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कर्मकाण्ड

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गोरक्षाष्टक

गोरक्षाष्टक

निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंदजी ने शतक चन्द्रिका के आद्यमङ्गलाचरण (आदि अथवा प्रारम्भ) में शाबर पद्धति से इस गोरक्षाष्टक में गोरखपीठधीश्वर गुरुओं की स्तुति गान किया है।

गोरक्षाष्टक

गोरक्षाष्टकम्

Goraksha Ashtakam

गोरक्षा अष्टक स्तोत्र

गोरक्षाष्टकं स्तोत्र

आद्यमङ्गलाचरणं गोरक्षाष्टकं

             (शाबर पद्धति)

      दिव्यार्कवह्नीन्दुसमप्रभाय

              अद्वैतकैवल्यप्रदर्शकाय ।

      आदेशमन्त्राभिनिषेचिताय

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ १॥

जिनकी आभा दिव्य सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि के समान है, जो अद्वैतमत से मोक्षमार्ग का प्रदर्शन करते हैं, “आदेश'' मन्त्र के द्वारा जिनकी स्तुति होती है, उन गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ ।

      तडित्प्रभाशुभ्रजटाधराय

              हिरण्यगर्भाय हिरण्मयाय ।

      मत्स्येन्द्रनाथाङ्घ्रिसुसेवकाय

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ २॥

चमकती हुई बिजली के समान उज्ज्वल वर्ण की जिनकी जटाएं हैं, जो सूर्य के समान तेजस्वी हैं और ब्रह्मज्ञान से युक्त हैं, जो सदैव अपने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी के चरणों की सेवा करते रहते हैं, उन गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ ।

      सर्वज्ञसर्वेन्द्रियनिग्रहाय

              सर्वार्थसिद्धिप्रदयोगजाय ।

      सर्वेप्सितेभ्यः परिपूर्णधाम्ने

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ ३॥

जो सर्वज्ञ हैं, जिन्होंने अपनी सभी इन्द्रियों को वश में रखा हुआ है, जो समस्त सिद्धियों के देने वाले योग से ही जन्मे हैं, जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले भंडार के समान हैं, उन गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ।

      आदीशमार्गानुजरक्षकाय

              संवित्परानन्दसुसंस्थिताय ।

      योगेश्वरायेन्द्रियकर्षिताय

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ ४॥

आदिनाथ सदाशिव जी के द्वारा प्रदर्शित नाथपन्थ के साधकों की जो सदा रक्षा करते हैं, सदैव महान् और निश्चल ब्रह्मानन्द में मग्न रहते हैं, उन योग के स्वामी परम जितेन्द्रिय गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ ।

      कौलेन्द्रसंज्ञाय कुलेश्वराय

              कौलेश्वरीपन्थधुरन्धराय ।

      कौलाय सर्वागमनिर्भयाय

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ ५॥

जो कौलेन्द्र कहाते हैं, कुल (यानी कुंडलिनी शक्ति) के स्वामी हैं, कौलेश्वरी नाथपन्थ की धुरी को धारण करने वाले हैं, कौल (ब्रह्मवेत्ता) हैं, तथा सभी आगमों से निर्भय हैं, उन गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ ।

      भक्तार्तिनाशाय कृपार्णवाय

              समस्तविघ्नौघनिवारकाय ।

      ज्ञानाय विज्ञानयुताय तुभ्यं

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ ६॥

अपने भक्त के दुःख का विनाश करने के लिए जो कृपा के समुद्र के समान हैं, सभी विघ्नसमूहों का जो निवारण कर देते हैं, विज्ञानसहित ज्ञानरूपी उन गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ ।

      महाष्टपाशैरजिताय लोक

              आदित्यवर्षाधिकलेवराय ।

      रुद्रस्वरूपाय निरञ्जनाय

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ ७॥

(भय, लज्जा, जुगुप्सा आदि) आठ महाबली पाशों से जो नहीं जीते जा सकते, सदैव बारह वर्ष के शरीर को धारण किये रहते हैं, दुःखों को दूर करने वाले रुद्र के अवतार हैं, परम सच्चिदानन्दरूपी उन गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ।

      अज्ञानसङ्घशकलीकृताय

              सद्धर्मनिष्ठाय रसेश्वराय ।

      महावधूताय पुरातनाय

              गोरक्षनाथाय नमस्करोमि ॥ ८॥

जिन्होंने अज्ञानसमूहों को टुकड़े टुकड़े करके नष्ट कर दिया है, सनातन धर्म का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं और रसेश्वर (भौतिक बाधा और शीत-उष्णादि द्वन्द्वों से रहित) हैं, परम प्राचीन और महान् संन्यासी अवधूत वृत्ति को धारण करने वाले उन गोरक्षनाथ जी के लिए मैं प्रणाम करता हूँ ।

इति निग्रहाचार्य श्रीभागवतानन्दगुरुविरचितं शतकचन्द्रिकान्तर्गतं आद्यमङ्गलाचरणं गोरक्षाष्टकं सम्पूर्णम् ।

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