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दशमयी बाला त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र
दशमयीबालात्रिपुरसुंदरीस्तोत्र
दशमयीबालात्रिपुरसुन्दरी स्तोत्रम्
दशमहाविद्या स्वरूपा बाला
श्रीकाली बगलामुखी च ललिता धूमावती
भैरवी
मातङ्गी भुवनेश्वरी च कमला
श्रीवज्रवैरोचनी ।
तारा पूर्वमहापदेन कथिता विद्या
स्वयं शम्भुना
लीलारूपमयी च देशदशधा बाला तु मां
पातु सा ॥ १॥
प्रारम्भ से ही सर्वोत्कृष्ट पद
धारण करनेवाले स्वयं भगवान् शिव के द्वारा श्रीकाली, बगलामुखी, ललिता, धूम्रावती,
भैरवी, मातंगी, भुवनेश्वरी,
कमला, श्रीवज्रवैरोचनी तथा तारा – इन दस प्रकार के अपने ही अंशों के रूप में कही गयी लीलारूपमयी वे दस महाविद्यास्वरूपिणी भगवती बाला मेरी रक्षा करें ॥ १ ॥
कालिका स्वरूपा बाला
श्यामां श्यामघनावभासरुचिरां
नीलालकालङ्कृतां
बिम्बोष्ठीं बलिशत्रुवन्दितपदां
बालार्ककोटिप्रभाम् ।
त्रासत्राणकृपाणमुण्डदधतीं भक्ताय
दानोद्यतां
वन्दे सङ्कटनाशिनीं भगवतीं बालां
स्वयं कालिकाम् ॥ २॥
जो श्यामवर्ण के विग्रहवाली हैं,
जो श्याम मेघ की आभा के समान परम सुन्दर लगती हैं, जो नीले वर्ण के घुँघराले केशों से अलंकृत हैं, बिम्बाफल
के समान जिनके ओष्ठ हैं, बलि शत्रु इन्द्र जिनके चरणों की
वन्दना करते हैं, जो करोड़ों बालसूर्य की प्रभा से सम्पन्न
हैं, भय से रक्षा के लिये जो कृपाण तथा मुण्ड धारण किये रहती
हैं, जो भक्तों को वर प्रदान करने हेतु सदा तत्पर रहती हैं,
उन संकटनाशिनी साक्षात् कालिकास्वरूपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना
करता हूँ ॥ २ ॥
बगलामुखी
स्वरूपा बाला
ब्रह्मास्त्रां सुमुखीं बकारविभवां
बालां बलाकीनिभां
हस्तन्यस्तसमस्तवैरिरसनामन्ये
दधानां गदाम् ।
पीतां भूषणगन्धमाल्यरुचिरां
पीताम्बराङ्गां वरां
वन्दे सङ्कटनाशिनीं भगवतीं बालां च
बगलामुखीम् ॥ ३॥
ब्रह्मास्त्र धारण करनेवाली,
सुन्दर मुखमण्डलवाली, बकारबीज वैभव से सम्पन्न,
बलाकी के सदृश धवल स्वरूपवाली, एक हाथ से
समस्त शत्रुओं की जिह्वाओं को पकड़े रहनेवाली तथा दूसरे हाथ में गदा धारण किये
रहनेवाली, पीले वर्ण के आभूषण - गन्ध तथा माला धारण करने से
परम सुन्दर प्रतीत होनेवाली, पीताम्बर से सुशोभित अंगोंवाली
तथा उत्तम चरित्रवाली उन संकटनाशिनी बगलामुखीस्वरूपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना
करता हूँ ॥ ३ ॥
षोडशीस्वरूपा बाला
बालार्कश्रुतिभस्करां त्रिनयनां
मन्दस्मितां सन्मुखीं
वामे पाशधनुर्धरां सुविभवां बाणं
तथा दक्षिणे ।
पारावारविहारिणीं परमयीं पद्मासने
संस्थितां
वन्दे सङ्कटनाशिनीं भगवतीं बालां
स्वयं षोडशीम् ॥ ४॥
कानों में बाल-सूर्य के समान
प्रदीप्त आभूषण धारण करने से जाज्वल्यमान प्रतीत होनेवाली,
तीन नेत्रों से सुशोभित, मन्द मुस्कानवाली,
सुन्दर मुखमण्डलवाली, बायें हाथों में पाश तथा
धनुष और दाहिने हाथों में बाण धारण करनेवाली, परम ऐश्वर्य से
सम्पन्न, सुधासिन्धु में विहार करनेवाली, पराशक्तिस्वरूपिणी तथा कमल के आसन पर विराजमान उन संकटनाशिनी साक्षात्
षोडशीस्वरूपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ ॥४॥
धूमावतीस्वरूपा बाला
दीर्घां दीर्घकुचामुदग्रदशनां
दुष्टच्छिदां देवतां
क्रव्यादां कुटिलेक्षणां च कुटिलां
काकध्वजां क्षुत्कृशाम् ।
देवीं शूर्पकरां मलीनवसनां तां
पिप्पलादार्चिताम् ।
बालां सङ्कटनाशिनीं भगवतीं ध्यायामि
धूमावतीम् ॥ ५॥
दीर्घ विग्रहवाली,
विशाल पयोधरों से सम्पन्न, उभरी हुई दंतपंक्ति
से युक्त, दुष्टों का संहार करनेवाली, देवतास्वरूपिणी,
मांस का आहार करनेवाली, कुटिल नेत्रोंवाली,
कुटिल स्वभाववाली, काक-ध्वजा से सुशोभित [रथ पर
विराजमान], भूख के कारण दुर्बल विग्रहवाली, देवीस्वरूपा, हाथ में सूप धारण करनेवाली, मलिन वस्त्र धारण करनेवाली तथा पिप्पलाद ऋषि से पूजित उन संकटनाशिनी
धूमावतीस्वरूपिणी भगवती बाला का मैं ध्यान करता हूँ ॥ ५ ॥
भैरवीस्वरूपा बाला
उद्यत्कोटिदिवाकरप्रतिभटां
बालार्कभाकर्पटां
मालापुस्तकपाशमङ्कुशधरां
दैत्येन्द्रमुण्डस्रजाम् ।
पीनोत्तुङ्गपयोधरां त्रिनयनां
ब्रह्मादिभिः संस्तुतां
बालां सङ्कटनाशिनीं भगवतीं
श्रीभैरवीं धीमहि ॥ ६॥
उगते हुए करोड़ों सूर्यों की कान्ति
को तिरस्कृत करनेवाली, बाल- सूर्य की
प्रभा के समान अरुण वस्त्र धारण करनेवाली, अपने हाथों में
माला-पुस्तक-पाश और अंकुश धारण करनेवाली, दैत्यराज के मुण्ड की
माला धारण करनेवाली, विशाल तथा उन्नत पयोधरोंवाली, तीन नेत्रोंवाली तथा ब्रह्मा आदि देवताओं से सम्यक् स्तुत होनेवाली उन
संकटनाशिनी श्रीभैरवीस्वरूपिणी भगवती बाला का मैं ध्यान करता हूँ ॥ ६ ॥
मातङ्गिनीस्वरूपा बाला
वीणावादनतत्परां त्रिनयनां
मन्दस्मितां सन्मुखीं
वामे पाशधनुर्धरां तु निकरे बाणं तथा
दक्षिणे ।
पारापारविहारिणीं परमयीं ब्रह्मासने
संस्थितां
वन्दे सङ्कटनाशिनीं भगवतीं
मातङ्गिनीं बालिकाम् ॥ ७॥
वीणा बजाने में तल्लीन,
तीन नेत्रों से सुशोभित, मन्द मुसकान से युक्त,
सामने की ओर मुख करके विराजमान, बायें हाथों में
पाश तथा धनुष और दाहिने हाथों में बाण धारण करनेवाली, चैतन्यसागर
में विहार करनेवाली तथा ब्रह्मासन पर विराजनेवाली परमयी उन संकटनाशिनी
मातंगिनीस्वरूपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ ॥ ७ ॥
भुवनेश्वरीस्वरूपा बाला
उद्यत्सूर्यनिभां च
इन्दुमुकुटामिन्दीवरे संस्थितां
हस्ते चारुवराभयं च दधतीं पाशं तथा
चाङ्कुशम् ।
चित्रालङ्कृतमस्तकां त्रिनयनां
ब्रह्मादिभिः सेवितां
वन्दे सङ्कटनाशिनीं च
भुवनेशीमादिबालां भजे ॥ ८॥
उगते हुए सूर्य के सदृश प्रभावाली,
चन्द्र- मुकुट से शोभा पानेवाली, रक्तकमल के
आसन पर विराजमान, हाथों में सुन्दर वर तथा अभय मुद्रा और पाश
तथा अंकुश धारण करनेवाली, चित्रों से अलंकृत मस्तकवाली,
तीन नेत्रोंवाली, ब्रह्मा आदि देवताओं से
सुसेवित उन संकटनाशिनी भुवनेशीस्वरूपिणी भगवती आदिबाला का मैं भजन करता हूँ ॥ ८ ॥
कमलास्वरूपा बाला
देवीं काञ्चनसन्निभां त्रिनयनां
फुल्लारविन्दस्थितां
विभ्राणां वरमब्जयुग्ममभयं हस्तैः
किरीटोज्ज्वलाम् ।
प्रालेयाचलसन्निभैश्च
करिभिरासिञ्च्यमानां सदा
बालां सङ्कटनाशिनीं भगवतीं
लक्ष्मीम्भजे चेन्दिराम् ॥ ९॥
सुवर्ण के समान जिनकी कान्ति है,
जो तीन नेत्रों से सुशोभित हो रही हैं, जो
विकसित कमल के आसन पर स्थित हैं, जिन्होंने अपने हाथों में
वर- अभय तथा कमलद्वय धारण कर रखा है, मस्तक पर किरीट धारण
करने से जो प्रकाशमान हैं तथा हिमालय के सदृश [चार श्वेतवर्ण के] हाथियों के
द्वारा [अपनी शुण्डों से उठाये गये स्वर्ण-कलशों से] जो निरन्तर अभिषिक्त हो रही हैं,
उन संकटनाशिनी इन्दिरासंज्ञक लक्ष्मीस्वरूपिणी भगवती बाला की मैं
वन्दना करता हूँ ॥ ९ ॥
छिन्नमस्तास्वरूपा बाला
सच्छिन्नां स्वशिरोविकीर्णकुटिलां
वामे करे विभ्रतीं
तृप्तास्यस्वशरीरजैश्च रुधिरैः
सन्तर्पयन्तीं सखीम् ।
सद्भक्ताय वरप्रदाननिरतां
प्रेतासनाध्यासिनीं
बालां सङ्कटनाशिनीं भगवतीं
श्रीछिन्नमस्तां भजे ॥ १०॥
पूर्णरूप से कटे मस्तकवाली,
अपने कटे सिर के कारण कुटिल प्रतीत होनेवाली, कटे
सिर को अपने बायें हाथ में धारण करनेवाली, तृप्त
मुखमण्डलवाली, अपने शरीर से निकले रक्त से अपनी सखी को संतृप्त
करनेवाली, सद्भक्तों को वरदान देने में तत्पर रहनेवाली और
प्रेतासन पर विराजमान रहनेवाली उन संकटनाशिनी छिन्नमस्तास्वरूपिणी भगवती बाला की
मैं वन्दना करता हूँ ॥ १० ॥
तारास्वरूपा बाला
उग्रामेकजटामनन्तसुखदां
दूर्वादलाभामजां
कर्त्रीखड्गकपालनीलकमलान्
हस्तैर्वहन्तीं शिवाम् ।
कण्ठे मुण्डस्रजां करालवदनां
कञ्जासने संस्थितां
वन्दे सङ्कटनाशिनीं भगवतीं बालां
स्वयं तारिणीम् ॥ ११॥
जो अत्यन्त उग्र स्वभाववाली हैं,
जो एक जटावाली हैं, जो परम सुखदायिनी हैं,
दूर्वादल की आभा के समान जिनका वर्ण है, जो
जन्मरहित हैं, जिन्होंने अपने हाथों में कैंची-खड्ग-कपाल और
नीलकमल धारण कर रखा है, जो कल्याणमयी हैं, जिनके गले में मुण्डमाला सुशोभित हो रही है, जिनका
मुखमण्डल भयंकर है तथा जो कमल के आसन पर विराजमान हैं, उन
संकट-नाशिनी साक्षात् तारास्वरूपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ॥११॥
दशविद्यास्वरूपा बाला
मुखे श्रीमातङ्गी तदनु किल तारा च
नयने
तदन्तरगा काली भृकुटिसदने भैरवि परा
।
कटौ छिन्ना धूमावती जय कुचेन्दौ
कमलजा
पदांशे ब्रह्मास्त्रा जयति किल बाला
दशमयी ॥ १२॥
जिनके मुख में श्रीमातंगी,
उसके बाद नेत्र में भगवती तारा, उसके भीतर
स्थित रहनेवाली काली, भृकुटिदेश में पराम्बा भैरवी, कटि-प्रदेश में छिन्नमस्ता और धूमावती, चन्द्रसदृश
आभावाले वक्ष-देश में भगवती कमला और पदभाग में भगवती ब्रह्मास्त्रा विराजमान हैं;
ऐसी उन दशविद्यास्वरूपिणी भगवती बाला की बार-बार जय हो ॥ १२ ॥
त्रिपुरसुंदरी बाला
विराजन् मन्दारद्रुमकुसुमहारस्तनतटी
परित्रासत्राणास्फटिकगुटिकापुस्तकवरा
।
गले रेखास्तिस्रो गमकगतिगीतैकनिपुणा
सदा पीता हाला जयति किल बाला दशमयी
॥ १३ ॥
जिनका वक्ष:स्थल मन्दारवृक्ष के
पुष्पों के हार से सुशोभित हो रहा है; जो
अपने हाथों में महान् भय से रक्षा करनेवाली अभय मुद्रा, स्फटिक
की गुटिका, पुस्तक तथा वर मुद्रा धारण किये हुई हैं, जिनके गले में तीन रेखाएँ सुशोभित हैं, जो गमक-गति
से युक्त गीत गाने में परम निपुणा हैं और सदा मधुपान में निरत रहती हैं; उन दशविद्यास्वरूपिणी भगवती बाला की जय हो ॥ १३॥
॥ इति श्रीमेरुतन्त्रे
दशमयीबालात्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ इस प्रकार श्रीमेरुतन्त्र में दशमयीबालात्रिपुरसुन्दरीस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
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