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कर्मकाण्ड

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शनि स्तवन

शनि स्तवन

शनिदेव के इस शनैश्चर स्तवन का पाठ करने से सभी ग्रहबाधा दूर हो जाता है और सभी शोकों का नाश होता है।

शनैश्चर स्तवन

शनैश्चर स्तवन

Shani shanaishchar stavan

॥ देवा ऊचुः ॥

शनैश्वर महाभाग लोकानुग्रहकारक ।

मूलशक्तिसमुद्भूत नमस्ते सूर्य्यसम्भव ॥ १३ ॥

देवगण ने कहा- हे महान् भाग्य वाले! हे शनैश्चर देव ! आप तो लोकों पर अनुग्रह करने वाले हैं। मूलशक्ति से समुत्पन्न होने वाले ! आपका जन्म तो सूर्यदेव से ही हुआ है। आपके लिए हमारा नमस्कार समर्पित है ।

नमस्ते शूलहस्तायपाशहस्ताय धन्विने ।

तथा वरदहस्ताय नमश्छायात्मजायते ॥ १४ ॥

हाथ में शूल धारण करने वाले, पाश को धारण करने वाले और धनुर्धारी आपको नमस्कार है । आपका हस्त वरदान देने वाला है और अन्य तम की छाया के आत्मज हैं- ऐसे आपको नमस्कार है ।

नीलमेघ प्रतीकाश भिन्नाञ्जनचयोपम ।

नमस्ते सर्व लोकानां प्राणधारण हेतवे ॥ १५ ॥

हे नील मेघ के सदृश! आप पिसे हुए अञ्जन के तुल्य हैं । समस्त लोकों के प्राणों के धारण करने में कारणस्वरूप आपके लिए प्रणाम । आपको नमस्कार होवे ।

गृध्रध्वज नमस्तेऽस्तु प्रसीद भवगन्दृढम् ।

वाष्पेभ्यःशोक जेभ्यश्च पाहि भर्गस्यनः क्षितिम् ॥१६॥

हे भगवान्! आप शीघ्रतापूर्वक प्रसन्न हो जाइए। भगवान् शम्भु के शोक से समुत्पन्न हुए वाष्पों आँसुओं से हमारी इस पृथ्वी की रक्षा करो।

यथा पुरा शतवर्षा नवजग्राहवर्षणम् ।

भवानेव तु मेघेभ्यस्तथा कुरुहराम्बुनि ॥ १७ ॥

जिस प्रकार से पुरातन समय में वर्षों तक वृष्टि का अवरोध किया था और आप ही ने मेघों से होने वाली वृष्टि को रोक दिया था अब उसी भाँति भगवान् हर के शोक के गिरे हुए वाष्पों के जल में भी कीजिए। अर्थात् इस आँसुओं के जल को भी रोक दीजिए।

तवचापांग्रहं दृष्ट्वामेघास्ते पुष्करादयः ।

मुमुचुः सतत वर्ष महेन्द्रस्य किलाज्ञया ॥ १८ ॥

आपके द्वारा जलों का ग्रहण करना देखकर पुष्कर आदि उन मेघों ने महेन्द्र की आज्ञा से निरन्तर वर्षा को छोड़ा था अर्थात् सतत वृष्टि करते रहे थे ।

आकाश एव वर्षाम्भस्तत् सर्वं भवतापुरा ।

विनाशित यथा वाष्पन्तथा नाशय शूलिनः ॥ १९ ॥

आपने पहले पूर्व समय में उस सम्पूर्ण वर्षा के जल को आकाश ही में विनष्ट कर दिया था। अब उसी भाँति भगवान् शिव के आँसुओं के जल को भी नष्ट करने के लिए प्रयत्न कीजिए ।

नत्वामृतेन्यः शक्तोऽस्ति हरवाष्पनिवारणे ।

दहेत् सदेवगन्धर्व्वब्रह्मलोकान्त्सपर्व्वतान् ।

पृथिवीं पतितो वाष्पस्तस्माद्धारय मायया ॥२०॥

भगवान् शिव के वाष्पों के निवारण करने के कार्य से अन्य कोई भी आपके बिना सामर्थ्य रखने वाला नहीं है। यह शिव के शोक से समुत्पन्न आँसुओं का जल देव गन्धर्वों के सहित तथा पर्वतों के सहित ब्रह्मलोकों का दाह कर देगा। ऐसी ही इन आँसुओं के जल में दाहकशक्ति विद्यमान है। वह वाष्पों का जल इस भूमण्डल में गिरा है इसलिए आप अपनी माया से इनको धारण करो ।

॥ इतिश्री कालिकापुराणे शनिस्तवन अष्टादशोध्यायःसम्पूर्णः॥

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