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- ब्रह्महृदय स्तोत्र
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- अग्निपुराण अध्याय १५२
- अग्निपुराण अध्याय १५१
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- ब्रह्म शतनाम स्तोत्र
- ब्रह्म कवच
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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
लक्ष्मीनारायण सहस्रनाम
रुद्रयामलतन्त्रोक्त देवीरहस्यम् उत्तरार्द्ध
के पटल ३९ में लक्ष्मीनारायणपञ्चाङ्ग निरूपण अंतर्गत् लक्ष्मीनारायण सहस्रनाम के
विषय में बतलाया गया है।
श्रीलक्ष्मीनारायणसहस्रनामस्तोत्रम्
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं देवीरहस्यम् एकोनचत्वारिंशः
पटलः
Shri Devi Rahasya Patal 39
देवीरहस्य पटल ३९ लक्ष्मीनारायण सहस्रनाम स्तोत्र
श्रीलक्ष्मीनारायणसहस्रनामस्तोत्रम्
अथैकोनचत्वारिंशः पटल:
सहस्त्रनामप्रस्तावः
श्रीभैरव उवाच
अधुना कथयिष्यामि विद्यां
साहस्त्रनामिकीम् ।
भोगदां मोक्षदां लोके
लक्ष्मीनारायणस्य ते ॥ १ ॥
लक्ष्मीनारायण सहस्त्रनाम प्रस्ताव —
श्रीभैरव ने कहा कि हे देवि! मैं संसार में भोग एवं मोक्ष प्रदान
करने वाले लक्ष्मीनारायण के सहस्रनाम का वर्णन करूंगा ।। १ ।।
श्री भैरव्युवाच
भगवन् करुणाम्भोधे लक्ष्मीनारायणस्य
मे।
भोगापवर्गदं दिव्यं वद नामसहस्रकम्
॥ २ ॥
सर्वमन्त्रमयं तत्त्वं
सर्वपूजाफलप्रदम् ।
सर्वागमरहस्याढ्यं सर्वदेवैकवन्दितम्
॥ ३ ॥
श्री भैरवी ने कहा कि करुणा के सागर
हे भगवन्! भोग-मोक्षप्रद लक्ष्मीनारायण के दिव्य सहस्रनाम को मुझे सुनाइये,
जो कि सर्व मन्त्रमय एवं सभी पूजनों के फलों को देने वाला है और जो
सभी आगमों के रहस्य से परिपूर्ण है। साथ ही जो सभी देवों द्वारा वन्दित है ।।
२-३।।
श्रीलक्ष्मीनारायणसहस्त्रनाम माहात्म्यम्
श्री भैरव उवाच
एतद्रहस्य परमं मन्त्रनामसहस्त्रकम्
।
लक्ष्मीनारायणस्येष्टं सर्वस्वं
तत्त्वतो मम ॥४॥
गुह्यं गोप्यतमं देवि सुखदं धर्मवर्धनम्
।
लक्ष्मीसंवननं लोके परत्र परमार्थदम्
॥५॥
महाचीनपदस्थानां कौलिकानामभीष्टदम्
।
उपपातक पापानां शमनं दमकारकम् ।। ६
।।
सर्वतीर्थफलाद्रिक्तं सर्वयज्ञफलप्रदम्
।
सर्वदेवस्तुतं साध्यं
चतुर्वर्गफलप्रदम् ॥७॥
अवाच्यं मार्गहीनानामश्रव्यं
दुष्टचेतसाम् ।
वैष्णवः कौलिक श्रेष्ठः पठेन्नामसहस्रकम्
।
गुरूपदेशतो देवि सर्वसिद्धिमवाप्नुयात्
॥८ ॥
श्रीभैरव ने कहा हे देवि!
लक्ष्मीनारायण को प्रिय यह मन्त्रनामसहस्र परम रहस्य है। तत्त्वतः यह मेरा सर्वस्व
है। यह गुह्य, गोप्यतम, सुखदायक,
धर्म- वर्धक है। संसार में लक्ष्मीवर्धक और परलोक में परमार्थ
प्रदायक है। महाचीनाचारी कौलिकों के लिये यह अभीष्टदायक है। यह उपपातकों का शमन और
पापों को दमन करता है। इससे सभी तीर्थों और यज्ञों के फल प्राप्त होते हैं,
सभी देव इसकी स्तुति करते हैं। यह साध्य हैं और चतुर्वर्ग फल
प्रदायक है। इसे पथभ्रष्टों से नहीं कहना चाहिये। दुष्टों को नहीं सुनाना चाहिये।
कौलिक वैष्णव गुरु-उपदेश से इस सहस्रनाम का पाठ करके सभी सिद्धियों को प्राप्त कर
सकता है।।४-८।।
लक्ष्मीनारायण सहस्रनाम विनियोगः
अस्य
श्रीलक्ष्मीनारायणसहस्रनामपाठस्य श्रीशिव ऋषिः,
त्रिष्टुप् छन्दः, श्रीलक्ष्मीनारायणो देवता,
श्रीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकं, धर्मार्थकाम- मोक्षार्थे सहस्रनामपाठे
विनियोगः ।
इस श्रीलक्ष्मीनारायण सहस्रनाम पाठ
के ऋषि श्रीशिव हैं। छन्द त्रिष्टुप् है। श्रीलक्ष्मी नारायण देवता हैं। श्रीं बीज
है,
ह्रीं शक्ति है, ॐ कीलक है। धर्म-अर्थ-
काम-मोक्षरूप पुरुषार्थचतुष्टय की प्राप्ति के लिये इस सहस्रनाम के पाठ का विनियोग
किया जाता है।
श्रीलक्ष्मीनारायण
ध्यानम्
वेदानुद्धरते जगन्ति वहते
भूगोलमुद्विभ्रते
दैत्यान् दारयते बलिं छलयते
क्षत्रक्षयं कुर्वते ।
पौलस्त्यं जयते हलं कलयते
कारुण्यमातन्वते
म्लेच्छान् मूर्छयते दशाकृतिकृते
कृष्णाय तुभ्यं नमः ॥
ध्यान—जो वेदों का उद्धार करते हैं, संसार का पालन करते
हैं, भूलोक में भ्रमण करते हैं, दैत्यों
का संहार करते हैं, बलि से छल करते हैं, क्षत्रियों का क्षय करते हैं, रावण का वध करते हैं,
हल से शत्रु का संहार करते हैं, करुणा का
विस्तार करते हैं, म्लेच्छों को मूर्च्छित करते हैं; ऐसे दश कृत्यों को करने वाले कृष्ण को प्रणाम है।
श्रीलक्ष्मीनारायण सहस्र नाम
ॐ लक्ष्मीविष्णुरीशानो
लक्ष्मीकान्तो विनायकः ।
विश्वम्भरो विश्वनाथो
विश्वसूर्विश्वसूदनः ॥ १ ॥
लक्ष्मीराजो महात्मा च परमात्मा
परापरः ।
अपारविभवो भव्यो भवभूतिमयो भवः ॥ २
॥
लक्ष्मीधवो महांल्लक्ष्मीदेवो
लक्ष्मीभवोत्तमः ।
लक्ष्मीधराधरो लक्ष्मीधाराधरसमद्युतिः
॥ ३ ॥
विश्रुतो विकलो व्ययो विलासी
गीतवल्लभः ।
विद्याधरप्रियो विद्यावादी
विद्याविशारदः ॥४॥
पट्टभृत् पाटलद्योतः पीतपट्टधरो भगः
।
भाग्यवान् भोगदो भार्गो
भृगुभावविवर्धनः ॥ ५ ॥
लक्ष्मीकौलेश्वरो लक्ष्मीगुह्यो
लक्ष्मीविभावसुः ।
लक्ष्मीवीरेश्वरो लक्ष्मीधन्यो लक्ष्मीविभाकरः॥
६ ॥
अचिन्त्यो नित्यसंयोगी संयमी
यमभीतिहृत् ।
यामिनीशप्रियकरो राहुध्वंसी विषापहः
॥७॥
धीरो भ्रमहरो भीमो भीमास्यो
भीमवल्लभः ।
हारकङ्कणभूषाढ्यो मौलिमान्
नूपुराञ्चितः ॥८॥
किङ्किणीरवसन्तुष्टो वंशीवादनतत्परः
।
स्थाणुरूपश्चरगतिश्चारुवक्त्रो जयी
नयी ॥९॥
लक्ष्मीविनयवॉल्लक्ष्मीजयवॉल्ललिताकृतिः
।
लक्ष्मीनेत्रवशी लक्ष्मीहासवश्यो
विनर्तकः ॥१०॥
नाट्यप्रियो नटी नन्दी सर्ववित्
सर्वसारभृत् ।
वासवो गोप्यमार्गेष्टो
वैष्णवाचारतत्परः ।। ११ ।।
आत्मा परात्मा ज्ञानात्मा
लोकाध्यक्षः सुरेश्वरः ।
सत्यः स्तुत्यः शुचिर्नित्यो
नित्यात्मा नित्यदर्शनः ॥ १२ ॥
पञ्चनादमयोऽनन्तः पञ्चमाचारवल्लभः ।
पञ्चमस्वरसङ्गीतः कीर्तिदो मोहनाशनः
।। १३ ।।
लक्ष्मीपरः पुमल्लक्ष्मीशक्तिभृद्
भक्तितोषितः ।
लक्ष्मीयोगीश्वरो लक्ष्मीयोगदो
भोगिनायकः ।। १४ ।।
लक्ष्मीलोकेश्वरो
लक्ष्मीवसुर्लक्ष्मीमनोहरः ।
अचिन्त्यमहिमा (१००) ऽचिन्त्यगरिमा
घोरनिस्वनः ॥ १५ ॥
ॐ लक्ष्मीविष्णु,
ईशान, लक्ष्मीकान्त, विनायक,
विश्वम्भर, विश्वनाथ, विश्वसू,
विश्वसूदन, लक्ष्मीराज, महात्मा,
परमात्मा, परापर, अपारविभव,
भव्य, भव- भूतिमय, भव,
लक्ष्मीधव, महालक्ष्मीदेव, लक्ष्मीभवोत्तम, लक्ष्मीधराधर, लक्ष्मीधाराधर, समद्युति, विश्रुत,
विकलव्यग्र, विलासी, गीतवल्लभ,
विद्याधरप्रिय, विद्यावादी, विद्याविशारद, पट्टभृत, पाटलद्योत,
पीतपट्टधर, भग, भाग्यवान,
भोगदत् भार्ग, भृगुभावविवर्धन, लक्ष्मीकौलेश्वर, लक्ष्मीगुह्य, लक्ष्मीविभावसु, लक्ष्मीवीरेश्वर, लक्ष्मीधन्य, लक्ष्मीविभाकर, अचिन्त्य,
नित्य संयोगी, संयमी, यमभीतिहृत्,
यामिनीशप्रियकर, राहुध्वंसी, विषापह, धीर, भ्रमहर
भीमभीमास्य, भीमवल्लभ, हारकंकणभूषाढ्य,
मौलिमान, नूपुरांचित, किङ्किणीरवसन्तुष्ट,
वंशीवादनतत्पर, स्थाणुरूप, चरगति, चारुवक्त्र, जयी नयी,
लक्ष्मीविनयवान, लक्ष्मी- जयवान, ललिताकृति, लक्ष्मीनेत्रवशी, लक्ष्मीहास्यवश्य,
विनर्तक, नाट्यप्रिय, नटी,
नन्दी, सर्ववित्, सर्वसंसारभृत्,
वासव, गोप्यमार्गेष्ट, वैष्णावाचारतत्पर,
आत्मा, परात्मा, ज्ञानात्मा,
लोकाध्यक्ष, सुरेश्वर, सत्यस्तुत्य,
शुचिनित्य, नित्यात्मा नित्यदर्शन, पञ्चनादमय, अनन्त, पञ्चमाचारवल्लभ,
पञ्चमस्वरसङ्गीत, कीर्तिद, मोहनाशन, लक्ष्मीपर, पुमान्,
लक्ष्मीशक्तिभृत्, भक्तितोषित, लक्ष्मीयोगीश्वर, लक्ष्मीयोगद, भोगिनायक, लक्ष्मीलोकेश्वर, लक्ष्मीवसु,
लक्ष्मीमनोहर, अचिन्त्यमहिमा, अचिन्त्यगरिमा, घोरनिस्वन ।। ११५ ।।
सुखी सुखप्रदो दिव्यरूपो
देवेश्वरेश्वरः ।
कामदेवो वैद्यवैद्यो वेदविद्
वेदनायकः ॥ १६ ॥
ऋग्रूपः सामगीतज्ञो
यजुर्यज्ञभुजाम्पतिः ।
याज्ञिको यमिनां त्राता त्रिलोकजनकोऽजरः
॥ १७ ॥
कामप्रदः कामिवरः कमनीयाकृतिः कुरुः
।
लक्ष्मीपृथुर्वसुप्रीतो
लक्ष्मीश्रीदः श्रियः पतिः ॥ १८ ॥
लक्ष्मीकामो लक्ष्मणेशो
लक्ष्मीरामोऽतिसुन्दरः ।
अनिर्वर्ती च निःसङ्गो निर्भयो
निरुपद्रवः ॥ १९ ॥
निराभासो निराधारो निर्लेपो
निरहंकृतिः ।
निराश्रयो निर्गुणश्च गुणातीतो
गणेश्वरः ॥ २० ॥
ब्रह्मस्वरूपो ब्रह्मज्ञो बृंहणो
ब्रह्मवर्धनः ।
महाक्रतुर्यज्ञवपुर्वराहो यज्ञनायकः
॥ २१ ॥
महारुद्रो महादेवो माधवो मधुसूदनः ।
लक्ष्मीनिरञ्जनो लक्ष्मीसिद्धिदः
सिद्धिवर्धनः ॥ २२ ॥
लक्ष्मीश्रीवत्सवक्षाश्च लक्ष्मीकौस्तुभभूषितः
।
सर्वलोकधरो दान्तो दन्तिदन्तायुधो
दमी ॥ २३ ॥
अप्रमेथगतिः शान्तः शमी कामी
कृतागमः ।
महाकर्मा महाचीनो मकारशिवपूजितः ॥
२४ ॥
वाममार्गरसोद्रिक्तः सर्वाचारैकमध्यगः
।
मांसाहारी नित्यसङ्गी मीनासवरसाकुलः
॥ २५ ॥
मुद्राप्रियो रतानन्दरतो रतिपतिप्रियः
।
अघोरदेवो दैत्यारिर्जितदेवो दिवाकरः
।। २६ ।।
निशानाथोऽमृतमयो नवग्रहसमर्चितः।
सत्स्वरूपो विरूपाक्षो
विभाकरशतप्रभः ॥ २७॥
निग्रहो विग्रही वामो
वारांनिधिनिवासकः ।
पीनबाहुः स्थूलपादो
दीर्घचक्षुरलंभुजः ॥ २८ ॥
पादामिलक्रमातीतः सत्यसन्धः सनातनः
।
लक्ष्मीसनातनो लक्ष्मीधर्माध्यक्षो
धनेश्वरः ॥ २९ ॥
लक्ष्मीधनप्रदो ( २०० )
लक्ष्मीधर्मभागी च धर्मवान् ।
सुखी सुखप्रद,
दिव्यरूप, देवेश्वरेश्वर, कामदेव, विश्ववैद्य, वेदविद,
वेदनायक, ऋग्रूप, सामगीतज्ञ,
यजुर्यज्ञभुजाम्पति, याज्ञिक, यमिनां त्राता, त्रिलोकजनक, अजर,
कामप्रद, कामिवर, कमनीयाकृति,
कुरु, लक्ष्मीपृथु, वसुप्रीत,
लक्ष्मीश्रीद, श्रियः पति, लक्ष्मीकाम, लक्ष्मणेश, लक्ष्मीराम,
अतिसुन्दर, अनिर्वर्ती, निःसङ्ग,
निर्भय, निरुपद्रव, निराभास,
निराधार, निर्लेप, निरंहकृति,
निराश्रय, निर्गुण, गुणातीत,
गणेश्वर, ब्रह्म- स्वरूप, ब्रह्मज्ञ, वृंहण, ब्रह्मवर्धन,
महाक्रतु, यज्ञवपु, वराह,
यज्ञनायक, महारुद्र, महादेव,
माधव, मधुसूदन, लक्ष्मीनिरञ्जन,
लक्ष्मीसिद्धिद, सिद्धिवर्धन, लक्ष्मीश्रीवत्स- वक्ष, लक्ष्मीकौस्तुभभूषित,
सर्वलोकधर, दान्त, दन्तिदन्तायुध,
दमी, अप्रमेय गति, शान्तशमी,
कामी, कृतागम, महाकर्मा,
महाचीन, मकारशिवपूजित, वाममार्गरसोद्रिक्त,
वामाचारैकमध्यग, मांसाहारी, नित्यसङ्गी, मीनासवरसाकुल, मुद्राप्रिय,
रताननन्दरत रतिपतिप्रिय, अघोरदेव, दैत्यारि, जितदेव, दिवाकर,
निशानाथ, अमृतमय, नवग्रहस-
मर्चित, सत्यस्वरूप, विरूपाक्ष,
विभाकरशतप्रभ, निग्रहविग्रह, वाम, वारांनिधिनिवासक पीनबाहु, स्थूलपाद, दीर्घचक्षुरलम्भुज, पादामितक्रमातीत,
सत्यसन्ध, सनातन, लक्ष्मी-
सनातन, लक्ष्मीधर्माध्यक्ष, धनेश्वर,
लक्ष्मीधनप्रद, लक्ष्मीधर्मभागी, धर्मवान ।। १६-२९।।
वीरहा पुण्डरीकाक्षः पद्मनाभो
जगत्प्रभुः ॥ ३० ॥
पद्मासनो ब्रह्ममयो विस्मयी
विगतस्मयः ।
समानः समदृष्टिश्च विषमो विषमेक्षणः
॥ ३१ ॥
चतुर्मूर्तिस्त्रिमूर्तिश्च
चिन्तितश्चिञ्चिणीपतिः ।
सहस्रबाहुः क्षत्रेशो ब्राह्मणो
वणिजां पतिः ॥ ३२ ॥
सर्वव्यापी सर्वमुखः सर्वमध्यगतः
सखा ।
चक्रार्चितो नक्रपतिर्वरुणः
शक्रसोदरः ॥ ३३ ॥
दर्पहा सर्पशयनः सर्पानवरप्रदः ।
अमानी मानदो मान्यो मानवेन्द्रो
मनूत्तमः ॥ ३४ ॥
मनुश्योऽमराध्यक्षो लक्ष्यो
लोकैकरक्षकः ।
शोकहा दुर्गमो दृप्तो बलिहा
कलिनाशनः ॥ ३५ ॥
शुभाङ्गो मदिराक्षीबः शुभकृत्
शोभनाकृतिः ।
अतिथिस्तिथिनाथश्च नक्षत्रपरिवेषगः
॥ ३६ ॥
चतुर्बाहुश्चतुःश्रोत्रो विश्रवा विलयप्रदः
।
प्रलयान्तकरः प्राज्यो जननीजनकप्रियः
॥ ३७॥
यशस्वी श्रीधरः शान्तः
शङ्काशतविनाशकः ।
अक्रूरवरदः क्रूरः कीरवाग् गणनायकः
॥ ३८ ॥
सुवर्णमुकुटो मारो मारसूर्मणिभूषणः
।
मान्त्रिको मञ्जुलो मन्त्री
मान्तिकेष्टवरप्रदः ॥ ३९॥
लक्ष्मीवितर्कवाँल्लक्ष्मीसुन्दरो
बन्धुरोऽभयः ।
अर्जितः सुखितस्तारस्तातयः
कार्तवीर्यकः ॥४०॥
लक्ष्मीपद्मधरो लक्ष्मीचन्द्रहासो
विकत्थनः ।
लक्ष्मीगोवर्धनधरो लक्ष्मीकम्बुधरो
विराट् ॥४१॥
स्कन्दाश्रयो रिपुध्वंसी
देवसेनाधिनायकः ।
अनुकूलोऽनुकूटश्च सानुमान्
सोमसुन्दरः ॥ ४२ ॥
तामसः सात्त्विकः सभ्यः (३००)
सोमराजो मरीचिमान् ।
वीरहा,
पुण्डरीकाक्ष, पद्मनाभ, जगत्प्रभु,
पद्मासन, ब्रह्ममय, विस्मय,
विगतस्मयी, समान समदृष्टि, विषम, विषमेक्षण, चतुर्मूर्ति,
त्रिमूर्ति, चिञ्चित, चिञ्चिणीपति,
सहस्रबाहु, क्षेत्रेश, ब्राह्मण,
वणिजांपति, सर्वव्यापी, सर्वमुख,
सर्वमध्यगत, सखा, चक्रार्चित,
नक्रपति, वरुण, शक्रसोदर,
दर्पहा, सर्पशयन, सर्पासन,
वरप्रद, अमानी, मानद,
मान्य, मानवेन्द्र, मनूत्तम,
मनुवश्य, अमराध्यक्ष, लक्ष्य,
लोकैकरक्षक, शोकहा दुर्गम, दृप्त, बलिहा, कलिनाशन,
शुभाङ्ग, मदिराक्षीब, शुभकृत्,
शोभनाकृति, अतिथि, तिथिनाथ,
नक्षत्र परिवेषण, चतुर्बाहु, चतुःश्रोत्र, विश्रवा, विलयप्रद,
प्रलयान्तकर, प्राज्य, जननीजनकप्रिय,
यशस्वी, श्रीधर शान्त, शङ्काशतविनाशक,
अक्रूरवरद, क्रूर, कीर-
वाक्, गणनायक, सुवर्णमुकुट, मार, मारसू, मणिभूषण, मान्त्रिक, मञ्जुल, मन्त्री,
मान्त्रिकेष्टवरप्रद, लक्ष्मीवितर्कवान,
लक्ष्मीसुन्दर बन्धुर, अभय, अर्जित, सुखित, तारतातीय,
कार्तवीर्यक, लक्ष्मीपद्मधर, लक्ष्मीचन्द्रहास, विकत्थन, लक्ष्मीगोवर्धनधर,
लक्ष्मीकम्बुधर, विराट, स्कन्दाश्रय,
रिपुध्वंसी, देवसेनाधिनायक, अनुकूल, अनुकूट, सानुमान,
सोमसुन्दर, तामस, सात्त्विक,
सभ्य, सोमराज मरीचिमान ।। ३०-४० ।।
अर्चिष्मान् विकलः कुल्यकल्पः
सज्जनपोषकः ॥ ४३ ॥
विराजो वामनो वेणुर्वानरो वारिवाहनः
।
वाल्मीकिवरदो वन्दी वन्द्यो
बन्धूकसन्निभः ॥४४॥
वर्णेश्वरो वर्णमाली
वनमालातिसुन्दरः ।
भृगुर्भास्वद्वपुर्भोक्ता कर्ता
हर्ता शतक्रतुः ॥ ४५ ॥
अतुल्यः कोमलः कोपी रमणो मणिकुण्डलः
।
लक्ष्मीकेयूरवॉंल्लक्ष्मीमणिदामविराजितः
॥४६॥
लक्ष्मीनूपुरवाँल्लक्ष्मीमुक्तामाल्यविभूषणः
।
लक्ष्मीगोधाङ्गुलित्राणो
लक्ष्मीसौवर्णकङ्कणः ॥ ४७ ॥
लक्ष्मीविराजितो
लक्ष्मीविविधाभरणोज्ज्वलः ।
ककारादिक्षकारान्तविद्याभूषणभूषितः॥४८
॥
अकाराद्यक्षरस्फीतो
निःशेषस्वरमण्डितः ।
वर्णमान्यो
महाविद्यामातृकाक्षरतत्त्ववान् ॥ ४९ ॥
लक्ष्मीकामेश्वरो लक्ष्मीकामुको
निर्जरेश्वरः ।
कलावान् कीर्तिमान् कृतः
कुम्भाण्डप्राणहारकः ॥ ५० ॥
केशान्तकः कालसूश्च कारकः कष्टहा
कठी ।
क्रीतः कुब्जः कम्बुधरः कलकण्ठः
कुलालकः ॥ ५१ ॥
कुलाध्यक्षः कुलाचारी
कुलाकुलपदार्चितः ।
करञ्जकः कर्तरीश: कनकः कर्तरीकरः
॥५२॥
कलङ्करहितः कोक: कोकशोकनिवर्हणः ।
कपिलः कलशी कोल: कालिकः कुलमानसः ॥
५३ ॥
लक्ष्मीकुलाकुलो लक्ष्मीकुलजः
कर्मवर्धनः ।
लक्ष्मीकाशीश्वरो
लक्ष्मीनवनाथविनायकः ॥ ५४ ॥
लक्ष्मीकनिष्ठो निष्पिष्टो
लक्ष्मीयोगीन्द्रयोगदः ।
खपरः खेचरः खेटः खगगामी खलान्तकः ॥
५५ ॥
खरूपः खगरूपश्च खनित्रः खेटनायकः ।
खगायुधः खण्डधारी खञ्जने क्षणभञ्जनः
॥५६ ॥
खरध्वंसी खराराव: खर्खुराकार भीषणः।
खंखटोल: खगगति: खेचरेश्वरसेवितः ॥
५७ ॥
खेचरीगणसेव्यश्च
खण्डमुद्रानियन्त्रितः ।
खड्गहस्तः खड्गपालः खेतः खवर्णभूषणः
॥ ५८ ॥
अर्चिष्मान,
विकल, कुल्यकल्प, सज्जनपोषक,
विराज, वामन, वेणुर्वानर,
वरि- वाहन, वाल्मीकिवरद, वन्दी, वन्द्य, बन्धूकसन्निभ,
वर्णेश्वर, वर्णमाली, वनमालाति-सुन्दर,
भृगुर्भास्वद्वपुर्भोक्ता, कर्ता हर्ता,
शतक्रतु, अतुल्यकोमल, कोपी,
रमण, मणि- कुण्डल, लक्ष्मीकेयूरवान,
लक्ष्मीमणिदामविराजित, लक्ष्मीनूपुरवान,
लक्ष्मीमुक्तामाल्य- विभूषण, लक्ष्मीगोधाङ्गुलित्राण,
लक्ष्मीसौवर्णकङ्कण, लक्ष्मीविराजित, लक्ष्मीविविधा- भरणोज्ज्वल, ककारादिक्षकारान्तविद्याभूषित,
अकाराद्यक्षरस्फीत, निःशेषस्वरमण्डित, वर्णमान्य, महाविद्यामातृकाक्षरतत्त्ववान, लक्ष्मीकामेश्वर, लक्ष्मीकामुक, निर्जरेश्वर, कलावान, कीर्तिमान,
कूत, कुम्भाण्डप्राणहारक, केशान्तक, कालसू, कारक,
कष्टहा कठी, क्रीत, कुब्ज,
कम्बुधर, कलकण्ठ, कुलालक,
कुलाध्यक्ष, कुलाचारी, कुलाकुल-
पदार्चित, करञ्जक, कर्तरीश, कनक, कर्तरीकर, कलङ्करहित,
कोक, कोकशोक- निवर्हण, कपिल,
कलशी, कोल, कालिक,
कुलमानस, लक्ष्मीकुलाकुल, लक्ष्मी- कुलज, कर्मवर्धन, लक्ष्मीकाशीश्वर,
लक्ष्मीनवनाथविनायक, लक्ष्मीकनिष्ठ, निष्पिष्ट, लक्ष्मीयोगीन्द्रयोगद, खपर, खेचर, खेट, खगगामी, खलान्तक खरूप, खगरूप,
खनित्र, खेटनायक, खगायुध,
खण्डधारी, खञ्जनेक्षणभञ्जन, खरध्वंसी, खराराव, खर्खुराकारभीषण,
खडटोल, खगगति, खेचरेश्वरसेवित,
खेचरीगणसेव्य, खण्डमुद्रानि- यन्त्रित
खड्गहस्त, खड्गपाल, खेत, खवर्णभूषण।। ४३-५८ ।।
लक्ष्मीखेशः खोकरूपो
लक्ष्मीभास्वरमूर्तिमान् ।
लक्ष्मीखट्वाङ्गभृल्लक्ष्मीखेचरः
खाश्मलेपितः ॥ ५९ ॥
लक्ष्मीचिताग्निनिलयो
लक्ष्मीभस्मीकृतानलः ।
लक्ष्मीभूतिप्रदो
लक्ष्मीज्योतिष्मान् गाक्षराञ्चितः ॥६०॥
लक्ष्मीगीत: स्वरालापी
गोपतिर्गोकुलेश्वरः ।
गङ्गाधरप्रियो गोष्ठी गोपालो
गन्धवर्धनः ॥ ६१ ॥
गन्धवाहप्रियो गीतो गीतिज्ञो
गीतलालसः ।
गुञ्जाहारप्रियो गण्डी गुरुर्गोवाहनोऽगदः
॥ ६२ ॥
गाम्भीर्यवान् गुरुतरो
गुरुशब्दविवर्धनः ।
गुरुभक्तिप्रियो गोलो
गण्डशैलनिवासकः ।। ६३ ।।
गर्जन्नादो
गोत्रपतिगलमार्गप्रियोऽङ्गवान् ।
निरङ्गो गजवक्त्रेशो गणनायकनायकः ॥ ६४
॥
गन्धर्वनाथवरदो गगनेचरपूजितः ।
गर्भहीनो गर्भवाही गुणेयो गुणसागरः ॥
६५ ॥
गुणातीतवपुर्गुण्यो गुप्त
मार्गप्रवर्तकः ।
गुप्तमन्त्रप्रियो गोप्यो गुह्यो
गुह्यकवल्लभः ॥ ६६ ॥
गोपीतो गिरिनाथश्च गिरिधारी
जगन्निधिः ।
लक्ष्मीप्रियः प्रियः प्रीतो
लक्ष्मीगरुडवाहनः ॥६७॥
लक्ष्मीकपोतनिलयो लक्ष्मीकल्पद्रुमो
रविः ।
लक्ष्मीसन्तानकः सारो लक्ष्मीसारो
लतापतिः ॥ ६८ ॥
लक्ष्मीग्राह्योऽसुलक्ष्मा च
लक्ष्मीसागरनन्दनः ।
घृणी घृणिमयो घृष्टो घुसणारक्त
ईश्वर: ।। ६९ ।।
घृणामयोऽघहर्ता च घृणिनाथो
घवर्णभाक् ।
लक्ष्मीचिन्तामणिः
साधुर्लक्ष्मीवीरो वरोत्तमः ॥ ७० ॥
लक्ष्मीचतुर्भुजो लक्ष्मीविश्वनाथो
विनायकः ।
ङवर्णोऽनन्तरूपश्च जानुज्ञो
ङोर्णरूपवान् ॥ ७१ ॥
ङवर्णरूपो विश्वेशो ङकाराक्षरमण्डनः
।
लक्ष्मीसेव्यो निर्गुणात्मा
लक्ष्मीशानः शिवार्चितः ॥ ७२ ॥
चारुरूपश्चारुगतिश्चारुमूर्तिश्चमत्कृतिः
।
चारुनेत्रश्चारुमुखश्चारुबाहुश्चतुर्भुजः
॥७३ ।।
चारुहस्तश्चारुनखश्चारुकेशश्चमूपतिः
(५००)।
लक्ष्मीखेश,
खोकरूप, लक्ष्मीभास्वरमूर्तिमान, लक्ष्मीखट्वाङ्गभृत, लक्ष्मीखेचर, खाश्मरीप्रिय, लक्ष्मीचिताग्निनिलय, लक्ष्मीभस्मीकृतानल, लक्ष्मीभूतिप्रद, लक्ष्मीज्यो- तिष्मान, गाक्षराञ्चित, लक्ष्मीगीत, स्वरालापी, गोपति
गोकुलेश्वर, गङ्गाधरप्रिय, गोष्ठी,
गोपाल, गन्धवर्धन, गन्धवाहप्रिय,
गीतगीतिज्ञ, गीतलालस, गुञ्जाहारप्रिय,
गण्डी, गुरु, गोवाहन,
अगद, गाम्भीर्यवान, गुरुतर,
गुरुशब्दविवर्धन, गुरुभक्तिप्रिय, गोल, गण्डशैलनिवासक, गर्जन्त्रादगोत्रपति,
गोलमार्गप्रिय, अङ्गवान, निरङ्ग, गजवक्त्रेश, गणनायकनायक,
गन्धर्वनाथवरद, गगनेचरपूजित, गर्भहीन, गर्भवाही, गुणेय
गुणसागर, गुणातीतवपु, गुण्य, गुप्तमार्गप्रवर्तक, गुप्तमन्त्रप्रिय, गोप्य गुह्य, गुह्यकवल्लभ, गोपीत,
गिरिनाथ, गिरिधारी, जगन्निधि,
लक्ष्मीप्रिय, प्रियप्रीत, लक्ष्मीगरुड़वाहन, लक्ष्मीकपोतनिलय, लक्ष्मीकल्पद्रुम, रवि, लक्ष्मीसन्तानक,
सार, लक्ष्मीसारलतापति, लक्ष्मीग्राह्य,
असुलक्ष्मा लक्ष्मीसागरनन्दन, घृणी, घृणिमय, घुष्ट, घुसृणारक्त,
ईश्वर, घृणामय, अघहर्ता,
घृणिनाथ, घवर्णभाक, लक्ष्मीचिन्तामणि,
लक्ष्मीचिन्तामणि-सखा, लक्ष्मीचतुर्बाहु,
लक्ष्मीविश्वनाथ, विनायक, ङवर्ण, अनन्तरूप, जानुज्ञ,
ङोर्णरूप- वान, ङवर्णरूप, विश्वेश, ङकाराक्षरमण्डन, लक्ष्मीसेव्य
निर्गुणात्मा, लक्ष्मीशान, शिवार्चित,
चारुरूप, चारुगति, चारुमूर्ति,
चमत्कृति, चारुनेत्र, चारुमुख,
चारुबाहु, चतुर्भुज, चारुहस्त,
चारुनख चारुकेश, चमूपति । । ५९-७३ ।।
चितावासी
चरोऽचेलश्चीनाम्बरधरोऽच्युतः ॥ ७४ ॥
चारुहासश्चारुदन्तश्यवनश्चन्द्रवासितः।
चन्द्रश्चन्द्रकलानाथश्चारुपादश्चतुर्गतिः
।।७५ ।।
चतुरात्मा चतुर्थात्मा चतुर्भूमिधरो
धरः ।
चतुः समुद्रशयनः चतुस्सागरलङ्घनः
॥७६ ।।
चतुर्द्युतिश्चतुः शय्याचतुर्वीरवरोऽवरः।
चतुर्वेदमयो
वैद्यश्चार्वङ्गश्चारुभाषणः ॥ ७७ ॥
चतुर्वक्त्रश्चतुर्वक्त्रपूजितः
परमेश्वरः ।
चलच्चन्द्रकशोभाढ्यश्चलन्नूपुरकूजितः॥७८॥
चलदम्भोदसदृशश्चलदम्भोजलोचनः ।
चलदम्भोदवदनश्चलदम्भोदशोभितः ।। ७९
।।
चलत्कनककेयूरश्चलत्काञ्चनकुण्डलः ।
चलत्कनकशृङ्गाभश्चलत्कनकशेखरः॥८०॥
चकाररूपश्चारेशश्चकारार्णविभूषितः।
लक्ष्मीशान्तो महादक्षो
लक्ष्मीपीताम्बरः पविः ॥ ८१ ॥
छत्री च्छत्रधरश्छान्तः
छिन्नमस्ताप्रियः पिता ।
छन्नच्छेदी छिन्नमुखः
छकाराक्षररूपवान् ॥८२॥
लक्ष्मीकान्तः कान्तियुक्तो
लक्ष्मीसाधक ईश्वरः ।
जगन्नाथो जगद्धर्ता जगत्कर्ता
जगत्स्थितिः ॥८३॥
जगत्क्षयकरो जेता जगतां पतिरुत्तमः
।
जगत्स्वामी जगद्धाता जगत्संहारकारकः
॥८४॥
जीवात्मा परमात्मा च जगद्धृतिप्रदो
भवः ।
जगद्गुणी जगत्स्तुत्यो
जगदानन्ददायकः ॥ ८५ ॥
जगत्सन्तोषभूतात्मा
जगत्क्रोधदयान्वितः ।
जगद्दीप्तिकरो वेदोपासितो जगदीश्वरः
॥ ८६ ॥
जवी जवान्वितो जारो जगदाडम्बरप्रदः
।
जगत्सेव्यो जगत्प्रीतो जगदिष्टो
जगन्मयः ॥ ८७ ॥
जृम्भणो जटिलो जीवो
जम्भारातिवरप्रदः ।
जामाता जलधेर्जान्तो
जटामुकुटमण्डितः ॥८८॥
जितारिर्जयदोऽजेयो जयकृद्वीरतापनः ।
लक्ष्मीकुचतटासीनो लक्ष्मीनयनगोचरः
॥८९॥
झलरीझोत्कृतो झाडी झण्डी
शण्ठप्रतापनः ।
झाङ्कारी झकृतिर्झिल्लीरवो
झाङ्कारिनूपुरः ॥९०॥
लक्ष्मीवरो (६००) महालक्ष्मीसेवितो
देववन्दितः ।
चितावासी चर,
अचेल, चीनाम्बरधर, अच्युत,
चारुहास, चारुदन्त, च्यवनचन्द्र-
• वासित, चन्द्र, चन्द्रकलानाथ, चारुपाद चतुर्गति, चतुरात्मा चतुर्थात्मा, चतुर्भूमिधर, धर, चतुःसमुद्रशयन, चतुस्सागरलङ्घन,
चतुर्द्युति, चतुःशय्या, चतुर्वीरवर, अवर, चतु- वेंदमय,
वैद्य, चार्वङ्ग चारुभाषण, चतुर्वक्त्र, चतुर्वक्त्रपूजित, परमेश्वर, चलच्चन्द्रक- शोभाढ्य, चलन्नूपुरकूजित, चलदम्भोदसदृश, चलदम्भोजलोचन, चलदम्भोदवदन, चलदम्भोदशोभित,
चलत्कनककेयूर, चलत्काञ्चनकुण्डल, चलत्कनकशृंगाभ, चल- त्कनकशेखर, चकाररूप, चारेश, चकाराणविभूषित,
लक्ष्मीशान्त महादक्ष, लक्ष्मीपी- ताम्बर,
पवि, लक्ष्मीछत्रधर, छिन्नमस्ताप्रिय,
पिता, छत्रच्छेदी, छिन्नमुख,
छकाराक्षररूप- वान, लक्ष्मीकान्त, कान्तियुक्त, लक्ष्मीसाधक ईश्वर, जगन्नाथ, जगद्भर्ता, जगत्कर्ता,
जगत्स्थिति, जगत्क्षयकर, जेता, जगतांपतिरुतम, जगत्स्वामी,
जगद्धाता, जगत्संहार- कारक, जीवात्मा, परमात्मा, जगद्भूतिप्रद
भव, जगद्गुणी, जगत्स्तुत्य, जगदानन्द- दायक, जगत्सन्तोषभूतात्मा जगत्
क्रोधदयान्वित, जगद्दीप्तिकर, वेदोपासित,
जगदीश्वर, जवी, जवान्वितजार,
जगदाडम्बरप्रद, जगत्सेव्य, जगत्प्रीत, जगदीष्ट जगन्मय, जृम्भण,
जटिलजीव, जम्भारातिवरप्रद, जामाता, जलधिजान्त, जटामुकुट-
मण्डित, जितारि, जयद, अजेय, जयकृतवीरतापन, लक्ष्मीकुचतटासीन,
लक्ष्मीनयन-गोचर, झल्लरीझोत्कृत, झाडी, झण्डी, शण्ठप्रतापन,
झाङ्कारी, झंकृति, झिल्लीरत,
झाङ्कारिनूपुर, लक्ष्मीवर, महालक्ष्मीसेवित, देववन्दित।। ७४-९० ।।
ञकारो ञरलो ञेशो ञवर्णामृतरूपवान् ॥
९१ ॥
लक्ष्मीस्वभूः
स्वर्गपतिर्लक्ष्मीवन्द्यो विधुन्तुदः ।
टकारो टङ्कहस्तश्च
टान्तष्टीत्कारकूजितः ॥ ९२ ॥
लक्ष्मीदेवो देवदेवो लक्ष्मीदान्तः
कृपानिधिः ।
ठकुरो ठालको ठास्यो ठवर्णसुषमानिधिः
॥ ९३ ॥
लक्ष्मीविधुर्वितर्काख्यो
वैनतेयध्वजो ध्वजः ।
डमरुर्डामरेशानो डकाराक्षरसंयुतः ॥
९४ ॥
लक्ष्मीपति: पीवराङ्गो
लक्ष्मीनायकनायकः ।
डकारवाग् ढकभेद्यो ढक्कासुरनिसूदनः
॥९५॥
लक्ष्मीजेता जयकरो लक्ष्मीशो
लम्बमूर्धजः ।
लक्ष्मीजगत्स्थितिर्लक्ष्मीशौरिर्लक्ष्मीगदाधरः
॥९६॥
णान्तो णवर्णको णेशो
णवर्णामृतसाधितः ।
लक्ष्मीदामोदरो लक्ष्मीप्राणो
लक्ष्मीरथाङ्गभृत् ॥ ९७ ॥
तुल्यो ऽ तुल्यो
महातुल्यचित्तस्तारार्णमण्डितः ।
तोतुलस्तुलसीनाथस्तन्त्रज्ञो
मन्त्रनायकः ॥९८ ॥
तपः फलप्रदस्ताम्ररूपोऽ तुलपराक्रमः।
तुटिरूपस्तुटिगतिस्तपस्वी तापसप्रियः
॥ ९९ ॥
तुहिनांशुस्तुहिनजस्तुषारकरशोभितः।
तुरीसेव्यस्तुलाभश्च तकाराक्षरमण्डनः
॥ १०० ॥
लक्ष्मीशङ्खायुधो
लक्ष्मीनन्दकेशस्तवर्णभृत् ।
स्थविर स्थूलगात्रश्च
स्थाणुसेव्यस्थशब्दकृत् ॥ १०१ ॥
स्थालीरसप्रियो स्थूलः थकारेश्वर
ईश्वरः ।
लक्ष्मीजीवेश्वरो लक्ष्मीधरो
लक्ष्मीनृसिंहकः ।। १०२ ।।
दयावान् द्युपतिर्दक्षो द्यूतो
दम्भविवर्जितः ।
दारिद्र्यहा दुःखहर्ता
दौर्भाग्यक्षयकृद् दयी ॥ १०३ ॥
दीनो दीप्रभुर्दभी दयितोदयवाञ्छकः ।
दानकृद् दातृफलदो दनुजेन्द्रक्षयङ्करः
॥ १०४ ॥
दैत्यहा दैत्यदर्पघ्नो दर्पवादिक्षयङ्करः
।
दारप्रियो दीर्घनखो
दुष्टासुरनिसूदनः ॥ १०५ ॥
देवदेवो यशोवन्द्यो
दकाराक्षरमण्डितः ( ७०० ) ।
ञकार, आरल, बेश, अवर्णामृतरूपवान्,
लक्ष्मीस्वभू, स्वर्गपति, लक्ष्मीवन्द्य, विधुन्तुद, टकार,
टङ्कहस्त, टान्त, टीत्कारकूजित,
लक्ष्मीदेव देवदेव, लक्ष्मीदान्त, कृपानिधि, लक्ष्मीविधु, वितर्काख्य,
वैनतेयध्वज, ध्वज, डमरुडामरेशान,
डकारा- क्षरसंयुत, लक्ष्मीपति, पीवराङ्ग, लक्ष्मीनायकनायक, डकारवागू,
ढक्कभेद्य, ढक्का- सुरनिसूदन, लक्ष्मीजेता, जयकर, लक्ष्मीश,
लम्बमूर्धज, लक्ष्मीजगत्स्थिति, लक्ष्मीशौरि, लक्ष्मीगदाधर, णान्त,
णवर्णक, णेश, णवर्णामृतसाधित,
लक्ष्मीदामोदर, लक्ष्मीप्राण, लक्ष्मीरथाङ्गभृत्, तुल्य, अतुल्य,
महातुल्यचित्त, तारार्णमण्डित, तोतुल, तुलसीनाथ, तन्त्रज्ञ
मन्त्रनायक, तपः फलप्रद, ताम्ररूप,
अतुलपराक्रम, तुटिरूप, तुटिगति,
तपस्वी, तापसप्रिय, तुहिनांशु,
तुहिनज, तुषारकरशोभित, तुरीसेव्य,
तुलाभ, तकाराक्षरमण्डन, लक्ष्मीशङ्खायुध,
लक्ष्मीनन्दकेश, तवर्णभृत्, स्थविर स्थूलगात्र, स्थाणुसेव्य, स्थाणु- शब्दकृत्, स्थालीरसप्रिय, स्थूल, थकारेश्वर, ईश्वर,
लक्ष्मीजीवेश्वर, लक्ष्मीधर, लक्ष्मी- नृसिंह, दयावान, धुपतिदक्ष,
द्यूत दम्भविवर्जित, दारिद्र्यहा, दुःखहर्ता, दौर्भाग्य- क्षयकृत, दयी, दीनादीनप्रभु, दम्भी,
दयितोदयवाञ्छक, दानकृत्, दातृफलद, दनुजेन्द- क्षयंकर, दैत्यहा,
दैत्यदर्पघ्न, दर्पवादिक्षयंकर, दारप्रिय, दीर्घनख, दुष्टासुरनिसूदन, देवदेव, यशोवन्द्य, दकाराक्षरमण्डित
।। ९१-१०५ ।।
लक्ष्मीदयाकरो लक्ष्मीदेवो
लक्ष्मीदयानिधिः ॥ १०६ ॥
धनदो धनकृन्दन्यो धनदेशो धनप्रदः ।
धृतिमान् धर्मवान् धर्मी
धर्मकर्मविचक्षणः ॥ १०७ ॥
धर्माध्यक्षो धनाध्यक्षो धवलो
धैर्यवान् धनी ।
धीरो धैर्यकरो धर्मदक्षो धनदपूजितः
॥ १०८ ॥
लक्ष्मीधनी महालक्ष्मीधवो
लक्ष्मीमनोभवः ।
नवीनो नूतनो नम्रो नटनो नाट्यतोषितः
॥ १०९ ॥
नगो नागनगश्रेष्ठो नृगम्यो नागमण्डनः
।
नृसिंहो नृवरोऽनन्तो नरनारायणो नवः
॥११०॥
नागराजो नागपतिर्नागान्तकध्वजोऽनलः
।
नगारूढो निम्ननाभिर्नन्दिसेव्यो
नटेश्वरः ।।१११ ।।
नलिनाक्षो नृवन्द्योऽपि नायको
नागनायकः ।
नर्मदातीरक्रीडाकृन्त्रलिनीपति लोचनः
।।११२ ।।
नरेशो नृपपूज्यश्च नागशायी नगोत्तमः
।
नारायणो निष्कलङ्को
नवर्णाकृतिरात्मवान् ।।११३ ।।
लक्ष्मीनागो नगधरो लक्ष्मीनाथ
नरूपवान् ।
पुष्यप्रियः पुष्पशय्याशयानः
पुष्पशेखरः ।।११४ ।।
पुष्पधन्वा प्रद्युम्नश्च
पुष्पेषुपुष्पपूजितः ।
पूज्यः पवित्रं परमं परमेष्ठी पितामहः
।। ११५ ।।
परं पदं परं पुण्यं परमायुः
परात्परः ।
पारावारसुताभर्ता परमेशः परं महः
।।११६ ।।
पुण्यदः पुण्यकृत् पूतः
पुराणागमपूजितः ।
पुराणपुरुषः पीनः पीनवक्षा
जितेन्द्रियः ।।११७ ।।
पीतवासाः पीतमालः पीतवर्णः
पराङ्कुशः ।
पत्रगो विश्रुतः पान्यः पथिकः
पान्थतोषदः ।। ११८ ।।
पूर्व: पौरजनस्तुत्य:
पवर्णाक्षरमण्डनः ।
लक्ष्मीपीताम्बरो लक्ष्मीपीतो
लक्ष्मीपरः परम् ।। ११९ ।।
फलं फणिवरः स्फीतः फलकृत् फलदः फणी
।
फणिशय्याशयानश्च फकारामृतमण्डनः (
८०० ) ।। १२० ।।
लक्ष्मीदाकर,
लक्ष्मीदेव, लक्ष्मीदयानिधि, धनद धनकृत्, धन्य, धनदेश
धनप्रद, धृतिमान, धर्मवान्, धर्मी, धर्मकर्मविचक्षण, धर्माध्यक्ष,
धनाध्यक्ष, धवल, धैर्यवान,
धनी, धीर, धैर्यकर,
धर्मदक्ष, धनदपूजित, लक्ष्मीधनी,
महालक्ष्मीधव, लक्ष्मीमनोभव, नवीन नूतन, नम्र, नटन, नाट्यतोषित, नग, नागनगश्रेष्ठ,
नृगम्य, नागमण्डन, नृसिंह
नवर, अनन्त, नरनारायण, नव, नागराज, नागपति, नागान्तकध्वज, अनल, नगारूड़,
निम्ननाभि, नन्दिसेव्य नटेश्वर, नलिनाक्ष, नृवन्ध, नायक,
नागनायक, नर्मदातीर- क्रीड़ाकृत, नलिनीपतिलोचन, नरेश नृपपूज्य, नागशायी,
नगोत्तम, नारायण, निष्कलंक,
नवर्णाकृतिरात्मवान, लक्ष्मीनाग, नगधर, लक्ष्मीनाथ, नरूपवान,
पुष्यप्रिय, पुष्पशय्या- शयान, पुष्पशेखर, पुष्पधन्वा, प्रद्युम्न,
पुष्पेषुपुष्पपूजित, पूज्य, पवित्र परम, परमेष्ठी, पितामह,
परंपद, परंपुण्य, परमायु,
परात्पर, पारावारसुताभर्ता, परमेश, परंमहः, पुण्यद,
पुण्यकृद् पूत, पुराणागमपूजित, पुराणपुरुष, पीनपीनवक्षा, जितेन्द्रिय,
पीत- वासा, पीतमाल, पीतवर्ण,
पराङ्कुश, पत्रग, विश्रुत,
पान्थपथिक, पान्थतोषद, पूर्वपौरज-
नस्तुत्य, पवर्णाक्षरमण्डन, लक्ष्मीपीताम्बर,
लक्ष्मीपीत, लक्ष्मीपर, परमफल,
फणिवर, स्फीत फलकृत, फलद,
फणी, फणिशय्या शयान, फकारामृतमण्डन
।। १०६- १२० ।।
बालको बुद्धिमान् बौद्धो
बन्धुर्बान्धव ईश्वरः ।
लक्ष्मीबन्धुर्महालक्ष्मीबान्धवो
लक्षणान्वितः ॥ १२१ ॥
भद्रपदो भास्वराङ्गो भास्करो
भानुरव्ययः ।
भानिधिर्भगवान् भीतो भीतिहाऽ
भयदायकः ॥ १२२ ॥
लक्ष्मीभयहरो लक्ष्मीभयदो भयघातनः ।
महेश्वरो महामान्यो महामात्यो
मनोरमः ॥ १२३ ॥
मनोहारी महाशान्तो महातेजा मनोजवः ।
महोत्साही माधवश्च मायाधारी
मनोन्मनः ॥ १२४ ॥
मानदो मुरघाती च मानवेष्टफलप्रदः ।
मदिरामोदमुदितो मारमोहविवर्जितः ॥
१२५ ॥
लक्ष्मीमहोदयो लक्ष्मीमान्यो
लक्ष्मीमदालसः ।
यशोदानन्दनो यान्तो यशस्वी
योधसैनिकः ॥ १२६ ॥
यशोधरो यमो योगी योगिनां योगदायकः ।
योगेन्द्रो यागपूज्यश्च यादवो
यादवेश्वरः ।। १२७ ।।
यज्ञप्रीतो यज्ञनिधिर्याजको
याज्ञिकप्रियः ।
यज्वा यज्ञो यशोजातो
यकाराक्षररूपवान् ॥ १२८ ॥
लक्ष्मीयज्ञकरो लक्ष्मीयाज्ञिको
यज्ञसेवितः ।
राजा रमापतिर्देवो रामो राजा अधोरजः
॥ १२९ ॥
राजसो रात्रिकृद्रामो
रामानन्दप्रदायकः ।
रेवतीरमणो राकापतिः सर्वकलाधरः ॥
१३० ॥
लक्ष्मीरामो महालक्ष्मीराजा
लक्ष्मीत्रिविक्रमः ।
लाक्षारुणो लीतराक्षो ललज्जिह्वो
लतापतिः ।। १३१ ॥
लङ्केशो लासिको लान्तो
लम्बोदरप्रियः परः ।
लक्ष्मीलीनोऽलिवर्णश्च लकाराकार
ईश्वरः ॥१३२॥
वान्तदो वारसेनानीर्वराहो विग्रही
विराट् ।
विष्णुर्वसुन्धरानाथो वसुदो
वसुधाधिपः ॥ १३३ ॥
वागीश्वरो वेणुहस्तो वेतालो विरसो
वियत् ।
विद्वान् विशालनयनो विकारोऽविकृतिः
पुमान् ।। १३४ ।।
बालक, बुद्धिमान, बौद्ध, बन्धु
बान्धवेश्वर, लक्ष्मीबन्धु, महालक्ष्मीबान्धव,
लक्षणान्वित, भद्रपद, भास्वराङ्ग,
भास्कर, भानुनु, अव्य,
भानिधि भगवान, भीत, भीतिहा,
अभयदायक, लक्ष्मीभयहर, लक्ष्मीभयद,
भयघातन, महेश्वर, महामान्य, महामात्य, मनोरम, मनोहारी,
महाशान्त, महातेजा, मनोजव,
महोत्साही, माधव, मायाधारी,
मनोन्मन, मानद, मुरघाती,
मानवेष्टफलप्रद, मदिरामोदमुदित, मारमोह- विवर्जित, लक्ष्मीमहोदय, लक्ष्मीमान्य, लक्ष्मीमदालस, यशोदानन्दन,
यान्त, यशस्वी योधसैनिक, यशोधर, यमयोगी, योगियोगदायक,
योगेन्द्र यागपूज्य, यादवयादवेश्वर, यज्ञप्रीत, यज्ञनिधि, याजक
याज्ञिकप्रिय, यज्वा यज्ञ, यशोजात,
यकाराक्षररूपवान, लक्ष्मीयज्ञकर, लक्ष्मीयाज्ञिक, यज्ञसेवित, राजा,
रमापतिर्देव, रामराजा, अधोरज,
राजस, रात्रिकृत् राम, रामानन्दप्रदायक,
रेवतीरमण, राकापति, सर्वकलाधर,
लक्ष्मीराम, महालक्ष्मीराजा, लक्ष्मीत्रिविक्रम, लाक्षारुण, लीतराक्ष, ललज्जिह, लतापति,
लङ्केश, लासिक, लान्त,
लम्बोदरप्रियपर, लक्ष्मीलीन, अलिवर्ण, लकाराकार ईश्वर वान्तद, वारसेनानी, वराह, विग्रही,
विराट, विष्णु, वसुन्धरानाथ,
वसुद, वसुधाधिप, वागीश्वर,
वेणुहस्त, वेताल, विरस,
वियत् विद्वान्, विशालनयन, विकार, अविकृति पुमान्।। १२१-१३४।।
वितर्की ( ९००) विनयी
विद्याराजमान्यो विचारकः ।
वाग्मी वानीरमूलस्थो वाचाटो
वीरनायकः ॥ १३५ ॥
लक्ष्मीवराहो वीरेशो लक्ष्मीवीरो
वनेचरः।
शङ्करः श्रीधरः श्रीलः श्रमी
शीतांशुशीतलः ।। १३६ ।।
शशिमौलिः शरन्नागः शम्भुः
शङ्खनिसूदनः ।
शक्रः शत्रुक्षयकरः शत्रुकालकरः
शिवः ॥ १३७॥
लक्ष्मीशिवः श्रीपतिः श्रीवरो
लक्ष्मीशिवप्रदः ।
षोडशस्वररूपश्च षोडशार्णविभूषणः ॥
१३८ ॥
षडङ्गविद्यावेत्ता च षकाराक्षर
भूषितः।
लक्ष्मीषडङ्गधारी च
लक्ष्मीषोडशवर्णभृत् ॥१३९ ।।
सुन्दरः स्वर्गवसतिः सर्वेशः
सर्वतोमुखः।
सप्तसप्तिः सदाचारः साधुः
साधुजनप्रियः ॥ १४० ॥
सरसः सरलः सालः सुखी सुखविवर्धनः ।
सप्तद्वीपवतीनाथः सप्तसागरनायकः ।।
१४१ ।।
सप्तस्वरमयः सप्तपातालतलवासकः ।
सात्त्विकः सत्त्वसंपन्नः
समस्तदुरितापहः ॥ १४२ ॥
समस्तरिपुविध्वंसी समस्तासुरघातनः ।
समस्तपातकध्वंसी समस्तसुरवन्दितः ॥
१४३ ॥
लक्ष्मीसनातनो लक्ष्मीसनकः
साधुपूजितः ।
हरिर्हरो हरिहरो हाटकेशो हटापहः ।।
१४४ ।।
हरिद्रवर्णों हसितो हारी हरितलोचनः
।
लक्ष्मीहरिर्हृषीकेशो लक्ष्मीहारधरोऽनघः
॥ १४५ ।।
क्षमी क्षमापतिः क्षत्ता क्षमेशश्च
क्षवर्णभाक् ।
क्षणकृत् क्षणदानाथः क्षमावान्
क्षुभितासुरः ।। १४६ ।।
लक्ष्मीक्षमायुतो लक्ष्मीक्षत्ता
लक्ष्मीक्षवर्णभृत् ।
अनन्तोऽनन्तपूज्यश्चाप्यादिरादित्यसन्निभः
।। १४७ ।।
इन्दिरावल्लभो देव
ईश्वरश्वोग्ररूपवान् ।
ऊष्मोज्ज्वलोऽपि ऋणहा ऋॄकारोज्ज्वलमातृकः
।। १४८ ।।
लृवर्णवर्णो लॄकार एनवर्णसमन्वितः ।
ऐश्वर्यसहितश्चोष्ठस्तथौन्मत्तस्वरार्चितः
।। १४९ ।।
अंकारश्चैवमः कारस्वरूपः स्वरभूषितः
।
ॐ ह्रींहसौः ह्रीं श्रींदेवो
लक्ष्मीनारायणः शिवः ॥ १५० ॥
वितर्की,
विनयी, विद्याराजमान्य, विचारक,
वाग्मी, वानीरमूलस्थ, वाचाट,
वीरनायक, लक्ष्मीवराह, लक्ष्मीवीर
वनेचर, शङ्कर, श्रीधरश्रील, श्रमी, शीतांशुशीतल, शशिमौलि,
शरन्नाग, शम्भु, शङ्खनिसूदन,
शक्र, शत्रुक्षयकर, शत्रुकालकर,
शिव, लक्ष्मीशिव, श्रीपति
श्रीवर, लक्ष्मीशिवप्रद, षोड़शस्वरूप,
षोडशार्णविभूषण, षडङ्ग- विद्यावेत्ता, षकाराक्षरभूषित, लक्ष्मीषडङ्गधारी, लक्ष्मीषोड़शवर्णभृत्, सुन्दर, स्वर्गवसति, सर्वेशसर्वतोमुख, सप्तसप्ति,
सदाचार, साधुसाधुजनप्रिय, सरस, सरल, सार, सुखी, सुखविवर्धन, सप्तद्वीपवतीनाथ,
सप्तसागरनायक, सप्तस्वरमय, सप्तपातालतल- वासक, सात्विक, सत्वसम्पन्न,
समस्तदुरितापह, समस्तरिपुध्वंसी, समस्त असुरघातन, समस्तपातकध्वंसी, समस्तसुरवन्दित, लक्ष्मीसनातन, लक्ष्मीसनक, साधुपूजित, हरि,
हर, हरिहर, हाटकेश,
हटापह, हरिद्वर्ण, हसित,
हारी, हरितलोचन, लक्ष्मीहरि, हृषीकेश, लक्ष्मीहारधर अनघ, क्षमी,
क्षमापति, क्षत्ता, क्षमेश,
क्षवर्णभाक्, क्षणकृत् क्षणदानाथ, क्षमावान, क्षुभितासुर लक्ष्मीक्षमायुत, लक्ष्मीक्षत्ता, लक्ष्मीक्षवर्णभृत्, अनन्त, अनन्तपूज्य, आदि
आदित्यसन्निभ, इन्दिरावल्लभ देव, ईश्वर,
उग्ररूपवान, ऊष्मोज्ज्वल, ऋणहा, ऋकारोज्ज्वलमातृक, लवर्णवर्ण,
लृकार, एनवर्णसमन्वित, ऐश्वर्यसहित
ओष्ठ, उन्मत्तस्वरार्चित, अङ्कारमकारस्वरूप,
स्वरभूषित, ॐ ह्रीं हसौः ह्री श्री देवो
लक्ष्मीनारायणः शिवः ।। १३५-१५०॥
लक्ष्मीनारायणसहस्रनाम फलश्रुतिः
इति मन्त्रमयं नाम्नां सहस्रं
तत्त्वमुत्तमम् ।
अकारादिक्षकारान्तविद्यानिलयमीश्वरि।।
१५१ ।।
सर्वतीर्थमयं सर्वदेवदानवपूजितम् ।
अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयस्य कोटयः
।।१५२।।
चन्द्रायणायुतं देवि
महादानान्यनेकशः ।
मन्त्रनामसहस्त्रस्य कलां नार्हन्ति
षोडशीम् ।।१५३ ।।
फलश्रुति —
इस प्रकार मन्त्रमय सहस्रनामरूप उत्तम तत्त्व का वर्णन पूरा हुआ।
इसमें अकार से क्षकार तक की मातृकाओं का आवास है। यह सर्व तीर्थमय एवं सभी देव-दानवों
से पूजित है। हजार अश्वमेध और करोड़ वाजपेय यज्ञ का फल इसके पाठ से प्राप्त होता
है। दश हजार चान्द्रायण व्रत और अनेक महादान का जो फल प्राप्त होता है, वह इस मन्त्रनामसहस्र की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है ।। १५१-१५३ ।।
अर्धरात्रे पठेद्वीरः शक्तिवक्षः
स्थितः शनैः ।
स्वप्ने लक्ष्मीप्रियं देवं वरदं
सोऽपि पश्यति ।। १५४ ।।
महाचीनार्चनं कृत्वा पठेद्वीराचने सकृत्
।
शतवर्षसहस्राणि पूजायाः
फलमाप्नुयात् ॥ १५५ ॥
एकवारं पठेद्यस्तु संपूज्य
गुरुसंनिधौ ।
स भवेत् साधकः श्रीमान् परत्र
त्रिदिवं व्रजेत् ॥ १५६ ॥
शनिवार की आधी रात में शक्ति को
हृदय से लगाकर वीर इसका पाठ करे। इससे वह स्वप्न में लक्ष्मीप्रिय वरद देव का
दर्शन पाता है। महाचीनाचार से अर्चन करके वीर इसका पाठ करे तो सौ हजार वर्ष की
पूजा का फल उसे प्राप्त होता है। गुरु की सन्निधि में पूजन करके जो साधक इसका एक
बार पाठ करता है वह संसार में वैभवयुक्त होकर देहान्त होने पर स्वर्ग में वास करता
है।। १५४-१५६ ।।
पुण्यदं वरदं नुत्यं
तीर्थसाधनमुत्तमम् ।
योगिनां योगदं पूज्यं भोगिनां
भोगवर्धनम् ॥१५७ ।।
रोगिणां रोगशमनं सर्वदुष्कृतनाशनम्
।
वैष्णवानां प्रियतरं मुक्तानां
परमार्थदम् ॥ १५८ ॥
यह पुण्यप्रद,
वरदाता और नित्य उत्तम तीर्थ का साधन है। योगियों के लिये योगप्रद
और भोगियों के लिये भोगवर्धक है। रोगियों के रोगों का विनाशक है। सभी दुःष्कर्मों
का नाशक है। वैष्णवों को यह अतिप्रिय है। यह मुमुक्षुओं को परमार्थ प्रदान करने
वाला है।। १५७-१५८।।
अदातव्यमश्श्रोतव्यमन्यशिष्याय पार्वति
।
विना दानं न गृह्णीयान्न दद्याद्
दक्षिणां विना ।। १५९ ।।
दत्वा गृहीत्वाप्युभयोः
सिद्धिहानिर्भवेद् धुवम् ।
इदं नामसहस्त्रं तु
लक्ष्मीनारायणस्य ते ।
तव भक्त्या मयाख्यातं गोपनीयं
स्वयोनिवत् ॥ १६० ।।
हे पार्वति ! अशिष्य को न तो यह देय
है और न ही सुनाने लायक है। शिष्य विना दान के इसे ग्रहण न करे। गुरुदक्षिणा लिये
बिना गुरु भी शिष्य को न दे। देने और लेने से सिद्धिलाभ नहीं होता। तुम्हारे स्नेह
से इस लक्ष्मीनारायण सहस्रनाम का वर्णन मैंने किया। अपनी योनि के समान इसे गुप्त
रखना चाहिये ।। १५९-१६० ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये लक्ष्मीनारायणसहस्रनामनिरूपणं नामैकोनचत्वारिंशः पटलः ॥३९॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में लक्ष्मीनारायण-सहस्रनाम निरूपण नामक एकोनचत्वारिंश
पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 40
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