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अग्निपुराण अध्याय ११०

अग्निपुराण अध्याय ११०    

अग्निपुराण अध्याय ११० में गङ्गाजी की महिमा का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय ११०

अग्निपुराणम् दशाधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 110     

अग्निपुराण एक सौ दसवाँ अध्याय

अग्नि पुराण अध्याय ११०                

अग्निपुराणम् अध्यायः ११० – गङ्गामाहात्म्यं

अथ दशाधिकशततमोऽध्यायः

अग्निरुवाच

गङ्गामाहात्म्यमाख्यास्ये सेव्या सा भुक्तिमुक्तिदा ।

येषां मध्ये याति गङ्गा ते देशा पावना वराः ॥१॥

गङ्गा तारयते चोभौ वंशौ नित्यं हि सेविता ॥२॥

चान्द्रायणसहस्राच्च गङ्गाम्भःपानमुत्तमं ।

गङ्गां मासन्तु संसेव्य सर्वयज्ञफलं लभेत् ॥३॥

अग्निदेव कहते हैं- अब गङ्गा का माहात्म्य बतलाता हूँ। गङ्गा का सदा सेवन करना चाहिये । वह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं। जिनके बीच से गङ्गा बहती हैं, वे सभी देश श्रेष्ठ तथा पावन हैं। उत्तम गति की खोज करनेवाले प्राणियों के लिये गङ्गा ही सर्वोत्तम गति है। गङ्गा का सेवन करने पर वह माता और पिता- दोनों के कुलों का उद्धार करती है। एक हजार चान्द्रायण अपेक्षा गङ्गाजी के जल का पीना उत्तम है। एक मास गङ्गाजी का सेवन करनेवाला मनुष्य सब यज्ञों का फल पाता है ॥ १-३ ॥

सकलाघहरी देवी स्वर्गलोकप्रदायिनी ।

यावदस्थि च गङ्गायां तावत्स्वर्गे स तिष्ठति ॥४॥

अन्धादयस्तु तां सेव्य देवैर्गच्छन्ति तुल्यतां ।

गङ्गातीर्थसमुद्भूतमृद्धारी सोऽघहार्कवत् ॥५॥

दर्शनात्स्पर्शनात्पानात्तथा गङ्गेतिकीर्तनात् ।

पुनाति पुण्यपुरुषान् शतशोथ सहस्रशः ॥६॥

गङ्गादेवी सब पापों को दूर करनेवाली तथा स्वर्गलोक देनेवाली हैं। गङ्गा के जल में जबतक हड्डी पड़ी रहती है, तबतक वह जीव स्वर्ग में निवास करता है। अंधे आदि भी गङ्गाजी का सेवन करके देवताओं के समान हो जाते हैं। गङ्गा- तीर्थ से निकली हुई मिट्टी धारण करनेवाला मनुष्य सूर्य के समान पापों का नाशक होता है। जो मानव गङ्गा का दर्शन, स्पर्श, जलपान अथवा 'गङ्गा' इस नाम का कीर्तन करता है, वह अपनी सैकड़ों-हजारों पीढ़ियों के पुरुषों को पवित्र कर देता है ॥ ४-६ ॥

इत्याग्नेये महापुराणे गङ्गामाहात्म्यं नाम दशाधिकशततमोऽध्यायः॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'गङ्गाजी की महिमा' नामक एक सौ दसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ११० ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 111 

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