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अग्नि पुराण अध्याय ११९
अग्निपुराणम् अध्यायः ११९– महाद्वीपादि
अथ एकोनविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः
अग्निरुवाच
लक्षयोजनविस्तारं
जम्बूद्वीपं समावृतम् ।
लक्ष्ययोजनमनेन
क्षीरोदेन समन्ततः ॥१॥
संवेष्ट्य
क्षारमुदधिं प्लक्षद्वीपस्तथा स्थितः ।
सप्त
मेधातिथेः पुत्राः प्लक्षद्वीपेश्वरास्तथा ॥२॥
स्याच्छान्तभयः
शिशिरः सुखोदय इतः परः ।
आनन्दश्च शिवः
क्षेमो ध्रुवस्तन्नामवर्षकं ॥३॥
मर्यादाशैलो
गोमेधश्चन्द्रो नारददुन्द्भी ।
सोमकः सुमनाः
शैलो वैभ्राजास्तज्जनाः शुभाः ॥४॥
नद्यः
प्रधानाः सप्तात्र प्लक्षाच्छाकान्तिकेषु च ।
जीवनं पञ्चसास्रं
धर्मो वर्णाश्रमात्मकः ॥५॥
अग्निदेव कहते
हैं— जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। वह
सब ओर से एक लाख योजन विस्तृत खारे पानी के समुद्र से घिरा है। उस क्षारसमुद्र को
घेरकर प्लक्षद्वीप स्थित है। मेधातिथि के सात पुत्र प्लक्षद्वीप के स्वामी हैं।
शान्तभय, शिशिर, सुखोदय, आनन्द, शिव, क्षेम तथा ध्रुव-
ये सात ही मेधातिथि के पुत्र हैं; उन्हीं के नाम से उक्त सात
वर्ष हैं। गोमेध, चन्द्र, नारद,
दुन्दुभि, सोमक, सुमना
और शैल - ये उन वर्षों के सुन्दर मर्यादापर्वत हैं । वहाँ के सुन्दर निवासी 'वैभ्राज' नाम से विख्यात हैं। इस द्वीप में सात
प्रधान नदियाँ हैं। प्लक्ष से लेकर शाकद्वीपतक के लोगों की आयु पाँच हजार वर्ष है।
वहाँ वर्णाश्रम- धर्म का पालन किया जाता है ॥ १- ५ ॥
आर्यकाः
कुरवश्चैव विविंशा भाविनश्च ते ।
विप्राद्यास्तैश्च
सोमोऽर्च्यो द्विलक्षश्चाब्धिलक्षकः ॥६॥
मानेनेक्षुरसोदेन
वृतो द्विगुणशाल्मलः ।
वपुष्मतः सप्त
पुत्राः शाल्मलेशास्तथाभवन् ॥७॥
श्वेतोऽथ
हरितश्चैव जीमूतो लोहितः क्रमात् ।
वैद्युतो
मानसश्चैव सुप्रभो नाम वर्षकः ॥८॥
द्विगुणो
द्विगुणेनैव सुरोदेन समावृतः ।
कुमुदश्चानलश्चैव
तृतीयस्तु वलाहकः ॥९॥
द्रोणः कंकोऽथ
महिषः ककुद्मान् सप्त निम्नगाः ।
कपिलाश्चारुणाः
पीताः कृष्णाः स्युर्ब्राह्मणादयः ॥१०॥
वायुरूपं
यजन्ति स्म सुरोदेनायमावृतः ।
आर्य, कुरु, विविंश तथा
भावी यही वहाँ के ब्राह्मण आदि वर्णों की संज्ञाएँ हैं। चन्द्रमा उनके आराध्यदेव
हैं। प्लक्षद्वीप का विस्तार दो लाख योजन है। वह उतने ही बड़े इक्षुरस के समुद्र से
घिरा है। उसके बाद शाल्मलद्वीप है, जो प्लक्षद्वीप से दुगुना
बड़ा है। वपुष्मान् के सात पुत्र शाल्मलद्वीप के स्वामी हुए। उनके नाम हैं-श्वेत,
हरित, जीमूत, लोहित,
वैद्युत, मानस और सुप्रभ। इन्हीं नामों से वहाँ
के सात वर्ष हैं। वह प्लक्षद्वीप से दुगुना है तथा उससे दुगुने परिमाणवाले 'सुरोद' नामक (मदिरा के) समुद्र से घिरा हुआ है।
कुमुद, अनल, बलाहक, द्रोण, कङ्क, महिष और
ककुद्यान्ये मर्यादापर्वत हैं। सात ही वहाँ प्रधान नदियाँ हैं। कपिल, अरुण, पीत और कृष्ण - ये वहाँ के ब्राह्मण आदि वर्ण
हैं । वहाँ के लोग वायु देवता की पूजा करते हैं। वह मदिरा समुद्र से घिरा है ॥
६-१० अ ॥
ज्योतिष्मतः
कुशेशाः स्युरुद्भिजो धेनुमान् सुतः ॥११॥
द्वैरथो लंवनो
धैर्यः कपिलश्च प्रभाकरः ।
विप्राद्या
दधिमुख्यास्तु ब्रह्मरूपं यजन्ति ते ॥१२॥
विद्रुमो
हेमशैलश्च द्युतिमान् पुष्पवांस्तथा ।
कुशेशयो हरिः
शैलो वर्षार्थं मन्दराचलः ॥१३॥
वेष्टितोऽयं
घृतोदेन क्रौञ्चद्वीपेन सोऽप्यथ ।
क्रौञ्चेश्वराः
द्युतिमतः पुत्रास्तन्नामवर्षकाः ॥१४॥
इसके बाद
कुशद्वीप है। ज्योतिष्मान् के पुत्र उस द्वीप के अधीश्वर हैं। उद्भिद, धेनुमान्, द्वैरथ, लम्बन, धैर्य, कपिल और
प्रभाकर ये सात उनके नाम हैं। इन्हीं के नाम पर वहाँ सात वर्ष हैं। दमी* आदि वहाँ के ब्राह्मण हैं, जो
ब्रह्मरूपधारी भगवान् विष्णु का पूजन करते हैं। विद्रुम, हेमशैल,
द्युतिमान्, पुष्पवान् कुशेशय, हरि और मन्दराचल- ये सात वहाँ के वर्षपर्वत हैं। यह कुशद्वीप अपने ही
बराबर विस्तारवाले घी के समुद्र से घिरा हुआ है और वह घृतसमुद्र क्रौञ्चद्वीप से
परिवेष्टित है। राजा द्युतिमान् के पुत्र क्रौञ्चद्वीप के स्वामी हैं। उन्हीं के नाम
पर वहाँ के वर्ष प्रसिद्ध हैं । ११ - १४ ॥
* दमी, शुषुमी, स्नेह और
मन्दे- ये क्रमशः वहाँ के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की संज्ञाएँ हैं।
कुशलो
मनोनुगश्चोष्णः प्रधानोऽथान्धकारकः ।
मुनिश्च
दुन्दुभिः सप्त सप्त शैलाश्च निम्नगाः ॥१५॥
क्रौञ्चश्च
वाम्नश्चैव तृतीयश्चान्धकारकः ।
देववृत्पुण्डरीकश्च
दुन्दुभिर्द्विगुणो मिथः ॥१६॥
द्वीपा
द्वीपेषु ये शैला यथा द्वीपानि ते तथा ।
पुष्कराः
पुष्कला धन्यास्तीर्था विप्रादयो हरिम् ॥१७॥
यजन्ति
क्रौञ्चद्वीपस्तु दधिमण्डोदकावृतः ।
संवृतः
शाकद्वीपेन हव्याच्छाकेश्वराः सुताः ॥१८॥
जलदश्च
कुमारश्च सुकुमारो मणीवकः ।
कुशोत्तरथो
मोदाकी द्रुमस्तन्नामवर्षकाः ॥१९॥
कुशल, मनोनुग, उष्ण,
प्रधान, अन्धकारक, मुनि और
दुन्दुभि- ये सात द्युतिमान् के पुत्र हैं। उस द्वीप के मर्यादापर्वत और नदियाँ भी
सात ही हैं। पर्वतों के नाम इस प्रकार हैं-क्रौञ्च, वामन,
अन्धकारक, रत्नशैल*,
देवावृत, पुण्डरीक और दुन्दुभि ये द्वीप
परस्पर उत्तरोत्तर दुगुने विस्तारवाले हैं। उन द्वीपों में जो वर्ष पर्वत हैं,
वे भी द्वीपों के समान ही पूर्ववर्ती द्वीप के पर्वतों से दुगुने
विस्तारवाले हैं । वहाँ के ब्राह्मण आदि वर्ण क्रमशः पुष्कर, पुष्कल, धन्य और तिथ्य-इन नामों से प्रसिद्ध हैं। वे
वहाँ श्रीहरि की आराधना करते हैं। क्रौञ्चद्वीप दधिमण्डोदक (मट्ठे) के समुद्र से
घिरा हुआ है और वह समुद्र शाकद्वीप से परिवेष्टित है। वहाँ के राजा भव्य के जो सात
पुत्र हैं, वे ही शाकद्वीप के शासक हैं। उनके नाम इस प्रकार
हैं-जलद, कुमार, सुकुमार, मणीवक, कुशोत्तर, मोदाकी और
द्रुम। इन्हीं के नाम से वहाँ के वर्ष प्रसिद्ध हैं । १५- १९ ॥
* यहाँ मूल में छः नाम ही आये हैं, तथापि पुराणान्तर में आये हुए 'चतुर्थी रत्नशैलश्च' के अनुसार अर्थ में रत्नशैल
बढ़ा दिया गया है।
उदयाख्यो
जलधरो रैवतः श्यामकोद्रकौ ।
आम्विकेयस्तथा
रम्यः केशरी सप्त निम्नगाः ॥२०॥
मगा मगधमनस्या
मन्दगाश्च द्विजातयः ।
यजन्ति
सूर्यरूपं तु शाकः क्षीराब्धिना वृतः ॥२१॥
पुष्करेणावृतः
सोऽपि द्वौ पुत्रौ सवनस्य च ।
मसावीतो
धातकिश्च वर्षे द्वे नामचिह्निते ॥२२॥
उदयगिरि, जलधर, रैवत, श्याम, कोद्रक, आम्बिकेय और
सुरम्य पर्वत केसरी - ये सात वहाँ के मर्यादापर्वत हैं तथा सात ही वहाँ की
प्रसिद्ध नदियाँ हैं*। मग, मगध, मानस्य और मन्दग - ये वहाँ के ब्राह्मण आदि
वर्ण हैं, जो सूर्यरूपधारी भगवान् नारायण की आराधना करते
हैं। शाकद्वीप क्षीरसागर से घिरा हुआ है। क्षीरसागर पुष्करद्वीप से परिवेष्टित है।
वहाँ के अधिकारी राजा सवन के दो पुत्र हुए, जिनके नाम थे-
महावीत और धातकि। उन्ही के नाम से वहाँ के दो वर्ष प्रसिद्ध हैं ॥ २०-२२ ॥
* पुराणान्तर में इन नदियों के नाम इस प्रकार
मिलते हैं-सुकुमारी, कुमारी, नलिनी, धेनुका,
इक्षु, वेणुका और गभस्ति ।
एकोऽद्रिर्मानसाख्योऽत्र
मध्यतो वलयाकृतिः ।
योजनानां
सहस्राणि विस्तारोच्छ्रायतः समः ॥२३॥
जीवनं
दशसाहस्रं सुरैर्ब्रह्मात्र पूज्यते ।
स्वादूदकेनोदधिना
वेष्टितो द्वीपमानतः ॥२४॥
ऊनातिरिक्तता
चापां समुद्रेषु न जायते ।
उदयास्तमनेष्विन्दोः
पक्षयोः शुक्लकृष्णयोः ॥२५॥
दशोत्तराणि
पञ्चैव अङ्गुलानां शतानि वै ।
अपां
वृद्धिक्षयौ दृष्टौ सामुद्रीणां महामुने ॥२६॥
वहाँ एक ही
मानसोत्तर नामक वर्षपर्वत विद्यमान है, जो उस वर्ष के मध्यभाग में वलयाकार स्थित है। उसका विस्तार कई
सहस्र योजन है*। ऊँचाई भी विस्तार के समान
ही है। वहाँ के लोग दस हजार वर्षोंतक जीवन धारण करते हैं। वहाँ देवता लोग
ब्रह्माजी की पूजा करते हैं। पुष्करद्वीप स्वादिष्ट जलवाले समुद्र से घिरा हुआ है।
उस समुद्र का विस्तार उस द्वीप के समान ही है। महामुने! समुद्रों में जो जल है,
वह कभी घटता बढ़ता नहीं है। शुक्ल और कृष्ण- दोनों पक्षों में
चन्द्रमा के उदय और अस्तकाल में केवल पाँच सौ दस अङ्गुलतक समुद्र के जल का घटना और
बढ़ना देखा जाता है (परंतु इससे जल में न्यूनता या अधिकता नहीं होती है) । २३ - २६
॥
* विष्णुपुराण में इसकी ऊँचाई और विस्तार दोनों ही
पचास हजार योजन बताये गये हैं। देखिये विष्णुपुराण २ । ४ । ७६ ।
स्वादूदका बहुगुणा भूर्हैमी जन्तुवर्जिता ।
लोकालोकस्ततः
शैलो योजनायुतविस्तृतः ॥२७॥
लोकालोकस्तु
तमसावृतोऽथाण्डकटाहतः ।
भूमिः
साण्डकटाहेन पञ्चाशत्कोटिविस्तरा ॥२८॥
मीठे जलवाले समुद्र
के चारों ओर उससे दुगुने परिमाणवाली भूमि सुवर्णमयी है, किंतु वहाँ कोई भी जीव-जन्तु नहीं रहते
हैं। उसके बाद लोकालोकपर्वत है, जिसका विस्तार दस हजार योजन
है। लोकालोकपर्वत एक ओर से अन्धकार द्वारा आवृत है और वह अन्धकार अण्डकटाह से आवृत
है। अण्डकटाह सहित सारी भूमि का विस्तार पचास करोड़ योजन है ।। २७-२८ ॥
इत्याग्नेये
महपुराणे द्वीपादिवर्णनं नामैकोनविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि
आग्नेय महापुराण में 'महाद्वीप आदि का वर्णन' नामक एक सौ उन्नीसवाँ अध्याय
पूरा हुआ ॥ ११९ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 120
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