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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
गोरक्षपंचक
निग्रहाचार्य
श्रीभागवतानंदजी ने शतक चन्द्रिका के अन्त में अन्त्यमङ्गलाचरण शाबर पद्धति से इस गोरक्षपंचक
के पाँच श्लोकों में शिव स्वरूप गोरखनाथजी से रक्षा के लिए स्तुति गान किया है।
गोरक्षपञ्चकम्
Goraksha Panchakam
गोरक्ष पंचक स्तोत्र
गोरक्षपञ्चकं
स्तोत्र
अन्त्यमङ्गलाचरणम् गोरक्षपञ्चकम्
(शाबर-पद्धति)
(जय) जय जय जय गोरक्षनाथ ! आदेश नमो ! देवाधिदेव !
(जय) आदिनाथ !
पशुपते ! स्वयम्भो ! शम्भो हर हर महादेव !
सर्वभूतपरिवारव्यालविकरालहारगात्रे
रचितं
जन्मदुःखनिर्मूलशूलधृतदण्डहस्तमशुभं
शमितम् ।
सिद्धवृन्दगन्धर्वसङ्घमधुरं
अनुपमगीतं चरितं
रक्ष रक्ष
गोरक्ष सर्वनिधिदक्ष भक्ष सकलं दुरितम् ॥०१॥
(जय) जय जय जय
गोरक्षनाथ ! आदेश नमो ! देवाधिदेव !
(जय) आदिनाथ !
पशुपते ! स्वयम्भो ! शम्भो हर हर महादेव !
ब्रह्मज्ञानविज्ञानसत्त्वयुतमुक्तपाशभवभयहारी
व्याघ्रचर्मपरिधानकलेवरमुण्डमालसन्दशधारी
!
वेदशास्त्रदर्शनदिग्दर्शननिपुणमोहभ्रमसंहारी
रक्ष रक्ष
गोरक्ष सर्वनिधिदक्ष भक्ष सकलं दुरितम् ॥०२॥
(जय) जय जय जय गोरक्षनाथ ! आदेश नमो ! देवाधिदेव !
(जय) आदिनाथ !
पशुपते ! स्वयम्भो ! शम्भो हर हर महादेव !
बालरूपद्वादशसंवत्सरवयसि
लिप्तगोमयपिण्डे
तव कविनारायण
अवतारी मत्स्येन्द्रनाथदीक्षा मुण्डे !
सिद्धरसेश्वर
पतितोऽहं तव शरणे चरणेऽमृतकुण्डे
रक्ष रक्ष
गोरक्ष सर्वनिधिदक्ष भक्ष सकलं दुरितम् ॥०३॥
(जय) जय जय जय
गोरक्षनाथ ! आदेश नमो ! देवाधिदेव !
(जय) आदिनाथ !
पशुपते ! स्वयम्भो ! शम्भो हर हर महादेव !
अङ्गभस्मनिःसङ्गरङ्गशुभशुभ्रदेहपरिमलवेषं
शम्भुनेत्रमालात्रिनेत्रधर्ता
हर्ताशुभकृतदोषम् ।
अनलसूर्यप्रतिहतकान्तिः
शान्तिर्मनसीत्यन्तकरोषं
रक्ष रक्ष
गोरक्ष सर्वनिधिदक्ष भक्ष सकलं दुरितम् ॥०४॥
(जय) जय जय जय
गोरक्षनाथ ! आदेश नमो ! देवाधिदेव !
(जय) आदिनाथ !
पशुपते ! स्वयम्भो ! शम्भो हर हर महादेव !
तन्त्रशास्त्रशाबरमहास्त्रसर्वार्थसिद्धिदायकरचितं
वज्रगात्र
योगेश वज्रबटुकेश शेषतमसो रहितम् ।
वज्रपाणिमस्तकचूडामणिवन्दितपादसदाविनतं
रक्ष रक्ष
गोरक्ष सर्वनिधिदक्ष भक्ष सकलं दुरितम् ॥०५॥
(जय) जय जय जय
गोरक्षनाथ ! आदेश नमो ! देवाधिदेव !
(जय) आदिनाथ !
पशुपते ! स्वयम्भो ! शम्भो हर हर महादेव !
इति निग्रहाचार्य श्रीभागवतानन्दगुरुविरचितं शतकचन्द्रिकान्तर्गतं अन्त्यमङ्गलाचरणं गोरक्षपञ्चकं सम्पूर्णम्।
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