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अग्निपुराण अध्याय ६२
अग्निपुराण
अध्याय ६२ लक्ष्मी आदि देवियों की प्रतिष्ठा की सामान्य विधि का वर्णन
है।
अग्निपुराणम् अध्यायः ६२
Agni puran chapter 62
अग्निपुराण बासठवाँ अध्याय
अग्नि पुराण अध्याय ६२
अग्निपुराणम् अध्यायः ६२- लक्ष्मीप्रतिष्ठाविधिः
भगवानुवाच
समुदायेन
देवादेः प्रतिष्ठां प्रवदामि ते।
लक्ष्म्याः
प्रतिष्ठां प्रथमं तथा देवीगणस्य च ।। १ ।।
पूर्ववत् सकलं
कुर्य्यान्मण्डपस्नपनादिकम् ।
भद्रपीठेश्रियं
न्यस्य स्थापयेदष्ट वै घटा ।। २ ।।
घृतेनाभ्यज्य
मूलेन स्नपयेत् पञ्चगव्यकैः।
हिरण्यवर्णां
हरिणी नेत्रे चोन्मीलयेच्छ्रियाः ।। ३ ।।
तन्म आवह
इत्येवं प्रदद्यान्मधुरत्रयम्।
अश्वपूर्वेति
पूर्वेण तां कुम्भेनाभिषेचयेत् ।। ४ ।।
कामोस्मितेति
याम्येन पश्चिमेनाभिषेचयेत्।
चन्द्रं
प्रभासामुच्चार्य्याद्त्यवर्णेति चोत्तरात् ।। ५ ।।
श्रीभगवान्
कहते हैं - अब मैं सामूहिकरूप से देवता आदि की प्रतिष्ठा का तुमसे वर्णन करता हूँ।
पहले लक्ष्मी की, फिर अन्य देवियों के समुदाय की स्थापना का वर्णन करूँगा।
पूर्ववर्ती अध्यायों में जैसा बताया गया है, उसके अनुसार मण्डप अभिषेक आदि सारा कार्य करे। तत्पश्चात्
भद्रपीठ पर लक्ष्मी की स्थापना करके आठ दिशाओं में आठ कलश स्थापित करे। देवी की
प्रतिमा का घी से अभ्यञ्जन करके मूल मन्त्र द्वारा पञ्चगव्य से उसको स्नान करावे।
फिर 'हिरण्यवर्णां हरिणीम् ० " इत्यादि मन्त्र से लक्ष्मीजी के दोनों नेत्रों का उन्मीलन
करे। 'तां म आवह०" इत्यादि मन्त्र पढ़कर देवी के लिये मधु,
घी और चीनी अर्पित करे। तत्पश्चात् 'अश्वपूर्वाम्०" इत्यादि मन्त्र से पूर्ववर्ती कलश के जल द्वारा श्रीदेवी का
अभिषेक करे। 'कां सोऽस्मिताम् ०" इस मन्त्र को पढ़कर दक्षिण कलश से 'चन्द्रां प्रभासाम्०'
इत्यादि मन्त्र का उच्चारण करके पश्चिम कलश से तथा 'आदित्यवर्णे० '
इत्यादि मन्त्र बोलकर उत्तरवर्ती कलश से देवी का अभिषेक करे
॥ १-५ ॥
उपैतु मेति
चाग्नेयात् क्षुत्पिपासेति नैर्ऋतात्।
गन्धद्वारेति
वायव्यां मनसः कममाकृतिम् ।। ६ ।।
ईशानकलशेनैव
शिरः सौवर्णकर्द्दमात्।
एकाशीतिघटैः
स्नानं मन्त्रेणापः सृजन् क्षितिम् ।। ७ ।।
'उपैतु माम्०" इत्यादि मन्त्र का उच्चारण करके आग्नेय कोण के कलश से,
'क्षुत्पिपासामलाम्-'
इत्यादि मन्त्र बोलकर नैर्ऋत्यकोण के कलश से 'गन्धद्वारां दुराधर्षाम्०" इत्यादि मन्त्र को पढ़कर वायव्यकोण के तथा 'मनसः काममाकूतिम् ०" इत्यादि मन्त्र कहकर ईशानकोणवर्ती कलश से लक्ष्मीदेवी का
अभिषेक करे। 'कर्दमेन प्रजा भूता" इत्यादि मन्त्र से सुवर्णमय कलश के जल से देवी के मस्तक का
अभिषेक करे। तदनन्तर 'आपः सृजन्तु० " इत्यादि मन्त्र से इक्यासी कलशों द्वारा श्रीदेवी की प्रतिमाको
स्नान करावे ॥ ६-७ ॥
आद्र्द्रां
पुष्करिणीं गन्धैराद्र्द्रामित्यादिपुष्पकैः।
तन्मयावह
मन्त्रेण य आनन्द ऋ चाखिलम् ।। ८ ।।
तत्पश्चात्
(श्री-प्रतिमा को शुद्ध वस्त्र से पोंछकर सिंहासन पर विराजमान करे और वस्त्र आदि समर्पित
करने के बाद) 'आर्द्रा पुष्करिणीम् ०" इस मन्त्र से गन्ध अर्पित करे। 'आर्द्रा यः करिणीम्०" आदि से पुष्प और माला चढ़ाकर पूजा करे। इसके बाद 'तां म आवह जातवेदो० " इत्यादि मन्त्र से और 'आनन्द'
इत्यादि श्लोक से अखिल उपचार अर्पित करे ॥ ८ ॥
*
इन सभी मंत्रों के लिए श्रीसूक्त का अवलोकन करें।
शायन्तीयेन
शय्यायां श्रीसूक्तेन च सन्निधिम्।
लक्ष्मीवीजेन
चिच्छक्तिं विन्यस्याभ्यर्चयेत् पुनः ।। ९ ।।
श्रीसूक्तेन
मण्डपेथ कुण्डेष्वब्जानि होमयेत्।
करवीराणि वा
हत्वा सहस्रं शतमेव वा ।। १० ।।
गृहोपकरणान्तादि
श्रीसूक्तेनैव चार्पयेत्।
ततः प्रासादसंस्कारं
सर्वं कृत्वा तु पूर्ववत् ।। ११ ।।
मन्त्रेण
पिण्डिकां कृत्वा प्रतिष्ठानं ततः श्रियः ।
श्रीसूक्तेन च
सान्निध्यं पूर्ववत् प्रत्यृचं जपेत् ।। १२ ।।
'श्रायन्ती०'
आदि मन्त्र से श्री प्रतिमा को
शय्या पर शयन करावे। फिर श्रीसूक्त से संनिधीकरण करे
और लक्ष्मी (श्री) बीज (श्रीं) से चित्-शक्ति का विन्यास करके पुनः अर्चना करे।
इसके बाद श्रीसूक्त से मण्डपस्थ कुण्डों में कमलों अथवा करवीर – पुष्पों का
हवन करे। होमसंख्या एक हजार या एक सौ होनी चाहिये। गृहोपकरण आदि समस्त पूजन
सामग्री आदितः श्रीसूक्त के मन्त्रों से ही समर्पित करे। फिर पूर्ववत्
पूर्णरूप से प्रासाद- संस्कार सम्पन्न करके माता लक्ष्मी के लिये पिण्डिका निर्माण
करे। तदनन्तर उस पिण्डिका पर लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करके श्रीसूक्त से
संनिधीकरण करते हुए, पूर्ववत् उसकी प्रत्येक ऋचा का जप करे ॥ ९-१२ ॥
चिच्छक्तिं
बोधयित्वा तु मूलात् सान्निध्यकं चरेत्।
भूस्वर्णवस्त्रगोन्नादि
गुरवे ब्रह्मणेर्पयेत्।
एवं
देव्योऽखिलाः स्थाप्यावाह्य स्वर्गादि भावयेत् ।। १३ ।।
मूल मन्त्र से
चित्-शक्ति को जाग्रत् करके पुनः संनिधीकरण करे। तदनन्तर आचार्य और ब्रह्मा तथा
अन्य ऋत्विज ब्राह्मणों को भूमि, सुवर्ण, वस्त्र, गौ एवं अन्नादि का दान करे। इस प्रकार सभी देवियों की
स्थापना करके मनुष्य राज्य और स्वर्ग आदि का भागी होता है ॥ १३॥
इत्यादिमहापुराणे
आग्नेये लक्ष्मीस्थापनं नाम द्विषष्टितमोऽध्यायः ।
इस प्रकार आदि
आग्नेय महापुराण में 'लक्ष्मी आदि देवियों की प्रतिष्ठा के सामान्य विधान का
वर्णन'
नामक बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ६२ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 63
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