recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

मयमतम् अध्याय ३

मयमतम् अध्याय ३

मयमतम् अध्याय ३ भूपरीक्षा - इस अध्याय में भूमि के प्रशस्त एवं अप्रशस्त लक्षणों का वर्णन किया गया है। इसमें आकृति, गन्ध, वृक्षादि, रंग, रस, जलप्रवाह, मिट्टी के प्रकार, भूमि से प्राप्त होने वाली वस्तुयें, भूमि के समीप स्थित देवालय आदि, परिवेश आदि पर सूक्ष्म विवेचन प्राप्त होता है।

मयमतम् अध्याय ३

मयमतम् अध्याय ३ 

Mayamatam chapter 3

मयमतम् तृतीयोऽध्यायः

मयमतम्‌वास्तुशास्त्र

मयमत अध्याय ३- भूमीपरीक्षा

दानवराजमयप्रणीतं मयमतम्‌

अथ तृतीयोऽध्यायः

(भूपरीक्षा)

मयमत अध्याय ३- अनिन्द्या भूः

देवानां तु द्विजातीनां चतुरस्त्रायताः श्रुताः ।

वस्त्वाकृतिरनिन्द्या सावाक्प्रत्यग्दिक्समुन्नता ॥१॥

देवों एवं ब्राह्मणों के लिये आयताकार भूमि भी प्रशस्त होती है । भूमि की आकृति अनिन्दनीय होनी चाहिये एवं उसे दक्षिण तथा पश्चिम में ऊँची होनी चाहिये ॥१॥

हयेभवेणुवीणाब्धिदुन्दुभिध्वनिसंयुता ।

पुनागजातिपुष्पाब्जधान्यपाटलगन्धकैः ॥२॥

भूमि, अश्व, गज, वेणु, वीणा, समुद्र (जल) एवं दुन्दुभि वाद्य की ध्वनि से युक्त होनी चाहिये तथा पुन्नाग (नागकेसर), जाति-पुष्प (चमेली), कमल, धान्य एवं पाटल (गुलाब) के सुगन्ध से सुवासित होनी चाहिये ॥२॥

पशुगन्धसमा श्रेष्ठा सर्वबीजप्ररोहिणी ।

एकवर्णा घना स्निग्धा सुखसंस्पर्शनान्विता ॥३॥

पशु के गन्ध के समान एवं जिस पर सभी प्रकार के बीज उगे, ऐसी भूमि श्रेष्ठ होती है । भूमि एक रंग की, सघन, कोमल एवं छूने में सुख प्रदान करने वाली होनी चाहिये ॥३॥

बिल्वो निम्बश्च निर्गुण्डी पिण्डितः सप्तपर्णकः ।

सहकारश्च षड्‌वृक्षैरारूढा या समस्थला ॥४॥

जिस समतल भूमि पर बेल, नीम, निर्गुण्डी, पिण्डित, सप्तपर्णक (सप्तच्छद) एवं सहकार (आम)-ये छः वृक्ष हों एवं भूमि समतल हो ॥४॥

श्वेता रक्ता च पीता च कृष्णा कापोतसन्निभा ।

तिक्ता च कटुका चैव कषायलवणाम्लका ॥५॥

रंग मे श्वेत, लाल, पीली तथा कपोत के समान काली, स्वाद मे तिक्त, कड़वी, कसैली, नमकीन, खट्टी ॥५॥

मधुरा षड्रसोपेता सर्वसम्पत्करी धरा ।

प्रदक्षिणोदकवती वर्णगन्धरसैः शुभा ॥६॥

एवं मीठी - इन छः स्वादोवाली भूमि सभी प्रकार की सम्पत्तियाँ प्रदान करती है । रंग, गन्ध एवं स्वाद से युक्त जिस भूमि पर जलधारा का प्रवाह दाहिनी ओर हो, वह भूमि शुभ होती है ॥६॥

पुरुषाञलिमात्रे तु दृष्टतोया मनोरमा ।

निष्कपाला निरुपला कृमिवल्मीकवर्जिता ॥७॥

 (उत्खनन करने पर) पुरुषाञ्जलि-प्रमाण (पुरुष-प्रमाण) पर जल दिखाई पड़े, मन को अच्छी लगने वाली, कपालास्थि-विहीन, कंकड़-पत्थररहित, कीटों एवं दीमक की बाँबी आदि से विहीन ॥७॥

अस्थिवर्ज्या नसुषिरा तनुवालुकसंयुता ।

अङ्गारैर्वृक्षमूलैश्च शूलैश्चापि पृथग्विधैः ॥८॥

हड्डी आदि से रहित, छिद्ररहित, महीन बालू वाली, जले कोयले, वृक्ष के मूल एवं किसी प्रकार के शूल से रहित ॥८॥

पङ्कसङ्करकूपैश्च दारुभिर्लोष्टकैरपि ।

शर्कराभिरयुक्ता या भस्माद्यैस्तु तुषैरपि ॥९॥

कीचड़. धूल, कूप, काष्ठ, मिट्टी के ढेले एवं बालू, राख आदि से तथा भूसे से रहित ॥९॥

मयमत अध्याय ३- निन्द्य भूमी

सा शुभा सर्ववर्णानां सर्वसम्पत्करी धरा ।

दध्याज्यमधुगन्धा च तैलासृग्गन्धिका च या ॥१०॥

भूमि सभी वर्ण वालों के लिये शुभ एवं समृद्धि प्रदान करने वाली होती है । जो भूमि दधि, घृत, मधु (मद्य), तेल तथा रक्त गन्ध वाली होती है (वह भी प्रशस्त होती है ) ॥१०॥

शवमीनपक्षिगन्धा सा धरा निन्दिता वरैः ।

सभाचैत्यसमीपस्था नृपमन्दिरसंश्रिता ॥११॥

शव, मछली एवं पक्षी के गन्ध वाली भूमि अग्राह्य होती है । इसी प्रकार सभागार, चैत्य (ग्राम का प्रधान वृक्ष) एवं राजभवन के निकट की भूमि गृहनिर्माण की दृष्टि से त्याज्ज होती है ॥११॥

देवालयसमीपस्था कण्टकिद्रुमसंयुता ।

वृत्तत्रिकोणविषमा वज्राभा कच्छपोन्नता ॥१२॥

देवालय के निकट, काँटेदार वृक्ष से युक्त, वृत्ताकार, त्रिकोण, विषम (जिसकी आकृति असमान हो), वज्र के सदृश (कई कोण वाली) तथा कछुये के समान आकृति (बीच मे ऊँची) वाली भूमि गृहनिर्माण के लिये प्रशस्त नही होती है ॥१२॥

चण्डालावासगच्छाया चर्मकारालयाश्रिता ।

एकद्वित्रिचतुर्मार्गा तरिताव्यक्तमार्गका ॥१३॥

जिस भूमि पर चाण्डाल (शव आदि से आजीविका चलाने वाले) के गृह की छाया पड़े, चर्म द्वारा आजीविका चलाने वाले के गृह के पास, एक, दो, तीन एवं चार मार्गो पर (एक-दो राजमार्गो, तिराहे एवं चौराहे) पर स्थित तथा जहाँ ठीक मार्ग न हों, ऐसे स्थान पर गृह-निर्माण प्रशस्त नहीं होता ॥१३॥

निम्नं यत् पणवाकारं पक्षीव मुरजोपमम् ।

मस्त्याभं तु चतुष्कोणे महावृक्षसमायुतम् ॥१४॥

मध्य में दबी, पणव (ढोल के सदृश एक वाद्य), पक्षी, मुरज (एक वाद्य) तथा मछली के समान आकार की भूमि तथा जहाँ चारो कोनों पर महावृक्ष लगे हों, ऐसी भूमि गृहनिर्माण के लिये उचित नहीं होती है ॥१४॥

चैत्यवृक्षयुतं सालचतुष्कोणसमाश्रितम् ।

भुजङ्गनिलयं चैव सङ्कराराममेव च ॥१५॥

ग्रामादि के प्रधान वृक्ष, जिसके चारो कोनों पर साल वृक्ष हों, सर्प के आवास के निकट एवं मिश्रित जाति के वृक्षों के बाग के पास की भूमि गृह-निर्माण केल लिये अप्रशस्त होती है ॥१५॥

श्मशानं चाश्रमस्थानं कपिसूकरसन्निभम् ।

वनोरगनिभं टङ्क शूर्पोलूखलसन्निभम् ॥१६॥

श्मशान के क्षेत्र, आश्रमस्थान, बन्दर एवं सुअर के आकार की, वनसर्प के सदृश, कुठार की आकृति वाली, शूर्प एवं ऊखल की आकृति वाली भूमि त्याज्य होती है ॥१६॥

शङ्खाभं शङ्कुनाभं च बिडालकृकलासवत् ।

ऊषरं कृमिभिर्जुष्टं गृहगौलिसमाकृति ॥१७॥

शङ्ख, शङ्कु, विडाल, गिरगिट तथा छिपकली की आकृति वाली, ऊसर एवं कीड़े लगी भूमि गृह निर्माण के लिये त्याज्य होती है ॥१७॥

अन्यदेवंविधं वस्तु निन्दितं वस्तुपाठकैः ।

बहुप्रवेशमार्गं च मार्गविद्धं च गर्हितम् ॥१८॥

इसी प्रकार अन्य आकृति वाली भूमि, बहुत से प्रवेशमार्ग वाली एवं मार्ग से विद्ध भूमि विद्वानों द्वारा निन्दित है ॥१८॥

यत् कर्म विहितं मोहादेवम्भूते तु वस्तुनि ।

तन्महादोषहेतुः स्यात्सर्वथा तद्विवर्जयेत् ॥१९॥

यदि अज्ञानतावश ऐसी भूमि पर गृह बन भी जाय तो इससे महान दोष उत्पन्न होता है । अतः सभी प्रकार से ऐसी भूमि का परित्याग करना चाहिये ॥१९॥

मयमत अध्याय ३- सर्वोत्कृष्ट भूमी

श्वेतासृक्पीतकृष्णा हयगजनिनदा षड्रसा चैकवर्णा

गोधान्याम्भोजगन्धोपलतुषरहितावाक्प्रतीच्युन्नता या ।

पूर्वोदग्वारिसारा वरसुरभिसमा शूलहीनास्थिवर्ज्या

सा भूमिः सर्वयोग्या कणदररहिता सम्मताद्यैर्मुनीन्द्रैः ॥२०॥

श्वेत, रक्त, पीत एवं कृष्ण वर्ण वाली, अश्व एवं गज के निनाद से युक्त, मधुर आदि छः स्वादो वाली, एक वर्ण की, गो-धान्य एवं कमल के गन्ध से युक्त, पत्थर एवं भूसे से रहित, दक्षिण एवं पश्चिम मे ऊँची, पूर्व एवं उत्तर मे ढलान वाली, श्रेष्ठ सुरभि के सदृश, शूल एवं अस्थि से रहित, कणद (धूल, बालू आदि) रहित भूमि सभी के लिये अनुकूल होती है, ऐसा सभी श्रेष्ठ मुनियों का विचार है ॥२०॥

इति मयमते वस्तुशास्त्रे भूपरीक्षा नाम तृतीयोऽध्यायः॥

आगे जारी- मयमतम् अध्याय 4

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]