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अथ
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पुष्कर उवाच
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मार्गेण वायसा बहवः पुरं ।
तेन मार्गेण रुद्धस्य
पुरस्य ग्रहणं भवेत् ॥०१॥
सेनायां यदि
वासार्थे निविष्टो वायसो रुवन् ।
वामो
भयातुरस्त्रस्तो भयं वदति दुस्तरं ॥०२॥
छायाङ्गवाहनोपानच्छत्रवस्त्रादिकुट्टने
।
मृत्युस्तत्पूजने
पूजा तदिष्टकरणे शुभं ॥०३॥
प्रोषितागमकृत्काकः
कुर्वन् द्वारि गतागतं ।
रक्तं दग्धं
गृहे द्रव्यं क्षिपन्वह्निवेदकः ॥०४॥
पुष्कर कहते
हैं- जिस मार्ग से बहुतेरे कौए शत्रु के नगर में प्रवेश करें,
उसी मार्ग से घेरा डालने पर उस नगर के ऊपर अपना अधिकार
प्राप्त होता है। यदि किसी सेना या समुदाय में बायीं ओर से भयभीत कौआ रोता हुआ
प्रवेश करे तो वह आनेवाले अपार भय की सूचना देता है। छाया (तम्बू,
रावटी आदि), अङ्ग, वाहन, उपानह, छत्र और वस्त्र आदि के द्वारा कौए को कुचल डालने पर अपने
लिये मृत्यु की सूचना मिलती है। उसकी पूजा करने पर अपनी भी पूजा होती है तथा अन्न
आदि के द्वारा उसका इष्ट करने पर अपना भी शुभ होता है। यदि कौआ दरवाजे पर बारंबार
आया- जाया करे तो वह उस घर के किसी परदेशी व्यक्ति के आने की सूचना देता है तथा
यदि वह कोई लाल या जली हुई वस्तु मकान के ऊपर डाल देता है तो उससे आग लगने की
सूचना मिलती है ॥ १-४ ॥
न्यसेद्रक्तं
पुरस्ताच्च निवेदयति बन्धनं ।
पीतं द्रव्यं
तथा रुक्म रूप्यमेव तु भार्गव ॥०५॥
यच्चैवोपनयेद्द्रव्यं
तस्य लब्धिं विनिर्दिशेत् ।
द्रव्यं
वापनयेद्यत्तु तस्य हानिं विनिर्दिशेत् ॥०६॥
पुरतो
धनलब्धिः स्यादाममांसस्य छर्दने ।
भूलब्धिः
स्यान्मृदः क्षेपे राज्यं रत्नार्पणे महत् ॥०७॥
यातुः
काकोऽनुकूलस्तु क्षेमः कर्मक्षमो भवेत् ।
न त्वर्थसाधको
ज्ञेयः प्रतिकूलो भयावहः ॥०८॥
सम्मुखेऽभ्येति
विरुवन् यात्राघातकरो भवेत् ।
वामः काकः
स्मृतो धन्यो दक्षिणोऽर्थविनाशकृत् ॥०९॥
वामोऽनुलोमगः
श्रेष्ठो मध्यमो दक्षिणः स्मृतः ।
प्रतिलोमगतिर्वामो
गमनप्रतिषेधकृत् ॥१०॥
निवेदयति यात्रार्थमभिप्रेतं
गृहे गतः ।
एकाक्षरचरणस्त्वर्कं
वीक्षमाणो भयावहः ॥११॥
कोटरे
वासमानश्च महानर्थकरो भवेत् ।
न शुभस्तूषरे
काकः पङ्काङ्कः स तु शस्यते ॥१२॥
अमेध्यपूर्णवदनः
काकः सर्वार्थसाधकः ।
ज्ञेयाः
पतत्रिणोऽन्येऽपि काकवद्भृगुनन्दन ॥१३॥
भृगुनन्दन !
यदि वह मनुष्य के आगे कोई लाल वस्तु डाल देता है तो उसके कैद होने की बात बतलाता
है और यदि कोई पीले रंग का द्रव्य सामने गिराता है तो उससे सोने चाँदी की प्राप्ति
सूचित होती है। सारांश यह कि वह जिस द्रव्य को अपने पास ला देता है,
उसकी प्राप्ति और जिस द्रव्य को अपने यहाँ से उठा ले जाता
है,
उसकी हानि की ओर संकेत करता है। यदि वह अपने आगे कच्चा मांस
लाकर डाल दे तो धन की, मिट्टी गिरावे तो पृथ्वी की और कोई रत्न डाल दे तो महान्
साम्राज्य की प्राप्ति होती है। यदि यात्रा करनेवाले की अनुकूल दिशा (सामने) की ओर
कौआ जाय तो वह कल्याणकारी और कार्य साधक होता है, परंतु यदि प्रतिकूल दिशा की ओर जाय तो उसे कार्य में बाधा
डालनेवाला तथा भयंकर जानना चाहिये। यदि कौआ सामने काँव-काँव करता हुआ आ जाय तो वह
यात्रा का विघातक होता है। कौए का वामभाग में होना शुभ माना गया है और दाहिने भाग
में होने पर वह कार्य का नाश करता है । वामभाग में होकर कौआ यदि अनुकूल दिशा की ओर
चले तो 'श्रेष्ठ' और दाहिने होकर अनुकूल दिशा की ओर चले तो 'मध्यम' माना जाता है; किंतु वामभाग में होकर यदि वह विपरीत दिशा की ओर जाय तो
यात्रा का निषेध करता है। यात्राकाल में घर पर कौआ आ जाय तो वह अभीष्ट कार्य की
सिद्धि सूचित करता है। यदि वह एक पैर उठाकर एक आँख से सूर्य की ओर देखे तो भय
देनेवाला होता है। यदि कौआ किसी वृक्ष के खोखले में बैठकर आवाज दे तो वह महान्
अनर्थ का कारण है। ऊसर भूमि में बैठा हो तो भी अशुभ होता है,
किंतु यदि वह कीचड़ में लिपटा हुआ हो तो उत्तम माना गया है।
परशुरामजी ! जिसकी चोंच में मल आदि अपवित्र वस्तुएँ लगी हों,
वह कौआ दीख जाय तो सभी कार्यों का साधक होता है। कौए की
भाँति अन्य पक्षियों का भी फल जानना चाहिये ॥ ५- १३ ॥
स्कन्धावारापसव्यस्थाः
श्वानो विप्रविनाशकाः ।
इन्द्रस्थाने
नरेन्द्रस्य पुरेशस्य तु गोपुरे ॥१४॥
अन्तर्गृहे
गृहेशस्य मरणाय भवेद्भषन् ।
यस्य जिघ्रति
वामाङ्गं तस्य स्यादर्थसिद्धये ॥१५॥
भयाय दक्षिणं
चाङ्गं तथा भुजमदक्षिणं ।
यात्राघातकरो
यातुर्भवेत्प्रतिमुखागतः ॥१६॥
मार्गावरोधको
मार्गे चौरान् वदति भार्गव ।
अलाभोऽस्थिमुखः
पापो रज्जुचीरमुखस्तथा ॥१७॥
सोपानत्कमुखो
धन्यो मांसपूर्णमुखोऽपि च ।
अमङ्गल्यमुखद्रव्यं
केशञ्चैवाशुभं तथा ॥१८॥
अवमूत्र्याग्रतो
याति यस्य तस्य भयं भवेत् ।
यस्यावमूत्र्य
व्रजति शुभं देशन्तथा द्रुमं ॥१९॥
मङ्गलञ्च तथा
द्रव्यं तस्य स्यादर्थसिद्धये ।
श्ववच्च राम विज्ञेयास्तथा
वै जम्बुकादयः ॥२०॥
यदि सेना की
छावनी के दाहिने भाग में कुत्ते आ जायँ तो वे ब्राह्मणों के विनाश की सूचना देते
हैं। इन्द्रध्वज के स्थान में हों तो राजा का और गोपुर (नगरद्वार) पर हों तो
नगराधीश की मृत्यु सूचित करते हैं। घर के भीतर भूँकता हुआ कुत्ता आवे तो गृहस्वामी
की मृत्यु का कारण होता है। वह जिसके बायें अङ्ग को सूँघता है,
उसके कार्य की सिद्धि होती है। यदि दाहिने अङ्ग और बाय भुजा
को सूँघे तो भय उपस्थित होता है। यात्री के सामने की ओर से आवे तो यात्रा में
विघ्न डालनेवाला होता है । भृगुनन्दन ! यदि कुत्ता राह रोककर खड़ा हो तो मार्ग में
चोरों का भय सूचित करता है; मुँह में हड्डी लिये हो तो उसे देखकर यात्रा करने पर कोई
लाभ नहीं होता तथा रस्सी या चिथड़ा मुख में रखनेवाला कुत्ता भी अशुभसूचक होता है।
जिसके मुँह में जूता या मांस हो, ऐसा कुत्ता सामने हो तो शुभ होता है। यदि उसके मुँह में कोई
अमाङ्गलिक वस्तु तथा केश आदि हो तो उससे अशुभ की सूचना मिलती है। कुत्ता जिसके आगे
पेशाब करके चला जाता है, उसके ऊपर भय आता है; किन्तु मूत्र त्यागकर यदि वह किसी शुभ स्थान,
शुभ वृक्ष तथा माङ्गलिक वस्तु के समीप चला जाय तो वह उस पुरुष
के कार्य का साधक होता है। परशुरामजी ! कुत्ते की ही भाँति गीदड़ आदि भी समझने
चाहिये ॥ १४ - २० ॥
भयाय स्वामिनि
ज्ञेयमनिमित्तं रुतङ्गवां ।
निशि चौरभयाय
स्याद्विकृतं मृत्यवे तथा ॥२१॥
शिवाय
स्वामिनो रात्रौ बलीवर्दो नदन् भवेत् ।
उत्सृष्टवृषभो
राज्ञो विजयं सम्प्रयच्छति ॥२२॥
अभयं
भक्षयन्त्यश्च गावो दत्तास्तथा स्वकाः ।
त्यक्तस्नेहाः
स्ववत्सेषु गर्भक्षयकरा मताः ॥२३॥
भूमिं
पादैर्विनिघ्नन्त्यो दीना भीता भयावहाः ।
आर्द्राङ्ग्यो
हृष्टरोमाश्च शृगलग्नमृदः शुभाः ॥२४॥
महिष्यादिषु
चाप्येतत्सर्वं वाच्यं विजानता ।
यदि गौएँ
अकारण ही डकराने लगें तो समझना चाहिये कि स्वामी के ऊपर भय आनेवाला है। रात में
उनके बोलने से चोरों का भय सूचित होता है और यदि वे विकृत स्वर में क्रन्दन करें
तो मृत्यु की सूचना मिलती है। यदि रात में बैल गर्जना करे तो स्वामी का कल्याण
होता है और साँड आवाज दे तो राजा को विजय प्रदान करता है। यदि अपनी दी हुई तथा
अपने घर पर मौजूद रहनेवाली गौएँ अभक्ष्य भक्षण करें और अपने बछड़ों पर भी स्नेह
करना छोड़ दें तो गर्भक्षय की सूचना देनेवाली मानी गयी हैं। पैरों से भूमि
खोदनेवाली, दीन तथा भयभीत गौएँ भय लानेवाली होती हैं। जिनका शरीर भीगा हो,
रोम-रोम प्रसन्नता से खिला हो और सींगों में मिट्टी लगी हुई
हो,
वे गौएँ शुभ होती हैं। विज्ञ पुरुष को भैंस आदि के सम्बन्ध
में भी यही सब शकुन बताना चाहिये ॥ २१ – २४अ ॥
आरोहणं
तथान्येन सपर्याणस्य वाजिनः ॥२५॥
जलोपवेशनं
नेष्टं भूमौ च परिवर्तनं ।
विपत्करन्तुरङ्गस्य
सुप्तं वाप्यनिमित्ततः ॥२६॥
यवमोदकयोर्द्वेषस्त्वकस्माच्च
न शस्यते ।
वदनाद्रुधिरोत्पत्तिर्वेपनं
न च शस्यते ॥२७॥
क्रीडन् वैकः
कपोतैश्च सारिकाभिर्मृतिं वदेत् ।
साश्रुनेत्रो
जिह्वया च पादलेही विनष्टये ॥२८॥
वामपादेन च
तथा विलिखंश्च वसुन्धरां ।
स्वपेद्वा
वामपार्श्वेन दिवा वा न शुभप्रदः ॥२९॥
भयाय
स्यात्सकृन्मूत्री तथा निद्राविलाननः ।
आरोहणं न
चेद्दद्यात्प्रतीपं वा गृहं व्रजेत् ॥३०॥
यात्राविघातमाचष्टे
वामपार्श्वं तथा स्पृशन् ।
हेषमाणः
शत्रुयोधं पादस्पर्शी जयावहः ॥३१॥
जीन कसे हुए
अपने घोड़े पर दूसरे का चढ़ना, उस घोड़े का जलमें बैठना और भूमि पर एक ही जगह चक्कर लगाना
अनिष्ट का सूचक है। बिना किसी कारण के घोड़े का सो जाना विपत्ति में डालनेवाला
होता है। यदि अकस्मात् जई और गुड़ की ओर से घोड़े को अरुचि हो जाय,
उसके मुँह से खून गिरने लगे तथा उसका सारा बदन काँपने लगे
तो ये सब अच्छे लक्षण नहीं हैं; इनसे अशुभ की सूचना मिलती है। यदि घोड़ा बगुलों,
कबूतरों और सारिकाओं से खिलवाड़ करे तो मृत्यु का संदेश
देता है। उसके नेत्रों से आँसू बहे तथा वह जीभ से अपना पैर चाटने लगे तो विनाश का
सूचक होता है। यदि वह बायें टाप से धरती खोदे, बायीं करवट से सोये अथवा दिन में नींद ले तो शुभकारक नहीं
माना जाता। जो घोड़ा एक बार मूत्र करनेवाला हो, अर्थात् जिसका मूत्र एक बार थोड़ा-सा निकलकर फिर रुक जाय
तथा निद्रा के कारण जिसका मुँह मलिन हो रहा हो, वह भय उपस्थित करनेवाला होता है। यदि वह चढ़ने न दे अथवा
चढ़ते समय उलटे घर में चला जाय या सवार की बायीं पसली का स्पर्श करने लगे तो वह
यात्रा में विघ्न पड़ने की सूचना देता है। यदि शत्रु- योद्धा को देखकर हाँसने लगे
और स्वामी के चरणों का स्पर्श करे तो वह विजय दिलानेवाला होता है ॥ २५-३१ ॥
ग्रामे व्रजति
नागश्चेन्मैथुनं देशहा भवेत् ।
प्रसूता
नागवनिता मत्ता चान्ताय भूपतेः ॥३२॥
आरोहणं न
चेद्दद्यात्प्रतीपं वा गृहं व्रजेत् ।
मदं वा वारणो
जह्याद्राजघातकरो भवेत् ॥३३॥
वामं
दक्षिणपादेन पादमाक्रमते शुभः ।
दक्षिणञ्च तथा
दन्तं परिमार्ष्टि करेण च ॥३४॥
यदि हाथी गाँव
में मैथुन करे तो उस देश के लिये हानिकारक होता है। हथिनी गाँव में बच्चा दे या
पागल हो जाय तो राजा के विनाश की सूचना देती है। यदि हाथी चढ़ने न दे,
उलटे हथिसार में चला जाय या मद की धारा बहाने लगे तो वह
राजा का घातक होता है। यदि दाहिने पैर को बायें पर रखे और सूँड़ से दाहिने दाँत का
मार्जन करे तो वह शुभ होता है ॥ ३२-३४ ॥
वृषोऽश्वः
कुञ्जरो वापि रिपुसैन्यगतोऽशुभः ।
खण्डमेघातिवृष्ट्या
तु सेना नाशमवाप्नुयात् ॥३५॥
प्रतिकूलग्रहर्क्षात्तु
तथा सम्मुखमारुतात् ।
यात्राकाले
रणे वापि छत्रादिपतनं भयं ॥३६॥
हृष्टा नराश्चानुलोमा
ग्रहा वै जयलक्षणं ।
काकैर्योधाभिभवनं
क्रव्याद्भिर्मण्डलक्षयः ॥३७॥
प्राचीपश्चिमकैशानी
शौम्या प्रेष्ठा शुभा च दिक् ॥३८॥
अपना बैल,
घोड़ा अथवा हाथी शत्रु की सेना में चला जाय तो अशुभ होता
है। यदि थोड़ी ही दूर में बादल घिरकर अधिक वर्षा करे तो सेना का नाश होता है।
यात्रा के समय अथवा युद्धकाल में ग्रह और नक्षत्र प्रतिकूल हों,
सामने से हवा आ रही हो और छत्र आदि गिर जायें तो भय उपस्थित
होता है। लड़नेवाले योद्धा हर्ष और उत्साह में भरे हों और ग्रह अनुकूल हों तो यह
विजय का लक्षण है। यदि कौए और मांसाहारी जीव-जन्तु योद्धाओं का तिरस्कार करें तो
मण्डल का नाश होता है। पूर्व, पश्चिम एवं ईशान दिशा प्रसन्न तथा शान्त हों तो प्रिय और
शुभ फल की प्राप्ति करानेवाली होती हैं ॥ ३५-३८ ॥
इत्याग्नेये
महापुराणे शकुनानि नाम एकत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि
आग्नेय महापुराण में 'शकुन वर्णन' नामक दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २३२ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 233
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