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ईश्वर उवाच
होमाद्रणादौ विजयो
राज्याप्तिर्विघ्ननाशनं ।
कृच्छ्रेण शुद्धिमुत्पाद्य
प्राणायामशतेन च ॥१॥
अन्तर्जले च गायत्रीं जप्त्वा
षोडशधाचरेत् ।
प्राणायामांश्च पूर्वाह्णे
जुहुयात्पावके हविः ॥२॥
भैक्ष्ययावकभक्षी च फलमूलाशनोऽपि वा
।
क्षीरशक्तुघृताहार एकमाहारमाश्रयेत्
॥३॥
भगवान् महेश्वर ने कहा- देवि ! होम से
युद्ध में विजय, राज्यप्राप्ति और विघ्नों का
विनाश होता है। पहले 'कृच्छ्रव्रत' करके
देहशुद्धि करे । तदनन्तर सौ प्राणायाम करके शरीर का शोधन करे। फिर जल के भीतर
गायत्री जप करके सोलह बार प्राणायाम करे। पूर्वाह्नकाल में अग्नि में आहुति
समर्पित करे। भिक्षा द्वारा प्राप्त यवनिर्मित भोज्यपदार्थ, फल,
मूल, दुग्ध, सत्तू और
घृत का आहार यज्ञकाल में विहित है ॥ १-३ ॥
यावत्समाप्तिर्भवति लक्षहोमस्य पार्वति
।
दक्षिणा लक्षहोमान्ते गावो
वस्त्राणि काञ्चनं ॥४॥
सर्वोत्पातसमुत्पत्तौ
पञ्चभिर्दशभिर्द्विजैः ।
नास्ति लोके स उत्पातो यो ह्यनेन न
शाम्यति ॥५॥
मङ्गल्यं परमं नास्ति
यदस्मादतिरिच्यते ।
कोटिहोमन्तु यो राजा
कारयेत्पूर्ववद्द्विजैः ॥६॥
न तस्य शत्रवः सङ्ख्ये जातु
तिष्ठन्ति कर्हिचित् ।
न तस्य मारको देशे व्याधिर्वा जायते
क्वचित् ॥७॥
अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाः शलभाः
शुकाः ।
राक्षसाद्याश्च शाम्यन्ति सर्वे च
रिपवो रणे ॥८॥
कोटिहोमे तु
वरयेद्ब्राह्मणान्विंशतिं तथा ।
शतञ्चाथ सहस्रं वा
यथेष्टाम्भूतिमाप्नुयात् ॥९॥
कोटिहोमन्तु यः कुर्याद्द्विजो
भूपोऽथवा च विट् ।
यदिच्छेत्प्राप्नुयात्तत्तत्सशरीरो
दिवं व्रजेत् ॥१०॥
पार्वति ! लक्ष होम की समाप्ति
पर्यन्त एक समय भोजन करे। लक्ष होम की पूर्णाहुति के पश्चात् गौ,
वस्त्र एवं सुवर्ण की दक्षिणा दे। सभी प्रकार के उत्पातों के प्रकट
होने पर पाँच या दस ऋत्विजों से पूर्वोक्त यज्ञ करावे। इस लोक में ऐसा कोई उत्पात
नहीं है, जो इससे शान्त न हो जाय। इससे बढ़कर परम मङ्गलकारक
कोई वस्तु नहीं है। जो नरेश पूर्वोक्त विधि से ऋत्विजों द्वारा कोटि- होम कराता है,
युद्ध में उसके सम्मुख शत्रु कभी नहीं ठहर सकते हैं। उसके राज्य में
अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मूषकोपद्रव,
टिड्डीदल, शुकोपद्रव एवं भूत-राक्षस तथा युद्ध
में समस्त शत्रु शान्त हो जाते हैं। कोटि-होम में बीस, सौ
अथवा सहस्र ब्राह्मणों का वरण करे। इससे यजमान इच्छानुकूल धन-वैभव की प्राप्ति
करता है। जो ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य इस कोटि होमात्मक
यज्ञ का अनुष्ठान करता है, वह जिस पदार्थ की इच्छा करता है,
उसको प्राप्त करता है। वह सशरीर स्वर्गलोक को जाता है ॥४-१०॥
गायत्र्या ग्रहमन्त्रैर्वा
कुष्माण्डीजातवेदसैः ।
ऐन्द्रवारुणवायव्ययाम्याग्नेयैश्च
वैष्णवैः ॥११॥
शाक्तेयैश्च शाम्भवैः
सौरैर्मन्त्रैर्होमार्चनात्ततः ।
अयुतेनाल्पसिद्धिः
स्याल्लक्षहोमोऽखिलार्तिनुत् ॥१२॥
सर्वपीडादिनशाय कोटिहोमोऽखिलार्थदः
।
यवव्रीहितिलक्षीरघृतकुशप्रमातिकाः
॥१३॥
पङ्कजोशीरविल्वाम्रदला होमे
प्रकीर्तिताः ।
अष्टहस्तप्रमाणेन कोटिहोमेषु खातकं
॥१४॥
तस्मादर्धप्रमाणेन लक्षहोमे विधीयते
।
होमोऽयुतेन लक्षेण कोद्याज्याद्यैः
प्रकीर्तितः ॥१५॥
गायत्री मन्त्र,
ग्रह-सम्बन्धी मन्त्र, कूष्माण्ड- मन्त्र,
जातवेदा - अग्नि सम्बन्धी अथवा ऐन्द्र, वारुण,
वायव्य, याम्य, आग्नेय,
वैष्णव, शाक्त, शैव एवं
सूर्यदेवता सम्बन्धी मन्त्रों से होम-पूजन आदि का विधान है। अयुत होम से अल्प
सिद्धि होती है। लक्ष होम सम्पूर्ण दुःखों को दूर करनेवाला है। कोटि होम समस्त
क्लेशों का नाश करनेवाला और सम्पूर्ण पदार्थों को प्रदान करनेवाला है। यव, धान्य, तिल, दुग्ध, घृत, कुश, प्रसातिका (छोटे दाने
का चावल), कमल, खस, बेल और आम्रपत्र होम के योग्य माने गये हैं। कोटिहोम में आठ हाथ और लक्ष
होम में चार हाथ गहरा कुण्ड बनावे। अयुत होम, लक्ष होम और
कोटि-होम में घृतका हवन करना चाहिये ॥ ११-१५ ॥
इत्याग्नेये महापुराणे
युद्धजयार्णवे अयुतलक्षकोटिहोमो नामोनपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'युद्धजयार्णव के अन्तर्गत अयुत-लक्ष-कोटिहोम' नामक
एक सौ उनचासवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १४९ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 150
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