recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

अग्निपुराण अध्याय १५४

अग्निपुराण अध्याय १५४             

अग्निपुराण अध्याय १५४ में विवाहविषयक बातें का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय १५४

अग्निपुराणम् चतुःपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 154              

अग्निपुराण एक सौ चौवनवाँ अध्याय

अग्निपुराणम्/अध्यायः १५४         

अग्निपुराणम् अध्यायः १५४ – विवाहः

अथ चतुःपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः

पुष्कर उवाच

विप्रश्चतस्रो विन्देत भार्यास्तिस्रस्तु भूमिपः ।

द्वे च वैश्यो यथाकामं भार्यैकामपि चान्त्यजः ॥१॥

धर्मकार्याणि सर्वाणि न कार्याण्यसवर्णया ।

पाणिर्ग्राह्यः सवर्णासु गृह्णीयात्क्सत्रिया शरं ॥२॥

वैश्या प्रतीदमादद्याद्दशां वै चान्त्यजा तथा ।

सकृत्कन्या प्रदातव्या हरंस्तां चौरदण्डभाक् ॥३॥

पुष्कर कहते हैं- परशुरामजी ! ब्राह्मण अपनी कामना के अनुसार चारों वर्णों की कन्याओं से विवाह कर सकता है, क्षत्रिय तीन से, वैश्य दो से तथा शूद्र एक ही स्त्री से विवाह का अधिकारी है। जो अपने समान वर्ण की न हो, ऐसी स्त्री के साथ किसी भी धार्मिक कृत्य का अनुष्ठान नहीं करना चाहिये। अपने समान वर्ण की कन्याओं से विवाह करते समय पति को उनका हाथ पकड़ना चाहिये । यदि क्षत्रिय – कन्या का विवाह ब्राह्मण से होता हो तो वह ब्राह्मण के हाथ में हाथ न देकर उसके द्वारा पकड़े हुए बाण का अग्रभाग अपने हाथ से पकड़े। इसी प्रकार वैश्य कन्या यदि ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय से व्याही जाती हो तो वह वर के हाथ में रखा हुआ चाबुक पकड़े और शूद्र कन्या वस्त्र का छोर ग्रहण करे। एक ही बार कन्या का दान देना चाहिये। जो उसका अपहरण करता है, वह चोर के समान दण्ड पाने का अधिकारी है ॥ १-३ ॥

अपत्यविक्रयासक्ते निष्कृतिर्न विधीयते ।

कन्यादानं शचीयोगो विवाहोऽथ चतुर्थिका ॥४॥

विवाहमेतत्कथितं नामकर्मचतुष्टयं ।

नष्टे मृते प्रव्रजिते क्लीवे च पतिते पतौ ॥५॥

पञ्चस्वापत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते ।

मृते तु देवरे देयात्तदभावे यथेच्छया ॥६॥

पूर्वात्रितयमाग्नेयं वायव्यं चोत्तरात्रयं ।

रोहिणौ चेति चरणे भगणः शस्यते सदा ॥७॥

जो संतान बेचने में आसक्त हो जाता है, उसका पाप से कभी उद्धार नहीं होता। कन्यादान, शचीयोग (शची की पूजा), विवाह और चतुर्थीकर्म इन चार कर्मो का नाम 'विवाह' है। (मनोनीत) पति के लापता होने, मरने तथा संन्यासी, नपुंसक और पतित होने पर - इन पाँच प्रकार की आपत्तियों के समय (वाग्दत्ता) स्त्रियों के लिये दूसरा पति करने का विधान है। पति के मरने पर देवर को कन्या देनी चाहिये। वह न हो तो किसी दूसरे को इच्छानुसार देनी चाहिये। वर अथवा कन्या का वरण करने के लिये तीनों पूर्वा, कृत्तिका, स्वाती, तीनों उत्तरा और रोहिणी - ये नक्षत्र सदा शुभ माने गये हैं ॥ ४-७ ॥

नैकगोत्रान्तु वरयेन्नैकार्षेयाञ्च भार्गव ।

पितृतः सप्तमादूर्ध्वं मातृतः पञ्चमात्तथा ॥८॥

आहूय दानं ब्राह्मः स्यात्कुलशीलयुताय तु ।

पुरुषांस्तारयेत्तज्जो नित्यं कन्यप्रदानतः ॥९॥

तथा गोमिथुनादानाद्विवाहस्त्वार्ष उच्यते ।

प्रार्थिता दीयते यस्य प्राजापत्यः स धर्मकृत् ॥१०॥

शुल्केन चासुरो मन्दो गान्धर्वो वरणान्मिथः ।

राक्षसो युद्धहरणात्पैशाचः कन्यकाच्छलात् ॥११॥

परशुराम ! अपने समान गोत्र तथा समान प्रवर में उत्पन्न हुई कन्या का वरण न करे। पिता से ऊपर की सात पीढ़ियों के पहले तथा माता से पाँच पीढ़ियों के बाद की ही परम्परा में उसका जन्म होना चाहिये। उत्तम कुल तथा अच्छे स्वभाव के सदाचारी वर को घर पर बुलाकर उसे कन्या का दान देना 'ब्राह्मविवाह' कहलाता है। उससे उत्पन्न हुआ बालक उक्त कन्यादानजनित पुण्य के प्रभाव से अपने पूर्वजों का सदा के लिये उद्धार कर देता है। वर से एक गाय और एक बैल लेकर जो कन्यादान किया जाता है, उसे 'आर्ष विवाह' कहते हैं। जब किसी के माँगने पर उसे कन्या दी जाती है तो वह 'प्राजापत्य विवाह' कहलाता है; इससे धर्म की सिद्धि होती है। कीमत लेकर कन्या देना 'आसुर विवाह' है; यह नीच श्रेणी का कृत्य है। वर और कन्या जब स्वेच्छापूर्वक एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं तो उसे 'गान्धर्व- विवाह' कहते हैं। युद्ध के द्वारा कन्या के हर लेने से 'राक्षस विवाह' कहलाता है तथा कन्या को धोखा देकर उड़ा लेना 'पैशाच विवाह' माना गया है । । ८ - ११ ॥

वैवाहिकेऽह्नि कुर्वीत कुम्भकारमृदा शुचीं ।

जलाशये तु तां पूज्य वाद्याद्यैः स्त्रीं गृहत्रयेत् ॥१२॥

प्रशुप्ते केशवे नैव विवाहः कार्य एव हि ।

पोषे चैत्रे कुजदिने रिक्ताविष्टितथो न च ॥१३॥

न शुक्रजीवेऽस्तमिते न शशाङ्के ग्रहार्दिते ।

अर्कार्कभौमयुक्ते भे व्यतीपातहते न हि ॥१४॥

सोम्यं पित्र्यञ्च वायव्यं सावित्रं रोहिणी तथा ।

उत्तरात्रितयं मूलं मैत्रं पौष्णं विवाहभं ॥१५॥

विवाह के दिन कुम्हार की मिट्टी से शची की प्रतिमा बनाये और जलाशय के तट पर उसकी गाजे-बाजे के साथ पूजा कराकर कन्या को घर ले जाना चाहिये। आषाढ़ से कार्तिकतक, जब भगवान् विष्णु शयन करते हों, विवाह नहीं करना चाहिये। पौष और चैत्रमास में भी विवाह निषिद्ध है। मङ्गल के दिन तथा रिक्ता एवं भद्रा तिथियों में भी विवाह मना है। जब बृहस्पति और शुक्र अस्त हों, चन्द्रमा पर ग्रहण लगनेवाला हो, लग्न- स्थान में सूर्य, शनैश्वर तथा मङ्गल हों और व्यतीपात दोष आ पड़ा हो तो उस समय भी विवाह नहीं करना चाहिये। मृगशिरा, मघा, स्वाती, हस्त, रोहिणी, तीनों उत्तरा, मूल, अनुराधा तथा रेवती ये विवाह के नक्षत्र हैं ॥ १२-१५ ॥

मानुषाख्यस्तथा लग्नो मानुषाख्यांशकः शुभः ।

तृतीये च तथा षष्ठे दशमैकादशेऽष्टमे ॥१६॥

अर्कार्किचन्दतनयाः प्रशस्ता न कुजोऽष्टमः ।

सप्तान्त्याष्टमवर्गेषु शेषाः शस्ता ग्रहोत्तमाः ॥१७॥

तेषामपि तथा मध्यात्षष्ठः शुक्रो न शस्यते ।

वैवाहिके भे कर्तव्या तथैव च चतुर्थिका ॥१८॥

न दातव्या ग्रहास्तत्र चतुराद्यास्तथैकगाः ।

पर्ववर्जं स्त्रियं गच्छेत्सत्या दत्ता सदा रतिः ॥१९॥

पुरुषवाची लग्न तथा उसका नवमांश शुभ होता है। लग्न से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवें तथा आठवें स्थान में सूर्य, शनैश्चर और बुध हों तो शुभ है। आठवें स्थान में मङ्गल का होना अशुभ है। शेष ग्रह सातवें, बारहवें तथा आठवें घर में हों तो शुभकारक होते हैं। इनमें भी छठे स्थान का शुक्र उत्तम नहीं होता। चतुर्थी- कर्म भी वैवाहिक नक्षत्र में ही करना चाहिये। उसमें लग्न तथा चौथे आदि स्थानों में ग्रह न रहें तो उत्तम है। पर्व का दिन छोड़कर अन्य समय में ही स्त्री- समागम करे। इससे सती (या शची) देवी के आशीर्वाद से सदा प्रसन्नता प्राप्त होती है ॥ १६- १९ ॥

इत्याग्नेये महापुराणे विवाहो नाम सतुःपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'विवाहभेद-कथन' नामक एक सौ चौवनवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १५४ ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 155 

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]