Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2021
(800)
-
▼
November
(42)
- ब्रह्मणस्पति सूक्तम्
- विष्णु सूक्तम्
- पृथ्वी सूक्त
- नासदीय सूक्तम्
- इन्द्र सूक्त
- परशुरामकृत शिव स्तोत्र
- सूर्य कवच
- सूर्य स्तवन
- विष्णुकृत गणेशस्तोत्र
- पार्वतीकृत विष्णु स्तवन
- महापुरुषस्तोत्र
- दुर्गा जी के १६ नाम
- राधिकोपाख्यान
- श्रीराधिका त्रैलोक्यमङ्गल कवचम्
- श्रीराधा पूजन
- सुरभी देवी
- मनसादेवी
- मंगलचण्डी
- वासुदेवोपनिषत्
- नारायण कवच
- षोडशी त्रैलोक्य विजय कवच
- संग्राम विजय विद्या
- त्रैलोक्य विजय विद्या
- केनोपनिषद्
- केनोपनिषत्
- तुलसी विवाह विधि
- भीष्म पंचक व्रत
- तुलसी माहात्म्य कथा
- तुलसी स्तोत्र
- देवी षष्ठी की कथा व स्तोत्र
- भगवती दक्षिणा की कथा व स्तोत्र
- श्रीकृष्ण स्तुति
- भगवती स्वधा की कथा व स्तोत्र
- स्वाहा स्तोत्र
- लक्ष्मी स्तोत्र
- यमाष्टक
- तुलसी स्तुति
- शालिग्राम के लक्षण तथा महत्त्व
- तुलसी महिमा
- एकात्मता स्तोत्र
- पृथ्वीस्तोत्र
- सरस्वती कवच
-
▼
November
(42)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीराधा पूजन
जो प्रतिदिन श्रीराधा की पूजन करता
है,
वह भारतवर्ष में साक्षात विष्णु के समान है। जीवन्मुक्त एवं पवित्र
है। उसे निश्चय ही गोलोकधाम की प्राप्ति होती है। जो प्रतिवर्ष कार्तिक की
पूर्णिमा को इसी क्रम से राधा की पूजा करता है, वह
राजसूय-यज्ञ के फल का भागी होता है। इहलोक में उत्तम ऐश्वर्य से सम्पन्न एवं पुण्यवान
होता है और अन्त में सब पापों से मुक्त हो श्रीकृष्ण धाम में जाता है। आदिकाल में
पहले श्रीकृष्ण ने इसी क्रम से वृन्दावन के रासमण्डल में श्रीराधा की स्तुति एवं
पूजा की थी। दूसरी बार माता पार्वति के वर से वेदमाता सावित्री को पाकर
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने इसी क्रम से राधा का पूजन किया था। नारायण ने भी
श्रीराधा की आराधना करके महालक्ष्मी, सरस्वती, गंगा तथा भुवनपावनी पराशक्ति तुलसी को प्राप्त किया था। क्षीरसागरशायी
श्रीविष्णु ने राधा की आराधना करके ही सिन्धुसुता को प्राप्त किया था। पहले
दक्षकन्या की मृत्यु हो जाने पर भगवान् शिव ने भी श्रीकृष्ण की आज्ञा से
पुष्कर में श्रीराधा की पूजा की और उसके प्रभाव से पार्वति को प्राप्त किया।
पतिव्रता श्रीराधा की पूजा करके उनके दिये हुए वर से कामदेव ने रति को, धर्मदेव ने सती साध्वी मूर्ति को तथा देवताओं और मुनियों ने धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्राप्त किया था।
श्रीराधा पूजन पद्धति
श्रीराधा मन्त्र
श्रीकृष्ण के प्राणों की
अधिष्ठात्री देवी परात्परस्वरूपा श्रीराधा कृपामयी हैं। उनके प्रसाद से साधक शीघ्र
ही उनके धाम को प्राप्त कर लेता है’–राधा
के इस षडक्षर-मन्त्र इस प्रकार है–
‘ऊँ राधायै स्वाहा।’
श्रीराधा ध्यान
श्रीराधा का सामवेदोक्त ध्यान इस
प्रकार है–
श्वेतचम्पकवर्णाभां
कोटिचन्द्रसमप्रभाम् ।
शरत्पार्वणचन्द्रास्यां
शरत्पङ्कजलोचनाम् ।।
सुश्रोणीं सुनितम्बां च पक्व
बिम्बाधरां वराम् ।
मुक्तापङ्क्तिविनिन्द्यैकदन्तपङ्क्तिमनोहराम्
।।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां
भक्तानुग्रहकातराम् ।
वह्निशुद्धांशुकाधानां
रत्नमालाविभूषिताम् ।।
रत्नकेयूरवलयां रत्नमञ्जीररञ्जिताम्
।
रत्नकुण्डलयुग्मेन विचित्रेण
विराजिताम् ।।
सूर्यप्रभाप्रतिकृतिगण्डस्थलविराजिताम्
।
अमूल्यरत्ननिर्माणग्रैवेयकविभूषित ।।
सद्रत्नसारनिर्माणकिरीटमुकुटोज्ज्वलाम्
।
रत्नाङ्गलीयसंयुक्तां
रत्नपाशकशोभिताम् ।।
बिभ्रतीं कबरीभारं
मालतीमाल्यभूषिताम् ।
रूपाधिष्ठातृदेवीं च
गजेन्द्रमन्दगामिनीम् ।।
गोपीभिः सुप्रियाभिश्च सेवितां
श्वेतचामरैः ।
कस्तूरीविन्दुभिः
सार्द्धमधश्चन्दनबिन्दुना ।।
सिन्दूरबिन्दुना
चारुसीमन्ताधःस्थलोज्ज्वलाम् ।
रासे रासेश्वरयुतां राधां
रासेश्वरीं भजे ।।
श्रीराधा की अंगकान्ति श्वेत चम्पा
के समान गौर है। वे अपने अंगों में करोड़ों चन्द्रमाओं के समान मनोहर कान्ति धारण
करती हैं। उनका मुख शरद-ऋतु की पूर्णिमा के चन्द्रमा को लज्जित करता है। दोनों
नेत्र शरत्काल के प्रफुल्ल कमलों की शोभा को छीन लेते हैं। उनके श्रोणिदेश एवं
नितम्बभाग बहुत ही सुन्दर हैं। अधर पके हुए बिम्बफल की लाली धारण करते हैं। वे
श्रेष्ठ सुन्दरी हैं। मुक्ता की पंक्तियों को तिरस्कृत करने वाली दन्तपंक्ति उनके
मुख की मनोहरता को बढ़ाती है। उनके वदन पर मन्द मुस्कान जनित प्रसन्नता खेलती रहती
है। वे भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये व्याकुल रहती हैं। अग्निशुद्ध चिन्मय
वस्त्र उनके श्रीअंगों को आच्छादित करते हैं। वे रत्नों के हार से विभूषित हैं।
रत्नमय केयूर और कंगन धारण करती हैं। रत्नों के ही बने हुए मंजीर उनके पैरों की
शोभा बढ़ाते हैं। रत्न निर्मित विचित्र कुण्डल उनके दोनों कानों की श्रीवृद्धि
करते हैं। सूर्यप्रभा की प्रतिमारूप कपोल-युगल से वे सुशोभित होती हैं। अमूल्य
रत्नों के बने हुए कण्ठहार उनके ग्रीवा-प्रदेश को विभूषित करते हैं। उत्तम रत्नों
के सारतत्त्व से निर्मित किरीट-मुकुट उनकी उज्ज्वलता को जाग्रत किये रहते हैं।
रत्नों की मुद्रिका और पाशक (चेन या पासा आदि) उनकी शोभा बढ़ाते हैं। वे मालती के
पुष्पों और हारों से अलंकृत केशपाश धारण करती हैं। वे रूप की अधिष्ठात्री देवी हैं
और गजराज की भाँति मन्द गति से चलती हैं। जो उन्हें अत्यन्त प्यारी हैं,
ऐसी गोप-किशोरियाँ श्वेत चवँर लेकर उनकी सेवा करती हैं। कस्तूरी की
बेंदी, चन्दन के बिन्दु और सिन्दूर की टीकी से उनके मनोहर
सीमन्त का निम्नभाग अत्यन्त उद्दीप्त दिखायी देता है। रास में रासेश्वर के सहित
विराजित रासेश्वरी राधा का मैं भजन करता हूँ।
इस प्रकार ध्यान कर मस्तक पर पुष्प अर्पित करके पुनः जगम्बा श्रीराधा का चिन्तन करे और फूल चढ़ावे। पुनः ध्यान के पश्चात् सोलह उपचार अर्पित करे। आसन, वसन, पाद्य, अर्घ्य, गन्ध, अनुलेपन, धूप, दीप, सुन्दर पुष्प, स्नानीय, रत्नभूषण, विविध नैवेद्य, सुवासित ताम्बूल, जल, मधुपर्क तथा रत्नमयी शय्या– ये सोलह उपचार हैं।
श्रीराधा पूजन विधि
1. आसन
रत्नसारविकारं च निर्मितं
विश्वकर्मणा ।
वरं सिंहासनं रम्यं राधे पूजासु
गृह्यताम् ।।
राधे! पूजा के अवसर पर विश्वकर्मा
द्वारा रचित रमणीय श्रेष्ठ सिंहासन, जो
रत्नसार का बना हुआ है, ग्रहण करो। (आसन आदि के स्थान पर
साधारण लोग पुष्प आदि का आसन तथा अन्य उपचार, जो सर्वसुलभ
हैं, दे सकते हैं; परंतु मानसिक भावना
द्वारा उसे रत्नसिंहासन आदि मानकर ही अर्पित करें। इस भावना के अनुसार ये पूजा
सम्बन्धी मन्त्र हैं। मानसिक भावना द्वारा उत्तम-से-उत्तम वस्तु इष्टदेव को अर्पित
की जा सकती है।)
2. वसन
अमूल्यरत्नखचितममूल्यं सूक्ष्ममेव च
।
वह्निशुद्धं निर्मलं च वसनं देवि
गृह्यताम् ।।
देवि! बहुमूल्य रत्नों से जटित
सूक्ष्म वस्त्र, जिसका मूल्य आँका नहीं जा सकता,
आपकी सेवा में प्रस्तुत है। यह अग्नि से शुद्ध किया गया, चिन्मय एवं स्वभावतः निर्मल है। इसे स्वीकार करो।
(आसन आदि के स्थान पर साधारण लोग
पुष्प आदि का आसन तथा अन्य उपचार, जो सर्वसुलभ
हैं, दे सकते हैं; परंतु मानसिक भावना
द्वारा उसे रत्नसिंहासन आदि मानकर ही अर्पित करें। इस भावना के अनुसार ये पूजा
सम्बन्धी मन्त्र हैं। मानसिक भावना द्वारा उत्तम-से-उत्तम वस्तु इष्टदेव को अर्पित
की जा सकती है।)
3. पाद्य
सद्रत्नसारपात्रस्थं सर्वतीर्थोदकं
शुभम् ।
पादप्रक्षालनार्थं च राधे पाद्यं च
गृह्यताम् ।।
राधे! उत्तम रत्नसार द्वारा निर्मित
पात्र में सम्पूर्ण तीर्थों का शुभ जल तुम्हारी सेवा में अर्पित किया गया है।
तुम्हारे दोनों चरणों को पखारने के लिये यह पाद्य जल है। इसे ग्रहण करो।
4. अर्घ्य
दक्षिणावर्त्तशङ्खस्थं
सदूर्वापुष्पचन्दनम् ।
पूतं युक्तं तीर्थतोयै राधेऽघ्यं
प्रतिगृह्यताम् ।।
राधे! दक्षिणावर्त शंख में रखा हुआ
दूर्वा,
पुष्प, चन्दन तथा तीर्थ जल से युक्त यह पवित्र
अर्घ्य प्रस्तुत है। इसे स्वीकार करो।
5. गन्ध
पार्थिवद्रव्यसम्भूतमतीवसुरभीकृतम् ।
मङ्गलार्हं पवित्रं च राधे गन्धं
गृहाण मे ।।
राधे! पार्थिव द्रव्यों से सम्भूत
अत्यन्त सुगन्धित मंगलोपयोगी तथा पवित्र गन्ध मुझसे ग्रहण करो।
6. अनुलेपन (चन्दन)
श्रीखण्डचूर्णं सुस्निग्धं
कस्तूरीकुङकुमान्वितम् ।
सुगन्धयुक्तं देवेशि
गृह्यतामनुलेपनम् ।।
देवेश्वरि! कस्तूरी,
कुमकुम और सुगन्ध से युक्त यह सुस्निग्ध चन्दन चूर्ण अनुलेपन के रूप
में तुम्हारे सामने प्रस्तुत है। इसे स्वीकार करो।
7. धूप
वृक्षनिर्याससंयुक्तं
पार्थिवद्रव्यसंयुतम् ।
अग्निखण्डशिखाजातं धूपं देवि गृहाण
मे ।।
देवि! वृक्ष की गोंद (गुग्गुल) तथा
पार्थिव द्रव्यों से संयुक्त यह धूप प्रज्वलित अग्निशिखा से निर्गत धूम के रूप में
प्रस्तुत है। मेरी इस वस्तु को ग्रहण करो।
8. दीप
अन्धकारे भयहरममूल्यमणिशोभितम् ।
रत्नप्रदीपं शोभाढ्यं गृहाण
परमेश्वरि ।।
परमेश्वरि! अमूल्य रत्नों का बना
हुआ यह परम उज्ज्वल शोभाशाली रत्नप्रदीप अन्धकार भय को दूर करने वाला है। इसे स्वीकार
करो।
9. पुष्प
पारिजातप्रसूनं च गन्धचन्दनचर्चितम्
।
अतीव शोभनं रम्यं गृह्यतां
परमेश्वरि ।।
परमेश्वरि! गन्ध और चन्दन से चर्चित,
अत्यन्त शोभायमान यह रमणीय पारिजात-पुष्प ग्रहण करो।
10. स्नानीय
सुगन्धामलकीचूर्णं सुस्निग्धं
सुमनोहरम् ।
विष्णुतैलसमायुक्तं स्नानीयं देवि
गृह्यताम् ।।
देवि! विष्णु तैल से युक्त यह
अत्यन्त मनोहर एवं सुस्निग्ध सुगन्धित आँवले का चूर्ण सेवा में प्रस्तुत है। इस
स्नानोपयोगी वस्तु को तुम स्वीकार करो।
11. भूषण
अमूल्यरत्ननिर्माणं केयूरवलयादिकम् ।
शङ्खं सुशोभनं राधे गृह्यतां भूषणं
मम ।।
राधे! अमूल्य रत्नों के बने हुए
केयूर,
कंकण आदि आभूषणों को तथा परम शोभाशाली शंख की चूड़ियों को मेरी ओर
से ग्रहण करो।
12. नैवेद्य
कालदेशोद्भवं पक्वफलं च
लड्डुकादिकम् ।
परमान्नं च मिष्टान्नं नैवेद्यं
देवि गृह्यताम् ।।
देवि! देश-काल के अनुसार उपलब्ध हुए
पके फल तथा लड्डू आदि उत्तम मिष्ठान्न नैवेद्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
इसे स्वीकार करो।
13. ताम्बूल और 14. जल
ताम्बूलं च वरं रम्यं
कर्पूरादिसुवासितम् ।
सर्वभोगाधिकं स्वादु सलिलं देवि
गृह्यताम् ।।
देवि! कर्पूर आदि से सुवासित,
सब भोगों से उत्कृष्ट, रमणीय एवं सुन्दर
ताम्बूल तथा स्वादिष्ट जल ग्रहण करो।
15. मधुपर्क
अशनं रत्नपात्रस्थं सुस्वादु
सुमनोहरम् ।
मया निवेदितं भक्त्या गृह्यतां
परमेश्वरि ।।
परमेश्वरि! रत्नमय पात्र में रखा
हुआ यह अशन (मधुपर्क) अत्यन्त स्वादिष्ट तथा परम मनोहर है। मैंने भक्तिभाव से इसे
सेवा में समर्पित किया है। कृपया स्वीकार करो।
16. शय्या
रत्नेन्द्रसारनिर्माणं
वह्निशुद्धांशुकान्वितम् ।
पुष्पचन्दनचर्चाढ्यं पर्य्यङ्कं
देवि गृह्यताम् ।।
देवि! श्रेष्ठ के सारभाग से निर्मित,
अग्निशुद्ध निर्मल वस्त्र से आच्छादित तथा पुष्प और चन्दन से चर्चित
यह शय्या प्रस्तुत है। इसे ग्रहण करो।
इस प्रकार देवी श्रीराधा का सम्यक
पूजन करके उनके लिये तीन बार पुष्पांजलि दे तथा देवी की आठ नायिकाओं का,
जो उनकी परम प्रिया परिचारिकाएँ हैं, यत्नपूर्वक
भक्तिभाव से पंचोपचार पूजन करे। उनके पूजन का क्रम पूर्व आदि से आरम्भ करके
दक्षिणावर्त बताया गया है।
श्रीराधा की परिचारिकाएँ पूजन
पूर्व दिशा में मालावती,
अग्निकोण में माधवी, दक्षिण में रत्नमाला,
नैर्ऋत्यकोण में सुशीला, पश्चिम में शशिकला,
वायव्यकोण में पारिजाता, उत्तर में पद्मावती
तथा ईशानकोण में सुन्दरी की पूजा करे।
व्रती पुरुष व्रतकाल में यूथिका
(जूही),
मालती और कमलों की माला चढ़ावे।
इति श्रीराधा पूजन विधि: ।
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: