Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
November
(64)
- गोपाल उत्तर तापनि उपनिषद
- अग्निपुराण
- श्रीसीता स्तुति
- गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद
- श्रीकृष्ण उपासना विधि
- गोपाल स्तुति
- गोपाल पूर्व तापनी उपनिषद
- पूर्णब्रह्म स्तोत्र
- कामेश्वरी स्तुति
- भवानी स्तुति
- देवी स्तुति
- दशमयी बाला त्रिपुरसुन्दरी स्तोत्र
- गौरी वन्दना
- पार्वतीस्तुति
- शम्भु स्तुति
- पार्वती स्तुति
- दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्र
- यमगीता
- यम गीता
- यमगीता
- कामगीता
- पुत्रगीता
- अग्निपुराण अध्याय २४२
- अग्निपुराण अध्याय २४१
- हारीतगीता
- अजगरगीता
- मङ्किगीता
- सप्तश्लोकी गीता
- शम्पाकगीता
- पिंगलागीता
- षड्जगीता
- शाण्डिल्य भक्ति सूत्र अध्याय ३
- शाण्डिल्य भक्ति सूत्र अध्याय २
- शाण्डिल्य भक्ति सूत्र
- नारद भक्ति सूत्र
- नारद स्तुति
- प्रश्नोत्तर रत्न मालिका
- विज्ञान नौका अष्टक
- ब्रह्मा ज्ञानावली माला
- मोह मुद्गर
- मनीषा पंचक
- तत्वमसि स्तोत्र
- हरिमिडे स्तोत्र
- अर्थ पंचक
- उपदेश पंचक
- मुकुंद माला स्तोत्र
- सरस्वती चालीसा
- जाहरवीर चालीसा
- गोरक्ष चालीसा
- शिव अथर्वशीर्ष
- पशुपति स्तोत्र
- शंकराष्टक
- काशीपञ्चकम्
- शतक चन्द्रिका
- गोरक्षपंचक
- गोरक्षाष्टक
- अग्निपुराण अध्याय २४०
- अग्निपुराण अध्याय २३९
- अग्निपुराण अध्याय २३८
- अग्निपुराण अध्याय २३६
- अग्निपुराण अध्याय २३५
- अग्निपुराण अध्याय २३४
- अग्निपुराण अध्याय २३३
- अग्निपुराण अध्याय २३२
-
▼
November
(64)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
पूर्णब्रह्म स्तोत्र
पूर्णब्रह्म- वेद परम्परा, वेदान्त, उपनिषद और दर्शन में इस सारे विश्व का परम सत्य है और जगत का सार है। वो विश्व की आत्मा है। वो विश्व का कारण है, जिससे विश्व की उत्पत्ति होती है , जिस पर विश्व आधारित होता है और अन्त में जिसमें विलीन हो जाता है। वो एक और अद्वितीय है। वो स्वयं ही परमज्ञान है। वो निराकार, अनन्त, नित्य और शाश्वत है। ब्रह्म सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। पूर्णब्रह्म, परब्रह्म या परमब्रह्म ब्रह्म का वो रूप है, जो सगुण, निर्गुण और अनन्त गुणों वाला भी है। अद्वैत वेदान्त में उसे ही परमात्मा कहा गया है, ब्रह्म ही सत्य है, बाकि सब मिथ्या है। वह ब्रह्म ही जगत का नियन्ता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और ब्रह्मांडीय सत्य के साथ एकात्मता की अनुभूति होती है।
पूर्णब्रह्म स्तोत्रम्
Purna bramha Stotram
पूर्णब्रह्म स्तोत्र
पूर्ण ब्रह्म
स्तोत्र
पूर्णब्रह्मस्तोत्रगीतम्
पूर्णचन्द्रमुखं
निलेन्दुरूपं
उद्भाषितं
देवं दिव्यस्वरूपं
पूर्णं त्वं
स्वर्णं त्वं वर्णं त्वं देवं
पिता-माता-बन्धु
त्वमेव सर्वं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ १॥
हे पूर्णिमा
के चंद्रमा के समान मुखमंडल वाले, नीले रत्न के समान दिव्य वर्ण वाले एवं प्रकाशमान दिव्य
स्वरूप वाले देव! आप पूर्ण हैं और स्वर्ण की आभा वाले हैं,
आप सभी रंगों का स्रोत हैं, आप मेरे पिता, माता, मित्र और संपूर्ण जीवन हैं। हे जगत के स्वामी,
भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
कुञ्चितकेशं च
सञ्चितवेशं
वर्तुलस्थूलनयनं
ममेशं
पिनाकनीनाका
नयनकोशं
आकृष्ट ओष्ठं
च उत्कृष्ट श्वासं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ २॥
जिनके सुंदर
घुंघराले केश हैं, जिनका रूप सभी सुंदर रूपों का संगम है और जिनकी बड़ी-बड़ी
गोल आंखें हैं, वही मेरे स्वामी एवं प्रभु हैं। हे प्रभु,आपकी विशाल आंखें, खूबसूरत गोल पुतलियां और आकर्षक होंठ हैं;
आपकी दिव्य श्वास ही सृष्टि के सभी जीवों का जीवन है। हे
जगत के स्वामी, भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
नीलाचले
चञ्चलया सहितं
आदिदेव
निश्चलानन्दे स्थितं
आनन्दकन्दं
विश्वविन्दुचन्द्रं
नन्दनन्दनं
त्वं इन्द्रस्य इन्द्रं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ३॥
हे आदिदेव,
आप माता लक्ष्मी के साथ अटल आनंद के साथ नीलाचल धाम में
निवास करते हैं, और इसी कारण आप सभी आनंदों के मूल हैं। जैसे चंद्रमा अपनी उज्ज्वलता से चारों
ओर प्रकाश बिखेरता है, आप भी ब्रह्मांड के केंद्र के रूप में चमकते हैं। हे नंद के
पुत्र ! आप, इन्द्र के भी इन्द्र गोविंद अर्थात् सर्वश्रेष्ठ हैं। हे जगत के स्वामी,
भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय
सर्वमूलं
सूक्ष्मातिसुक्ष्मं
त्वं स्थूलातिस्थूलं
कान्तिमयानन्तं
अन्तिमप्रान्तं
प्रशान्तकुन्तलं
ते मूर्त्तिमन्तं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ४॥
आप सृजन,
पालन और विनाश सभी के मूल हैं। आप सूक्ष्म से सूक्ष्म और
स्थूल से स्थूल हैं। आप कान्तिमय (उज्ज्वल) और अनंत हैं;
आप ही अपना अंत (सीमा) हैं। आपके केश सुन्दर हैं तथा आप
प्रतिमाओं में पूजनीय हैं। हे जगत के स्वामी, भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
यज्ञ-तप-वेदज्ञानात्
अतीतं
भावप्रेमछन्दे
सदावशित्वं
शुद्धात्
शुद्धं त्वं च पूर्णात् पूर्णं
कृष्णमेघतुल्यं
अमूल्यवर्णं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ५॥
आप यज्ञ,
तप, वेद और ज्ञान से परे हैं (आपको केवल अनन्य भक्ति के माध्यम
से ही प्राप्त किया जा सकता है)। आपको बांधने वाली कोई वस्तु नहीं है,
लेकिन आप सदैव अपने भक्तों के शुद्ध प्रेम से बंधे रहते हैं
(शुद्ध प्रेम में कोई इच्छा नहीं होती, भक्त अपने लिए कुछ नहीं चाहते,
जो कुछ भी करते हैं, वह अपने प्रिय को प्रसन्न करने के लिए करते है)। आप परम
पवित्र और परम पूर्ण हैं। आपका रूप काले मेघ के समान है,
आपका रंग अमूल्य है। हे जगत के स्वामी,
भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
विश्वप्रकाशं
सर्वक्लेशनाशं
मन-बुद्धि-प्राण-श्वासप्रश्वासं
मत्स्य-कूर्म-नृसिंह-वामनः
त्वं
वराह-राम-अनन्त-अस्तित्वं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ६॥
आप विश्व के
प्रकाश हैं, सभी दुःखों-कष्टों के निवारक हैं। आप मेरे मन, मेरी बुद्धि, मेरी जीवन शक्ति हैं, आप मेरी श्वास-प्रश्वास हैं। आपके अनंत रूप हैं,
जैसे – मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, वामन, वराह, राम। हे जगत के स्वामी, भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
ध्रुवस्य
विष्णु त्वं भक्तस्य प्राणं
राधापति देव
हे आर्त्तत्राणं
सर्वज्ञानसारं
लोकाधारं
भावसञ्चारं
अभावसंहारं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ७॥
ध्रुव के लिए
आप भगवान विष्णु हैं, और अपने भक्तों के लिए आप उनकी जीवन शक्ति हैं। हे देव ! आप
श्री राधा रानी के पति हैं, तथा दुखी जनों के उद्धारक हैं। आप समस्त ज्ञान का सार हैं
और सभी लोकों को धारण करने वाले आधार हैं। आप भाव अर्थात् प्रेम का संचार करते हैं
तथा अभाव अर्थात् प्रेम की कमी को दूर करते हैं। हे जगत के स्वामी,
भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
बलदेव-सुभद्रा
पार्श्वे स्थितं
सुदर्शनसङ्गे
नित्यशोभितं
नमामि नमामि
सर्वाङ्गे देवं
हे
पूर्णब्रह्म हरि मम सर्वं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ८॥
आप भाई बलदेव
और बहन सुभद्रा के साथ स्थित हैं, आप सुदर्शन चक्र के साथ सदा सुशोभित हैं । मैं अपने शरीर के
हर एक अंग और मन के साथ आपको बारम्बार नमन करता हूँ। हे पूर्ण ब्रह्म,
श्री हरि, आप मेरे लिए सब कुछ हैं। हे जगत के स्वामी,
भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
कृष्णदासहृदि
भावसञ्चारं
सदा कुरु
स्वामी तव किङ्करं
तव कृपा
बिन्दु हि एक सारं
अन्यथा हे नाथ
सर्व असारं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहं
जगन्नाथस्वामी
भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ९॥
हे प्रभु !
मैं कृष्णदास आपका दास हूँ, आप सदैव मेरे हृदय में प्रेम-भक्ति का संचार कीजिये। हे नाथ
! आपकी कृपा की एक बूंद ही जीवन का सार है, उसके बिना सब कुछ व्यर्थ है। हे जगत के स्वामी,
भक्तों के भाव के प्रेमी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
॥ इति श्री
कृष्णदासविरचितं पूर्णब्रह्म स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
इस प्रकार श्री कृष्णदास जी द्वारा रचित पूर्णब्रह्म स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: