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श्रीदेवीरहस्य पटल १४
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल १४ में मन्त्रों के छन्द, ऋषि, बीज, शक्ति, कीलक और दिग्बन्ध
के निर्णय के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् चतुर्दशः पटलः ऋष्यादिविनिर्णयः
Shri Devi Rahasya Patal 14
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य चौदहवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
चतुर्दश पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ मन्त्रेषु ऋष्यादिविनिर्णयप्रस्तावः
अथ चतुर्दशः पटलः
श्रीदेव्युवाच
भगवन् श्रोतुमिच्छामि
च्छन्दोमुनिविनिर्णयम् ।
तथा देवीश्वरादीनां देवताबीजनिर्णयम्
॥ १ ॥
शक्तिकीलकदिग्बन्धनिर्णयं परमेश्वर
।
वक्तुमर्हसि मे देव यद्यस्ति मयि ते
दया ॥ २ ॥
मन्त्रों के ऋष्यादि विनिर्णय का
प्रस्ताव- श्रीदेवी ने कहा कि हे भगवन्! मुझे मन्त्रों के छन्द और ऋषि के निर्णय
को सुनने की इच्छा है तथा देवी ईश्वरादि देवताओं के बीजमन्त्र को भी जानना चाहती
हूँ शक्ति, कीलक, दिग्बन्ध
जानने की भी इच्छा है। यदि मुझ पर आपकी दया हो तो इन सबों को मुझे बतलाइये ।। १-२
।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ -ऋषिविनिर्णयः
श्रीभैरव उवाच
एतद् गुह्यतमं देवि देवानां
सारमुत्तमम् ।
देवीनामादिदेवानां मन्त्राणां मे
रहस्यकम् ॥३॥
वक्ष्यामि तव
भक्त्याहमृषिच्छन्दोविनिर्णयम् ।
देवानां मन्त्रराजस्य देवीनां वा
तथैव च ॥४॥
षष्टिकल्पसहस्राणि येनैव विहितो जपः
।
तथाब्दषष्टिलक्षाणि
षष्टिजन्मान्तरेषु च ॥५॥
पुरश्चर्याकरो देवि सर्षिरित्यभिधीयते
।
ऋषिहीनो भवेन्मन्त्रो जप्तो जन्मान्तरेषु
च ॥ ६ ॥
प्रत्यवायकरो लोके साधकानां
महेश्वरि ।
यदा मन्त्रो मया वक्त्रान्महादेवि
बहिष्कृतः ॥७॥
ऋषि निर्णय –
श्री भैरव ने कहा कि हे देवि! यह देवताओं का उत्तम सार है, एवं गुह्यतम है। यह देवियों एवं देवताओं के मन्त्रों का रहस्य है।
तुम्हारी भक्ति से विवश होकर मैं मन्त्रों के ऋषि और छन्दों के निर्णय को सुनाता
हूँ। देवताओं और देवियों के मन्त्रों के पुरश्चरण का काल साठ हजार कल्प विहित है,
जिनका साठ लाख जप साठ लाख वर्षों एवं साठ जन्मान्तरों में करने से
पुरश्चरण होता है, उनका जप भी ऋषि के सहित ही होता है। बिना
ऋषि-मन्त्र के जप से जन्मान्तरों में साधकों को प्रत्यवाय होता है। इस प्रकार के
मन्त्रों का मेरे द्वारा बहिष्कृत कर दिया गया है।। ३-७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ -छन्दोविनिर्णयः
वेष्टितो येन तेजस्वी तच्छन्द इति
गीयते ।
छन्दांसि विविधान्येषां मन्त्राणां
परमेश्वरि ॥८॥
छन्दोहीनो भवेन्मन्त्रो नग्नो
मर्त्य इव प्रिये ।
छन्द निर्णय- जो मन्त्र मेरे द्वारा
बहिष्कृत किये गये हैं, उन्हें मेरे तेज से
वेष्टित किया गया है। उस वेष्टन को ही छन्द कहते हैं। हे परमेश्वरि! इन मन्त्रों
के छन्द विविध प्रकार के हैं। छन्दविहीन मन्त्र मृतक के समान नग्न होते हैं ।। ८
।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ -देवताविनिर्णयः
यदा जप्तो मनुर्देवि मया परमभक्तितः
॥ ९ ॥
प्रादुर्बभूव मे सद्यो या सा
प्रोक्तेति देवता ।
देवता निर्णय मेरी परम भक्ति के साथ
जिन मन्त्रों का जप किया जाता है, उन मन्त्रों
में मैं तुरन्त प्रवेश करता हूँ। उसी का नाम देवता है ।। ९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ -बीजविनिर्णयः
मन्त्रराजस्य देवीनां
येनोत्पत्तिर्मया कृता ॥ १० ॥
तद्वीजमिति मन्त्राणां वर्ण्यते
परमेश्वरि ।
बीजहीनो भवेन्मन्त्रः सिद्धिहानिकरः
शिवे ।। ११ ।।
बीजहीनं जगद्धीनं जलहीनो नदो यथा ।
बीज निर्णय - जिन देवियों के
मन्त्रों को मैंने उत्पन्न किया, उन्हीं को
मन्त्रों का बीज कहा जाता है। बीजविहीन मन्त्र सिद्धियों में हानिप्रद होते हैं।
जैसे- जलविहीन नदी बेकार होती है, वैसे ही बीजहीन मन्त्र भी
जगत् में हीन होते हैं ।। १०-११ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ -शक्तिविनिर्णयः
जपान्ते जगदुत्पत्तिस्थितिसंहारिकी मतिः
॥ १२ ॥
जाता मे येन देवेशि सा शक्तिरिति
गीयते ।
शक्तिहीनों महादेवि मन्त्रो
विघ्नकरो मतः ।। १३ ।।
शक्ति निर्णय जप के अन्त में संसार
की उत्पत्ति, स्थिति और संहार की मति जिसके
द्वारा उत्पन्न होती है, हे देवेशि! उसी को शक्ति कहते हैं।
शक्तिहीन मन्त्र विघ्नकारक होते हैं, ऐसा कहा गया है। ।
१२-१३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ -कीलकविनिर्णयः
महामाङ्गल्यदो मन्त्रो देवीनां
शक्तिबीजतः ।
जप्त्वा स्तुत्वा महादेवि पुनर्येन
स गोपितः ॥ १४ ॥
निस्तेजस्कः पुनर्जातः कीलकं
तदुदाहृतम् ।
कीलक - निर्णय देवियों के मन्त्र
शक्तिबीज से ही महामाङ्गल्यप्रदायक होते हैं। महादेवी के जिन मन्त्रों को जप और
स्तुति के बाद जो गुप्त नहीं रखते, वे
निस्तेज हो जाते हैं। इन निस्तेज मन्त्रों का उद्धार कीलक से किया जाता है ।।१४।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १४ -दिग्बन्धनविनिर्णयः
निष्कीलितं जपान्ते च मनुमश्रद्धया
शिवे ॥ १५ ॥
त्यक्त्वा साधकराजस्य सिद्धिं हरति
भैरवः ।
जपकाले महादेवि राक्षसा भूतप्रेतकाः
।। १६ ।।
दिशो दश पलायन्ते येन दिग्बन्धनं च
तत् ।
दिग्बन्धेन विना देवि जपः पाठोऽपि
वा तथा ॥ १७ ॥
निष्फलो विघ्नकृन्नित्यं तेन
दिग्बन्धनं चरेत् ।
एतैर्विहीनो मन्त्रोऽस्ति निष्फलो
विघ्नकारकः ।। १८ ।।
ममापि देवि किं वक्ष्ये पुनः
क्षुद्रेषु जन्तुषु ।
इत्येष पटलौ गुह्यश्छन्दसां परमेश्वरि
॥
गोपनीयो महावीरैरित्याज्ञा पारमेश्वरी
।। १९ ।।
दिग्बन्ध निर्णय हे शिवे! निष्कीलित
मन्त्रों के जप में श्रद्धा न होने से जप के अन्त में साधक श्रेष्ठ की सिद्धि का
हरण भैरव कर लेते है। दिग्बन्ध के बिना जो जप किया जाता है,
उसे जपकाल में ही भूत-प्रेत हरण कर लेते हैं। दशों दिशाओं में
दिग्बन्ध करने से वे भूत-प्रेत भाग जाते हैं। हे देवि! दिग्बन्ध के बिना जप और पाठ
निष्फल होते हैं। उनमें नित्य विघ्न होते हैं। इसलिये दिग्बन्ध करना आवश्यक है। इन
सबों के बिना मन्त्र निष्फल और विघ्नकारक होते हैं। हे देवि! मैं भी क्या कहूँ?
यह पटल क्षुद्र जीवों के लिये गुह्य एवं प्रच्छन्न है और महावीरों
से भी गोपनीय है ।। १५-१९।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये ऋष्यादि-निरूपणं नाम चतुर्दशः पटलः ॥ १४ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में ऋष्यादि निरूपण नामक चतुर्दश पटल पूर्ण हुआ ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 15
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