अग्निपुराण अध्याय ११३

अग्निपुराण अध्याय ११३     

अग्निपुराण अध्याय ११३ में नर्मदा माहात्म्य का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय ११३

अग्निपुराणम् त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 113     

अग्निपुराण एक सौ तेरहवाँ अध्याय

अग्नि पुराण अध्याय ११३                 

अग्निपुराणम् अध्यायः ११३ – नर्मदादिमाहात्म्यम्

अथ त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः

अग्निरुवाच

नर्मदादिकमाहात्म्यं वक्ष्येहं नर्मदां परां ।

सद्यः पुनाति गाङ्गेयं दर्शनाद्वारि नार्मदं ॥१॥

विस्तराद्योजनशतं योजनद्वयमायता ।

षष्टिस्तीर्थसहस्राणि षष्टिकोट्यस्तथापराः ॥२॥

पर्वतस्य समन्तात्तु तिष्ठन्त्यमरकण्टके ।

कावेरीसङ्गमं पुण्यं श्रीपर्वतमतः शृणु ॥३॥

अग्निदेव कहते हैंअब मैं नर्मदा आदि का माहात्म्य बताऊँगा । नर्मदा श्रेष्ठ तीर्थ है। गङ्गा का जल स्पर्श करने पर मनुष्य को तत्काल पवित्र करता है, किंतु नर्मदा का जल दर्शनमात्र से ही पवित्र कर देता है। नर्मदातीर्थ सौ योजन लंबा और दो योजन चौड़ा है। अमरकण्टक पर्वत के चारों ओर नर्मदा सम्बन्धी साठ करोड़, साठ हजार तीर्थ हैं। कावेरी संगमतीर्थ बहुत पवित्र है। अब श्रीपर्वत का वर्णन सुनो - ॥ १-३ ॥

गौरी श्रीरूपिणी तेपे तपस्तामब्रवीद्धरिः ।

अवाप्स्यसि त्वमध्यात्म्यं नाम्ना श्रीपर्वतस्तव ॥४॥

समन्ताद्योजनशतं महापुण्यं भविष्यति ।

अत्र दानन्तपो जप्यं श्राद्धं सर्वमथाक्षयं ॥५॥

मरणं शिवलोकाय सर्वदं तीर्थमुत्तमं ।

हरोऽत्र क्रीडते देव्या हिरण्यकशिपुस्तथा ॥६॥

तपस्तप्त्वा बली चाभून्मुनयः सिद्धिमाप्नुवन् ॥७॥

एक समय गौरी ने श्रीदेवी का रूप धारण करके भारी तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर श्रीहरि ने उन्हें वरदान देते हुए कहा- "देवि! तुम्हें अध्यात्म-ज्ञान प्राप्त होगा और तुम्हारा यह पर्वत ' श्रीपर्वत' के नाम से विख्यात होगा। इसके चारों ओर सौ योजनतक का स्थान अत्यन्त पवित्र होगा।" यहाँ किया हुआ दान, तप, जप तथा श्राद्ध सब अक्षय होता है। यह उत्तम तीर्थ सब कुछ देनेवाला है। यहाँ की मृत्यु शिवलोक की प्राप्ति करानेवाली है। इस पर्वत पर भगवान् शिव सदा पार्वतीदेवी के साथ क्रीड़ा करते हैं तथा हिरण्यकशिपु यहीं तपस्या करके अत्यन्त बलवान् हुआ था। मुनियों ने भी यहाँ तपस्या से सिद्धि प्राप्त की है ॥४-७॥

इत्याग्नेये महापुराणे नर्मदाश्रीपर्वतादिमाहात्म्यं नाम त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'नर्मदा-माहात्म्य वर्णन' नामक एक सौ तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥११३॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 114 

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