recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

मयमतम् अध्याय १

मयमतम् अध्याय १

असुरराज मय दानव द्वारा इस वास्तुशास्त्र मयमतम् ग्रंथ की रचना की गई है।‌ इसका प्रथम अध्याय संग्रहाध्याय है। इस अध्याय १ का प्रारम्भ मङ्गलाचरण से होता है। इसमें सम्पूर्ण ग्रन्थ के वर्ण्य विषय का उल्लेख प्राप्त होता है।

मयमतम् अध्याय १

मयमतम् अध्याय १

Mayamatam chapter 1

मयमतम् प्रथम अध्याय

मयमतम्‌वास्तुशास्त्र

मयमत अध्याय १- संग्रहाध्याय

दानवराजमयप्रणीतं मयमतम्‌

अथ प्रथमोऽध्यायः

अथ प्रथमोऽध्यायः

(संग्रहाध्यायः)

मङ्गलाचरणम्

प्रणम्य शिरसा देवं सर्वज्ञ जगदीश्वरम् ।

तं पृष्ट्‌वास्मादलं श्रुत्वा शास्ति शास्त्रं यथाक्रमम् ॥१॥

सर्वस्व के ज्ञाता, संसार के स्वामी देवता को सिर झुका कर प्रणाम करने के पश्चात् मैं (मय) ने उनसे (वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित) प्रश्न किया एवं उनसे पर्याप्त शास्त्र-श्रवण करने के पश्चात् क्रमानुसार उस शास्त्र का उपदेश करता हूँ ॥१॥

तैतिलानां मनुष्याणां वस्त्वादीनां सुखोदयम् ।

प्राज्ञो मुनिर्मयः कर्त्ता सर्वेषां वस्तुलक्षणम् ॥२॥

देवों एवं मनुष्यों के सभी प्रकार के वास्तु आदि (भूमि, भवन एवं उपस्कर आदि) के विद्वान स्थपति मय मुनि सुख प्रदान करने वाले सभी प्रकार के वास्तु के लक्षण का उपदेश करते हैं ॥२॥

मयमतम् अध्याय १-ग्रन्थविषयसूचना

आदौ वस्तुप्रकारं च भूपरीक्षापरिग्रहम् ।

मानोपकरणं चैव शङ्कुस्थापनमार्गकम् ॥३॥

वास्तुकार्य के प्रारम्भिक चरण में प्रथमतः ध्यातव्य तथ्य है - सर्वप्रथम भूमि एवं भवन के प्रकार (भेदों) का ज्ञान, तत्पश्चात् भूमि के गूण-दोषों की परीक्षा । उपयुक्त भूमि के चयन के पश्चात् उसका मापन एवं इसके पश्चात् भूमि में शङ्कु की स्थापना की जाती है ॥३॥

सपदं सुरविनयसं बलिकर्मविधिं तथा ।

ग्रामादीनां च विन्यासं लक्षणं नगरादिषु ॥४॥

इसके पश्चात भूमि में वास्तुपद का विन्यास किया जाता है एवं पदों में वास्तुदेवों की स्थापना की जाती है । वास्तुदेवों का बलिकर्म विधि (किस देवता की पूजा किस सामग्री से की जाय, यही बलिकर्म विधि है) से पूजन किया जाता है । तत्पश्चात् नगर आदि में विविध प्रकार के ग्रामों का लक्षण एवं उनके विन्यास का वर्णन किया गया है (इसी भाँति नगर-योजना पर भी विचार किया गया है) ॥४॥

भूलम्बस्य विधानं च गर्भविन्यासलक्षणम् ।

उपपीठविधं चैवाधिष्ठानानाम तु लक्षणम् ॥५॥

इसके पश्चात इस ग्रन्थ में भूलम्ब (गृह के तल), गर्भ-विन्यास, उपपीठ एवं गृह के अधिष्ठान के लक्षणों का वर्णन किया गया है ॥५॥

स्तम्भानां लक्षणं चैव प्रस्तारस्य विधिक्रमम् ।

सन्धिकर्मविधानं च शिखरणां तु लक्षणम् ॥६॥

भवननिर्माण के प्रसङ्ग में स्तम्भों का लक्षण, गृह की प्रस्तारविधि, भवन के विभिन्न अङ्गों की आपस में सन्धिं एवं भवन के शिखरों के लक्षण वर्णित है ॥६॥

एकभूमिविधानं च द्वितलस्य तु लक्षणम् ।

त्रितलस्य विधानं च चतुर्भूम्यादिलक्षणम् ॥७॥

भवन के तलों के प्रसङ्ग में (विशेषतः मन्दिरनिर्माण में) एक तल का विधान, दूसरे तल का विधान, तीसरे तल का विधान एवं चतुर्थ तल आदि का विधान लक्षणों-सहित वर्णित है ॥७॥

ससालं परिवाराणां गोपुराणां तु लक्षणम् ।

मण्डपादिविधिं चैव शालानां चैव लक्षणम् ॥८॥

देवालय के सेवकों के आवास, गोपुर (मन्दिर का प्रवेश-मार्ग), मण्डपादिकों का विधान एवं शालाओं का लक्षण प्राप्त होता है ॥८॥

गृहविन्यासमार्ग च गृहवेशनमेव च ।

राजवेश्मविधानं च द्वारविन्यासलक्षणम् ॥९॥

इसके पश्चात् गृह-विन्यास-मार्ग, गृहप्रवेश, राजगृह का विधान एवं द्वारविन्यास का लक्षण वर्णित है ॥९॥

यानानां शयनानां च लक्षणं लिङ्गलक्षणम् ।

पीठस्य लक्षणं सम्यगनुकर्मविधिं तथा ॥१०॥

तदनन्तर यान के लक्षण, शयन के लक्षण, लिङ्ग (देवलिङ्ग) एवं उनके पीठ के लक्षण एवं उसके अनुरूप उचित कर्म की विधि वर्णित है ॥१०॥

प्रतिमालक्षणं देवदेवीनां मानलक्षणम् ।

चक्षुरुन्मीलनं चैव संक्षिप्याह यथाक्रमम् ॥११॥

देवालय के प्रसङ्ग में मूर्ति के लक्षण, देवता एवं देवियों के प्रमाण का लक्षण, नेत्रों के उन्मीलन की विधि क्रमानुसार संक्षेप में वर्णित है ॥११॥

मयमतम् अध्याय १- ग्रन्थप्रामाण्यकथनम्

पितामहाद्यैरमरैर्मुनीश्वरै-

र्यथा यथोक्तं सकलं मयेन तत् ।

तथा तथोक्तं सुधियां दिवौकसां

नृणां च युक्त्याखिलवस्तुलक्षणम् ॥१२॥

ब्रह्मा आदि देवों ने एवं श्रेष्ठ मुनियों ने जिस प्रकार विद्वानों, देवों एवं मनुष्यों के सम्पूर्ण भवनलक्षणों का उपदेश किया है, उसी प्रकार मय ऋषि ने उन सभी लक्षणों का वर्णन प्रस्तुत किया है ॥१२॥

इति मयमते वास्तुशास्त्रे संग्रहाध्यायः प्रथमः॥

आगे जारी- मयमतम् अध्याय 2

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]