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अग्निपुराण अध्याय ७०
अग्निपुराण
अध्याय ७० में वृक्षों की प्रतिष्ठा की विधि का वर्णन है।
अग्निपुराणम् अध्यायः ७०
Agni puran chapter 70
अग्निपुराण सत्तरवाँ अध्याय
अग्नि पुराण अध्याय ७०
अग्निपुराणम् अध्यायः ७०- वृक्षादि प्रतिष्ठाप्रकरणं
भगवानुवाच
प्रतिष्ठां
पादपानाञ्च वक्ष्येऽहं भुक्तिमुक्तिदां ।
सर्वौषध्युदकैर्लिप्तान्
पिष्टातकविभूषितान् ॥०१॥
वृक्षान्माल्यैरलङ्कृत्य
वासोभिरभिवेष्टयेत् ।
सूच्या
सौवर्णया कार्यं सर्वेषां कर्णवेधनम् ॥०२॥
हेमशलाकयाञ्जनञ्च
वेद्यान्तु फलसप्तकम् ।
अधिवासयेच्च
प्रत्येकं घटान् बलिनिवेदनं ॥०३॥
इन्द्रादेरधिवासोऽथ
होमः कार्यो वनस्पतेः ।
वृक्षमध्यादुत्सृजेद्गां
ततोऽभिषेकमन्त्रतः ॥०४॥
ऋग्यजुःसाममन्त्रैश्च
वारुणैर्मङ्गलै रवैः ।
वृक्षवेदिककुम्भकैश्च
स्नपनं द्विजपुङ्गवाः ॥०५॥
तरूणां
यजमानस्य कुर्युश्च यजमानकः ।
भूषितो
दक्षिणां दद्याद्गोभूभूषणवस्त्रकं ॥०६॥
क्षीरेण भोजनं
दद्याद्यावद्दिनचतुष्टयं ।
होमस्तिलाद्यैः
कार्यस्तु पलाशसमिधैस्तथा ॥०७॥
आचार्ये
द्विगुणं दद्यात्पूर्ववन्मण्डपादिकम् ।
पापनाशः परा
सिद्धिर्वृक्षारामप्रतिष्ठया ॥०८॥
स्कन्दायेशो
यथा प्राह प्रतिष्ठाद्यं तथा शृणु ।
सूर्येशगणशक्त्यादेः
परिवारस्य वै हरेः ॥०९॥
श्रीभगवान्
कहते हैं—
ब्रह्मन् ! अब मैं वृक्षप्रतिष्ठा का वर्णन करता हूँ,
जो भोग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली है। वृक्षों को
सर्वोषधिजल से लिप्त, सुगन्धित चूर्ण से विभूषित तथा मालाओं से अलंकृत करके
वस्त्रों से आवेष्टित करे। सभी वृक्षों का सुवर्णमयी सूची से कर्णवेधन तथा
सुवर्णमयी शलाका से अञ्जन करे। वेदिका पर सात फल रखे। प्रत्येक वृक्ष का अधिवासन
करे तथा कुम्भ समर्पित करे। फिर इन्द्र आदि दिक्पालों के उद्देश्य से बलि प्रदान
करे। वृक्ष के अधिवासन के समय ऋग्वेद, यजुर्वेद या सामवेद के मन्त्रों से अथवा वरुणदेवता-
सम्बन्धी तथा मत्तभैरव -सम्बन्धी मन्त्रों से होम करे। श्रेष्ठ ब्राह्मण वृक्षवेदी
पर स्थित कलशों द्वारा वृक्षों और यजमान को स्नान करावें । यजमान अलंकृत होकर
ब्राह्मणों को गो, भूमि, आभूषण तथा वस्त्रादि की दक्षिणा दे तथा चार दिन तक
क्षीरयुक्त भोजन करावे। इस कर्म में तिल, घृत तथा पलाश- समिधाओं से हवन करना चाहिये। आचार्य को
दुगुनी दक्षिणा दे। मण्डप आदि का पूर्ववत् निर्माण करे। वृक्ष तथा उद्यान की
प्रतिष्ठा से पापों का नाश होकर परम सिद्धि की प्राप्ति होती है। अब सूर्य,
शिव, गणपति, शक्ति तथा श्रीहरि के परिवार की प्रतिष्ठा की विधि सुनिये,
जो भगवान् महेश्वर ने कार्तिकेय को बतलायी थी ॥ १-९ ॥
इत्यादिमाहापुराणे
आग्नेये पादपारामप्रतिष्ठाकथनं नाम सप्ततितमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि
आग्नेय महापुराण में 'पादप-प्रतिष्ठा विधिवर्णन' नामक सत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ७० ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 71
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