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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
ब्रह्म शतनाम स्तोत्र
पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड में वर्णित
इस ब्रह्मशतनाम स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामना सिद्धि होता है।
ब्रह्मशतनामस्तोत्रम्
Brahma shatanaam stotra
श्रीरामकृतं ब्रह्मशतनामस्तोत्रम्
राम०
नमामि लोककर्तारं प्रजापतिं
सुरार्चितम् ।
देवनाथं लोकनाथं प्रजानाथं
जगत्पतिम् ॥ १ ॥
श्रीरामचन्द्र - हे लोक का निर्माण
करने वाले, प्रजापति! देववन्दित ! देवनाथ !
लोकनाथ! प्रजानाथ! एवं जगत् के स्वामिन्! मैं आपको प्रणाम करता हूँ ॥ १ ॥
नमस्ते देव देवेश सुरासुरनमस्कृत!
भूतभव्यभवन्नाथ हरिपिङ्गललोचन ॥ २ ॥
हे देवदेवेश! हे देवों एवं दानवों
द्वारा पूजित! हे भूत भविष्यत् एवं वर्तमान के स्वामिन्! हे हरित एवं पिङ्गलनेत्र!
आपको प्रणाम है ॥ २ ॥
बालस्त्वं वृद्धरूपश्च
मृगचर्मासनाम्बरः ।
तारणश्चासि देवस्त्वं
त्रैलोक्यप्रभुरीश्वरः ॥ ३ ॥
आप बालक भी हैं और वृद्ध भी। आप
मृगचर्म के आसन पर विराजमान रहते हैं तथा उसी चर्म को वस्त्ररूप में धारण भी करते हैं।
आप भक्तजन को भवसागर से तारने वाले हैं। आप त्रिलोकी के स्वामी तथा देवाधिदेव तथा
ईश्वर हैं ॥ ३ ॥
हिरण्यगर्भ पद्मगर्भ वेदगर्भ
स्मृतिप्रदः ।
महासिद्धो महापद्मी महादण्डी च
मेखली ॥ ४ ॥
आप ही हिरण्यगर्भ,
पद्मगर्भ, वेदगर्भ एवं स्मृतिप्रदाता हैं। आप
महासिद्ध, महापद्मी, महादण्डी एवं
मेखली भी कहलाते हैं ॥४॥
कालश्च कालरूपी च नीलग्रीवो
विदाम्बरः ।
वेदकर्ताऽर्भको नित्यः
पशूनाम्पतिरव्ययः ॥ ५ ॥
आप काल,
कालरूपी, नीलग्रीवा वाले, ज्ञानियों में श्रेष्ठ, वेदकर्ता, अर्भक, नित्य, पशुपति एवं
अव्यय भी कहलाते हैं॥५॥
दर्भपाणिर्हसकेतुः कर्ता हर्ता हरो
हरिः ।
जटी मुण्डी शिखी दण्डी लगुडी च
महायशाः ।। ६ ।।
आप दर्भपाणि,
हंसकेतु, कर्ता, हर्ता,
हर तथा हरि कहलाते हैं और जटी, मुण्डी,
शिखी, दण्डी, लगुड़ी और
महायशा भी आपको ही कहते हैं ॥ ६ ॥
भूतेश्वरः सुराध्यक्षः सर्वात्मा
सर्वभावनः ।
सर्वगः सर्वहारी च स्त्रष्टा च
गुरुरव्ययः ॥ ७ ॥
आपको भक्तजन भूतेश्वर,
सुराध्यक्ष, सर्वात्मा एवं सर्वभावन भी कहते
हैं। इसी तरह, सर्वत्रगति, सर्वहारी,
स्रष्टा, गुरु एवं अव्यय आप को ही कहते हैं ॥
७ ॥
कमण्डलुधरो देवः
स्रुक्स्नुवादिधरस्तथा ।
हवनीयोऽर्चनीयश्च ॐकारो
ज्येष्ठसामगः ॥ ८ ॥
आप कमण्डलुधारी,
देवाधिदेव, सुग्धर तथा स्रुवाधर भी कहलाते
हैं। आप का ही नाम हवनीय, अर्चनीय, ॐकार
तथा ज्येष्ठसामग है ॥ ८ ॥
मृत्युश्चैवामृतश्चैव पारियात्रश्च
सुव्रतः ।
ब्रह्मचारिव्रतधरो गुहावासी
सुपङ्कजः ॥ ९ ॥
मृत्यु एवं अमृत आपके ही नाम हैं।
तथा पारियात्र तथा सुव्रत आपके ही नाम हैं। आप ब्रह्मचर्यव्रत धारण करने वाले हैं।
और गुहावासी एवं पङ्कज भी कहलाते हैं ॥ ९ ॥
अमरो दर्शनीयश्च बालसूर्यनिभस्तथा ।
दक्षिणे वामतश्चापि
पत्नीभ्यामुपसेवितः ॥ १० ॥
आप अमर हैं,
दर्शनीय हैं, बाल सूर्य के समान हैं। आप दक्षिण
एवं वाम भाग में दो पत्नियों से सेवित हैं ॥ १० ॥
भिक्षुश्च भिक्षुरूपश्च त्रिजटी
लब्धनिशचयः ।
चित्तवृत्तिकरः कामो
मधुर्मधुकरस्तथा ॥ ११ ॥
आप भिक्षु हैं,
भिक्षुरूप हैं, त्रिजटी हैं तथा लब्धनिश्चय भी
कहलाते हैं। आप चित्तवृत्तिकर हैं, कामरूप हैं। मधु एवं
मधुकर भी आपको कहते हैं ॥ ११ ॥
वानप्रस्थो वनगत आश्रमी पूजितस्तथा
।
जगद्धाता च कर्ता च पुरुषः शाश्वतो
ध्रुवः ॥ १२ ॥
आप वानप्रस्थ हैं और वनगत भी आपको
भक्तजन आश्रमी एवं पूजित भी कहते हैं। आप जगद्धाता, कर्ता, पुरुष, शाश्वत एवं
ध्रुव भी कहलाते हैं ॥ १२ ॥
धर्माध्यक्षो विरूपाक्षस्त्रिधर्मो
भूतभावनः ।
त्रिवेदो बहुरूपश्च सूर्यायुतसमप्रभः
॥ १३ ॥
आप धर्माध्यक्ष,
विरूपाक्ष, त्रिधर्म, भूतभावन,
त्रिवेद, बहुरूप एवं दश हजार सूर्यों की आभा
वाले हैं ॥ १३ ॥
मोहको बन्धकश्चैव दानवानां विशेषतः
।
देवदेवश्च पद्माङ्कस्त्रिनेत्रो
ऽब्जजटस्तथा ॥ १४ ॥
आप मोहक हैं,
बन्धक हैं, विशेषत दानवों के। आप देवाधिदेव हैं,
पद्माङ्क हैं, त्रिनेत्र एवं पद्मयोनि भी
कहलाते हैं॥१४॥
हरिश्मश्रुर्धनुर्धारी भीमो
धर्मपराक्रमः ।
एवं स्तुतस्तु रामेण ब्रह्मा
ब्रह्मविदाम्बरः ।। १५ ।।
आप हरितवर्ण की दाढ़ी-मूँछ वाले
हैं। आप भयङ्कर धनुर्धारी हैं, धर्मपराक्रम
भी हैं। "
इस तरह (इन नामों से) श्री रामचन्द्र
जी ने ब्रह्मज्ञानियों में श्रेष्ठ ब्रह्मा जी की स्तुति की ॥ १५ ॥
श्रीपाद्ये पुराणे सृष्टिखण्डे
वर्णितं ब्रह्मशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड में ब्रह्मशतनामस्तोत्र सम्पूर्ण ॥
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