देवी स्तुति
तुलसीदास रचित विनय पत्रिका में यह जय
जय जगजननि देवी स्तुति का वर्णन हुआ है। जिसमे कि माता से रक्षा प्रभु चरणों
में प्रीति का वर चाहते हैं।
देवीस्तुति
Devi stuti
तुलसीदासकृत देवीस्तुति
देवीस्तुति
विनयपत्रिकांतर्गत देवीस्तुति
जय जय जगजननि देवि सुर नर
मुनि-असुर-सेवि,
भुक्ति-मुक्ति-दायिनी,
भय हरणि कालिका ।
मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि,
पर्वशर्वरीश- वदनि,
ताप-तिमिर-तरुण-तरणि-किरणमालिका ॥ १
॥
हे जगत्की माता ! हे देवि !!
तुम्हारी जय हो, जय हो । देवता, मनुष्य, मुनि और असुर सभी तुम्हारी सेवा करते हैं।
तुम भोग और मोक्ष दोनों को ही देनेवाली हो। भक्तों का भय दूर करने के लिये तुम
कालिका हो । कल्याण, सुख और सिद्धियों की स्थान हो ।
तुम्हारा सुन्दर मुख पूर्णिमा के चन्द्र के सदृश है । तुम आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक तापरूपी अन्धकार का नाश करने के लिये मध्याह्न के
तरुण सूर्य की किरणमाला हो ॥ १ ॥
वर्म,
चर्म कर कृपाण, शूल-शेल-धनुषबाण,
धरणि,
दलनि दानव-दल, रण-करालिका ।
पूतना-पिशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका ॥
२॥
तुम्हारे शरीर पर कवच है । तुम
हाथों में ढाल-तलवार, त्रिशूल, साँगी और धनुष-बाण लिये हो । दानवों के दल का संहार करनेवाली हो, रण में विकरालरूप धारण कर लेती हो। तुम पूतना, पिशाच,
प्रेत और डाकिनी – शाकिनियों के सहित भूत, ग्रह
और बेतालरूपी पक्षी और मृग समूह को पकड़ने के लिये जालरूप हो ॥ २ ॥
जय महेश-भामिनी,
अनेक रूप-नामिनी,
समस्त-लोक-स्वामिनी,
हिमशैल-बालिका
रघुपति पद परम प्रेम,
तुलसी यह अचल नेम,
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका
॥ ३ ॥
हे शिवे ! तुम्हारी जय हो। तुम्हारे
अनेक रूप और नाम हैं। तुम समस्त संसार की स्वामिनी और हिमाचल की कन्या हो । हे
शरणागत की रक्षा करनेवाली ! मैं तुलसीदास श्रीरघुनाथजी के चरणों में परम प्रेम और
अचल नेम चाहता हूँ, सो प्रसन्न होकर
मुझे दो और मेरी रक्षा करो ॥ ३ ॥
इति: विनय पत्रिका देवी स्तुति सम्पूर्ण ॥
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