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श्रीदेवीरहस्य पटल १५

श्रीदेवीरहस्य पटल १५

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल १५ में श्मशान अर्चना विधि के विषय में बतलाया गया है।

श्रीदेवीरहस्य पटल १५

रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् पञ्चदशः पटल: श्मशानार्चनविधिः

Shri Devi Rahasya Patal 15 

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पन्द्रहवाँ पटल

रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् पञ्चदश पटल

श्रीदेवीरहस्य पटल १५ श्मशान साधना

अथ पञ्चदशः पटल:

श्मशानसाधनप्रस्ताव:

श्रीभैरव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि श्मशानस्योग्रसाधनम् ।

येन साधनमात्रेण साधको भैरवो भवेत् ॥ १ ॥

श्मशानसाधन प्रस्ताव श्री भैरव ने कहा कि हे देवि ! सुनो, अब मैं श्मशान के उग्र साधन का विवेचन करता हूँ, जिसके साधनमात्र से ही साधक स्वयं भैरव के समान हो जाता है ।। १ ।।

श्रीदेव्युवाच

भगवन् भवता भक्त्या प्रसादोऽयं महान् कृतः ।

विस्मृतोऽयं विधिर्गुह्यः श्मशानस्यार्चनाङ्कितः ॥ २ ॥

सर्वतन्त्रेष्वविख्यातः स्मारितो मेऽधुना परः ।

श्री देवी ने कहा कि हे भगवन् आपकी भक्ति से महान कर्मों का प्रसाद मुझे प्राप्त हुआ है। किन्तु श्मशान-अर्चनविधि का मुझे विस्मरण हो गया है। सभी तन्त्रों में विख्यात इस अर्चन को फिर से जानना चाहती हूँ ।।२।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १५- साधनार्चनक्रमः

श्रीभैरव उवाच

त्रयस्त्रिंशतिकोटीनां देवतानां हि शक्तयः ।

नामभिर्विश्रुता देवि भवत्या में परं श्रुताः ॥३॥

तासा वक्ष्येऽधुना देवि श्मशानार्चा यथाविधि ।

साधका येन जायन्ते सर्वसिद्धियुताः शिवे ॥४॥

विना शमशानविधिना पूजायोगजपादयः ।

न सिद्ध्यन्ति वरारोहे कलौ भैरवशापतः ॥५॥

त्रिस्त्रिंशत्कोटयो देव्यः सर्वाः प्रेतालयस्थिताः ।

तत्र गत्वार्चयेद् यस्तु स भवेद् भैरवोपमः ॥६॥

साधन - अर्चनक्रम - श्री भैरव ने कहा कि हे देवि! तैंतीस करोड़ देवताओं की शक्तियों में विख्यात शक्तियों के नामों को मैंने सुना दिया है। अब मैं उन्हीं देवियों के श्मशान-अर्चन की विधि का यथार्थ रूप में वर्णन करता हूँ, जिस साधना के करने से साधक सभी सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। हे वरारोहे! कलियुग में भैरव के शाप के कारण पूजा, जप, योग आदि बिना श्मशानविधि की साधना के सिद्ध नहीं होते। सभी तैंतीस करोड़ देवियाँ श्मशान में रहती हैं। वहाँ जाकर जिसकी साधना की जाती है, उसकी सिद्धि प्राप्त करके साधक भैरवतुल्य हो जाता है।। ३-६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १५- श्मशाने भैरवस्थितिक्रमः

तत्र घोरारवैर्देवि महाकाल: सृगालकैः ।

सारमेयैश्च यक्षेन्द्र सोरगैः सपिशाचकैः ॥७॥

वेतालभूतप्रेतैश्च श्मशानाच करोति हि ।

तत्र भूता महाघोराश्चत्वारो विघ्नकारकाः ॥८॥

दिग्विदिक्षु भ्रमन्ते ते देव्यष्टौ भूतभैरवाः ।

ते सम्मुखगताः क्रूरा भूताः कुर्वन्ति विप्रियम् ॥९॥

भैरवा विघ्नहन्तारः शिवं कुर्वन्त्यसम्मुखे ।

तेषां विधिं प्रवक्ष्यामि गुह्यं सारोत्तमोत्तमम् ॥ १० ॥

श्मशान में भैरवस्थितिक्रम- श्मशान में देवियाँ, महाकाल, सृगाल, सारमेय, यक्षेन्द्र, सर्प, पिशाच, बेताल, भूत-प्रेत अपने कर्कश शब्दों द्वारा साधना प्रारम्भ करते ही विघ्न उपस्थित करते हैं। देवी के आठों भैरव दिशा और विदिशा में भ्रमण करते रहते हैं। साधक के सम्मुख श्मशान में क्रूर भूत उपस्थित होकर बहुत से अप्रिय कार्य करते है। उन विघ्नों को भैरव दूर भगा देते हैं। विघ्नविनाशक भैरव जिस विधि के करने से कल्याणकारक होते हैं, उस विधि का वर्णन करता हूँ। यह गुह्य है, सारों का उत्तम सार है।।७-१० ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल १५- श्मशानार्चनप्रकार:

अप्रकाश्यमदातव्यं श्मशानार्चनमुत्तमम् ।

रवौ चन्द्रे कुजे सौम्ये गुरौ शुक्रे शनौ तथा ।। ११ ।।

पुनः सूर्ये भ्रमन्ते ते दिग्विदिक्ष्वष्टभैरवाः ।

श्मशान अर्चन यह उत्तम श्मशान अर्चन न किसी को बतलाना चाहिये और न ही किसी को देना चाहिये। रविवार, सोमवार, भौमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और पुनः रविवार इन आठ दिनों में आठो भैरव दिशा-विदिशाओं में भ्रमण करते हैं ।। ११ ।।

पूर्वोत्तरेशानसमीरणाग्निकेनाशरक्षोवरुणादिदिक्षु ।

महोचित्राङ्गदचण्ड भास्वल्लो लाक्षभूतेशकरालभीमाः ॥ १२ ॥

एते भ्रमन्ते सततं श्मशाने दिग्भैरवा भूतयुता महेशि।

एतान् समभ्यर्च्य वसेत् श्मशाने स्यादन्यथा धीभ्रमणं विपत्तिः ॥ १३ ॥

पूर्व दिशा में महोग्रभैरव, उत्तर में चित्रांगद, ईशान में चण्ड, वायव्य में भास्वर, अग्निकोण में लोलाक्ष, दक्षिण में भूतेश, नैर्ऋत्य में कराल और पश्चिम में भीम नामक भैरव भ्रमण करते रहते हैं। श्मशान की आठो दिशाओं में ये भैरव भूतों के साथ भ्रमण करते हैं। इनका अर्चन करने के बाद ही श्मशान में अर्चन होता है, अन्यथा साधक पागल हो जाता है और विपत्तिग्रस्त हो जाता है। । १२-१३।।

इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये श्मशानार्चनविधि- निरूपणं नाम पञ्चदशः पटलः ॥ १५ ॥

इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में श्मशानार्चन-विधि-निरूपण नामक पञ्चदश पटल पूर्ण हुआ।

आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 16 

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