Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2023
(355)
-
▼
August
(30)
- अप्रतिरथ सूक्त
- शिवसंकल्प सूक्त
- कालिका पुराण अध्याय ४५
- कालिका पुराण अध्याय ४४
- शिव स्तुति
- शिव स्तुति
- कालिका पुराण अध्याय ४३
- कालिका पुराण अध्याय ४२
- कालिका पुराण अध्याय ४१
- कालिका स्तुति
- कालिका पुराण अध्याय ४०
- अग्निपुराण अध्याय ७०
- अग्निपुराण अध्याय ६९
- अग्निपुराण अध्याय ६८
- अग्निपुराण अध्याय ६७
- अग्निपुराण अध्याय ६६
- कालिका पुराण अध्याय ३९
- कालिका पुराण अध्याय ३८
- कालिका पुराण अध्याय ३७
- अग्निपुराण अध्याय ६५
- अग्निपुराण अध्याय ६४
- अग्निपुराण अध्याय ६३
- अग्निपुराण अध्याय ६२
- अग्निपुराण अध्याय ६१
- कालिका पुराण अध्याय ३६
- हरिस्तोत्र
- कालिका पुराण अध्याय ३५
- अग्निपुराण अध्याय ६०
- अग्निपुराण अध्याय ५९
- अग्निपुराण अध्याय ५८
-
▼
August
(30)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
शिव स्तुति
कालिका पुराण
मे वर्णित पार्वती द्वारा की गई इस शिव स्तुति को नित्य सुनने अथवा पढ़ने वाला, इच्छित वर प्राप्तकर,
शिव का प्रिय होकर चिरकाल तक शिवलोक को प्राप्त करता है ।
कालिकापुराणांतर्गत शिव स्तुति:
।।
पार्वत्युवाच ।।
नमस्ते जगतां
नाथ नमस्ते केशवाव्यय ।
प्रधानपुरुषातीत
कारणत्रयकारण ।। ८५ ।।
पार्वती बोली-
हे जगत् के स्वामी, हे केशव, हे अव्यय, प्रधान और पुरूष से भी परे, तीनों ही कारणों के कारण, आपको नमस्कार है ।। ८५ ।।
योगमोहमनोराग धर्माधर्ममयस्तथा
।
विद्याविद्यास्वरूपश्च
शाम्भवः काय एष ते ।। ८६ ।।
आपका यह शिव
शरीर,
योग, मोह, मानसिक राग, धर्म-अधर्ममय तथा विद्या और अविद्या का स्वरूप है ॥८६॥
त्वं निःश्रेयः
श्रेयसा युज्यमानो
दृश्योऽदृश्यो
योगमूर्तिर्मनीषी ।
सम्यक् श्रद्धा
पौरुषे तत्त्वरूपं
त्वं वै
ज्योतिः शान्तिरूपं पुरस्तात् ॥८७।।
आप ही श्रेय
से युक्त और निश्रेयस हैं, आप दृश्य, अदृश्य भी हैं। आप योगस्वरूप मनीषी,
सम्यक् श्रद्धा और पुरुषार्थ से युक्त तत्वरूप हैं। आप
अग्रगामी शान्तिरूप, ज्योतिरूप हैं ॥ ८७॥
ब्रह्मा विष्णुस्त्वं
हरस्त्वं महेन्द्रः
सूर्य: सोमो
वायुरग्निर्धनेशः ।
त्वं तोयेश: शमनो
राक्षसश्च
शेषस्त्वत्तो विद्यते
कोऽपि नास्मिन् ।। ८८ ।।
ब्रह्मा,
विष्णु, शिव, महेन्द्र, सूर्य, सोम (चन्द्रमा), वायु, अग्नि, धनेश (कुबेर), तोयेश (वरुण), शमन (यम), राक्षस (निॠती) आप ही हैं। आप से अतिरिक्त यहाँ कोई नहीं है
॥८८॥
त्वं भूमिर्द्यौर्द्युसदां
चापि पन्था-
स्त्वं
स्थावरो जङ्गमो भूर्वलस्थ: ।
ज्ञानं ज्ञेयं
ध्यानगम्यं च तत्त्वं
परात्परं व्यक्तरूपं
परेषाम् ।।८९।।
आप भूमि,
आकाश, आकाश में रहने वालों के मार्ग भी आप हैं। पृथिवी वलय में
स्थित जो भी स्थावर जङ्गम है, वह आप ही हैं, आप ही ज्ञान की क्रिया तथा उसके द्वारा जाने-जाने वाले विषय
हैं। ध्यान द्वारा जाना जाने वाला, श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ, दुर्लभ तत्वों में भी व्यक्ततत्व आप ही हैं ॥ ८९ ॥
त्वं पुरुष:
परमात्मा प्रधानं
त्वं हि
ज्यायानागमो ज्ञानगम्यः ।
भावः कृत्यं
पञ्चरूपी समस्तै-
रासाद्यस्ते गोचरास्तद्भवाय
।। ९० ।।
आप
प्रधानपुरुष परमात्मा हैं। क्योंकि आपही महान् आगमों के ज्ञान द्वारा जाने
जानेवाले हैं। जो भी इन्द्रिय से जाने-जानेयोग्य है, वह आप से ही उत्पन्न है ॥९०॥
कीर्तिः कीर्त्यः
स्तुत्यरूपी स्तुतिश्च
द्रष्टा दृश्य:
स्थैर्यधृक् स्थावरश्च ।
नित्योऽनित्यो
मुक्तयोगो वियोगो
दानादाने भेदसामप्रयोगः
।। ९१ ।।
कीर्ति और
कीर्तिमान, स्तुति और स्तुतियोग्य, देखने वाले एवं देखे जाने वाले,
स्थिरता को धारण करने वाले और नित्य-अनित्य,
योगों से मुक्ति लाभ पाने वाले तथा वियोगी,
बिना दान के भी दान, साम प्रयोगों के साथ भेद आप ही हैं॥९१॥
नीतिर्नेयो दीक्षितो
दक्षिणाश्च
सारात् सार: संविधाता
विधेयः ।
आर्योऽनार्यो रूपधृग्रूपहीनो
दिव्यो देवो मानुषोऽमानुषश्च
।। ९२ ।।
आप ही नीति
तथा नीति की उपलब्धि, दीक्षित और दक्षिणा, सारतत्व के सारभूत, संविधानकर्त्ता तथा उसके कर्म,
श्रेष्ठ, हीन, रूपवान (साकार), रूपहीन (निराकार), दिव्य, देव, मनुष्य और मनुष्येतर सब कुछ आप ही हैं ।। ९२ ।।
सृज्य:
स्रष्टा पालक: पाल्यरूप-
श्चेता चेयो नोर्मियुक्तस्तथोर्मिः
।
विद्याविद्यावेदवादैकरूपो
रूपारूपस्तीक्ष्णसौम्यैकरूपः।।
९३ ।।
बनाये जाने
वाले तथा बनाने वाले, पालनकर्ता और पालित, चयन कर्ता एवं चयनित, तरंगित एवं तरंगहीन (स्थिर), विद्या अविद्या, वेद-वाद, एकरूप, रूप-अरूप, तीक्ष्ण (उग्र)-सौम्य रूप आप ही हैं ॥ ९३ ॥
भावाभावः शोभनः
शुद्धरूपी
शश्वद्दान्तः शान्तिरूग्रा
मुनीनाम् ।
द्वन्द्वोऽद्वन्द्व:
सर्वगोऽसर्वगश्च
भ्रान्तोऽ
भ्रान्तः सिद्धसिद्धिप्रदश्च ।। ९४ ।।
आप भाव- अभाव,
सुन्दर, शुद्धरूप, निरन्तरदान्त (दमन शील), शान्ति, उग्र, द्वन्द्व- अद्वन्द्व, सर्वत्रगामी, असर्वग (निश्चल) भ्रान्तिग्रस्त,
भ्रान्तिहीन, सब बन जानेवाले, सब प्रकार के मुनियों को उनकी आंकाक्षा के अनुरूप
सिद्धि-असिद्धि प्रदान करने वाले हैं ।। ९४॥
एकस्थस्त्वं सर्वगोप्ता
सुदेहो
निर्देहस्त्वं
देह एक: सुराणाम् ।
स्थूलः सूक्ष्मो
निर्विकारः शरीरी
विश्वात्मा
त्वं नास्ति भिन्नो भवत्तः ।। ९५ ।।
आप अकेले ही
सुन्दर देह धारण किये या बिना देह के (निराकार) सभी देवों में एक मात्र देहरूप,
स्थूल एवं सूक्ष्म, विकारों से रहित, शरीरधारी, सबकी आत्मा हैं। आप से भिन्न कुछ भी नहीं है ।। ९५ ।।
कार्याकार्ये यस्य
रूपे समस्ते
व्याप्याव्याप्ये
भोगहीनोऽतिपूर्णः ।
योगज्ञानस्थात्मकं
यस्य नित्यं
रूपं यस्य
श्रीद तस्मै नमस्ते ।। ९६ ।।
कार्य-अकार्य,
व्याप्य-अव्याप्य, अखण्ड तथा भोगहीन, अत्यन्तपूर्ण, योगज्ञान में स्थित आत्ममय, श्रीदायी, नित्य, सभी जिसके रूप हैं, उन आपको नमस्कार है ॥९६॥
प्रधानपुंसोरपि
यो विधाता
यः कालरूपी
पुरुष: परेशः ।
तमीशमुग्रं वरदं
वरेण्यं
नमामि चिन्नीतिवितानकं
त्वाम् ।। ९७ ।।
आप जो प्रधान
और पुरुष के भी रचयिता, कालरूपी, परम ईश्वर हैं, उस वरदायक, पूजनीय, ईश्वर, उग्र (शिव) को जो चित् और नीति दोनों के ही प्रस्तुतकर्ता
हैं,
मैं नमस्कार करती हूँ ॥ ९७ ॥
अक्षयो
योऽव्ययः साक्षी क्षेत्रज्ञः क्षेत्रधृग्वरः ।
तस्मै नमस्ते
विश्वात्मन् वृषध्वज महेश्वर ।। ९८ ।।
जो अक्षय,
अव्यय, साक्षी, क्षेत्र को जाननेवाले तथा उसको श्रेष्ठतापूर्वक धारण करने
वाले,
विश्वात्मरूप, महेश्वर, वृषध्वज हैं, उनको नमस्कार है ॥ ९८ ॥
ज्ञानामृतविनिस्यन्दि
यस्य चिच्चन्द्रमाः सदा ।
तद्रूपमेकं यं
ज्ञेयं भक्तिमात्रं नमोऽस्तु ते ।। ९९ ।।
जिनके चित्त
रूपी चन्द्रमा से सदैव ज्ञान रूप अमृत, विशेष रूप से झरता रहता है, उन एकमात्र, केवल भक्ति से ही जाने-जाने योग्य शिव को नमस्कार है ।। ९९
।।
॥ इति श्रीकालिकापुराणे शिवस्तुर्तिनाम पञ्चचत्वारिंशोध्यायः ॥
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: