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कर्मकाण्ड

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त्र्यम्बक स्तवन

त्र्यम्बक स्तवन

त्र्यम्बक भगवान् महादेव का यह स्तवन सभी शोकों को मिटानेवाला और कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है।

त्र्यम्बक स्तवन

त्र्यम्बक स्तवन

Tryambak stavan

॥ देवा ऊचुः ॥ 

महादेवं शिवं स्थाणुमुग्रं रुद्रवृषध्वजम् ॥

श्मशानवासिनं भर्ग सर्व्वान्तकरणम्परम् ॥ ५६ ॥

त्वान्नमामो वयम्भक्त्या शङ्करन्नीललोहितम् ॥

गिरीश वरदन्देवं भूतभावनमव्ययम् ॥ ५७ ॥

देवगण ने कहा- महादेव शिव, स्थाणु, उग्र, रुद्र, वृषभध्वज- श्मशान में निवास करने वाले, सबका अन्तःकरण, पर, भर्ग को हम भक्ति भाव से नीललोहित शंकर को प्रणाम करते हैं जो गिरीश, वरदान देने वाले, भूत भावन और अव्यय देव हैं।

अनादि मध्य संसारयोगविद्याय शम्भवे ॥

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिङ्गमूर्त्तये ॥ ५८॥

अनादि, मध्य और संसार की योगविद्या वाले शम्भु के लिए नमस्कार है जो परमशिव, शान्त, ब्रह्म और लिंगमूर्ति हैं उनके लिए नमस्कार है ।

ज्ञानामृतान्तसम्पूर्ण शुद्धदेहान्तराय च ॥

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिङ्गमूर्त्तये ॥ ५९ ॥

ज्ञानरूपी अमृत के अन्त तथा सम्पूर्ण शुद्ध देहान्तर, शिव, शान्त, ब्रह्म और लिंगमूर्ति के लिए नमस्कार है ।

आदिमध्यान्तभूताय स्वभावानलदीप्तये ॥

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणेलिङ्गमूर्त्तये ॥ ६० ॥

आदि और मध्य तथा अन्त स्वरूप, स्वभाव अनल की दीप्ति वाले, शिव, शान्त, ब्रह्म और लिंगभूमि वाले के लिए नमस्कार है ।

जटिलाय गिरीशाय विद्याशक्ति धरायते ॥

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिङ्गमूर्तये ॥ ६१ ॥

जटिल अर्थात् जटाजूट वाले, गिरीश, विद्या की शक्ति के धारण करने वाले, शिव, शान्त ब्रह्म और लिंग की मूर्ति वाले आपके लिए नमस्कार है ।

प्रलयार्णवसंस्थाय प्रलय स्थितिहेतवे ॥

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिङ्गमूर्त्तये ॥ ६२ ॥

प्रलय के अन्त में विराजमान, प्रलय और स्थिति के कारण, शिव, शान्त, ब्रह्म और लिंगमूर्ति के लिए नमस्कार है।

यः परेभ्यः परस्तस्मात् पराय परमात्मने ॥

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिङ्गमूर्तये ॥ ६३ ॥

जो परों से भी पर हैं और उससे पर परमात्मा है उसके लिए, शिव, शान्त, ब्रह्म और लिंगमूर्ति के लिए नमस्कार है ।

ज्वाला मालावृताङ्गाय नमस्ते विश्वरूपिणे ।

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिङ्गमूर्त्तये ॥ ६४ ॥

ज्वालाओं की मालाओं से समावृत अंगों वाले, विश्व के रूप वाले, शिव, शान्त ब्रह्म और लिंगमूर्ति आपके लिए प्रणिपात समर्पित है ।

ॐ नमः परमार्थाय ज्ञानदीपाय वेधसे ॥

नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिङ्गमूर्त्तये ॥ ६५ ॥

परमार्थ स्वरूप, ज्ञान के दीप अर्थात् प्रकाश करने वाले, वेधा, शिव, शान्त, ब्रह्म और लिंगमूर्ति आपके लिए ओंकार के सहित नमस्कार है ।

नमो दाक्षायणीकान्त मृड शर्व महेश्वर ॥

नमस्ते सर्व्वभूतेश प्रसीद भगवञ्छिव ॥ ६६ ॥

हे दाक्षायणी के पतिदेव ! हे मृड! हे शर्व ! हे महेश्वर ! हे सब भूतों के ईश ! हे शिव ! हे भगवान् आपको नमस्कार है आप प्रसन्न होइए ।

सशोके त्वयि लोकेशे चेष्टमानेमहेश्वर ॥

सुराः समाकुलाः सर्वे तस्माच्छो कम्परित्यज ॥ ६७ ॥

हे लोकों के स्वामिन्! हे महेश्वर ! आपको शोक के सहित चेष्टा करते हुए होने पर सभी देवगण समाकुल हैं इसलिए आप अब इस शोक का परित्याग कर दीजिए ।

नमो नमस्ते भूतेश सर्व्वकारण कारण ॥

प्रसीद रक्ष नः सर्व्वास्त्यज शोकं नमोऽस्तुते ॥ ६८ ॥

हे भूतों के ईश! आपको नमस्कार है - नमस्कार है । हे सब कारणों के भी कारण ! प्रसन्न होइए। हम सबकी रक्षा करो और शोक का त्याग कर देवें । आपके लिए नमस्कार है ।

॥ इतिश्री कालिकापुराणे त्र्यम्बकस्तवन अष्टादशोध्यायःसम्पूर्णः॥

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