Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
May
(65)
- अग्निपुराण अध्याय १४५
- अग्निपुराण अध्याय १४४
- अग्निपुराण अध्याय १४३
- अग्निपुराण अध्याय १४२
- सूर्य मूलमन्त्र स्तोत्र
- वज्रपंजराख्य सूर्य कवच
- देवीरहस्य पटल ३२
- देवीरहस्य पटल ३१
- अग्निपुराण अध्याय १४१
- अग्निपुराण अध्याय १४०
- अग्निपुराण अध्याय १३९
- अग्निपुराण अध्याय १३८
- रहस्यपञ्चदशिका
- महागणपति मूलमन्त्र स्तोत्र
- वज्रपंजर महागणपति कवच
- देवीरहस्य पटल २७
- देवीरहस्य पटल २६
- देवीरहस्य
- श्रीदेवीरहस्य पटल २५
- पञ्चश्लोकी
- देहस्थदेवताचक्र स्तोत्र
- अनुभव निवेदन स्तोत्र
- महामारी विद्या
- श्रीदेवीरहस्य पटल २४
- श्रीदेवीरहस्य पटल २३
- अग्निपुराण अध्याय १३६
- श्रीदेवीरहस्य पटल २२
- मनुस्मृति अध्याय ७
- महोपदेश विंशतिक
- भैरव स्तव
- क्रम स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय १३३
- अग्निपुराण अध्याय १३२
- अग्निपुराण अध्याय १३१
- वीरवन्दन स्तोत्र
- शान्ति स्तोत्र
- स्वयम्भू स्तव
- स्वयम्भू स्तोत्र
- ब्रह्मा स्तुति
- श्रीदेवीरहस्य पटल २०
- श्रीदेवीरहस्य पटल १९
- अग्निपुराण अध्याय १३०
- अग्निपुराण अध्याय १२९
- परमार्थ चर्चा स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय १२८
- अग्निपुराण अध्याय १२७
- अग्निपुराण अध्याय १२६
- परमार्थद्वादशिका
- अग्निपुराण अध्याय १२५
- अग्निपुराण अध्याय १२४
- अग्निपुराण अध्याय १२३
- ब्रह्म स्तुति
- अनुत्तराष्ट्रिका
- ज्येष्ठब्रह्म सूक्त
- श्रीदेवीरहस्य पटल १८
- श्रीदेवीरहस्य पटल १७
- ब्रह्म स्तव
- अभीष्टद स्तव
- श्रीदेवीरहस्य पटल १६
- श्रीदेवीरहस्य पटल १५
- मनुस्मृति अध्याय ६
- श्रीदेवीरहस्य पटल १४
- श्रीदेवीरहस्य पटल १३
- अग्निपुराण अध्याय १२२
- अग्निपुराण अध्याय १२१
-
▼
May
(65)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
अग्निपुराण अध्याय १३८
अग्निपुराण अध्याय १३८ में तन्त्रविषयक
छः कर्मों का वर्णन है।
अग्निपुराणम् अष्टत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 138
अग्निपुराण एक सौ अड़तीसवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः १३८
अग्निपुराणम् अध्यायः १३८ – षट्कर्माणि
अथ अष्टत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः
ईश्वर उवाच
षट्कर्माणि प्रवक्ष्यामि
सर्वमन्त्रेषु तच्छृणु ।
आदौ साध्यं लिखेत्पूर्वं चान्ते
मन्त्रसमन्वितं ॥१॥
पल्लवः स तु विज्ञेयो महोच्चाटकरः
परः ।
आदौ मन्त्रः ततः साध्यो मध्ये
साध्यः पुनर्मनुः ॥२॥
योगाख्यः सम्प्रदायोऽयङ्कुलोत्सादेषु
योजयेत् ।
महादेवजी कहते हैं- पार्वती! सभी
मन्त्रों के साध्यरूप से जो छः कर्म कहे गये हैं, उनका वर्णन करता हूँ, सुनो। शान्ति, वश्य, स्तम्भन, द्वेष, उच्चाटन और मारण- ये छः कर्म हैं। इन सभी कर्मों में छः सम्प्रदाय अथवा
विन्यास होते हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं-पल्लव, योग, रोधक, सम्पुट, ग्रन्थन तथा विदर्भ । भोजपत्र आदि पर पहले जिसका उच्चाटन करना हो, उस पुरुष का नाम लिखे। उसके बाद उच्चाटन सम्बन्धी मन्त्र लिखे। लेखन के इस
क्रम को 'पल्लव' नामक विन्यास या
सम्प्रदाय समझना चाहिये। यह उच्चकोटि का महान् उच्चाटनकारी प्रयोग है। आदि में
मन्त्र लिखा जाय फिर साध्य व्यक्ति का नाम अङ्कित किया जाय। यह साध्य बीच में रहे।
इसके लिये अन्त में पुनः मन्त्र का उल्लेख किया जाय। इस क्रम को 'योग' नामक सम्प्रदाय कहा गया है। शत्रु के समस्त कुल
का संहार करने के लिये इसका प्रयोग करना चाहिये ॥ १-२अ ॥
आदौ मन्त्रपदन्दद्यान्मध्ये साध्यं
नियोजयेत् ॥३॥
पुनश्चान्ते लिखेन्मन्त्रं साध्यं
मन्त्रपदं पुनः ।
रोधकः सम्प्रदायस्तु स्तम्भनादिषु
योजयेत् ॥४॥
अधोर्ध्वं याम्यवामे तु मध्ये
साध्यन्तु योजयेत् ।
सम्पुटः सतु विज्ञेयो वश्याकर्षेषु
योजयेत् ॥५॥
मन्त्राक्षरं यदा साध्यं
प्रथितञ्चाक्षराक्षरं ।
प्रथमः सम्प्रदायः
स्यादाकृष्टिवशकारकः ॥६॥
मन्त्राक्षरद्वयं लिख्य एकं
साध्यक्षरं पुनः ।
विदर्भः सतु विज्ञेयो
वश्याकाकर्षेषु योजयेत् ॥७॥
पहले मन्त्र का पद लिखे। बीच में
साध्य का नाम लिखे। अन्त में फिर मन्त्र लिखे। फिर साध्य का नाम लिखे । तत्पश्चात्
पुनः मन्त्र लिखे। यह 'रोधक' सम्प्रदाय कहा गया है। स्तम्भन आदि कर्मों में इसका प्रयोग करना चाहिये।
मन्त्र के ऊपर, नीचे, दायें बायें और
बीच में भी साध्य का नामोल्लेख करे, इसे 'सम्पुट' समझना चाहिये। वश्याकर्षण – कर्म में इसका
प्रयोग करे। जब मन्त्र का एक अक्षर लिखकर फिर साध्य के नाप का एक अक्षर लिखा जाय
और इस प्रकार बारी-बारी से दोनों के एक-एक अक्षर को लिखते हुए मन्त्र और साध्य के
अक्षरों को परस्पर ग्रंथित कर दिया जाय तो यह 'ग्रन्थन'
नामक सम्प्रदाय है। इसका प्रयोग आकर्षण या वशीकरण करनेवाला है। पहले
मन्त्र का दो अक्षर लिखे, फिर साध्य का एक अक्षर। इस तरह
बार-बार लिखकर दोनों को पूर्ण करे। (यदि मन्त्राक्षरों के बीच में ही समाप्ति हो
जाय तो दुबारा उनका उल्लेख करे।) इसे 'विदर्भ' नामक सम्प्रदाय समझना चाहिये तथा वशीकरण एवं आकर्षण के लिये इसका प्रयोग
करना चाहिये ॥ ३-७॥
आकर्षणाद्यत्कर्म वसन्ते चैव
कारयेत् ।
तापज्वरे तथा वश्ये स्वाहा चाकर्षणे
शुभं ॥८॥
नमस्कारपदञ्चैव शान्तिवृद्धौ
प्रयोजयेत् ।
पौष्टिकेषु वषट्कारमाकर्षे वशकर्मणि
॥९॥
विद्वेषोच्चाटने मृत्यौ फट्स्यात्खण्डीकृतौ
शुभे ।
लाभादौ मन्त्रदीक्षादौ वषट्कारस्तु
सिद्धिदः ॥१०॥
यमोऽसि यमाराजोऽसि कालरूपोऽसि
धर्मराट् ।
मयादत्तमिमं शत्रुमचिरेण निपातय
॥११॥
आकर्षण आदि जो मन्त्र हैं,
उनका अनुष्ठान वसन्त ऋतु में करना चाहिये। तापज्वर के निवारण,
वशीकरण तथा आकर्षण कर्म में 'स्वाहा' का प्रयोग शुभ होता है। शान्ति और वृद्धि कर्म में 'नमः' पद का प्रयोग करना चाहिये। पौष्टिक-कर्म,
आकर्षण और वशीकरण में 'वषट्कार' का प्रयोग करे। विद्वेषण, उच्चाटन और मारण आदि अशुभ
कर्म में पृथक् 'फट्' पद की योजना करनी
चाहिये। लाभ आदि में तथा मन्त्र की दीक्षा आदि में 'वषट्कार'
ही सिद्धिदायक होता है। मन्त्र की दीक्षा देनेवाले आचार्य में यमराज
की भावना करके इस प्रकार प्रार्थना करे- 'प्रभो! आप यम हैं,
यमराज हैं, कालरूप हैं तथा धर्मराज हैं। मेरे
दिये हुए इस शत्रु को शीघ्र ही मार गिराइये ॥ ८-११ ॥
निपातयामि यत्नेन निवृत्तो भव साधक
।
संहृष्टमनसा
ब्रूयाद्देशिकोऽरिप्रसूदनः ॥१२॥
पद्मे शुक्ले यमं प्रार्च्य
होमादेतत्प्रसिद्ध्यति ।
आत्मानम्भैरवं ध्यात्वा ततो मध्ये
कुलेश्वरीं ॥१३॥
रात्रौ वार्तां विजानाति आत्मनश्च
परस्य च ।
दुर्गे दुर्गे रक्षणीति दुर्गां
प्रार्च्यारिहा भवेत् ॥१४॥
जप्त्वा हसक्षमलवरयुम्भैरवीं
घातयेदरिम् ॥१५॥
तब शत्रुसूदन आचार्य प्रसन्नचित्त से
इस प्रकार उत्तर दे - 'साधक ! तुम सफल होओ।
मैं यत्नपूर्वक तुम्हारे शत्रु को मार गिराता हूँ।' श्वेत
कमल पर यमराज की पूजा करके होम करने से यह प्रयोग सफल होता है। अपने में भैरव की
भावना करके अपने ही भीतर कुलेश्वरी (भैरवी) की भी भावना करे। ऐसा करने से साधक रात
में अपने तथा शत्रु के भावी वृत्तान्त को जान लेता है। 'दुर्गरक्षिणि
दुर्गे!' (दुर्ग की रक्षा करनेवाली अथवा दुर्गम संकट से
बचानेवाली देवि! आपको नमस्कार है ) - इस मन्त्र के द्वारा दुर्गाजी की पूजा
करके साधक शत्रु का नाश करने में समर्थ होता है। 'ह स क्ष म
ल व र यु म्'- इस भैरवी मन्त्र का जप करने पर साधक अपने
शत्रु का वध कर सकता है ॥ १२-१५॥
इत्याग्नेये महापुराणे
युद्धजयार्णवे षट्कर्माणि नामाष्टत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'षट्कर्म का वर्णन' नामक एक सौ अड़तीसवाँ अध्याय पूरा
हुआ ॥१३८॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 139
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: