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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
गोपाल स्तुति
गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद्
में वर्णित इस गोपाल स्तुति का पाठ करने से भगवान गोविन्द की कृपा तथा उनकी
प्रीति होती है।
गोपालस्तुतिः
Gopal stuti
गोपाल स्तुति
गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद्
गोपालस्तुति
ॐ नमो
विश्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे ।
विश्वेश्वराय
विश्वाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ १ ॥
'सम्पूर्ण विश्व जिनका स्वरूप है, जो विश्व के पालन और संहार के एकमात्र कारण हैं तथा जो स्वयं ही विश्वरूप और इस विश्व
के अधीश्वर हैं, उन भगवान् गोविन्द को बारम्बार नमस्कार है।
नमो
विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे ।
कृष्णाय
गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ २ ॥
जो
विज्ञानस्वरूप और परमानन्दमयविग्रह हैं तथा जो जीवमात्र को अपनी ओर आकृष्ट कर लेनेवाले हैं,
गोपसुन्दरियों के प्राणनाथ उन भगवान् गोविन्द
को प्रणाम है, प्रणाम है।
नमः
कमलनेत्राय नमः कमलमालिने ।
नमः कमलनाभाय कमलापतये
नमः ॥ ३ ॥
जो नेत्रों
में कमल की शोभा धारण करते और कण्ठ
में कमलपुष्पों की माला पहनते हैं,
जिनकी नाभि से कमल प्रकट हुआ है तथा जो कमला-लक्ष्मी, लक्ष्मीस्वरूपा गोपाङ्गनाओं
के तथा श्रीराधा के प्राणेश्वर हैं, उन भगवान् श्यामसुन्दर
को नमस्कार है, नमस्कार है।
बर्हापीडाभिरामाय
रामायाकुण्ठमेधसे ।
रमामानसहंसाय
गोविन्दाय नमो नमः ॥ ४ ॥
मस्तक
पर मोरपंख का मुकुट धारण करके जो परम सुन्दर दिखायी देते हैं,
जिनमें सबका मन रमण करता है, जिनकी बुद्धि एवं स्मरणशक्ति कभी कुण्ठित नहीं होती तथा जो
लक्ष्मी,
गोपसुन्दरीगण तथा श्रीराधा
के मानस में विहार करनेवाले राजहंस हैं,
उन भगवान् गोविन्द को बारम्बार प्रणाम है।
कंसवंशविनाशाय
केशिचाणूरघातिने ।
वृषभध्वजवन्द्याय
पार्थसारथये नमः ॥ ५ ॥
जो कंस
के वंश का विध्वंस करनेवाले तथा केशी और चाणूर
के विनाशक हैं, भगवान् शङ्कर के भी जो वन्दनीय हैं, उन पार्थ सारथि भगवान् श्रीकृष्ण
को नमस्कार है।
वेणुवादनशीलाय
गोपालायाहिमर्दिने ।
कालिन्दीकूललीलाय
लोलकुण्डलधारिणे ॥ ६ ॥
वल्लवीनयनाम्भोजमालिने
नृत्यशालिने ।
नमः
प्रणतपालाय श्रीकृष्णाय नमो नमः ॥ ७ ॥
अधरों
पर बाँसुरी रखकर उसे बजाते रहना जिनका स्वाभाविक गुण है,
जो गौओं के पालक तथा कालियनाग
का मान मर्दन करनेवाले हैं, कालिन्दी के रमणीय तट पर कालियहृद में नाग के फणों पर चञ्चलगति से जिनकी अविराम लास्य-लीला हो रही है, अतएव जिनके कानों में धारण किये हुए कुण्डल हिलते हुए झलमला रहे हैं,
सहस्रों गोपसुन्दरियों
के निर्निमेष नेत्र जिनके श्रीअङ्गों
में प्रतिबिम्बित होकर विकसित कमल-
पुष्पों की माला सदृश शोभा पा रहे हैं तथा जो नृत्य
में संलग्न होकर अतिशय शोभायमान दिखायी देते हैं,
उन शरणागत जनों के प्रतिपालक भगवान् श्रीकृष्ण
को प्रणाम है, प्रणाम है।
नमः पापप्रणाशाय
गोवर्द्धनधराय च ।
पूतनाजीवितान्ताय
तृणावर्तासुहारिणे ॥ ८ ॥
जो पाप और
पापात्मा असुरों के विनाशक हैं, व्रजवासियों की रक्षा के लिये हाथ पर गोवर्धन धारण करते हैं, पूतना के प्राणान्तकारक तथा तृणावर्त असुर
के प्राण-संहारक हैं, उन भगवान् श्रीकृष्ण को नमस्कार है।
निष्कलाय
विमोहाय शुद्धायाशुद्धवैरिणे ।
अद्वितीयाय
महते श्रीकृष्णाय नमो नमः ॥ ९ ॥
जो कला (अवयव) - से रहित हैं, जिनमें मोह का सर्वथा अभाव है, जो स्वरूप से ही परम विशुद्ध हैं, अशुद्ध (स्वभाव तथा आचरणवाले) असुरों के शत्रु हैं, तथा जिनसे बढ़कर या जिनके समान भी दूसरा कोई नहीं है,
उन सर्वमहान् परमात्मा श्रीकृष्ण
को बारम्बार नमस्कार है।
प्रसीद
परमानन्द प्रसीद परमेश्वर ।
आधिव्याधिभुजङ्गेन
दष्टं मामुद्धर प्रभो ॥ १० ॥
परमानन्दमय
परमेश्वर!
मुझ पर प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये । प्रभो ! मुझे आधि (मानसिक व्यथा) और व्याधि (शारीरिक व्यथा)-रूपी सर्पों ने डस लिया है; कृपया मेरा उद्धार कीजिये।
श्रीकृष्ण
रुक्मिणीकान्त गोपीजनमनोहर ।
संसारसागरे
मग्नं मामुद्धर जगद्गुरो ॥ ११ ॥
हे कृष्ण!
हे रुक्मिणीवल्लभ ! हे गोपसुन्दरियों का चित्त चुरानेवाले श्यामसुन्दर!
मैं संसार- समुद्र में डूब रहा हूँ। जगद्गुरो! मेरा उद्धार कीजिये।
केशव क्लेशहरण
नारायण जनार्दन ।
गोविन्द
परमानन्द मां समुद्धर माधव ॥ १२ ॥
हे केशव !
क्लेशहारी नारायण ! जनार्दन ! परमानन्दमय गोविन्द ! माधव ! मेरा उद्धार कीजिये' ।
॥ इत्याथर्वणे गोपालतापिन्युपनिषदन्तर्गता गोपालस्तुतिः समाप्ता ॥
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