन-निर्वाह न करे। आपत्तिकाल में क्षत्रिय और वैश्य की वृत्ति ग्रहण कर ले; किंतु शूद्र- वृत्ति से कभी गुजारा न करे। द्विज खेती, व्यापार, गोपालन तथा कुसीद (सूद लेना) - इन वृत्तियों का अनुष्ठान करे; परंतु वह गोरस, गुड़, नमक, लाक्षा और मांस न बेचे। किसान लोग धरती को कोड़ने जोतने के द्वारा जो कीड़े और चींटी आदि की हत्या कर डालते हैं और सोहनी के द्वारा जो पौधों को नष्ट कर डालते हैं, उससे यज्ञ और देवपूजा करके मुक्त होते हैं ॥ १-३ ॥

हलमष्टगवं धर्म्यं षड्गवं जीवितार्थिनां ।

चर्तुर्गवं नृशंसानां द्विगवं धर्मघातिनां ॥४॥

ऋतामृताभ्यां जीवेत मृतेन प्रमृतेन वा ।

सत्यानृताभ्यामपिवा न स्ववृत्त्या कदा च न ॥५॥

आठ बैलों का हल धर्मानुकूल माना गया है। जीविका चलानेवालों का हल छः बैलों का, निर्दयी हत्यारों का हल चार बैलों का तथा धर्म का नाश करनेवाले मनुष्यों का हल दो बैलों का माना गया है। ब्राह्मण ऋत* और अमृत* से अथवा मृत* और प्रमृत* से या सत्यानृत* वृत्ति से जीविका चलावे। श्वान-वृत्ति* से कभी जीवन निर्वाह न करे ॥ ४-५ ॥

*१. खेत कट जाने पर बाल बीनना अथवा अनाज के एक-एक दाने को चुन-चुनकर लाना और उसी से जीविका चलाना 'ऋत'  कहलाता है। २. बिना माँगे जो कुछ मिल जाय, वह 'अमृत' है।  ३. माँगी हुई भीख को 'मृत' कहते हैं।  ४. खेती का नाम 'प्रमृत' है। ५. व्यापारको 'सत्यानृत' कहते हैं। ६. नौकरी का नाम 'श्वान-वृत्ति' है।

इत्याग्नेये महापुराणे गृहस्थवृत्तयो नाम व्रिपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'गृहस्थ-जीविका का वर्णन' नामक एक सौ बावनवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १५२ ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 153

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]