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देवीरहस्य पटल ५६
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रुद्रयामलतन्त्रोक्तं देवीरहस्यम् षट्पञ्चाशत्तमः पटलः पञ्चरत्नेश्वरीविद्या
Shri Devi Rahasya Patal 56
रुद्रयामलतन्त्रोक्त देवीरहस्य छप्पनवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त देवीरहस्यम् षट्पञ्चपञ्चाशत्तम
पटल
देवीरहस्य पटल ५६ पञ्चरत्नेश्वरी विद्या
अथ षट्पञ्चाशत्तमः पटलः
पञ्चरत्नेश्वरीविधिनिर्णयः
श्रीभैरव उवाच
अधुना देवि वक्ष्येऽहं
पञ्चरत्नेश्वरीविधिम् ।
येन श्रवणमात्रेण विद्या सिद्ध्यति
सत्वरम् ॥ १ ॥
विना पञ्चरत्लेश्वरीमन्त्रजाप्यं
न सिद्धिर्भवेत् साधकस्योत्तमस्य ।
ततः पूजयेद् दीक्षितः श्रीगुरुं स्वं
समस्ताष्टसिद्धीश्वरं देवदेवि ॥ २ ॥
दुर्गायाः परमं तत्त्वं
पञ्चरत्नेश्वरीमयम् ।
शृणुष्वावहितो भूत्वा येन मुक्तिर्भवेत्
कलौ ॥ ३ ॥
श्रीदुर्गा शारदा शारी सुमुखी
बगलामुखी ।
पञ्चरत्नेश्वरी विद्या दुर्गायाः
कथिता मया ॥४॥
पञ्चरत्नेश्वरीविधि-निर्णय श्री
भैरव ने कहा कि हे देवि! अब मैं पञ्चरत्नेश्वरी विधि का वर्णन करता हूँ,
जिसके सुनने मात्र ही से तत्काल विद्या सिद्ध होती है। बिना
पञ्चरत्नेश्वरी - मन्त्रजप के उत्तम साधक को भी सिद्धि नहीं मिलती। इसलिये अपने
दीक्षागुरु की पूजा करके समस्त अष्टसिद्धीश्वर देव देवी का पूजन करे।
पञ्चरत्नेश्वरी विधि दुर्गा का परमतत्त्व है। सावधान चित्त होकर इसे सुनो। इससे
कलियुग में मुक्ति प्राप्त होती है। मैंने पहले ही कहा है कि दुर्गा, शारदा, शारिका, सुमुखी और
बगलामुखी — ये पाँच दुर्गा की पञ्चरत्नेश्वरी विद्यायें हैं
।। १-४ ।।
देवीरहस्य पटल ५६- पञ्चरत्नेश्वरीविद्याजापेन
वर्णलक्षपुरश्चर्याफलम्
सुदिने देवि दुर्गायाः
पञ्चरत्नेश्वरीं जपेत् ।
वर्णलक्षपुरश्चर्याफलमाप्नोति साधकः
॥५॥
साधकेषु चतुर्ष्वेवं
श्रीदुर्गासाधकः शिवे ।
श्रीगुरुं वन्दनैः स्तुत्या
तोषयित्वा धनैरपि ॥६॥
दीक्षामन्येषु शिष्येषु दापयेत्
साधकोत्तमः ।
येन मन्त्रो हि दुर्गायाः सद्यः स्फुरति
भारती ॥७॥
पञ्चस्वपि महादेवि साधकेषु कलौ युगे
।
पञ्चरत्नेश्वरी दत्त्वा
पुरश्चर्याफलं लभेत् ॥८ ॥
पञ्चरत्नेश्वरी विद्याजप से
वर्णलक्ष पुरश्चरण का फल - शुभ दिन में दुर्गा की पञ्चरत्नेश्वरी विद्या का जप
करे। इससे साधक को वर्णलक्षजप पुरश्चरण का फल मिलता है। चार साधकों में दुर्गासाधक
भी एक है। श्रीगुरु को वन्दना, स्तुति,
धन से सन्तुष्ट करे। तब गुरु शिष्य को दीक्षामन्त्र प्रदान करे। इसी
दुर्गामन्त्र से भारती का स्फुरण होता है। कलियुग में पञ्चरत्नेश्वरी विद्या देने
से गुरु को पुरश्चरण का फल प्राप्त होता है।।५-८।।
श्रीदुर्गोपासकश्चैकः शारदोपासकः
परः ।
शारिकोपासकस्त्वन्यो
मातङ्ग्यास्त्वपरः शिवे ॥९॥
पञ्चमो बगलामुख्याश्चैकत्र
मिलिताश्च ते ।
पूजयेयुर्गुरुं देवि पञ्चरत्नेश्वरी
जपेत् ॥ १० ॥
अन्योन्यं साधकाः पञ्च श्रीगुरोः
पुरतः शिवे ।
पुरश्चर्याफलं सिद्धं
प्रार्थयेयुर्गुरोस्ततः ॥ ११ ॥
एवं सिद्धमनुलोंके सर्वसिद्धिं
प्रयच्छति ।
उपासकों में श्रीदुर्गोपासक पहला
है। दूसरा शारदोपासक है। तीसरा शारिकोपासक है, चौथा
मातङ्गी का उपासक है एवं पाँचवाँ बगलामुखी का उपासक है। ये सभी एकत्र सम्मिलित
होकर एक होते हैं। गुरु का पूजन करके पञ्चरत्नेश्वरी का जप करे। पाँचों के
पृथक्-पृथक् साधक गुरु के सामने पुरश्चरण के फल की सिद्धि के लिये गुरु से
प्रार्थना करें। इस प्रकार से सिद्ध मन्त्र संसार में सभी सिद्धियों को देने वाला
होता है । । ९-११ ।।
देवीरहस्य पटल ५६- दुर्गामन्त्रोद्धारः
तारं माया चाक्रिकं
चक्रिदूर्वावायव्याढ्यं विश्वमन्ते भवानि ।
दुर्गायास्ते वर्णितो
मूलविद्यामन्त्रोद्धारो गोपितोऽष्टाक्षरोऽयम् ॥ १२ ॥
दुर्गामन्त्रोद्धार-तार = ॐ, माया= ह्रीं, चाक्रिकं= दुं,
चक्रिदूर्वावायव्याढ्यं = दुर्गायै, विश्व = नमः के योग से
बना मन्त्र स्पष्ट है - ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः। इस प्रकार इस गोपित
दुर्गा अष्टाक्षर मन्त्र के उद्धार का वर्णन तुम्हारे लिये किया गया। यह दुर्गा की
मूल विद्या है ।। १२ ।।
देवीरहस्य पटल ५६- शारदामन्त्रोद्धारः
तारं माया कामराजश्च शक्तिः स्तम्भं
तस्माद्भगवत्यै च नाम ।
भूतिस्तस्मादञ्चले ठद्वयं स्यात्
प्रोक्तं मुक्त्यै शारदामन्त्र एषः ।। १३ ।।
शारदामन्त्रोद्धार- तार= ॐ, माया= ह्रीं, कामराज = क्लीं,
शक्ति = सौः, स्तम्भ = नमो भगवत्यै,
नाम= शारदायै, ठद्वयं= स्वाहा के योग से मन्त्र स्पष्ट हैं- ॐ
ह्रीं क्लीं सौः नमो भगवत्यै शारदायै ह्रीं स्वाहा। यह शारदा मन्त्र मोक्षदायक
कहा गया है ।। १३ ।।
देवीरहस्य पटल ५६- शारिकामन्त्रोद्धारः
तारं परा मातटसिन्धुरार्णाः खं शर्म
तन्मध्यगतं च नाम ।
अन्तेऽश्मरी पार्वति
शारिकायास्त्रयोदशार्णो मनुरस्ति गोप्यः ॥ १४ ॥
शारिका मन्त्रोद्धार –
तार= ॐ, परा= ह्रीं, मा= श्रीं, तट= हूं, सिन्धूर = फ्रां, खं= आं, शर्म= सौः, शरिकायै, अश्मरी= नमः के योग से मन्त्र स्पष्ट होता है - ॐ ह्रीं श्रीं हूं क्रां आं
सौः शारिकायै नमः । इस मन्त्र में तेरह अक्षर हैं। यह मन्त्र गोपनीय है ।। १४
।।
देवीरहस्य पटल ५६- सुमुखीमन्त्रोद्धारः
वाक् काममुच्छिष्टपदं विभाव्य
चण्डालिनी वै सुमुखी च देवि ।
महापिशाची सकलात्रयाब्जं वनं मनुः
स्यात् सुमुखीप्रियोऽयम् ।। १५ ।।
सुमुखी-मन्त्रोद्धार–वाक् = ऐं, काम= क्लीं, उच्छिष्टचण्डालिनि,
सुमुखि देवि महापिशाचि, सकलात्रय= ह्रीं ह्रीं
ह्रीं, अब्ज= ऐं, वनं= नमः के योग्य से
मन्त्र स्पष्ट है - ऐं क्लीं उच्छिष्टचण्डालिनि सुमखि देवि महापिशाचि ह्रीं
ह्रीं ह्रीं ऐं नमः। यह मन्त्र सुमुखी को प्रिय है ।। १५ ।।
देवीरहस्य पटल ५६- बगलामन्त्रोद्धारः
तारं मठं बगलामुखि सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं स्तम्भय द्विः ।
पदं जिह्वां कीलय द्विर्मठं वा तारं
नीरं ब्रह्मणोऽस्त्यस्त्रविद्या ॥ १६ ॥
बगलामुखी - मन्त्रोद्धार - ॐ
ग्लौं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय ग्लौं
ॐ स्वाहा। यह मन्त्रस्पष्ट तार= ॐ, मठं
= ग्लौं, बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय
जिह्वां कीलय कीलय, मठं = ग्लौं, तारं
= ॐ, नीरं= स्वाहा
के योग से होता है। यह ब्रह्मास्त्र विद्या है ।। १६ ।।
देवीरहस्य पटल ५६- पटलोपसंहारः
इत्येषा गुप्तविद्येयं प्रभावसहिता
कलौ ।
पञ्चरत्नेश्वरी ग्राह्या पुरश्चरणसिद्धये
॥१७॥
इतीदं तत्त्वमीशानि
पुरश्चर्यारहस्यकम् ।
अनन्तफलदं गुह्यं गोपनीयं
मुमुक्षुभिः ॥ १८ ॥
इन गुप्त विद्याओं को प्रभावसहित
कलियुग में ग्रहण करने से पुरश्चरण सिद्ध होता है। हे ईशानि! पुरश्चरणरहस्य का यह
तत्त्व अनन्त फलप्रद, गुह्य और गोपनीय
है। इसे मुमुक्षुओं को भी नहीं बतलाना चाहिये ।। १७-१८ ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये पञ्चरत्नेश्वरीविद्यानिरूपणं नाम षट्पञ्चाशत्तमः पटलः ॥ ५६ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में पञ्चरत्नेश्वरीविद्या निरूपण नामक षट्पञ्चाशत्तम
पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 57
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