श्रीहरि विष्णु स्तवन

श्रीहरि विष्णु स्तवन

ब्रह्माजी के पुत्र वशिष्ठ जी ने संध्या को इस श्रीहरि विष्णु स्तवन और विष्णु मन्त्र दीक्षा दी थी ।

वशिष्ठकृतं श्रीहरि विष्णु स्तवन

वशिष्ठकृतं श्रीहरि विष्णु स्तवन 

Shri hari vishnu stavan

॥ वसिष्ठ उवाच ॥

परमयो महत्तेजः परमयो महत्तपः॥

परमोयः समाराध्यो विष्णुर्म्मनसि धीयताम् ॥ २९॥

वशिष्ठ मुनि ने कहा- जो महान् तेज परम है, जो परम महान् तप है, जो परम समाराधना करने के योग्य है उन भगवान विष्णु को ही अपने मन में धारण करिए।

धर्मार्थकाममोक्षाणा य एकस्त्वादिकारणम् ॥

तमेकञ्जगतामाद्यम्भजस्व पुरुषोत्तमम् ॥ ३० ॥

जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन परम पुरुषाथों का एक ही आदि कारण है उन जगतों के आद्य पुरुषोत्तम प्रभु का यजन करो।

शङ्खचक्रगदापद्मधरङ्कमल लोचनम् ॥

शुद्धस्फटिकसङ्काशं क्वचिन्नीलाम्बुदछविम् ॥ ३१ ॥

जो भगवान विष्णु शंख, चक्र, गदा और पद्म को धारण करने वाले हैं और उनके लोचन कमलों के ही समान परम सुन्दर हैं उनका वर्ण शुद्ध स्फटिक के तुल्य है और कहीं पर उनकी छवि नीले मेघ के सदृश ही है।

गरुडोपरि शुक्लाब्जे पद्मासनगतं हरिम् ॥

श्रीवत्सवक्षसं शान्त वनमालाधरम्परम्॥ ३२ ॥

गरुड़ के ऊपर शुक्ल कमल पर पद्मासन से विराजमान, वक्ष स्थल में श्रीवत्स चिह्न वाले, परमशान्त और वनमाला के धारी, हरि का भजन करो।

केयूरकुण्डलधर्राङ्किरीट मुकुटोज्ज्वलम् ॥

निराकारञ्ज्ञानगम्यं साकारं देहधारिणम् ॥३३॥

नित्यानन्दन्निरालम्बं सूर्य मण्डलमध्यगम् ॥

मन्त्रेणानेन देवेशव्विँष्णुम्भज शुभानने॥ ३४ ॥

जो केयूर और कुण्डलों को पहिने हुए हैं, जो किरीट और मुकुट से समुज्ज्वल हैं, जो बिना आकार वाले केवल ज्ञान द्वारा ही जानने योग्य हैं, जो आकार के सहित देवधारी हैं, नित्य आनन्दस्वरूप, बिना अवलम्बन वाले और सूर्य मण्डल के मध्य में संस्थित हैं ऐसे देवेश्वर विष्णु की इस मन्त्र के द्वारा ही हे शुभआनन वाली! आप यजन करो।

इति कालिकापुराणे द्वाविंशोऽअध्यायान्तर्गतं वशिष्ठकृतं श्रीहरि विष्णु स्तवन सम्पूर्णम् ।

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