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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीदेवीरहस्य पटल ६
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल ६ में मन्त्रोद्धार के पश्चात देवी,
वैष्णव और शाक्त मन्त्रों के सञ्जीवन के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् षष्ठः पटल: मन्त्रसञ्जीवनविधिः
Shri Devi Rahasya Patal 6
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य छटवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
षष्ठ पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ मन्त्रसञ्जीवन विधि
अथ षष्ठः पटल:
श्रीभैरव उवाच
अथ ते वर्णयिष्यामि सञ्जीवनमनून्
प्रिये ।
एषामुच्चारमात्रेण मन्त्रः
सिद्धिप्रदो भवेत् ॥ १ ॥
भैरव ने कहा कि हे प्रिये! अब मैं
सञ्जीवन मन्त्रों का वर्णन तुझसे करता हूँ। इनके उच्चारणमात्र से सभी मन्त्र
सिद्धिप्रदायक हो जाते हैं ।। १ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६- बालामन्त्रसञ्जीवनम्
बालाया देवि त्र्यक्षर्याः
शक्तिमादौ पठेत् सुधीः ।
सञ्जीवनाख्यो मन्त्रोऽयं दिव्यो
मन्त्रस्य सिद्धये ॥ २ ॥
बाला मन्त्र सञ्जीवन - बाला के
त्र्यक्षरी मन्त्र 'ऐं क्लीं सौः'
को 'सौः ऐं क्लीं' करके
जप करने से सञ्जीवन होता है। मन्त्रसिद्धि के लिये यह दिव्य मन्त्र है ।। २ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -त्रिपुरभैरवीमन्त्रसञ्जीवनम्
परात्रयं पठेदादौ जीवनं भैरवीमनोः ।
कूटत्रयाणां देवेशि त्रिकूटाया
जपेत् सुधीः ॥ ३ ॥
त्रिपुरसुन्दरी मन्त्र सञ्जीवन —
त्रिपुरसुन्दरी के पञ्चदशी मन्त्र के तीनों कूटों के पहले 'ह्रीं' लगाकर जप करने से इसका सञ्जीवन होता है।
मन्त्र का रूप होगा- ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह्रीं हसकहलह्रीं ह्रीं सकलह्रीं यह
अष्टादशाक्षरी हो जाता है।।३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -त्रिकूटा
(दक्षिणकाली) मन्त्रसञ्जीवनम्
द्वितीयार्णत्रयं देवि भवेत्
सञ्जीवनं मनोः ।
सिद्धविद्या महाश्यामा सर्वदोषविवर्जिता
॥४॥
जप्या सिध्यै सदा
सद्भिर्ब्रह्मविद्भिर्मुमुक्षुभिः ।
भद्रिकायुगलं देवि दद्यादन्ते मनोः
शिवे ॥ ५ ॥
दक्षिणकाली मन्त्रसञ्जीवन —
काली मन्त्र का 'क्रीं क्रीं क्रीं' के दो बार जप से संजीवन होता है और मन्त्र सर्व दोषविवर्जित होता है।
ब्रह्मवित् मुमुक्षुओं को सिद्धि के लिये मन्त्र के अन्त में 'भैं भैं' लगाकर जप करना चाहिये ।।४-५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -भद्रकालीमन्त्रसञ्जीवनम्
भद्रकालीमनोरेष स्यात् सञ्जीवनको
मनुः ।
तारं परां पठेदन्ते जपादौ
साधकेश्वरि ॥६॥
भद्रकाली मन्त्रसञ्जीवन —
भद्रकाली मन्त्र को सञ्जीवित करने के लिये मन्त्र के आदि और अन्त
में 'ॐ ह्रीं लगाकर जप करना चाहिये ।। ६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -मातङ्गीमन्त्रसञ्जीवनम्
राजमातङ्गिनीदेव्या भवेत् सञ्जीवनं
मनोः ।
वारत्रयं पठेदादौ मूलमन्त्रस्य वै
पराम् ॥७॥
राजमातङ्गिनी मन्त्र सञ्जीवन —
राजमातङ्गिनी मन्त्र के सञ्जीवन के लिये मन्त्र के पहले 'ह्रीं ह्रीं ह्रीं' कहना चाहिये ।। ७ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -भुवनेश्वरीमन्त्रसञ्जीवनम्
मन्त्रस्य भुवनेश्वर्या भवेत्
सञ्जीवनं परम् ।
कालीं तारं पठेदन्ते मन्त्रस्यास्य
महेश्वरि ॥८॥
भुवनेश्वरी मन्त्र सञ्जीवन —
भुवनेश्वरी मन्त्र सञ्जीवन के लिये भुवनेश्वरी मन्त्र के अन्त में
क्रीं क्रीं क्रीं कहना चाहिये ।।८।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -उग्रतारामन्त्रसञ्जजीवनम्
उग्रतारामनोरेष स्यात् सञ्जीवनको
मनुः ।
वासनां मूलमन्त्रस्य जपेदन्ते महेश्वरि
॥ ९ ॥
उग्रतारा मन्त्र सञ्जीवन-उग्रतारा मन्त्र
सञ्जीवन के लिये मन्त्र के अन्त में ऐं का जप करना चाहिये ।। ९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-छिन्नमस्तामन्त्रसञ्जीवनम्
छिन्नमस्तामनोरेष स्यात् सञ्जीवनको
मनुः ।
परमादौ जपेद् देवि काममन्ते तथैव च
॥ १० ॥
छिन्नमस्ता मन्त्र सञ्जीवन —
छिन्नमस्ता मन्त्र के सञ्जीवन के लिये मन्त्र के पहले ह्रीं और अन्त
में क्लीं लगाकर जप होता है।। १० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -सुमुखीमन्त्रसञ्जीवनम्
सुमुखीमन्त्रराजस्य भवेत् सञ्जीवनं
प्रिये ।
तारद्वयं जपेन्मन्त्री मन्त्रान्ते
मान्त्रिकेश्वरि ॥ ११ ॥
सुमुखी मन्त्र सञ्जीवन —
सुमुखी मन्त्र के अन्त में दो बार ॐ के जप से सञ्जीवन होता है ।। ११
।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -सरस्वतीमन्त्रसञ्जीवनम्
सरस्वतीमनोरेष स्यात् सञ्जीवनको
मनुः ।
विश्वमन्ते जपेदादौ ठद्वयं
कालिकेश्वरि ॥१२॥
सरस्वती मन्त्र - सञ्जीवन —
सरस्वती मन्त्र सञ्जीवन के लिये मन्त्र के पहले स्वाहा और अन्त में
नमः लगाकर जप करना चाहिये ।।१२।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -अन्नपूर्णामन्त्रसञ्जीवनम्
अन्नपूर्णामनोर्येन भवेत् सञ्जीवनं परम्
।
वाणीमन्ते जपेदादौ कामराजं च साधकः
॥ १३ ॥
अन्नपूर्णा मन्त्र सञ्जीवन - इस
मन्त्र के सञ्जीवन के लिये मन्त्र के पहले क्लीं और अन्त में ऐं लगाकर जप करना
चाहिये ।। १३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -महालक्ष्मीमन्त्र
सञ्जीवनम्
महालक्ष्मीमनोदेवि भवेत् सञ्जीवनं
परम् ।
कूर्चमादौ परामन्ते जपेत्
साधकसत्तमः ॥१४॥
महालक्ष्मी मन्त्र सञ्जीवन —
महालक्ष्मी मन्त्र सञ्जीवन के लिये मन्त्र के पहले 'हूं' और अन्त में 'ह्रीं'
लगाकर जप करना होता है।। १४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -शारिकामन्त्रसञ्जीवनम्
शारिकामूलमन्त्रस्य भवेत् सञ्जीवनं
प्रिये ।
कामराजं जपेदादौ मायाबीजं तथाञ्चले
॥ १५ ॥
शारिका मन्त्र सञ्जीवन —
शारिका मन्त्र के पहले 'क्लीं' और अन्त में 'ह्रीं' लगाकर जप
से इसका सञ्जीवन होता है ।। १५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-शारदामन्त्रसञ्जीवनम्
शारदामन्त्रराजस्य सञ्जीवनमनुः स्मृतः
।
मन्मथं शक्तिबीजं च जपेदादौ च साधकः
॥ १६ ॥
शारदा मन्त्र सञ्जीवन-शारदा मन्त्र
के सञ्जीवन के लिये मन्त्र के पहले 'क्लीं
सौ:' का जप करना चाहिये ।। १६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-इन्द्राक्षीमन्त्रसञ्जीवनम्
इन्द्राक्षीमूलमन्त्रस्य सञ्जीवनमनुः
परः ।
मृत्स्नाबीजं जपेद् देवि प्रणवं च
वनाञ्चले ॥ १७ ॥
इन्द्राक्षी मन्त्र सञ्जीवन
इन्द्राक्षी मन्त्र के पहले 'ह्ली' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप से
संजीवन होता है ।। १७ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -बगलामुखीमन्त्रसञ्जीवनम्
बगलामन्त्रराजस्य भवेत् सञ्जीवनं
परम् ।
तारकं मूलमन्त्रान्ते त्रिरुच्चार्य
जपेत् प्रिये ॥१८॥
बगला मन्त्र सञ्जीवन —
बगला मन्त्र के अन्त में तीन बार 'त्रों'
के जप से इस मन्त्र का संजीवन होता है।। १८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-महातुरीमन्त्रसञ्जीवनम्
तुर्यामन्त्रस्य निर्णीतः
सञ्जीवनमनुः परः ।
वह्निबीजं जपेदन्ते शक्तिमादौ महेश्वरि
।। १९ ।।
महातुरी मन्त्र सञ्चीवन–महातुरी मन्त्र को सञ्जीवित करने के लिये मन्त्र के पहले सौ: और अन्त में रां
लगाकर जप करना चाहिये ।। १९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -महाराज्ञीमन्त्रसञ्जीवनम्
राज्ञीमन्त्रस्य मन्त्रोऽयं
सञ्जीवनकरः स्मृतः ।
कूर्चमादौ च तुरगं जपेदन्ते
महेश्वरि ॥ २० ॥
महाराज्ञी मन्त्र सञ्जीवन -
महाराज्ञी मन्त्र के पहले हूं और अन्त में फट् लगाकर जप करने से इस मन्त्र का
संजीवन होता है।। २० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -ज्वालामुखीमन्त्रसञ्जीवनम्
ज्वालामुखीमनोरेष मन्त्रः
सञ्जीवनाभिधः ।
वाग्भवं प्रणवादौ च ठद्वयान्ते
जपेत् पराम् ॥ २१ ॥
ज्वालामुखी मन्त्र सञ्जीवन
ज्वालामुखी मन्त्र के पहले 'ऐं ॐ' और अन्त में 'स्वाहा' लगाकर जप
करने से संजीवन होता है।। २१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -भीड़ामन्त्रसञ्जीवनम्
एष सञ्जीवनो मन्त्रो भीडाभगवतीमनोः
।
तारमन्ते रमामादौ जपेत् साधकसत्तमः
॥२२॥
भीड़ा भगवती मन्त्र सञ्जीवन-भीड़ा
भगवती के मन्त्र के पहले श्रीं और अन्त में 'ॐ'
लगाकर जप करने से संजीवन होता है ।। २२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-कालरात्रिमन्त्रसञ्जीवनम्
गणेश्वरीकालरात्र्याः स्यात्
सञ्जीवनको मनुः ।
कूर्चमादौ हरान्ते मां जपेत्
साधकसत्तमः ॥ २३ ॥
कालरात्री मन्त्र सञ्जीवन -
कालरात्रि के मन्त्र के पहले 'हूं' और 'फट् श्री' अन्त में लगा कर
जप से संजीवन होता है ।। २३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -भवानीमन्त्रसञ्जीवनम्
भवानीमूलमन्त्रस्य भवेत् सञ्जीवनं
परम् ।
मायामुच्चार्य देवेशि त्रिरादौ
त्रिस्तथाञ्चले ॥ २४ ॥
भवानी मन्त्र सञ्जीवन-भवानी मन्त्र
के संजीवन के लिये मन्त्र के पहले और बाद में तीन-तीन बार 'ह्रीं' का उच्चारण करके जप करना चाहिये ।। २४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-वज्रयोगिनीमन्त्रसञ्जीवनम्
सञ्जीवनमनुर्देवि स्याद्वज्रयोगिनीमनोः।
मठमन्ते मठं चादौ जपेत् पार्वति कौलिकः
॥ २५ ॥
वज्रयोगिनी मन्त्र
सञ्जीवन-वज्रयोगिनी मन्त्र के पहले और बाद में 'ग्लौं' का जप करना चाहिये। इससे मन्त्र का सञ्जीवन
होता है।। २५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-धूम्रवाराहीमन्त्रसञ्जीवनम्
मन्त्रोऽयं धूम्रवाराह्या मनोः
सञ्जीवनाभिधः ।
हरितं मूलमन्त्रान्ते जपेदादौ च
मन्मथम् ॥ २६ ॥
धूम्रवाराही मन्त्र सञ्जीवन —
धूम्रवाराही मन्त्र के पहले 'क्लीं' और बाद में 'हसौ' लगाकर जप
करने से इसका सञ्जीवन होता है।। २६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -सिद्धलक्ष्मीमन्त्रसञ्जीवनम्
सिद्धलक्ष्मीमनोरेष स्यात्
सञ्जीवनको मनुः ।
काङ्क्षामादौ रमामन्ते जपेत्
साधकसत्तमः ॥२७॥
सिद्धलक्ष्मी मन्त्र
सञ्जीवन-सिद्धलक्ष्मी मन्त्र के पहले 'झं'
और बाद में 'श्री' लगाकर
जप करने से सजीवन होता है ।। २७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -कुलवागीश्वरीमन्त्रसञ्जीवनम्
भवेत् सञ्जीवनं देव
कुलवागीश्वरीमनोः ।
काममादौ महादेवि जपेदन्ते रमां शिवे
॥ २८ ॥
कुलवागीश्वरी मन्त्र सञ्जीवन —
कुलवागीश्वरी मन्त्र के पहले 'क्लीं' और बाद में 'श्री' लगाकर जप
करने से इसका संजीवन होता है ।। २८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -पद्मावतीमन्त्रसञ्जीवनम्
पद्मावतीमनोरेष स्मृतः सञ्जीवनो
मनुः ।
वागुरां पङ्कजान्ते च प्रणवादी परां
जपेत् ॥ २९ ॥
पद्मावती मन्त्र सञ्जीवन-पद्मावती
मन्त्र सञ्जीवन के लिये इसके मन्त्र के पहले 'ॐ
ह्रीं' और बाद में 'प्रौं ठः' लगाकर जप करना चाहिये ।। २९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -कुब्जिकामन्त्रसञ्जीवनम्
कुब्जिकामूलमन्त्रस्य मन्त्रोऽयं
जीवनाभिधः ।
वाह्लीकं प्रणवादौ च मूलान्ते तु
शिवं जपेत् ॥ ३० ॥
कुब्जिका मन्त्र- सञ्जीवन —
कुब्जिका मन्त्र सञ्जीवन के लिये मन्त्र के पहले 'ॐ ग्लौं' और अन्त में 'गं'
लगाकर जप करना चाहिये ।। ३० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -गौरीमन्त्रसञ्जीवनम्
गौरीमन्त्रस्य मन्त्रोऽयं स्यात्
सञ्जीवनकाभिधः ।
कूटमन्ते विश्वमादौ जपेत् पार्वति
साधकः ॥ ३१ ॥
गौरी मन्त्र सञ्जीवन —
गौरी मन्त्र के पहले 'नमः' और अन्त में 'वौषट्' लगाकर जप
करने से मन्त्र का संजीवन होता है।। ३१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -खेचरीमन्त्रसञ्जीवनम्
खेचरीमन्त्रराजस्य भवेत् सञ्जीवनं
शिवे ।
वाणीमादौ परामन्ते
जपेन्मान्त्रिकसत्तमः ॥ ३२ ॥
खेचरी मन्त्र सञ्जीवन - खेचरी
मन्त्र के पहले 'ऐं' और अन्त में 'ह्रीं' लगाकर जप
करने से सञ्जीवन होता है।।३२।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-नीलसरस्वतीमन्त्रसञ्जीवनम्
भवेत् सञ्जीवनं देवि
नीलासरस्वतीमनोः ।
वाग्भवं प्रणवादौ च काममन्ते जपेत्
शिवे ॥ ३३ ॥
नीलसरस्वती मन्त्र सञ्जीवन-
नीलसरस्वती मन्त्र के पहले 'ॐ ऐं' और अन्त में 'क्लीं' लगाकर जप
करने से इसका सञ्जीवन होता है ।। ३३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -पराशक्तिमन्त्रसञ्जीवनम्
एष सञ्जवनो मन्त्रः पराशक्तिमनोः
स्मृतः ।
पराशक्ति मन्त्र सञ्जीवन —
पराशक्ति मन्त्र स्वयं सञ्जीवित है। इसे सञ्जीवन की आवश्यकता नहीं
है।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -सर्वशैवमन्त्रसञ्जीवनमन्त्रः
अधुना शैवमन्त्राणां निष्कीलानां
महेश्वरि ॥ ३४ ॥
वक्ष्ये तत्त्वं रहस्यं ते
सञ्जीवनकरं परम् ।
मूलमन्त्राञ्चले मन्त्री जपेत् तारं
पृथक् पृथक् ॥ ३५ ॥
सर्वेषां शैवमन्त्राणां भवेत्
सञ्जीवनं प्रिये ।
तथापि कीलितानां ते सञ्जीवनमनून्
ब्रुवे ॥ ३६ ॥
येषां साधनमात्रेण मूलविद्याशु
सिध्यति ।
शैवमन्त्र सञ्जीवन —
भैरव ने कहा कि हे महेश्वरि अब मैं निष्कीलित शैव मन्त्रों के सजीवन
तत्त्व के रहस्य का वर्णन करता हूँ। सभी निष्कीलित शैव मन्त्रों के अन्त में 'ॐ' का जप पृथक् पृथक् करने से उनका सञ्जीवन होता है,
तथापि कीलित शैव मन्त्रों के सञ्जीवन का वर्णन करता हूँ, जिसके साधनमात्र से मूल मन्त्र सिद्ध होते है।। ३४-३६।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -मृत्युञ्जयमन्त्र
सञ्जीवनम्
सूर्यनामाक्षरद्वन्द्वं जपेदादौ च साधकः
॥३७॥
मृत्युञ्जयमनोरेष मन्त्रः
सञ्जीवनाभिधः ।
मृत्युञ्जय मन्त्र-सञ्जीवन—मृत्युञ्जय मन्त्र के प्रारम्भ में 'हां हां'
के जप से सजीवन होता है। 'हां हां' संजीवन मन्त्र है ।। ३७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-अमृतेश्वरमन्त्रसञ्जीवनम्
विश्वमादौ विश्वमन्ते जपेन्मान्त्रिकनायकः
॥३८॥
अमृतेश्वरमन्त्रस्य भवेत् सञ्जीवनं
परम् ।
अमृतेश मन्त्र सञ्जीवन —
अमृतेश मन्त्र के पहले और अन्त में 'नमः'
लगाकर जप करने से इसका सञ्जीवन होता है ।। ३८।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -वटुकभैरवमन्त्रसञ्जीवनम्
वटुकायेति तारादौ जपेत् पार्वति साधकः
॥ ३९ ॥
सञ्जीवनमनुः प्रोक्तो वटुकस्यैष
दुर्लभः ।
वटुक मन्त्र सञ्जीवन —
बटुक मन्त्र के पहले 'ॐ' लगाकर जप करने से इसका सञ्जीवन होता है ।। ३९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -नीलकण्ठमन्त्र
सञ्जीवनम्
शिवं च प्रणवादौ तु जपेत्
साधकवन्दिते ॥४०॥
श्रीनीलकण्ठमन्त्रस्य मन्त्रः
सञ्जीवनाभिधः ।
नीलकण्ठ मन्त्र सञ्जीवन —
नीलकण्ठ मन्त्र के पहले 'ॐ गं लगाकर जप करने से
सञ्जीवन होता है ।। ४० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -सद्योजातमन्त्रसञ्जीवनम्
परामादौ त्रिरुच्चार्य जपादौ
सञ्जपेत् सुधीः ॥४१॥
सद्योजातमनोरेष स्मृतः सञ्जीवनो
मनुः ।
सद्योजात मन्त्र सञ्जीवन —
सद्योजात मन्त्र जप के पहले तीन बार 'ह्रीं'
का उच्चारण करके जप करने से सञ्जीवन होता है ।।४१।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -महागणपतिमन्त्रसञ्जीवनम्
शिवमन्ते द्विरुच्चार्य जपेद् देवि
जपादितः ॥४२॥
महागणपतेर्मन्त्रो मनोः
सञ्जीवनाभिधः ।
महागणपति मन्त्र- सञ्जीवन महागणपति
मन्त्र के पहले 'गं गं' लगाकर जप करने से इसका सञ्जीवन होता है ।।४२।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -अघोरमन्त्रसञ्जीवनम्
वज्रबीजानि मूलादौ जपेत् पार्वति
साधकः ॥४३॥
अघोरदेवमन्त्रस्य मनुः सञ्जीवनः
स्मृतः ।
अघोर मन्त्र- सञ्जीवन —
अघोर मन्त्र के पहले 'भ्यों' लगाकर जप करने से इस मन्त्र का सज्जीवन होता है।।४३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-महाकालमन्त्र
सञ्जीवनम्
निर्दोषो मन्त्रराजोऽयं महाकालस्य
पार्वति ॥ ४४ ॥
अस्योच्चारणमात्रेण मन्त्राः
सिध्यन्ति सर्वदा ।
महाकाल मन्त्र सञ्जीवन - महाकाल का
मन्त्र मन्त्रराज है, निर्दोष है। इसके
उच्चारणमात्र से मन्त्र सिद्ध होते हैं ।। ४४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -कामेश्वरमन्त्रसञ्जीवनम्
कूटत्रयेभ्यो देवेशि
द्वितीयाक्षरमुच्चरेत् ॥ ४५ ॥
जपेत् कामेशमन्त्रस्य भवेत्
सञ्जीवनं शिवे ।
कामेश्वर मन्त्र सञ्जीवन —
कामेश्वर मन्त्र हैं—ऐं क्लीं सौः ॐ श्रीं
ह्रीं कामेश्वर ह्रीं श्रीं ॐ सौः क्लीं ऐं तीनों कूटों के दूसरे अक्षर 'क्लीं श्रीं क्लीं' को मन्त्र के पहले लगाकर जप करने
से इस मन्त्र का संजीवन होता है।। ४५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -वैष्णवमन्त्रसञ्जीवनमन्त्रः
अथाहं वैष्णवानां ते मनूनां वच्मि
जीवनम् ॥४६॥
याञ्जप्त्वा साधको देवि भवेद्भैरवसन्निभः
।
वैष्णव मन्त्र सञ्जीवन - अब मैं
वैष्णवमन्त्रों के सञ्जीवन मन्त्रों का वर्णन करता हूँ,
जिसे जानकर हे देवि! साधक भैरव के समान हो जाता है ।। ४६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -लक्ष्मीनारायणमन्त्रसञ्जीवनम्
हरितं मूलमन्त्रान्ते जपेत् पार्वति
साधकः ॥४७॥
लक्ष्मीनारायणमनोर्भवेत् सञ्जीवनं
परम् ।
लक्ष्मीनारायण मन्त्र- सञ्जीवन हे
पार्वति ! लक्ष्मीनारायण मन्त्र के सञ्जीवन के लिये साधक को मन्त्र के अन्त में 'हसौः' बीज लगाकर जप करना चाहिये ।। ४७ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -राधाकृष्णमन्त्रसञ्जीवनम्
शक्तिमन्ते मनोरादौ वाग्भवं साधको
जपेत् ॥ ४८ ॥
श्रीराधाकृष्णमन्त्रस्य सञ्जीवनमनुः
स्मृतः ।
राधाकृष्ण मन्त्र सञ्जीवन -
राधाकृष्ण मन्त्र के पहले 'ऐं' और अन्त में 'सौ' लगाकर जप
करने से इसका संजीवन होता है ।।४८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-विष्णुमन्त्रसञ्जीवनम्
विश्वान्ते प्रणवं देवि जपेत्
साधकसत्तमः ॥ ४९ ॥
विष्णुमन्त्रस्य मन्त्रोऽयं स्मृतः
सञ्जीवनाभिधः ।
विष्णु मन्त्र सञ्जीवन —
विष्णु मन्त्र के अन्त में नमः के बाद 'ॐ'
लगाकर जप करने से इसका सञ्जीवन होता है। ॐ इसका सञ्जीवन मन्त्र है
।। ४९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -लक्ष्मीनृसिंहमन्त्रसञ्जीवनम्
नृबीजं प्रथमं देवि प्रणवं चाञ्चले
जपेत् ॥ ५० ॥
लक्ष्मीनृसिंहमन्त्रस्य मन्त्रः
सञ्जीवनाभिधः ।
लक्ष्मीनृसिंह मन्त्र
सञ्जीवन-लक्ष्मीनृसिंह मन्त्र के पहले 'श्री'
और अन्त में 'ॐ' लगाकर
जप करने से इस मन्त्र का सञ्जीवन होता है ।। ५० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -लक्ष्मीवराहमन्त्रसञ्जीवनम्
रमामन्ते त्रिरुच्चार्य
जपेदानन्दनिर्भरे ॥५१॥
लक्ष्मीवराहमन्त्रस्य सञ्जीवनमनुः
स्मृतः ।
लक्ष्मीवराह मन्त्र सञ्जीवन-लक्ष्मीवराह मन्त्र
के अन्त में तीन बार 'श्रीं' का उच्चारण करके जप करने से इसका सञ्जीवन होता है ।। ५१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -परशुराममन्त्रसञ्जीवनम्
परायुगं जपेदादौ मन्त्रराजस्य
पार्वति ॥५२॥
मन्त्रो भार्गवरामस्य मनोः सञ्जीवनः
स्मृतः ।
भार्गव राम मन्त्र सञ्जीवन- परशुराम
मन्त्र के प्रारम्भ में दो बार 'ह्रीं' जप के साथ मन्त्र जप करने से इसका सञ्जीवन होता है।। ५२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -सीताराममन्त्रसञ्जीवनम्
मन्त्रान्ते प्रणवं देवि तारादौ
सकलां जपेत् ॥ ५३ ॥
श्रीसीताराममन्त्रस्य मनोः सञ्जीवनो
मनुः ।
सीताराम मन्त्र सञ्जीवन —
सीताराम मन्त्र के पहले 'ॐ ह्रीं' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप करने
से इसका सज्जीवन होता है।। ५३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -जनार्दनमन्त्रसञ्जीवनम्
विश्वमादौ परामन्ते जपेत् पार्वति
मान्त्रिकः ॥५४॥
जनार्दनमनोरेष मन्त्रः सञ्जीवन: स्मृतः
।
जनार्दन मन्त्र सञ्जीवन- जनार्दन
मन्त्र के पहले 'नमः' और अन्त में 'ह्रीं' लगाकर जप
करने से इस मन्त्र का सञ्जीवन होता है। । ५४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६ -विश्वक्सेनमन्त्रसञ्जीवनम्
परमादौ परामन्ते सतारां साधको जपेत्
॥ ५५ ॥
विश्वक्सेनमनोरेष स्यात् सञ्जीवनको
मनुः ।
विश्वक्सेन मन्त्र सञ्जीवन —
विष्वक्सेन मन्त्र के पहले 'ॐ ह्रीं' और अन्त में 'ॐ ह्रीं' लगाकर
जप करने से संजीवन होता है।। ५५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-लक्ष्मीवासुदेवमन्त्रसञ्जीवनम्
रमामादौ रमामन्ते जपादौ सञ्जपेत्
सुधीः ॥ ५६ ॥
श्रीलक्ष्मीवासुदेवस्य मनोः सञ्जवनो
मनुः ।
लक्ष्मी वासुदेव मन्त्र सञ्जीवन —
श्री लक्ष्मीवासुदेव मन्त्र के आदि और अन्त में 'श्री' लगाकर जप करने से संजीवन होता है।। ५६॥
श्रीदेवीरहस्य पटल ६-पटलोपसंहार
इतीदं मन्त्रसर्वस्वं रहस्य
सारमद्भुतम् ।
तव भक्त्या मयाख्यातं गोपनीयं
स्वयोनिवत् ॥५७॥
यह मन्त्रसर्वस्व है,
अद्भुत सार का रहस्य है। हे देवि! तुम्हारी भक्ति के वश में होकर
मैंने इसका वर्णन किया है। इसे अपनी योनि के समान गुप्त रखना चाहिये ।। ५७।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये मन्त्रसञ्जीवनविधिनिरूपणं नाम षष्ठः पटलः ॥ ६ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में मन्त्रसञ्जीवनविधि नामक षष्ठ पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 7
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