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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
गोरक्ष चालीसा
इस गोरक्ष अथवा
गोरख चालीसा का नित्य बारह पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होता है ।
श्री गोरक्ष अथवा गोरख चालीसा
दोहा-
गणपति गिरिजा
पुत्र को,
सिमरूँ
बारम्बार ।
हाथ जोड़ विनती
करूँ,
शारद नाम अधार
।।
श्री गोरक्ष अथवा गोरख चालीसा
चौपाई-
जय जय जय गोरख
अविनाशी,
कृपा करो
गुरुदेव प्रकाशी ।
जय जय जय गोरख
गुणज्ञानी,
इच्छा रूप
योगी वरदानी ।।
अलख निरंजन
तुम्हरो नामा,
सदा करो भक्तन
हित कामा ।
नाम तुम्हारा
जो कोई गावे,
जन्म जन्म के
दुःख नशावे ।
जो कोई गोरक्ष
नाम सुनावे,
भूत पिशाच
निकट नहीं आवे ।
ज्ञान
तुम्हारा योग से पावे,
रूप तुम्हार
लख्या ना जावे ।
निराकार तुम
हो निर्वाणी,
महिमा तुम्हरी
वेद बखानी ।
घट घट के तुम
अन्तर्यामी,
सिद्ध चौरासी
करें प्रणामी ।
भस्म अङ्ग गले
नाद विराजे,
जटा सीस अति
सुन्दर साजे ।
तुम बिन देव
और नहीं दूजा,
देव मुनी जन
करते पूजा ।
चिदानन्द
सन्तन हितकारी,
मङ़्गल करे
अमङ़्गल हारी ।
पूरण ब्रह्म
सकल घट वासी,
गोरक्षनाथ सकल
प्रकासी ।
गोरक्ष गोरक्ष
जो कोई ध्यावे,
ब्रह्म रूप के
दर्शन पावे ।
शङ़्कर रूप धर
डमरू बाजे,
कानन कुण्डल
सुन्दर साजे ।
नित्यानन्द है
नाम तुम्हारा,
असुर मार
भक्तन रखवारा ।
अति विशाल है
रूप तुम्हारा,
सुर नर मुनि
जन पावं न पारा ।
दीन बन्धु
दीनन हितकारी,
हरो पाप हम
शरण तुम्हारी ।
योग युक्ति
में हो प्रकाशा,
सदा करो सन्तन
तन वासा ।
प्रातःकाल ले
नाम तुम्हारा,
सिद्धि बढ़े
अरु योग प्रचारा ।
हठ हठ हठ
गोरक्ष हठीले,
मार मार वैरी
के कीले ।
चल चल चल
गोरक्ष विकराला,
दुश्मन मान
करो बेहाला ।
जय जय जय
गोरक्ष अविनासी,
अपने जन की
हरो चौरासी ।
अचल अगम हैं
गोरक्ष योगी,
सिद्धि देवो
हरो रस भोगी ।
काटो मार्ग यम
की तुम आई,
तुम बिन मेरा
कौन सहाई ।
अजर अमर है
तुम्हरो देहा,
सनकादिक सब
जोहहिं नेहा ।
कोटि न रवि सम
तेज तुम्हारा,
है प्रसिद्ध
जगत उजियारा ।
योगी लखें
तुम्हारी माया,
पार ब्रह्म से
ध्यान लगाया ।
ध्यान
तुम्हारा जो कोई लावे,
अष्ट सिद्धि
नव निधि घर पावे ।
शिव गोरक्ष है
नाम तुम्हारा,
पापी दुष्ट
अधम को तारा ।
अगम अगोचर
निर्भय नाथा,
सदा रहो सन्तन
के साथा ।
शङ़्कर रूप
अवतार तुम्हारा,
गोपीचन्द
भर्तृहरि को तारा ।
सुन लीजो गुरु
अरज हमारी,
कृपा सिन्धु
योगी ब्रह्मचारी ।
पूर्ण आस दास
की कीजे,
सेवक जान
ज्ञान को दीजे ।
पतित पावन अधम
अधारा,
तिनके हेतु
तुम लेत अवतारा ।
अलख निरंजन
नाम तुम्हारा,
अगम पंथ जिन
योग प्रचारा ।
जय जय जय
गोरक्ष भगवाना,
सदा करो भक्तन
कल्याना ।
जय जय जय
गोरक्ष अविनाशी,
सेवा करें
सिद्ध चौरासी ।
जो पढ़ही
गोरक्ष चालीसा,
होय सिद्ध
साक्षी जगदीशा ।
बारह पाठ पढ़े
नित्य जोई,
मनोकामना पूरण
होई ।
और श्रद्धा से
रोट चढ़ावे,
हाथ जोड़कर
ध्यान लगावे ।
श्री गोरक्ष अथवा गोरख चालीसा
दोहा
-
सुने सुनावे
प्रेमवश,
पूजे अपने हाथ
मन इच्छा सब
कामना,
पूरे
गोरक्षनाथ ।
अगम अगोचर नाथ
तुम,
पारब्रह्म
अवतार ।
कानन कुण्डल
सिर जटा,
अंग विभूति
अपार ।
सिद्ध पुरुष
योगेश्वरों,
दो मुझको उपदेश
।
हर समय सेवा
करूँ,
सुबह शाम आदेश ।
---समाप्त---
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