वामन स्तोत्र
दैत्यगुरु शुक्राचार्यप्रणित इस वामन
स्तोत्र का नित्य पाठ करने से सभी संकट दूर हो जाता है, विशेषकर नेत्र संबंधित रोग
से तत्काल मुक्ति मिलाती है ।
वामन स्तोत्रम्
Vaman stotra
शुक्राचार्यप्रणित वामन स्तोत्र
वामन
स्तवन स्तोत्र
वामनस्तोत्रम्
शुक्र उवाच
नमामि देवं विश्वेशं वामनं
विष्णुरुपिणम् ।
बलिदर्पहरं शान्तं शाश्वतं
पुरुषोत्तमम् ॥४॥
शुक्राचार्यजी बोले - मैं सम्पूर्ण
विश्व के स्वामी और श्रीविष्णु के अवतार उन देवदेव वामनजी को नमस्कार करता हूँ,
जो बलि का अभिमान चूर्ण करनेवाले, परम शान्त,
सनातन पुरुषोत्तम हैं ।
धीरं शूरं महादेवं शङ्खचक्रगदाधरम्
।
विशुद्धं ज्ञानसम्पन्नं नमामि
हरिमच्युतम् ॥५॥
जो धीर हैं,
शूर हैं, सबसे बड़े देवता हैं, शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाले हैं, उन विशुद्ध एवं ज्ञानसम्पन्न भगवान् अच्युत को मैं नमस्कार करता हूँ ।
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वगं
सर्वभावनम् ।
अनादिमजरं नित्यं नमामि गरुडध्वजम्
॥६॥
जो सर्वशक्तिमान् ,सर्वव्यापक और सबको उत्पन्न करनेवाले हैं, उन
जरारहित, अनादिदेव भगवान् गरुडध्वज को मैं प्रणाम करता हूँ ।
सुरासुरैर्भक्तिमद्भिः स्तुतो
नारायणः सदा ।
पूजितं च हृषीकेशं तं नमामि
जगदगुरुम् ॥७॥
देवता और असुर सदा ही जिन नारायण की
भक्तिपूर्वक स्तुति किया करते हैं, उन
सर्वपूजित जगदगुरु भगवान् हृषीकेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।
हृदि संकल्प्य यद्रूपं ध्यायन्ति
यतयः सदा ।
ज्योतीरुपमनौपम्यं नरसिंहं
नमाम्यहम् ॥८॥
यतिजन अपने अन्तः करण में भावना द्वारा
स्थापित करके जिनके स्वरुप का सदा ध्यान करते रहते हैं,
उन अतुलनीय एवं ज्योतिर्मय भगवान् नृसिंह को मैं प्रणाम करता हूँ ।
न जानन्ति परं रुपं ब्रह्माद्या
देवतागणाः ।
यस्यावताररुपाणि समर्चन्ति नमामि
तम् ॥९॥
ब्रह्मा आदि देवतागण जिनके परमार्थ
स्वरुप को भलीभाँति नहीं जानते, अतः जिनके
अवताररुपों का ही वे सदा पूजन किया करते हैं, उन भगवान को
मैं नमस्कार करता हूँ ।
एतत्समस्तं येनादौ सृष्टं
दुष्टवधात्पुनः ।
त्रातं यत्र जगल्लीनं तं नमामि
जनार्दनम् ॥१०॥
जिन्होंने दुष्टों का वध करके इसकी
रक्षा की है तथा जिनमें ही यह सारा जगत् लीन हो जाता है,
उन भगवान् जनार्दन को मैं प्रणाम करता हूँ ।
भक्तैरभ्यर्चितो यस्तु नित्यं
भक्तप्रियो हि यः ।
तं देवममलं दिव्यं प्रणमामि
जगत्पतिम् ॥११॥
भक्तजन जिनका सदा अर्चन करते हैं
तथा जो भक्तों के प्रेमी हैं, उन परम निर्मल,
दिव्य कान्तिमय जगदीश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ।
दुर्लभं चापि भक्तानां यः प्रयच्छति
तोषितः ।
तं सर्वसाक्षिणं विष्णुं प्रणमामि
सनातनम् ॥१२॥
जो प्रसन्न होने पर अपने भक्तों को
दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करते हैं, उन सर्वसाक्षी
सनातन विष्णु भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ
इति श्रीनरसिंहपुराणे शुक्रवरप्रदानो वामनस्तोत्रम् नाम पञ्चपञ्चाशोऽध्यायः ॥
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