श्रीदेवीरहस्य पटल २५
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल २५ में यन्त्र शोधन विधि का निरूपण के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् पञ्चविंशः पटल: यन्त्रशोधन-जप-पूजाकालः
Shri Devi Rahasya Patal 25
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पच्चीसवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
पञ्चविंश पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल २५ यन्त्रशोधन विधि निरूपण
अथ पञ्चविंशः पटल:
यन्त्रशोधन-जप-पूजाकालः
यन्त्रशोधन प्रस्तावः
श्रीभैरव उवाच
अधुना देवदेवेशि यन्त्रशोधनमुत्तमम्
।
वक्ष्यामि तव भक्त्याहं कौलिकानां
हिताय च ॥ १ ॥
यन्त्रशोधन प्रस्ताव –
श्री भैरव ने कहा- हे देवदेवेशि ! तुम्हारे स्नेहवश और कौलिकों के
हितार्थ अब मैं उत्तम यन्त्रशोधन विधि का वर्णन करता हूँ ।। १ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- अष्टधा धातुयन्त्रोल्लेखनम्
सौवर्णं राजतं ताम्रं स्फाटिकं
रौधिकं तथा ।
कापालिकं च पाशासं श्रीचक्रं
वैष्णवाश्मिकम् ॥ २॥
एतेष्वष्टसु दिव्येषु योगपीठेषु
पार्वति ।
विभावयेन्महायन्त्रं दैवं भौमं च
भाविकम् ॥ ३॥
ऊर्ध्वरेखमधोरेखं तृतीयं गन्धचित्रितम्
।
त्रिविधं यन्त्रमीशानि सुसिद्धं
सिद्धसाध्यकम् ॥४॥
यन्त्रनिर्माण के आठ धातु-सोना,
चाँदी, ताँबा, स्फटिक,
रोध, कपाल, पाशास,
वैष्णवाश्म - ये आठ धातु दिव्य योगपीठ हैं। दैव, भौम और काल्पनिक महायन्त्र भी पूजन के योग्य हैं। यन्त्र का निर्माण
ऊर्ध्व रेखा, अधोरेखा और गन्ध से चित्रित होता है। हे ईशानि!
तीनों प्रकार के यन्त्र सुसिद्ध, सिद्ध और साध्य होते हैं ।।
२-४।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- धातुनिर्मितयन्त्रशोधनकालकथनम्
सहस्राभं च पाशासं शोधयेदुत्तरायणे
।
पञ्चमे पञ्चमे देवि ततः सिद्धिप्रदं
भवेत् ॥५॥
शराङ्कुशं वैष्णवाश्मं शोधयेद्
दक्षिणायने ।
चतुर्थे च चतुर्थे च ततः
सिद्धिमवाप्नुयात् ॥ ६ ॥
सौवर्णं स्फाटिकं यन्त्रं वर्षान्ते
शोधयेत् सुधीः ।
राजतं ताम्रिकं यन्त्रं षण्मासान्ते
च शोधयेत् ॥७॥
एवं मयोक्तकालेषु शोधयेद्
यन्त्रमीश्वरि ।
सिद्धये कौलिको देवि यथावद्वर्ण्यते
मया ॥८॥
यन्त्रशोधन काल-उत्तरायण में
सहस्राभ और पाशास का शोधन करे। पाँच-पाँच महीनों पर शोधित होने पर यन्त्र
सिद्धिप्रद होते हैं। शराङ्कुश और वैष्णवाश्म का शोधन दक्षिणायन में करे। चार-चार
महीनों पर इनका शोधन करने से ये सिद्धिप्रदायक होते हैं। सोने और स्फटिक से
निर्मित यन्त्रों का शोधन एक-एक वर्ष पर करे। छः छ: महीनों पर चाँदी और ताम्बे के
यन्त्रों का शोधन करे। हे ईश्वरि ! मेरे द्वारा निश्चित इन्हीं कालों में यन्त्र
का शोधन करना चाहिये। कौलिकों की सिद्धि के लिये इनका वर्णन यथावत् किया गया।।५-८।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- यन्त्रशोधनमन्त्रर्ष्यादिकथनम्
यन्त्रशोधनमन्त्रस्य ऋषिः प्रोक्तो
मया शिवः ।
त्रिष्टुप् छन्द इति ख्यातं
पराशक्तिश्च देवता ॥ ९ ॥
रमा बीजं परा शक्तिः कामः
कीलकमीश्वरि ।
श्रीचक्रशुद्धिसिद्ध्यर्थं विनियोगः
प्रकीर्तितः ॥१०॥
यन्त्रशोधन मन्त्र - यन्त्रशोधन का
ऋषि मैं शिव हूँ। छन्द त्रिष्टुप् देवता पराशक्ति, श्रीं बीज, शक्ति ह्रीं क्लीं कीलक है।
श्रीचक्रशुद्धि-सिद्धि के लिये कहा गया विनियोग है ।। ९-१०।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- यन्त्रस्थापनं तच्छुद्धिश्च
मुन्यादिना चरेन्न्यासं करन्यासं
षडङ्गकम् ।
ततो विष्टरशुद्धिं च प्राणार्पणविधिं
चरेत् ॥ ११ ॥
इष्टर्षिदेवतान्यासं कराङ्गन्यासमाचरेत्
।
विधाय मातृकान्यासं
लयाङ्गन्याससंयुतम् ॥ १२ ॥
अर्धनारीश्वरन्यासं घोढान्यासमतः
परम् ।
मूलत्रिखण्डकं न्यासं कृत्वा
प्राणचयं शिवे ॥ १३ ॥
पीठपूजां स्वहृदये कृत्वा
षट्चक्रदीपनम् ।
स्वर्णसिंहासने स्थाप्य श्रीचक्रं
स्वेष्टदैवतम् ।। १४ ।।
शोधयेन्मधुना देवि कण्डगोलोद्भवेन
वा ।
अष्टगन्धेन वा देवि पौरुषेण रसेन वा
।। १५ ।।
इभ्याज्येन महादेवि संस्थाप्य
कुलपूजिते ।
श्रीचक्रं मूलमन्त्रेण पूजयेत् तत्र
कौलिकः ॥ १६ ॥
यन्त्रस्थापन एवं उसकी शुद्धि विनियोग
के बाद ऋष्यादि न्यास करन्यास, षडङ्गन्यास
करे। इसके बाद आसनशुद्धि, भूतशुद्धि, प्राणप्रतिष्ठा,
इष्टन्यास, ऋषिन्यास, करन्यास
और अङ्गन्यास करे। मातृकान्यास करके लयाङ्ग न्यास, अर्द्धनारीश्वर
न्यास एवं षोढ़ा न्यास, मूलमन्त्र को तीन भाग करके न्यास
करके यन्त्र की प्राणप्रतिष्ठा करे। अपने हृदय में पीठपूजा करके षट्चक्र को दीपित
करे। हृदयपीठ पर श्रीचक्र कल्पित करके उस पर अपने इष्टदेवता को स्थापित करे।
श्रीचक्र का शोधन मद्य से या कुण्डगोलोद्भव रज से करे अथवा अष्टगन्ध से या
पुरुषवीर्य से शोधन करे। श्रीचक्र में गोघृत लगाकर कुलपूजा के लिये उसे स्थापित
करें। तब कौलिक श्रीचक्र का पूजन मूल मन्त्र से करे । । ११-१६।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- स्वर्णयन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
वाग्भवं शक्तिबीजं वाक्शक्तिं
चक्रेश्वरि प्रिये ।
यन्त्र सौवर्णमुद्धृत्य
शोधय-द्वयमुद्धरेत् ॥१७॥
ठद्वयं स्वर्णयन्त्रस्य मन्त्रः
शोधनकारकः ।
स्वर्णयन्त्र शोधन मन्त्र-ऐं सौः
ऐं सौः चक्रेश्वरि यन्त्रसौवर्ण शोधय शोधय स्वाहा –
यह स्वर्णयन्त्र का शोधन मन्त्र है ।।१७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- रजतयन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
तारं सिन्धुं च तारं च राजतं
यन्त्रमुद्धरेत् ॥ १८ ॥
शोधय द्वयमापश्च यन्त्रशोधनको मनुः
।
चाँदी - यन्त्रशोधन मन्त्र —
ॐ रूं ॐ राजतं यन्त्र शोधय शोधय स्वाहा। यह रजत यन्त्र के शोधन का मन्त्र है ।। १८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- ताम्रयन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
तारं तारा च तारं च वधूं तारं च
तारका ।। १९ ।।
ताम्रेश्वरीति यन्त्रं मे शोधयापो
महामनुः ।
ताम्रयन्त्र शोधन मन्त्र —
ॐ त्रीं ॐ स्त्रीं ॐ श्रीं ताम्रेश्वरि यन्त्रं मे शोधय स्वाहा। यह ताम्रनिर्मित यंत्र के शोधन का मन्त्र है ।। १९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- स्फटिकयन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
वेदाद्यं कमलां मायां तारं यन्त्र
कुलाम्बिके ।।२०।।
शोधय द्विर्वनं मन्त्रः
स्फाटिकाश्मविशोधनः ।
स्फटिकयन्त्र शोधन मन्त्र —
ॐ श्रीं ह्रीं ॐ यन्त्रं कुलाम्बिके शोधय शोधय स्वाहा। यह स्फटिक निर्मित यन्त्र के शोधन मन्त्र है ।। २० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- रोध्रयन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
प्रणवं कूवरीबीजं मा माया
वायुपूजिता ॥ २१ ॥
रुद्रेश्वरि परा यन्त्रं शोधयापो
मनुः स्मृतः ।
रोधयन्त्र- शोधन मन्त्र- ॐ ह्रीं
श्रीं ह्रीं श्रीं रुद्रेश्वरि ह्रीं यन्त्रं शोधय स्वाहा। यह रोधनिर्मित
यन्त्र के शोधन का मन्त्र है ।। २१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- कपालयन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
तारं वाक् कामराजश्च शक्तिः
कपालमालिनि ॥ २२ ॥
यन्त्र शोधय ठद्वन्द्वं कपालशोधनो
मनुः ।
कपालयन्त्र शोधन मन्त्र - ॐ ऐं
क्लीं सौः कपालमालिनि यन्त्र शोधय स्वाहा । यह कपालयन्त्र के शोधन का मन्त्र
है।।२२।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- पाशांसयन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
तारं गौरी च तार्तीयं वाक् कामश्च
चितासने ॥ २३ ॥
यन्त्र शोधय ठद्वन्द्वं मनुः
पाशांसशोधनः ।
पाशांसयन्त्र शोधन मन्त्र - ॐ गं
सौः ऐं क्लीं चितासनयन्त्रं शोधय स्वाहा । यह पाशांसयन्त्र के शोधन का मन्त्र
है।।२३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- वैष्णवशिला (शालग्राम) यन्त्रशोधनमन्त्रकथनम्
वेदाद्यं हरितं वाणी शक्तिः कामो
रमा रमा ॥ २४ ॥
नित्ये विष्णुशिलायन्त्रं शोधयापो
मनुः स्मृतः ।
शालग्रामयन्त्र - शोधन मन्त्र - ॐ
ह्सौः ऐ सौः क्लीं श्रीं श्रीं नित्ये विष्णुशिलायन्त्रं शोधय स्वाहा। यह
विष्णु शिलायन्त्र के शोधन का मन्त्र हैं। विष्णुशिला शालग्राम को कहा जाता है
।।२४।।
इत्येवं यन्त्रमीशानि
रत्नसिंहासनस्थितम् ॥ २५ ॥
हे ईशानि! रत्नसिंहासनस्थित यन्त्र
का वर्णन समाप्त हुआ ।। २५ ।।
मूलमन्त्रेण संस्नाप्य
पूर्वोक्तौषधवारिणा ।
मन्त्रैरेभिः प्रजप्तैश्च पूजयेद्
गन्धमाल्यकैः ॥ २६ ॥
सम्पूज्य देवि संशोध्य ततः पूजां
शिवोदिताम् ।
यथोक्तां साधकः कुर्याद्
द्रव्यशोधनपूर्वकम् ॥ २७ ॥
अष्टाङ्गपूजां निर्माय निशीथे
जपमाचरेत् ।
मूल मन्त्र के द्वारा पूर्वोक्त
औषध- जल से यन्त्र को धोकर इनके मन्त्रों का जप करके गन्ध-पुष्प से पूजन करे। पूजा
के बाद उनका शोधन करे। इस प्रकार शिवोक्त वचन सार्थक होता है। यथोक्त रीति से
द्रव्य-शोधन करके अष्टाङ्ग पूजा करके निशीथ में जप करना चाहिये ।। २६-२७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- निशीथकालनिर्णयविषयकप्रश्नः
श्री भैरव्युवाच
भगवन् कुलकौलेश भैरवाष्टकमध्यग ।
निशीथकाल मे ब्रूहि संशयोऽयं महान्
मम ॥ २८ ॥
निशीथ काल -विषयक प्रश्न- श्री
भैरवी ने कहा कि हे भगवन् कुलकौलेश! भैरवाष्टक के बीच में मुझे निशीथकाल बतलाइये,
इस विषय में मुझे महान् संशय है ।। २८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- निशीथ अर्धरात्रिकालनिर्णयः
श्रीभैरव उवाच
अर्धरात्रस्तु त्रिविधो
यन्मुहूर्तचतुष्टयम् ।
निशीथो वार्धरात्रश्च तृतीयैव
महानिशा ।। २९ ।।
द्वितीये च तृतीये च यामे यामलभैरवि
।
मुहूर्ते द्वे समादाय तथा द्वे च
महेश्वरि ॥३०॥
द्वे मुहूर्ते निशीथस्तु परतो द्वे
मुहूर्तके ।
अर्धरात्रो मुहूर्ते द्वे पूजार्हः
परमेश्वरि ।। ३१ ।।
मुहूर्तेकं समादाय परतश्चैकमीश्वरि
।
यामद्वयादर्धरात्रो वर्णितः कौलसिद्धये
॥ ३२ ॥
निशीथ एवं अर्धरात्रि काल निर्णय -
श्री भैरव ने कहा कि अर्द्धरात्रि तीन प्रकार की होती है,
जिसमें चार मुहूर्त अर्थात् आठ घटी अर्थात् तीन घण्टे बारह मिनट के
काल को १. निशीथ, २. अर्द्धरात्र, ३.
महानिशा कहते हैं। रात के दूसरे और तीसरे दो प्रहरों के दो-दो मुहूर्तों से पहले
दो मुहूर्त को निशीथ कहते हैं और इसके बाद के दो मुहूर्तों को आधी रात कहते हैं।
यह समय पूजा के योग्य होता है। इसमें दूसरे प्रहर का एक मुहूर्त और तीसरे प्रहर का
एक मुहूर्त होता है। कौलिकों की सिद्धि के लिये यह उत्तम होता है ।। २९-३२।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- महानिशाकालनिर्णयः
शिवे मध्यमयोः सन्धिर्यामयोर्या
महानिशा ।
तस्यां परां जपेद्यस्तु स
भवेच्छिवसन्निभः ॥३३॥
दूसरे प्रहर की एक घटी और तीसरे
प्रहर की एक घटी के मिलन से जो मुहूर्त बनता है, उसे महानिशा कहते हैं। इस काल में परा विद्या के जप से साधक शिव के समान हो
जाता है ।। ३३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- निशीथादौ जपफलम्
निशीथे पूजयेद्यन्त्रमर्धरात्रे जपेन्मनुम्
।
महानिशायां प्रजपेत् परां
कौलिकसत्तमः ॥३४॥
किं किं न साधयेल्लोके यन्ममापि हि
दुर्लभम् ।
रजः शुक्रं सुरां देवि मांसं मीनं च
मैथुनम् ॥ ३५ ॥
सर्वथा शोधयेद् देवि मूलमन्त्रेण
मान्त्रिकः ।
पिबेन्मद्यं भजेद्रामां स्मरेद्
भैरविभैरवम् ॥ ३६ ॥
नमेरुं जपेद् विद्यामिति कौलमतं
परम् ।
प्रातः कृत्यं शिवे कृत्वा
श्रीचक्रं पूजयेत् ततः ॥३७॥
निशीथादि में जप का फल- निशीथ में
यन्त्रपूजा, अर्द्धरात्रि में मन्त्रजप एवं
महानिशा में परा विद्या का जप कौलिक को करना चाहिये। रज, वीर्य,
सुरा, मांस, मछली,
मैथुन से कौन-कौन सिद्धि नहीं मिलती ? मेरे
लिये भी जो दुर्लभ है, वह भी साधकों को मिलती है। इन
द्रव्यों का शोधन यान्त्रिक को मूल मन्त्र द्वारा ही करना चाहिये। मद्यपान करे,
रमणी से रमण करे और भैरव भैरवी का स्मरण करें। गुरु को प्रणाम करे
एवं विद्या का जप करे। यही श्रेष्ठ कौलमत है। हे शिवे साधक प्रातः कृत्य करके
श्रीचक्र का पूजन करे ।। ३४-३७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २५- महानिशाजपप्रशंसा
जपेन्मन्त्री महाविद्यां
स्तोत्रपाठं चरेत् ततः ।
परां जपेत् सदा सत्यां ततो याति परं
पदम् ॥ ३८ ॥
महापदि महोत्पाते महाशोके महामये ।
महामोहे महाऽसौख्ये महादारिद्र्यसङ्कटे
॥३९॥
महारण्ये महाशून्ये महाऽज्ञाने
महारणे ।
दुरापदि दुराशे च दुर्भिक्षे
दुर्निमित्तके ॥४०॥
समस्त क्लेशसङ्घाते स्मरेद् देवि पराम्बिकाम्
।
वक्ते सरस्वती तस्य लक्ष्मीस्तस्य
गृहे सदा ।
धन्या च जननी तस्य येन देवी
समर्चिता ॥ ४१ ॥
इदं सारं हि तन्त्राणां मन्त्राणां
तत्त्वमुत्तमम् ।
मयोदितं तव स्नेहान्नाख्येयं
ब्रह्मवादिभिः ॥ ४२ ॥
महानिशा जप की प्रशंसा-साधक
महाविद्या का जप करने के पश्चात् स्तोत्रपाठ करे। परा विद्या का सदैव जप करे। इससे
परमपद प्राप्त होता है। यह सत्य है। महापद, महा
उत्पात, महाशोक, महाभय, महामोह, महा सौख्य, महा
दरिद्रता संकट, घोर जंगल, विकट पर्वत,
महा अज्ञान, महा संग्राम, खराब आपदा, घोर निराशा, दुर्भिक्ष,
मेरे द्वारा निर्मित काल के सभी क्लेशों के आने पर देवी पराम्बिका
का स्मरण करे। इससे साधक के मुख में सरस्वती और घर में लक्ष्मी का वास होता है। उस
साधक की जननी धन्य है, जो देवी का अर्चन करता है। तन्त्रों
और मन्त्रों का सार यह उत्तम तत्त्व है। हे देवि! तुम्हारे स्नेहवश इसका वर्णन
मैंने किया है। इसे ब्रह्मवादियों को भी नहीं बतलाना चाहिये ।। ३८-४२।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये भैरवभैरवीसंवादे परमार्थ-प्रदीपिकायां यन्त्रशोधनादिविधि जप
पूजाकाल- निरूपणं नाम पञ्चविंशः पटलः ॥ २५ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य
की भाषा टीका में यन्त्रशोधनादि-जप-पूजानिरूपण नामक पञ्चविंश पटल पूर्ण हुआ।
समाप्त पूर्वार्धम्
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य उत्तरार्द्ध
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