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श्रीदेवीरहस्य पटल १३

श्रीदेवीरहस्य पटल १३

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल १३ में यन्त्र- धारण की विधि के विषय में बतलाया गया है।

श्रीदेवीरहस्य पटल १३

रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् त्रयोदशः पटलः यन्त्रधारणविधिः

Shri Devi Rahasya Patal 13 

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य तेरहवाँ पटल

रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् त्रयोदश पटल

श्रीदेवीरहस्य पटल १३ यन्त्रधारणमाहात्म्यम्

अथ त्रयोदशः पटलः

श्रीभैरव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि रहस्यं सर्वकामिकम् ।

यन्त्रधारणपूजाया विधिं साधारणं परम् ॥ १ ॥

विना वर्म विना नाम्नां सहस्रकं महेश्वरि ।

न सिद्धिः साधकस्यास्ति भैरवस्यापि पार्वति ॥ २ ॥

यः साधको जपेद् विद्यां यन्त्रधारणवर्जितः ।

सा विद्या कोटिजप्तापि तस्य निष्फलतां व्रजेत् ॥ ३ ॥

यन्त्रधारण माहात्म्य श्री भैरव ने कहा कि हे देवि! अब मैं सर्वार्थसिद्धि के लिये यन्त्रधारण पूजा की साधारण और श्रेष्ठ विधि का निरूपण करता हूँ, आप सुनिये जो साधक विना कवच, विना सहस्रनाम के साधना करता है, भैरवतुल्य होने पर भी उसे सिद्धि नहीं मिलती। जो साधक बिना यन्त्र धारण किये विद्या का जप करता है, करोड़ों जप करने पर भी उसकी साधना निष्फल हो जाती है।। १-३।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १३-यन्त्रपूजाप्रकारः

शुभेऽह्नि शुभनक्षत्रे शुभवारे महेश्वरि ।

ब्राह्मे मुहूर्ते उत्थाय स्नात्वा ध्यात्वा गुरुं निजम् ॥४॥

सशिवां देवतां ध्यात्वा रह: स्थाने सुधूपिते ।

गन्धाष्टकेन विलिखेद् यन्त्रं मूलेन वेष्टितम् ॥५॥

तद्वाह्ये कवचं दिव्यं तथा नामसहस्रकम् ।

लिखेत् कनकलेखन्या भूर्जपत्रे सुशोभने ॥६॥

यन्त्रपूजा - शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र, शुभ वार के ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करे और गुरु का ध्यान करे। शिवा के साथ देवता का ध्यान करे। स्थान को सुगन्धित धूप से सुगन्धि करे। अष्टगन्ध से यन्त्र का अंकन करे और उसे मूल मन्त्र से वेष्टित करे। उसके बाहर दिव्य कवच तथा सहस्रनाम लिखे ।।४-६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १३-गन्धाष्टकनिरूपणम्

गन्धाष्टकं प्रवक्ष्यामि रहस्यं परमं प्रिये ।

अवाच्यं देवभक्ताय परशिष्याय सर्वथा ॥७॥

अष्टगन्ध - यह यन्त्र भोजपत्र पर सोने की लेखनी से लिखे। अब मैं अष्टगन्ध के परम रहस्य को कहता हूँ। यह रहस्य अभक्तों तथा परशिष्यों को नहीं बतलाना चाहिये ।।७।।

स्वयम्भूकुसुमं कुण्डगोलोत्थं रोचनागुरु ।

कर्पूरं मृगनाभिश्च मद्यं च मलयोद्भवम् ॥८ ॥

अपरं ते प्रवक्ष्यामि सिद्धिदं गन्धसाधनम् ।

वैष्णवानां च शैवानां शाक्तानां च शुभावहम् ॥ ९ ॥

काश्मीर- गोरोचन - पूगकादि कुरङ्गनाभीज-सरुद्र- मूर्वाः ।

पूतासकं चन्दनमिश्रमेतद् गन्धाष्टकं भैरवभैरवीष्टम् ॥१० ॥

अष्टगन्ध के आठ गन्धों के नाम हैं- स्वयम्भू कुसुम, कुण्डगोल, मदिरा, मलयागिरि चन्दन, गोरोचन, अगर, कपूर और कस्तूरी यह शक्ति का अष्टगन्ध है। दूसरे प्रकार के अष्टगन्ध का वर्णन करता हूँ, जो वैष्णवों, शैवों और शाक्तों के लिये शुभ है। इस गन्ध में केशर, गोरोचन, पूगी, कस्तूरी, अगर, तगर, श्वेत चन्दन और सिन्दूर मिलाया जाता है ।।८-१० ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १३-यन्त्रलेखनप्रकार:

गन्धाष्टकं स्वमूलेन नियोज्य कुलसाधकः ।

न्यासमृष्यादिकं कृत्वा ध्यायेद् देवीं शिवाङ्कगाम् ॥ ११ ॥

लिखेद्यन्त्रं निजं दिव्यं तद्वाह्ये मूलमन्त्रतः ।

मातृकां विलिखेन्मन्त्री तद्वाह्ये कवचं लिखेत् ॥१२॥

तथा नामसहस्त्रं च लिखित्वा भूर्जपत्रके ।

यन्त्रलेखन - कुलसाधक अपने मूल मन्त्र से अष्टगन्ध को अभिमन्त्रित करके ऋष्यादि न्यास करके शिव के अंक में आसीन देवी का ध्यान करे। इसके बाद इष्ट के यन्त्र को लिखे यन्त्र के बाहर मूल मन्त्र को लिखे। इसके बाहर मातृकाओं को लिखे। उसके बाहर कवच लिखे और उसके बाहर सहस्रनाम लिखे। यह लेखन भोजपत्र पर करे ।।११-१२।।

वेष्टयेत् श्वेतसूत्रेण पीतनीलक्रमेण च ॥ १३ ॥

निजेष्टदेवीध्यानाभ-वर्णेन परमेश्वरि ।

लाक्षया परिवेष्ट्याथ सुवर्णेनाथ वेष्टयेत् ॥ १४ ॥

इस यन्त्र की गुटिका बनाकर बाहर क्रमशः उजले पीले नीले धागों से लपेटे। अपनी इष्ट देवी का ध्यान करके इसका परिवेष्टन लाह या सोने से करे। अर्थात् सोने के ताबीज मैं इसे भरे ।। १३-१४ ।।

ततः परां गुटीं दिव्यां देवीरूपां विचिन्त्य च ।

यन्त्रधारण यन्त्रस्य बिन्दौ संस्थापयेच्छिवे ॥ १५ ॥

यन्त्रधारण-यन्त्रं ते वक्ष्ये साधकपूजिते ।

कौलिकानां हितार्थाय गोपनीयं विशेषतः ।। १६ ।।

बिन्दुत्रिकोणं षट्कोणं घडत्रं वसुपत्रकम् ।

त्रिवृत्तं च धरासद्म यन्त्रधारण यन्त्रकम् ॥१७॥

उस दिव्य परा गुटिका का चिन्तन देवीस्वरूप में करे और धारण यन्त्र के बिन्दु में उसे स्थापित करे। हे साधकपूजिते ! अब मैं धारण किये जाने वाले यन्त्र को तुमसे बतलाता हूँ। इसे कौलिकों के हितकामना से कहता हूँ। इसे विशेष रूप से गुप्त रखना चाहिये। इस धारण यन्त्र में बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, षड्दल, अष्टदल, वृत्तत्रय और भूपुर अङ्कित होते हैं ।। १५-१७।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १३- यन्त्रधारण यन्त्र

श्रीदेवीरहस्य पटल १३-यन्त्रपूजनप्रकार:

सिन्दूरेण लिखेद् देवि लयाङ्गं पूजयेच्छिवे ।

यस्य पूजनमात्रेण मन्त्री भैरवतां व्रजेत् ॥ १८ ॥

गणेशं धर्मराजं च वरुणं च कुबेरकम् ।

चतुद्वरिषु सम्पूज्याश्चत्वारो द्वारपालकाः ॥ १९ ॥

यन्त्र - पूजन - इस यन्त्र को सिन्दूर से अङ्कित करे हे शिवे ! पहले लयाङ्ग पूजन करे। यह पूजन षट्कोण में ईष्ट के हृदय, ललाट, शिखा, कवच, नेत्र और अस्त्र का होता है। इस पूजन से साधक भैरवत्व प्राप्त करता है। भूपुर के चार द्वारों पर गणेश, यम, वरुण और कुबेर इन द्वारपालकों का पूजन करे।। १७-१९ ।।

असिताङ्गं च कालाग्निं संहारं रुरुभैरवम् ।

करालं विकरालं च सुप्तेशोन्मत्त भैरवौ ॥ २० ॥

अष्टपत्रेषु सम्पूज्य भैरवानष्ट पार्वति ।

दुर्गा चण्डी च सुमुखीं शिवादूतीं शिवां जयाम् ॥ २१ ॥

बहिः षट्कोणके पूज्याश्चैता मूलेन साधकैः ।

तारां च तारिणीं तुयाँ बगलां विजयां तथा ॥ २२ ॥

छिन्नमस्तां षडश्रेषु पूजयेत् साधकोत्तमः ।

भवानी कुब्जिका गौरी त्र्यश्रे पूज्या महेश्वरि ॥ २३॥

अष्टदल में असिताङ्ग, कालाग्नि, संहार, रुरु, कराल, विकराल, सुप्तेश और उन्मत्तभैरवों का पूजन करे। षट्कोण के कोनों में दुर्गा, चण्डी, सुमुखी, शिवादूती, शिवा और जया का पूजन करे। इनका पूजन मूल मन्त्र से होता है। षड्दल में तारा, तारिणी, महातुरी, बगलामुखी, विजया और छिन्नमस्ता - इन छः देवियों की पूजा करे। त्रिकोण के तीनों कोनों में भवानी, कुब्जिका और गौरी का पूजन करे। । २०-२३ ।।

बिन्दौ स्वदेवतामिष्टां सशिवां कौलिकोत्तमः ।

गन्धाक्षतप्रसूनैश्च धूपदीपादितर्पणैः ॥ २४ ॥

नैवेद्याचमनीयाद्यैस्ताम्बूलैश्च सुवासितैः ।

तत्र बिन्दौ महादेवि यथाविभवमात्मनः ॥ २५ ॥

सौवर्ण राजतं मुक्तामणिताप्रादिपूर्वकम् ।

देवताप्रीतये दद्याद् दक्षिणां गुरवेऽपि च ॥ २६ ॥

बिन्दु में अपने इष्टदेवता का पूजन शिवा के साथ कौलिकोत्तम करे। पूजा गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से करके तर्पण करे। इसके बाद बिन्दु में महादेवी का पूजन अपने वैभव के अनुसार नैवेद्य, आचमनीय और सुगन्धित ताम्बूल से करे देवता की प्रसन्नता के लिये अपने गुरुदेव को दक्षिणा के रूप में सोना, चाँदी, मोती, मणि, ताम्बा प्रदान करे ।। २४-२६ ।।

तत्र स्वयं गुटीं दिव्यां देवीरूपां कुलेश्वरि ।

पञ्चामृतैः पञ्चगव्यैः स्नापयेत् साधकोत्तमः ॥ २७ ॥

संस्थाप्य गुटिकां मन्त्री बिन्दी संस्थापयेत्ततः ।

प्राणान् दत्त्वाऽऽ वाहनादिमुद्रा मन्त्री प्रदर्शयेत् ॥ २८ ॥

पाद्यार्घ्यमधुपर्कादि सर्व तत्र निवेदयेत् ।

चिन्तयेद् देवतारूपां पूजयेद् यन्त्रराजवत् ॥ २९ ॥

सम्पूज्य गुटिकां दिव्यां तदग्रे साधको जपेत् ।

मूलमन्त्रं यथाशक्त्या मालया करमालया ॥ ३० ॥

यन्त्रधारण विधि - इसके बाद साधक गुटिका को दिव्य देवीरूपा मानकर पञ्चामृत, पञ्चगव्य से स्नान कराये। इसके बाद गुटिका को बिन्दु में स्थापित करके प्राणप्रतिष्ठा करे। आवाहनादि मुद्रा प्रदर्शित करे। पाद्य, अर्घ्य, मधुपर्कादि सभी सामग्रियों से पूजन करें। गुटिका का चिन्तन देवता के रूप में करे और उसका पूजन यन्त्रराजवत् करे। पूजन के बाद उसके सामने बैठकर यथाशक्ति मूल मन्त्र का जप 'करमाला' से करे ।। २७-३०।।

पठेत्तत्रैव कवचं मन्त्रनामसहस्रकम् ।

स्तोत्रं मन्त्रमयं देवि मन्त्रिचक्रं प्रपूजयेत् ॥ ३१ ॥

तैः समं साधकैः कुर्यात् पात्रवन्दनमीश्वरि ।

तान् सन्तर्प्य सुधीर्भक्त्या धारयेद् देवतां हृदि ॥ ३२ ॥

विसृज्य सशिवां देवीं नमेत् संहारमुद्रया ।

धारयेन्मूर्ध्नि वा बाहौ गुटिकां वरदायिनीम् ॥ ३३ ॥

उसी स्थान पर कवच, सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करके साधक मन्त्रचक्र का पूजन करे। हे ईश्वर! उसी के समान साधक पात्रवन्दना करे। तर्पण करे और देवता को हृदय में धारण करे। शिवा के साथ विसर्जन करके नमन करे और संहार मुद्रा प्रदर्शित करे तब गुटिका को मूर्धा में या बाँह में धारण करे। यह गुटिका वरदायिनी होती है ।। ३१-३३ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १३-यन्त्रधारणफलम्

य एवं धारयेद् यन्त्रं जपेन्मन्त्रं स साधकः ।

साक्षाद् भवभयोन्मुक्तो भवेद् भैरवसन्निभः ॥३४॥

जपसिद्धिर्भवेत्तस्य य एवं धारयेद् गुटीम् ।

बहुनोक्तेन किं देवि स भवेद् भैरवः स्वयम् ॥ ३५ ॥

इदं तत्त्वतमं दिव्यं सर्वस्वं परमार्थदम् ।

सारात् सारतरं गोप्यं गोपनीयं मुमुक्षुभिः ॥३६॥

यन्त्रधारण का फल - इस प्रकार से सविधि यन्त्र को जो धारण करता है एवं मन्त्र का जप करता है, वह सांसारिक भय से मुक्त होकर भैरव के समान हो जाता है। इस गुटिका को धारण करने से साधक को जप में सिद्धि मिलती है। बहुत क्या कहें, साधक स्वयं भैरव हो जाता है। यह सर्वश्रेष्ठ तत्त्व है, दिव्य सर्वस्व है, परमार्थदायक सारों का सार सारतर गोप्य हैं। मुमुक्षुओं से भी इसे गुप्त रखना चाहिये ।। ३४-३६।।

इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये यन्त्रधारण-विधिनिरूपणं नाम त्रयोदशः पटलः ॥ १३ ॥

इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में यन्त्र- धारणविधि निरूपण नामक त्रयोदश पटल पूर्ण हुआ।

आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 14 

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