Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
June
(45)
- देवीरहस्य पटल ६०
- देवीरहस्य पटल ५९
- देवीरहस्य पटल ५८
- देवीरहस्य पटल ५७
- देवीरहस्य पटल ५६
- देवीरहस्य पटल ५५
- अग्निपुराण अध्याय १६५
- अग्निपुराण अध्याय १६४
- अग्निपुराण अध्याय १६३
- अग्निपुराण अध्याय १६२
- अग्निपुराण अध्याय १६१
- देवीरहस्य पटल ५४
- देवीरहस्य पटल ५३
- देवीरहस्य पटल ५२
- अग्निपुराण अध्याय १६०
- अग्निपुराण अध्याय १५९
- अग्निपुराण अध्याय १५८
- अग्निपुराण अध्याय १५७
- अग्निपुराण अध्याय १५६
- दुर्गा मूलमन्त्र स्तोत्र
- दुर्गा सहस्रनाम
- देवीरहस्य पटल ४७
- देवीरहस्य पटल ४६
- ब्रह्महृदय स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय १५५
- अग्निपुराण अध्याय १५४
- अग्निपुराण अध्याय १५३
- अग्निपुराण अध्याय १५२
- अग्निपुराण अध्याय १५१
- मृत्युञ्जयस्तोत्र
- महामृत्युञ्जय सहस्रनाम
- देवीरहस्य पटल ४२
- देवीरहस्य पटल ४१
- ब्रह्म शतनाम स्तोत्र
- ब्रह्म कवच
- अग्निपुराण अध्याय १५०
- अग्निपुराण अध्याय १४९
- अग्निपुराण अध्याय १४८
- अग्निपुराण अध्याय १४७
- अग्निपुराण अध्याय १४६
- लक्ष्मीनारायण मूलमन्त्र स्तोत्र
- लक्ष्मीनारायण सहस्रनाम
- लक्ष्मीनारायण वज्रपंजर कवच
- देवीरहस्य पटल ३७
- देवीरहस्य पटल ३६
-
▼
June
(45)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
अग्निपुराण अध्याय १४७
अग्निपुराण अध्याय १४७ में गुह्यकुब्जिका,
नवा त्वरिता तथा दूतियों के मन्त्र एवं न्यास-पूजन आदि का वर्णन है।
अग्निपुराणम् सप्तचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 147
अग्निपुराण एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः १४७
अग्निपुराणम् अध्यायः १४७ – त्वरितापूजादिः
अथ सप्तचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः
ईश्वर उवाच ।
ओं गुह्यकुब्जिके हुं फट्मम
सर्वोपद्रवान् यन्त्रमन्त्रतन्त्रचूर्णप्रयोगादिकं येन कृतं कारितं कुरुते
करिष्यति कारयिष्यति तान् सर्वान् हन २ दंष्ट्राकरालिनि ह्रैं ह्रीं हुं
गुह्यकुब्जिकायै द्वाहा ।
ह्रौं ओं खे वों गुह्यकुब्जिकायै
नमः॥१॥
ह्रीं सर्वजनक्षोभणी जनानुकर्षिणी
ततः ।
ओं खें ख्यां,
सर्वजनवशङ्करी तथा स्याज्जनमोहिनी ॥२॥
ओं ख्यौं सर्वजनस्तम्भनी ऐं खं
ख्रां क्षोभणी तथा ।
ऐं त्रितत्त्वं वीजं श्रेष्ठङ्कुलं
पञ्चाक्षरी तथा ॥३॥
फं श्रीं क्षीं श्रीं ह्रीं क्षें
वच्छे क्षे क्षे ह्रूं फट् ह्रीं नमः ।
ओं ह्रां क्षे वच्छे क्षे क्षो
ह्रीं फट् ॥४ ॥
भगवान् महेश्वर कहते हैं—स्कन्द ! (अब मैं गुह्य कुब्जिका, नवा त्वरिता,
दूती तथा त्वरिता के गुह्याङ्ग एवं तत्त्वों का वर्णन करूँगा - ) 'ॐ गुह्यकुब्जिके हुं फट् मम सर्वोपद्रवान्
यन्त्रमन्त्रतन्त्रचूर्णप्रयोगादिकं येन कृतं कारितं कुरुते करिष्यति कारयिष्यति
तान् सर्वान् हन हन द्रष्ट्राकरालिनि ह्रैं ह्रीं ह्रूं गुह्यकुब्जिकायै स्वाहा ह्रौं,
ॐ खें वों गुह्यकुब्जिकायै नमः ।' (इस मन्त्र से
गुह्यकुब्जिका का पूजन एवं जप करना चाहिये।) 'ह्रीं
सर्वजनक्षोभणी जनानुकर्षिणी ॐ खें ख्यां ख्यां सर्वजनवशंकरी जनमोहनी, ॐ ख्यौं सर्वजनस्तम्भनी, ऐं खं खां क्षोभणी, ऐं त्रितत्त्वं बीजं श्रेष्ठं कुले पञ्चाक्षरी, फं
श्रीं श्रीं ह्रीं क्षे वच्छे क्षे क्षे हूं फट् ह्रीं नमः । ॐ ह्रां वच्छे क्षे
क्षें क्षों ह्रीं फट् ' ॥ १-४ ॥
नवेयं त्वरिता पुनर्ज्ञेयार्चिता
जये ।
ह्रीं सिंहायेत्यासनं स्याथ्रीं
क्षे हृदयमीरितं ॥५॥
वच्छेऽथ शिरसे स्वाहा त्वरितायाः
शिवः स्मृतः ।
क्षें ह्रीं शिखायै
वौषट्स्याद्भवेत्क्षें कवचाय हुं ॥६॥
ह्रूं नेत्रत्रयाय वौषठ्रीमन्तञ्च
फडन्तकं ।
ह्रीं कारी खेचरी चण्डा छेदनी
क्षोभणी क्रिया ॥७ ॥
क्षेमकारी च ह्रीं कारी फट्कारी
नवशक्तयः ।
यह 'नवा त्वरिता' बतायी गयी है। इसे बारंबार जानना
(जपना) चाहिये। इसकी पूजा की जाय तो यह विजयदायिनी होती है। 'ह्रौं सिंहाय नमः ।' इस मन्त्र से आसन की पूजा करके देवी
को सिंहासन समर्पित करे। 'ह्रीं क्षे हृदयाय नमः ।' बोलकर हृदय का स्पर्श करे। 'वच्छे शिरसे स्वाहा।'
बोलकर सिर का स्पर्श करे - इस प्रकार यह ' त्वरितामन्त्र'
का शिरोन्यास बताया गया है। ' ह्रीं शिखायै
वषट्।' ऐसा कहकर शिखा का स्पर्श करे । 'क्षें कवचाय हुम्।' कहकर दोनों भुजाओं का स्पर्श करे
। 'ह्रूं नेत्रत्रयाय वौषट् ।' कहकर
दोनों नेत्रों का तथा ललाट के मध्यभाग का स्पर्श करे। 'ह्रीं
अस्त्राय फट्।' कहकर ताली बजाये। हींकारी, खेचरी, चण्डा, छेदनी, क्षोभणी, क्रिया, क्षेमकारी,
हुंकारी तथा फट्कारी – ये नौ शक्तियाँ हैं ॥
५-७अ ॥
अथ दूरीः प्रवक्ष्यामि पूज्या
इन्द्रादिगाश्च ताः ॥८॥
ह्रीं नले बहुतुण्डे च खगे ह्रीं
खेचरे ज्वलानि ज्वल ख खे छ छे शवविभीषणे च छे चण्डे छेदनि करालि ख खे छे क्षे
खरहाङ्गी ह्रीम् । क्षे वक्षे कपिले ह क्षे ह्रूं क्रून्तेजोवति रौद्रि मातः ह्रीं
फे वे फे फे वक्रे वरी फे । पुटि पुटि घोरे ह्रूं फट् ब्रह्मवेतालि मध्ये ॥९॥
अब दूतियों का वर्णन करता हूँ। इन
सबका पूर्व आदि दिशाओं में पूजन करना चाहिये - 'ह्रीं नले बहुतुण्डे च खगे ह्रीं खेचरे ज्वालिनि ज्वल ख खे छ च्छे
शवविभीषणे चच्छे चण्डे छेदनि करालि ख खे छे खे खरहाङ्गी ह्रीं क्षे वक्षे कपिले ह
क्षे ह्रूं क्रूं तेजोवति रौद्रि मातः ह्रीं फे वे फे फे वक्त्रे वरी फे पुटि पुटि
घोरे ह्रूं फट् ब्रह्मवेतालि मध्ये' (यह दूती मन्त्र है) ॥
८-९ ॥
गुह्याङ्गानि च तत्त्वानि त्वरितायाः
पुनर्वदे ।
ह्रौं ह्रूं हः हृदये प्रोक्तं हों
हश्च शिरः स्मृतं ॥१०॥
फां ज्वल ज्वलेति च शिखा वर्म इले
ह्रं हुं हुं ।
क्रों क्षूं श्रीं नेत्रमित्युक्तं
क्षौं अस्त्रं वै ॥११॥
ततश्च फठुं खे वच्छे क्षेः ह्रीं
क्षें हुं फट्वा ।
अब पुनः त्वरिता के गुह्याङ्गों तथा
तत्त्वों का वर्णन करता हूँ। 'ह्रौं ह्रूं हः
हृदयाय नमः।' इसका हृदय में न्यास करे। 'ह्रीं हः शिरसे स्वाहा।' ऐसा कहकर सिर में न्यास
करे। फां ज्वल ज्वल शिखायै वषट्।' कहकर शिखा में, 'इले ह्रं हूं कवचाय हुम्।' कहकर दोनों भुजाओं में 'क्रों क्षं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।' बोलकर नेत्रों
में तथा ललाट के मध्यभाग में न्यास करे। क्षौं अस्त्राय फट्।' कहकर दोनों हाथों से ताली बजाये अथवा 'हुं खे वच्छे
क्षे ह्रीं क्षे हुं अस्त्राय फट्।' कहकर ताली बजानी चाहिये
॥ १० – ११अ ॥
हुं शिरश्चैव मध्ये स्यात्पूर्वादौ खे
सदाशिवे ॥१२॥
व ईशः छे मनोन्मानी मक्षे तार्क्षो
ह्रीं च माधवः ।
क्षें ब्रह्मा हुं तथादित्यो दारुणं
फट्स्मृताः सदा ॥१३॥
मध्यभाग में 'हुं स्वाहा।' लिखे तथा पूर्व आदि दिशाओं में क्रमशः 'खे सदाशिवे, व ईशः, छे मनोन्मनी,
मक्षे तार्क्षः, ह्रीं माधवः, क्षें ब्रह्मा, हुम् आदित्यः, दारुणं
फट् का उल्लेख एवं पूजन करे। ये आठ दिशाओं में पूजनीय देवता बताये गये हैं ॥ १२-१३
॥
इत्याग्नेये महापुराणे
युद्धजयार्णवे त्वरितापूजादिर्नाम सप्तचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'त्वरिता- पूजा आदि की विधि का वर्णन' नामक एक सौ
सैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥१४७॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 148
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: