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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीदेवीरहस्य पटल १२
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल १२ में यन्त्रोद्धार विधि श्रीचक्रनिर्णय के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् द्वादश: पटलः यन्त्रोद्धारः
Shri Devi Rahasya Patal 12
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य बारहवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
द्वादश पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ श्रीचक्रनिर्णय
अथ द्वादश: पटलः
यन्त्रोद्धारः
यन्त्रोद्धारकथनम्
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि गुह्यं
सर्वस्वमुत्तमम् ।
श्रीचक्रनिर्णयं नाम पटलं देवदुर्लभम्
॥ १ ॥
देवीनां परमप्रीत्या यन्त्रोद्धारं ब्रवीम्यहम्
।
यस्य कस्य न वक्तव्यं गोपनीयं
विशेषतः ॥ २ ॥
त्रयस्त्रिंशतिदेवानां कोटयः
स्युर्महेश्वरि ।
देवीनां च तथा देवि
त्रयस्त्रिंशतिकोटयः ॥ ३ ॥
तासां मध्ये प्रधानाः
स्युस्त्रयस्त्रिंशतिदेवताः ।
पूर्वोक्ता या महादेवि तासां
यन्त्रोत्तमाञ्छृणु ॥४॥
यन्त्रोद्धार - कथन –
श्री भैरव ने कहा- हे देवि ! सुनो, अब मैं
गुहा सर्वस्व उत्तम श्रीचक्रनिर्णय नामक देवदुर्लभ पटल का वर्णन करता हूँ। देवियों
के परम प्रीतिदायक यन्त्रोद्धार का कथन मैं करता हूँ। इसे जिस किसी को नहीं बतलाना
चाहिये; क्योंकि यह विशेषतः गोपनीय है। हे महेश्वरि! तैंतीस
कोटि देवता के समान ही तैंतीस कोटि देवियाँ भी हैं। उनमें से तैतीस देवता ही
प्रधान हैं, जिनका वर्णन मैं पहले ही कर चुका हूँ। अब उनके
उत्तम यन्त्रों का वर्णन सुनो ।। १-४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - बालायन्त्रोद्धारकथनम्
अथ वक्ष्ये तव प्रीत्या बालायन्त्रं
महेश्वरि ।
सर्वार्थसाधकं देवि
सर्वाशापरिपूरकम् ॥५॥
बिन्दुत्रिकोणरसकोणकनागपत्रवृत्तत्रयाञ्चितमही
सदनत्रयं च ।
बालादिचक्रमिदमार्तिहरं गिरीश
ब्रह्मेन्द्रविष्णुनमितं गदितं मया ते ॥ ६ ॥
बालायन्त्रोद्धार - हे महेश्वरि ! अब मैं तुम्हारी प्रीति के लिये बालायन्त्र को बतलाता हूँ। इस यन्त्र में सर्वार्थ साधक, सर्वाशा-परिपूरक, बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, तीन वृत्त और चतुर्द्वारयुक्त तीन भूपुर होते हैं। यह सभी दुःखों का निवारक, गिरीश, ब्रह्मा, इन्द्र और विष्णु के द्वारा वन्दित है तथा मेरे द्वारा वर्णित है ।। ५-६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - त्रिपुर
भैरवीयन्त्रोद्धारकथनम्
अथो त्रिपुरभैरव्या यन्त्रोद्धारं
ब्रवीम्यहम् ।
सकलागमसाराढ्यमापदुद्धारणक्षमम् ॥७॥
बिन्दुत्र्यश्रं नागकोणं दशारं
वृत्ताञ्चितं वसुपत्रं कलारम् ।
वृत्तत्रयं भूनिकेतत्रयं च
श्रीचक्रं ते वर्णितं भैरवीयम् ॥८ ॥
त्रिपुरभैरवी अर्थात्
त्रिपुरसुन्दरी - यन्त्र- अब मैं त्रिपुरभैरवी अर्थात् त्रिपुरसुन्दरी के
यन्त्रोद्धार का वर्णन करता हूँ। यह सभी आगमों का सार है। सभी आपत्तियों आपदाओं से
उद्धार करने में सक्षम है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण, दशार
वृत्तार्चित अष्टदल, द्वादश दल, वृत्तत्रय
और तीन भूपुर होते हैं।। ७-८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - त्रिपुरसुन्दरीयन्त्रोद्धारकथनम्
अथो त्रिपुरसुन्दर्या वक्ष्ये
श्रीचक्रनिर्णयम् ।
सर्वसम्मोहनं देवि
सर्वसिद्धिप्रवर्तकम् ॥ ९ ॥
शून्यं मध्यगमग्निकोणसहितं
दिग्दन्तिकोणाङ्कितं
विंशारं मनुमिश्रितं करिदल
श्रीषोडशाराञ्चितम् ।
सत्तत्रयसंयुतं च धरणीगेहाङ्कितं
त्रैपुरं
भक्त्या भीष्टफलप्रदं कलियुगे
श्रीचक्रमुद्द्योतते ॥ १० ॥
बिन्दुत्रिकोणवसुकोणदशारयुग्ममन्वश्रनागदलसङ्गतषोडशारम्
।
वृत्तत्रयञ्च धरणीसदनत्रञ्च
श्रीचक्रमेतदुदितं परदेवतायाः ॥ ११॥
अब त्रिपुरसुन्दरी के श्रीचक्र का
निरूपण करता हूँ। इस यन्त्र में सर्वसम्मोहन, सर्वसिद्धिप्रद,
शून्य बिन्दु, अग्निकोण सहित अष्टकोण, विंशार, द्वादशार, षोडशदल तीन
वृत, भूपुरत्रय होते हैं। उपर्युक्त दोनों प्रकार के
श्रीयन्त्र आद्य शंकराचार्य के मत से वर्तमान कलियुग में प्रचलित नहीं हैं।
वर्तमान में त्रिपुरभैरवी दश महाविद्याओं में एक स्वतन्त्र महाविद्या है; किन्तु इस ग्रन्थ के सप्तम पटल के श्लोक २ के अनुसार-
या बाला भैरवीं सैव सैव
त्रिपुरसुन्दरी ।
त्रिपुरा यास्ति सा काली श्यामा सैव
परा स्मृता ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - कालिकायन्त्रोद्धारः
अथाहं कालिकायास्ते यन्त्रोद्धारं
ब्रवीम्यहम् ।
सर्वार्थसिद्धिदं लोके
सर्वकामप्रपूरकम् ।। १२ ।।
त्रिकोणस्थं शून्यं तदुपरि
शरत्कोणसहितं
त्रिकोणं षट्कोणं भगवति च वृत्तं
वसुदलम् ।
त्रिवृत्तं तद्वाह्ये
क्षितिभुवनयुक्तं च जयता-
दिदं श्यामायन्त्रं मरणभयवर्गप्रमथनम्
॥ १३ ॥
कालिका यन्त्रोद्धार - अब मैं कालिका यन्त्र के उद्धार का वर्णन करता हूँ। संसार में यह सभी सिद्धियों को देने वाला एवं सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है कालीपूजन यन्त्र बिन्दु, पाँच त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, वृत्तत्रय और भूपुर से बनता है। यह यन्त्र मृत्युभयवर्ग का विनाशक है ।।१२-१३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - भद्रकालीयन्त्रोद्धारः
अथाहं भद्रकाल्यास्ते यन्त्रोद्धारं
सुरप्रियम् ।
ब्रवीमि दयया देवि
सर्वसारस्वतप्रदम् ॥ १४ ॥
मध्ये तुर्यवरं खमण्डलयुतं द्विः
सप्तकाराङ्कितं
द्विस्तुर्यारयुगं
चतुर्गुणचतुष्पत्रावलीशोभितम् ।
सद्धत्रयमण्डितं
बहिरिलागेहत्रयोद्भासितं
जीयाद्यन्त्रमिदं यथेष्टफलदं
श्रीभद्रकालीप्रियम् ॥ १५ ॥
भद्रकाली यन्त्रोद्धार- अब मैं देवताओं की प्रिय भद्रकाली यन्त्र का वर्णन करता हूँ, जो सभी सारस्वत पदों को देने वाला है। बीच में तुर्यवर खमण्डलयुक्त द्विसप्तकाराङ्कित द्विस्तुयरयुग चतुर्गुण चतुष्पत्रावली शोभित के बाहर वृत्तत्रय, भूपुर-त्रययुक्त आद्य यन्त्र यथेष्ट फलप्रद भद्रकाली को प्रिय है। बीजाक्षर पारिभाषिक सूची से इसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता। अन्य तन्त्रों में वर्णित भद्रकाली का पूजन यन्त्र साधकों के लाभार्थ यहाँ अङ्कित है । । १४-१५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - मातङ्गीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्यामि मातङ्गया यन्त्रं
तन्त्रविनिश्चितम् ।
देवदेवि तव प्रीत्या न चान्यत्र
प्रकाशयेत् ।। १६ ।।
बिन्दुस्त्रिकोणं वसुकोणयुक्तं
वृत्तं ततो नागदलं त्रिवृत्तम् ।
भूमन्दिरं पार्वति वह्निरेखं मातङ्गिनीयन्त्रमिदं
प्रदिष्टम् ॥ १७ ॥
मातङ्गी यन्त्रोद्धार—हे देवदेवि ! अब मैं तन्त्रों में विनिश्चित मातङ्गी यन्त्र को तुम्हारी प्रीति के कारण बतलाता हूँ। इसे अन्यत्र प्रकाशित नहीं करना चाहिये। मातङ्गी यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण और अष्टदलयुक्त वृत्त, वृत्तत्रय और भूपुरत्रय होते हैं। यह यन्त्र सर्वाभीष्ट-प्रदायक हैं।।१६-१७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - भुवनेश्वरीयन्त्रोद्धारः
अथाहं भुवनेश्वर्या यन्त्रोद्वारं
ब्रवीमि ते ।
प्रीत्या भक्त्या महेशानि न
चाख्येयं महात्मभिः ॥ १८ ॥
बिन्दुत्रिकोणं रसकोणसंयुतं
वृत्ताञ्चितं नागदलेन मण्डितम् ।
कलारवृत्तत्रय भूगृहाङ्कितं
श्रीचक्रमेतद्भुवनेश्वरीप्रियम् ॥ १९ ॥
भुवनेश्वरी यन्त्रोद्धार - अब मैं भुवनेश्वरी यन्त्र का उद्धार सुनाता हूँ। तुम्हारी प्रीति के कारण मैंने इसे प्रकट किया है। इसे किसी महात्मा को भी नहीं बतलाना चाहिये। भुवनेश्वरी यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदलयुक्त वृत्त षोड़श दलयुक्त वृत्त, वृत्तत्रय और भूपुर होते हैं ।।१८-१९।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - उग्रतारायन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्यामि ताराया यन्त्रोद्धारमनुत्तमम्
।
भोगमोक्षप्रदं देवि गोप्यं कुरु
महेश्वरि ॥ २० ॥
बिन्दुत्रिकोणं च षडस्रयुक्तं
वृत्तं तथाष्टारमलं त्रिवृत्तम् ।
सभूपुरं चैकजटाविलासगेहं मया
यन्त्रमिदं प्रदिष्टम् ॥ २१ ॥
तारा यन्त्रोद्धार- अब मैं तारा के उत्तम यन्त्र का उद्धार बतलाता हूँ। यह यन्त्र भोग-मोक्षप्रदायक है, हे महेश्वरि इसे गुप्त रखना चाहिये। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, वृत्तत्रय, भूपुर होते हैं। यह यन्त्र एकजटा का विलास गृह कहा गया है और इष्टार्थ प्रदायक है।। २०-२१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - छिन्नमस्तायन्त्रोद्धारः
अथाहं छिन्नमस्ताया
यन्त्रोद्धारमनुत्तमम् ।
प्रवक्ष्यामि तव प्रीत्या न
वक्तव्यं मुमुक्षुभिः ॥ २२ ॥
बिन्दुत्रिकोणं च बहिस्त्रिकोण त्रिकोणमूर्ध्वं
शुभवृत्तबिम्बम् ।
वस्वश्रयुक्तं धरणीगृहं स्यात् श्रीचक्रमेतत्
परदेवतायाः ॥ २३ ॥
छिन्नमस्ता यन्त्रोद्धार – हे देवि! तुम्हारी प्रीति के कारण अब मैं उत्तम छिन्नमस्ता यन्त्र का उद्धार वर्णन करता हूँ। इसे मुमुक्षुओं को भी नहीं बतलाना चाहिये। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदलयुक्त वृत्त और भूपुर होते हैं ।। २२-२३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - सुमुखीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्यामि ते देव्या
यन्त्रोद्धारं महेश्वरि ।
सुमुख्याः सारसर्वस्वं न देयं
ब्रह्मवादिभिः ॥ २४ ॥
बिन्दुं चानलकोणगं च विलिखेद्
बाणाश्रकोणाङ्कितं
वृत्तं नागदलेन मण्डितमथो
श्रीषोडशाराङ्कितम् ।
सद्वृत्तत्रयसंयुतं च
धरणीगेहाङ्कितं पार्वति
श्रीचक्रं सुमुखीप्रियं विजयताद्
भोगापवर्गप्रदम् ॥ २५ ॥
सुमुखी यन्त्रोद्धार हे महेश्वरि ! अब मैं तुम्हें सुमुखी देवी के सारसर्वस्व यन्त्रोद्धार का वर्णन सुनाता हूँ। ब्रह्मवादियों को भी इसे नहीं बतलाना चाहिये। सुमुखी देवी का यन्त्र बिन्दु, त्रिकोण, पञ्चकोण, अष्टदलाङ्कित वृत्त, षोड़श दल, वृत्तत्रय, भूपुर से बनता है। सुमुखी प्रिय यह यन्त्र भोग, अपवर्ग और मोक्षप्रद है।। २४-२५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - सरस्वतीयन्त्रोद्धार
अथ वक्ष्यामि तत्त्वं ते
यन्त्रोद्धारं महेश्वरि ।
सरस्वत्याः कौलिकानां
भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥ २६ ॥
त्रिकोणं सबिन्दु ततः षट्ककोणं सवृत्तं
ततो नागपत्र त्रिवृत्तम् ।
धरामन्दिरं वह्निरेखोज्ज्वलं ते मयोक्तं
हि सारस्वतं यन्त्रमेतत् ॥ २७ ॥
सरस्वती यन्त्रोद्धार - हे महेश्वरि । कौलिकों को मुक्तिप्रदायक सरस्वती यन्त्रोद्धार तत्त्व का वर्णन करता हूँ। सरस्वती यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, वृत्त अष्टपत्र, वृत्तत्रय, त्रिरेखात्मक भूपुर होते हैं। सारस्वत यन्त्र यही होता है ।। २६-२७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - अन्नपूर्णायन्त्रोद्धारः
अथाहमन्नपूर्णाया यन्त्रराजं
ब्रवीमि ते ।
सर्वसम्मोहनं देवि सर्वभोगैकसाधनम्
॥ २८ ॥
त्रिकोणं रसारं त्रिकोणं त्रिकोणं
त्रिकोणं त्रिकोणं त्रिकोणं हि वृत्तम्
।
ततो नागपत्राञ्चितं चाग्निवृत्तं
धरामन्दिरं चान्नपूर्णेष्टचक्रम् ॥
२९॥
अन्नपूर्णा यन्त्रोद्धार – अब मैं अन्नपूर्णा यन्त्र का वर्णन करता हूँ, जो सर्वसम्मोहन एवं सभी भोगों का साधन है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण के बाद पाँच त्रिकोण, अष्टदल, वृत्तत्रय और भूपुर होते हैं ।। २८-२९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - महालक्ष्मीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्ये शिवे यन्त्रं
महालक्ष्म्याः परात् परम् ।
यमभ्यर्च्य मया प्राप्तं दुर्लभं
परमं पदम् ॥ ३० ॥
खं वह्नयारगतं च कारममलं वृत्तं
बहिः शोभनं
बाह्ये नागदलं
कलारविलसद्वृत्तत्रयोद्भासितम् ।
भूगेहत्रयशोभितं तव मया
निर्णीतमेतत् परं
श्रीचक्रं परमार्थदायि च
महालक्ष्मीप्रियं सिद्धिदम् ॥ ३१ ॥
महालक्ष्मी यन्त्रोद्धार – हे शिवे ! अब मैं महालक्ष्मी के परात्पर यन्त्र का वर्णन करता हूँ, जिसका अर्चन करके ही मैंने भी यह दुर्लभ पद पाया है। महालक्ष्मी यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टदल, द्वादशदल, वृत्तत्रय, त्रिरेखात्मक भूपुर होते हैं। महालक्ष्मी को प्रीतिप्रद यह यन्त्र परमार्थदायक है।। ३०-३१।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - शारिकायन्त्रोद्धारः
यन्त्रोद्धारं प्रवक्ष्यामि
साधकानां शुभावहम् ।
शारिकाया महादेवि लीलालयलयाकुलम् ॥
३२ ॥
खत्रिकोणवसुकोणसुवृत्तोद्द्योतनागदलवृत्तमण्डलम्
।
भूगृहं शिखिरवीन्दुभाश्चितं
यन्त्रमेतदुदितं शिलालयम् ॥ ३३ ॥
शारिका यन्त्रोद्धार - हे महादेवि! शारिका देवी का यन्त्रोद्धार बतलाता हूँ। यह साधकों को शुभदायक है। यह लीलालयलयाकुल है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण सहित अष्टदल, भूपुर होते हैं। भूपुर में तीन रेखाएँ होती है ।। ३२-३३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - शारदायन्त्रोद्धारः
यन्त्रोद्धारं महादेवि शारदाया
ब्रवीम्यहम् ।
सर्वार्थसाधकं चक्रं
सर्वकामप्रपूरकम् ।। ३४ ।।
मध्ये बिन्दुस्तद्बहिः स्यात् त्रिकोणं
षट्कोणं स्याद् वृत्तवस्वश्रयुक्तम् ।
वृत्ताकारं षोडशारं त्रिवृत्तं भूगेहं
स्याच्छारदायन्त्रमेतत् ॥ ३५ ॥
शारदा यन्त्रोद्धार- अब मैं सर्वार्थसाधक, सर्वकामप्रपूरक महादेवी शारदा के यन्त्रोद्धार को बतलाता हूँ। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, षोडशदल, वृत्तत्रय और भूपुर होते है।। ३४-३५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - इन्द्राक्षीयन्त्रोद्धारः
अथाहं ते प्रवक्ष्यामि
यन्त्रोद्धारं सुदुर्लभम् ।
इन्द्राक्ष्यास्तत्त्वसर्वस्वं
त्रिषु लोकेषु गोपितम् ॥ ३६ ॥
बिन्दुत्रिकोणजषड
श्रषडस्स्रयुक्त-षट्कोणवृत्तवसुपत्रकलाश्रमिश्रम् ।
भूगेहबिम्बमनलेन शशिप्रभाभ-मिन्द्राक्षिणीप्रियतरं
जयचक्रमेतत् ॥ ३७॥
इन्द्राक्षी यन्त्रोद्धार—अब मैं इन्द्राक्षी यन्त्र के उद्धार का वर्णन करता हूँ। यह यन्त्र इन्द्राक्षी तत्त्व का सर्वस्व, अति दुर्लभ और लोकों में गुप्त है। त्रिकोण, बिन्दु में षड्दल, षट्कोण, अष्टदल, षोडशदल और भूपुर से यह यन्त्र बनता है ।। ३६-३७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - बगलामुखीयन्त्रोद्धारः
अथ ते बगलामुख्या यन्त्रोद्धारं
ब्रवीम्यहम् ।
सर्वसिद्धिप्रदं देवि गोपनीयं
प्रयत्नतः ॥३८॥
बिन्दुस्त्रिकोणं च रसारवृत्त-वस्वश्रवृत्ताञ्चितषोडशारम्
।
वृत्तत्रयं भूसदनत्रयं च श्रीचक्रमेतद्
बगलामुखीयम् ॥ ३९ ॥
बगलामुखी यन्त्रोद्धार – हे देवि ! अब तुझसे मैं बगलामुखी के यन्त्रोद्धार का वर्णन करता हूँ। यह सर्वसिद्धिप्रद है और यत्नपूर्वक गुप्त रखने योग्य है। यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल और षोड़श दल, वृत्तत्रय और तीन भूपुर होते हैं ।। ३८-३९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - महातुरीयन्त्रोद्धारः
अथाह ते
महातुर्यायन्त्रोद्धारमनुत्तमम् ।
ब्रवीमि परमप्रीत्या
सकलाभीष्टसाधनम् ॥४०॥
बिन्दुत्रिकोणं नवयोनियुक्तं वृत्ताञ्चितं
नागदलं त्रिवृत्तम् ।
धरागृहं वह्नितुटीभिरीड्यं तुर्यालयं
चक्रमिदं प्रदिष्टम् ॥ ४१ ॥
महातुरी यन्त्रोद्धार – तुम्हारी प्रीति से प्रसन्न होकर मैं सकलाभीष्टदायक महातुरी के उत्तम यन्त्र का उद्धार बतलाता हूँ। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, नवयोनि, अष्टदल, वृत्तत्रय, त्रिरेखात्मक भूपुर होते हैं। देवी के आवासस्वरूप यह यन्त्र सभी अभीप्सितों को प्रदान करने वाला है।। ४०-४१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - महाराज्ञीयन्त्रोद्धारः
यत्रोद्धारं प्रवक्ष्यामि
सर्वाशापरिपूरकम् ।
सर्वार्थसाधकं चक्रं सर्वसम्मोहनं
तथा ॥ ४२ ॥
बिन्दुस्त्र्यनं पडनं च
वृत्ताष्टदलमण्डितम् ।
वृत्तत्रयं धरासद्म
राज्ञीश्रीचक्रमीरितम् ॥४३॥
महाराज्ञी यन्त्रोद्धार - अब महाराज्ञी के यन्त्रोद्धार का वर्णन किया जाता है, जो सभी आशा को परिपूर्ण करने वाला, सभी स्वार्थों का साधक और सबों को सम्मोहित करने वाला है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदलमण्डित वृत्त, वृत्तत्रय और भूपुर का अंकन होता है।।४२-४३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - ज्वालामुखीयन्त्रोद्धारः
अथ यन्त्रवरं वक्ष्ये ज्वालामुख्या
महेश्वरि ।
सर्वतत्त्वैकनिलयं सर्ववाञ्छितदायकम्
॥४४॥
मध्ये शून्यं तदुपरि शरत्कोणमालिख्य
देवि
तत्राधस्तात् त्रिकमथ बहिर्दिग्दलं
वृत्तमेकम् ।
वस्वश्रं द्विःकदलजशरद्वृत्तभूगेहयुक्तं
ज्वालामुख्या जगति
जयताच्चक्रमेतन्महेशि ॥४५ ॥
ज्वालामुखी यन्त्रोद्धार - हे महेश्वरि ! अब ज्वालामुखी के श्रेष्ठ यन्त्र का वर्णन करता हूँ। यह यन्त्र सभी तत्त्वों का आलय और सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है। इस यन्त्र में बिन्दु, पञ्चकोण, चार दल, वृत्त, अष्टदल, दो भूपुर होते हैं।। ४४-४५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - भीड़यन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्यामि देवेशि
भीडायन्त्रमनुत्तमम् ।
सर्वांगमरहस्याढ्यं सर्वसारस्वतप्रदम्
॥४६॥
बिन्दुस्त्र्यश्रं काश्रमिश्रं
सुवृत्तं वस्वश्रं स्यात् तद्बहिः षोडशारम् ।
वृत्तत्रयं भूमिगेहत्रयाढ्यं
भीडायन्त्रं सर्वसिद्धिप्रदं स्यात् ॥४७॥
भीड़ा देवी यन्त्रोद्धार हे देवेशि ! अब मैं भीड़ा देवी के उत्तम यन्त्र के उद्धार का वर्णन करता हूँ। यह यन्त्र सभी आगमों के रहस्यों से परिपूर्ण है। सभी सारस्वत ज्ञान का प्रदायक है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टदल, षोड़शदल, वृत्तत्रय और त्रिरेखात्मक भूपुर होते हैं ।।४६-४७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - कालरात्रियन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्यामि देवेशि कालरात्र्या
अनुत्तमम् ।
यत्रोद्धारं परानन्दसाधनैकरसायनम् ॥
४८ ॥
बिन्दुत्रिकोणरसकोणसूवृत्तनाग-पत्र
कलारविलसद्दहनोरुवृत्तम् ।
भूमन्दिरत्रयामिदं गिरिपुत्रि यन्त्रं
श्रीकालरात्रिनिलयं परमार्थदं स्यात् ॥ ४९ ॥
कालरात्रि यन्त्रोद्धार - हे देवेशि ! अब मैं कालरात्रि के उत्तम यन्त्र का उद्धार बतलाता हूँ। यह यन्त्र परानन्द-साधन का एकमात्र साधन है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, द्वादश दल, वृत्तत्रय और त्रिरेखात्मक भूपुर होते हैं। कालरात्रि के आवासस्वरूप यह यन्त्र परमार्थप्रद है। । ४८-४९।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - भवानीयन्त्रोद्धारः
अथाहं ते प्रवक्ष्यामि भवान्या
यन्त्रमुत्तमम् ।
मूलमन्त्ररहस्याढ्यं सर्वसिद्धिप्रदायकम्
॥५०॥
बिन्दुत्रिकोणं च षडश्रयुक्तं वृत्तं
च नागारकलादलाढ्यम् ।
वृत्तत्रयं भूसदनत्रयं स्यात् श्रीचक्रमानन्दपदं
भवान्याः ॥५१॥
भवानी यन्त्रोद्धार - हे देवि! अब मैं भवानी के उत्तम यन्त्र के उद्धार का वर्णन करता हूँ। यह यन्त्र मूल मन्त्र के रहस्य से पूर्ण हैं और सर्वसिद्धिप्रदायक है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, द्वादश दल, तीन वृत्त और तीन भूपुर होते है। यह यन्त्र भवानी को आनन्दप्रद है ।।५०-५१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - वज्रयोगिनीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्ये महादेवि यन्त्रराजं
सुदुर्लभम् ।
श्रीवज्रयोगिनीदेव्याः
सर्वसौख्यप्रवर्धनम् ॥५२॥
बिन्दुस्त्रिकोण च बहिः षडश्रं वृत्तैकवस्वनरवृत्तयुक्तम्
।
धरागृहं यन्त्रमिदं महेशि श्रीवज्रशब्दाङ्कितयोगिनीयम्
॥५३॥
वज्रयोगिनी यन्त्रोद्धार - हे महादेवि ! अब मैं श्री वज्रयोगिनी देवी के सर्वसौख्यवर्द्धक दुर्लभ यन्त्र के उद्धार का वर्णन करता हूँ। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, तीन वृत्त और भूपुर होते हैं ।। ५२-५३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - धूम्रवाराहीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्यामि वाराह्या
यन्त्रोद्धारमनुत्तमम् ।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं साधकानां
शुभावहम् ॥५४॥
त्रिकोणं सबिन्दु पुनः स्यात्
त्रिकोणं ततः सप्तवारं त्रिकोणं प्रकुर्यात् ।
गजाश्रं कलारं हि वृत्तत्रयाङ्कं धरासद्म
यन्त्रं वराहेश्वरीयम् ॥५५॥
वाराही यन्त्रोद्धार - अब मैं वाराही के उत्तम यन्त्र के उद्धार का वर्णन करता हूँ। यह यन्त्र सभी मङ्गलों का माङ्गल्य और साधकों को शुभकारक है। इस यन्त्र में बिन्दु, नव त्रिकोण, अष्टदल, द्वादशदल, तीन वृत्त और भूपुर होते हैं ।। ५४-५५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - सिद्धलक्ष्मीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्ये महादेवि यन्त्रोद्धारं
सुदुर्लभम् ।
सर्ववैरिप्रशमनं सर्ववाञ्छितपूरकम्
॥५६ ।।
बिन्दुस्त्रिकोणषट्कोणवृत्ताष्टदलमण्डितम्
।
त्रिवृत्तं भूगृहं यन्त्रं
सिद्धलक्ष्म्या मया स्मृतम् ॥५७॥
सिद्धलक्ष्मी यन्त्रोद्धार - हे महादेवि ! अब मैं सिद्धलक्ष्मी के दुर्लभ यन्त्र का उद्धार बतलाता हूँ। यह यन्त्र सभी वैरियों का विनाशक और सभी मनोरथों को पूरा करने वाला है। यह यन्त्र बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, तीन वृत्त और भूपुर से समन्वित होता है।।५६-५७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - कुलवागीश्वरीयन्त्रोद्धारः
अथ यन्त्रवरं वक्ष्ये
कुलवागीश्वरीप्रियम् ।
साधकेष्टप्रद दिव्यं परम्पदरसालयम्
॥५८॥
त्रिकोणं सबिन्दु शराश्रं सवृत्तं ततो
नागपत्राञ्चितं षोडशारम् ।
त्रिवृत्तं धरासद्म पद्मास्पदं ते सुयन्त्रं
प्रदिष्टं ਚ वागीश्वरीयम्
॥५९ ॥
कुलवागीश्वरी यन्त्रोद्धार - अब मैं कुलवागीश्वरी के उत्तम यन्त्र के उद्धार का वर्णन करता हूँ। यह यन्त्र साधकों को अभीष्टदायक एवं परम पद रस का आलय है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, पञ्चकोण, अष्टदल और षोड़शार वृत्तत्रय और भूपुर अंकित होते हैं। वागीश्वरी यन्त्र अत्यन्त सुन्दर है और अभीष्टदायक है।। ५८-५९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - पद्मावतीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्यामि देवेशि यन्त्रं
पद्मावतीप्रियम् ।
सर्वार्थसाधकं दिव्यं
सर्वाशापरिपूरकम् ।। ६० ।।
बिन्दुस्त्रिकोणवसुकोणसवृत्तनाग-पत्रादिषोडशदलानलवर्तुलं
च ।
भूमन्दिरत्रयमिदं सकलार्थदं स्यात् पद्मावती
प्रियतरं जयचक्रमेतत् ॥ ६१ ॥
पद्मावती यन्त्रोद्धार- हे देवेशि ! अब मैं पद्मावती के प्रिय यन्त्र का उद्धार-निरूपण करता हूँ। यह यन्त्र सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला एवं सभी आशाओं को पूर्ण करने वाला है। यह यन्त्र बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण, अष्टदल, षोड़शदल, तीन वृत्त, तीन भूपुरों से बनता है ।। ६०-६१।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - कुब्जिकायन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्ये महादेवि
कुब्जिकायन्त्रमुत्तमम् ।
सर्वदेवरहस्यं च गोपनीयं विशेषतः ॥ ६२
॥
बिन्दुस्त्रिकोणं रसकोणयुक्तं वृत्तं
ततो नागदलं रवृत्तम् ।
धरागृहं सर्वरहस्यगर्भ श्रीकुब्जिकायन्त्रमिदं
मयोक्तम् ॥ ६३ ॥
कुब्जिका यन्त्रोद्धार - हे महादेवि ! अब मैं महादेवी कुब्जिका के उत्तम यन्त्र का वर्णन करता हूँ। यह सभी देवताओं का रहस्य होने से विशेष गोपनीय है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, तीन वृत्त और भूपुर अंकित होते हैं। यह सर्व- रहस्यगर्भ है।। ६२-६३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - गौरीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्ये महादेवि गौरीयन्त्रं सुदुर्लभम्
।
सर्वैश्वर्यप्रदं सर्वविघ्नप्रशमनं शिवे
॥ ६४ ॥
मध्ये त्रिकोणं खयुतं षडश्रं वृत्तं
तथा नागदलाग्निवृत्तम् ।
भूमन्दिरं कौलकुलेष्टतत्त्व-भूतं सुचक्रं
कथितं हि गौर्याः ॥ ६५ ॥
गौरी यन्त्रोद्धार - हे शिवे ! अब मैं महादेवी गौरी के अति दुर्लभ यन्त्र का उद्धार कहता हूँ। यह यन्त्र सर्वेश्वर्य प्रदायक और सभी विघ्नों का विनाशक है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, तीन वृत्त और भूपुर अंकित होते हैं। यह यन्त्र कौल कुल के इष्टस्वरूप है।। ६४-६५।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - खेचरीयन्त्रोद्धारः
अथ वक्ष्ये महादेवि
खेचरीयन्त्रमुत्तमम् ।
योगिनां दुर्लभं योगसाधनानन्दकारणम्
।। ६६ ।।
बिन्दुस्त्रिकोणकं वृत्तं
वसुपत्राग्निवृत्तकम् ।
धरागृहं मयाख्यातं खेचरीयन्त्रमुत्तमम्
।। ६७ ।।
खेचरी यन्त्रोद्धार- अब मैं महादेवी खेचरी के उत्तम यन्त्र का वर्णन करता हूँ। यह यन्त्र योगियों को दुर्लभ योगसाधना के आनन्द का कारण है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टदल, तीन वृत्त और भूपुर अंकित होते हैं।।६६-६७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - नीलसरस्वतीयन्त्रोद्धारः
अथ नीलसरस्वत्या यन्त्रोद्धारं
ब्रवीम्यहम् ।
महाचीनपदस्थानां सिद्धिदं भोगदं
शिवे ॥ ६८ ।।
बिन्दुस्ततोऽग्न्यारषडश्रयुक्तं वृत्तं
ततो नागदलाग्निवृत्तम् ।
धरागृहं वह्नितुटीभिरीड्यं यन्त्रं परं
नीलसरस्वतीयम् ॥ ६९ ॥
नीलसरस्वती यन्त्रोद्धार- अब मैं नीलसरस्वती के यन्त्र के उद्धार का निरूपण करता हूँ। हे शिवे ! यह यन्त्र महाचीन साधना पद्धति में भोगप्रद और सिद्धिप्रदायक है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल, तीन वृत्त और त्रिरेखात्मक भूपुर का अंकन होता है।। ६८-६९।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - पराशक्तियन्त्रोद्धारः
अथ देव्याः पराशक्तेर्यन्त्रोद्धारं
ब्रवीम्यहम् ।
सर्वसम्पत्प्रदं दिव्यं सर्वैश्वर्यप्रदायकम्
॥७० ।।
बिन्दुस्त्रिकोणवृत्ताढ्यवसुपत्राग्निवृत्तकम्
।
भूगृहं यन्त्रमेतत्ते पराशक्तेर्मया
स्मृतम् ॥ ७९ ॥
पराशक्ति यन्त्रोद्धार - अब मैं देवी पराशक्ति के यन्त्रोद्धार का निरूपण करता हूँ। यह यन्त्र सभी सम्पत्तियों का प्रदायक, दिव्य और सभी ऐश्वयों को देने वाला है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टदल, तीन वृत्त और भूपुर अंकित होते हैं।। ७०-७१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - साधारणशिवयन्त्रोद्धारः
अथाह यन्त्रमीशानि शिवस्य परमं
ब्रुवे ।
सर्वसाधारणं सर्ववाञ्छितैकप्रदायकम्
॥ ७२ ॥
बिन्दुस्त्रिकोणवसुकोणदशारवृत्त-नागाश्रषोडशदलानलवृत्तयुक्तम्
।
भूमन्दिरत्रयमिदं परमार्थदं स्यात् साधारणं
जगति यन्त्रमनादि शैवम् ॥७३॥
ईशान शिव यन्त्रोद्धार - अब मैं ईशान शिव के यन्त्रोद्धार का निरूपण करता हूँ। यह श्रेष्ठ यन्त्र सबों की सभी इच्छित वस्तुओं का प्रदायक है। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण, दशदल, अष्टदल, षोड़शदल, त्रिवृत्त एवं तीन भूपुरों का अंकन होता है।। ७२-७३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - साधारणवैष्णवयन्त्रोद्धारः
अथाहं वैष्णवं देवि यन्त्रराजं
ब्रवीमि ते।
सर्वसाधारणं लोके वैष्णवानां
शुभप्रदम् ॥७४॥
बिन्दुस्त्रिकोणवसुकोणसुवृत्तनाग-पत्राढ्यषोडशदलाश्चितवृत्तबिम्बम्
।
भूमन्दिरं जयति यन्त्रमिदं भवानि साधारणं
परमवैष्णवधाम सत्यम् ॥ ७५॥
वैष्णव यन्त्रोद्धार - हे देवि! अब मैं वैष्णव यन्त्रोद्धार का निरूपण करता हूँ। इस संसार में यह यन्त्र सर्व सामान्य वैष्णवों के लिये शुभदायक है। यह बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण, अष्टदल, षोड़श दल, वृत्त और भूपुर से बनता है। हे भवानि! यह यन्त्र विजयप्रद, परम वैष्णव और सत्य धाम है।।७४-७५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - अघोर
भैरवयन्त्रोद्धारः
सर्वेषामेव मन्त्राणां शैवानां परमेश्वरि
।
गुरुरघोरों वक्ष्येऽहं तस्य
यन्त्रमनुत्तमम् ॥ ७६ ॥
त्रिकोणं सबिन्दु शराश्रं सकाश्रं ततो
नागपत्र सवृत्तं कलारम् ।
चतुर्भूगृहोद्भासितं वह्निरेखं सदोद्योततेऽघोरदेवस्य
यन्त्रम् ॥७७॥
श्रीदेवीरहस्य पटल १२ - लक्ष्मीनारायणयन्त्रोद्धारः
सर्वेषामेव मन्त्राणां वैष्णवानां
महेश्वरि ।
लक्ष्मीनारायण श्रेष्ठस्तस्य
यन्त्रं ब्रवीम्यहम् ॥ ७८ ॥
बिन्दुस्त्रिकोण वस्वश्रं
वृत्ताष्टदलमण्डितम् ।
षोडशारं रवृत्तं च भूगेहेनोपशोभितम्
।। ७९ ।।
लक्ष्मीनारायणस्यैतच्छ्रीचक्रं
परमार्थदम् ।
लक्ष्मीनारायण यन्त्रोद्धार हे महेश्वरि! सभी वैष्णव मन्त्रों में लक्ष्मीनारायण मन्त्र श्रेष्ठ है। उस मन्त्र के यन्त्र का अब मैं निरूपण करता हूँ। इस यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण, अष्टदल, षोड़शदल, तीन वृत्त और भूपुर अंकित होते हैं। इस यन्त्र से परमार्थ की प्राप्ति होती है।। ७८-७९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल
१२
इतीदं सर्वदेवानां रहस्यं
परमाद्भुतम् ।
तत्त्वं तव मयाख्यातं गोपनीयं
स्वयोनिवत् ॥८०॥
यह सभी देवों के तत्त्व के परम
अद्भुत रहस्य का वर्णन सम्पूर्ण हुआ। इसे अपनी योनि के समान गुप्त रखना चाहिये ।।
८० ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये यन्त्रोद्धारनिरूपणं नाम द्वादशः पटलः ॥ १२ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में यन्त्रोद्धार निरूपण नामक द्वादश पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 13
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