सूर्य स्तवन
सूर्य स्तवन का वर्णन सामवेद में
हुआ है। यह व्याधिविनाशक, सर्वपापहारी,
परमोत्कृष्ट, साररूप और श्री तथा आरोग्य को
देने वाला है।
सूर्य स्तवन
ब्रह्मोवाच ।।
तं ब्रह्म परमं धाम ज्योतीरूपं
सनातनम् ।
त्वामहं स्तोतुमिच्छामि
भक्तानुग्रहकारकम् ।।
त्रैलोक्यलोचनं लोकनाथं पापविमोचनम्
।
तपसां फलदातारं दुःखदं पापिनां सदा
।।
कर्मानुरूपफलदं कर्मबीजं दयानिधिम्
।
कर्मरूपं क्रियारूपमरूपं कर्मबीजकम्
।।
ब्रह्मविष्णुमहेशानामंशं च
त्रिगुणात्मकम् ।
व्याधिदं व्याधिहन्तारं
शोकमोहभयापहम् ।।
सुखदं मोक्षदं सारं भक्तिदं
सर्वकामदम् ।
सर्वेश्वरं सर्वरूपं साक्षिणं
सर्वकर्मणाम् ।।
प्रत्यक्षं सर्वलोकानामप्रत्यक्षं
मनोहरम् ।।
शश्वद्रसहरं पश्चाद्रसदं
सर्वसिद्धिदम् ।
सिद्धि स्वरूपं सिद्धेशं सिद्धानां
परमं गुरुम् ।।
भगवन! जो सनातन ब्रह्म,
परमधाम, ज्योतीरूप, भक्तों
पर अनुग्रह करने वाले, त्रिलोकी के नेत्ररूप, जगन्नाथ, पापनाशक, तपस्यों के
फलदाता, पापियों को सदा दुःखदायी, कर्मानुरूप
फल प्रदान करने वाले, कर्म के बीजस्वरूप, दयासागर, कर्मरूप, क्रियारूप,
रूपरहित, कर्मबीज, ब्रह्मा,
विष्णु और महेश के अंशरूप, त्रिगुणात्मक,
व्याधिदाता, व्याधिहन्ता, शोक-मोह-भय के विनाशक, सुखदायक, मोक्षदाता, साररूप, भक्तिप्रद,
सम्पूर्ण कामनाओं के दाता, सर्वेश्वर, सर्वरूप, सम्पूर्ण कर्मों के साक्षी, समस्त लोकों के दृष्टिगोचर, अप्रत्यक्ष, मनोहर, निरन्तर रस को हरने वाले, तत्पश्चात रसदाता, सर्वसिद्धप्रद, सिद्धिस्वरूप, सिद्धेश और सिद्धों के परम गुरु हैं,
उन आपकी मैं स्तुति करना चाहता हूँ।
स्तवराजमिदं प्रोक्तं
गुह्याद्गुह्यतरं परम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं
व्याधिभ्यस्स प्रमुच्यते ।।
यह स्तवराज गोपनीय से भी परम
गोपनीय है। जो नित्य तीनों काल इसका पाठ करता है, वह समस्त व्याधियों से मुक्त हो जाता है।
आन्ध्यं कुष्ठं च दारिद्र्यं रोगः
शोको भयं कलिः ।
तस्य नश्यति विश्वेश
श्रीसूर्य्यकृपया ध्रुवम् ।।
उसके अंधापन,
कोढ़, दरिद्रता, रोग,
शोक, भय और कलह– ये सभी
विश्वेश्वर श्रीसूर्य की कृपा से निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं।
महाकुष्ठी च गलितश्चक्षुर्हीनो
महाव्रणी ।
यक्ष्मग्रस्तो महाशूली
नानाव्याधियुतोऽसि वा ।।
जो भयंकर कुष्ठ से दुःखी,
गलित अंगों वाला, नेत्रहीन, बड़े-बड़े घावों से युक्त, यक्ष्मा से ग्रस्त,
महान शूलरोग से पीड़ित अथवा नाना प्रकार की व्याधियों से युक्त हो।
मासं कृत्वा हविष्यान्नं
श्रुत्वाऽतो मुच्यते ध्रुवम् ।
स्नानं च सर्वतीर्थानां लभते नात्र
संशयः ।।
वह भी यदि एक मास तक हविष्यान्न
भोजन करके इस स्तोत्र का श्रवण करे तो निश्चय ही रोगमुक्त हो जाता है और उसे
सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है–
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे सूर्य स्तवन नामैकोनविंशतितमोऽध्यायः ।। १९ ।।
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