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अभिलाषाष्टक स्तोत्र
त्रैलोक्यविजय श्रीकृष्ण कवच
विष्णु स्तुति
श्रीनरसिंहपुराण अध्याय ४७ में
वर्णित ब्रह्माजीकृत इस श्रीविष्णु का स्तुति करने से सभी कठिन से कठिन बाधाओं से
मुक्ति व रक्षा होती है ।
विष्णु स्तुति:
Vishnu stuti
ब्रह्मोक्तं श्रीविष्णुस्तुती
विष्णुस्तुती ब्रह्मोक्त
श्रीविष्णु स्तवन स्तोत्र
ब्रह्मोवाच
नमः क्षीराब्धिवासाय
नागपर्यङ्कशायिने ।
नमः श्रीकरसंस्पृष्टदिव्यपादाय
विष्णवे ॥१५॥
ब्रह्माजी बोले - जो क्षीरसागर में
निवास करते हैं, सर्प की शय्या पर सोते हैं,
जिनके दिव्य चरण भगवती श्रीलक्ष्मीजी के कर- कमलों द्वारा सहलाये
जाते हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ।
नमस्ते योगनिद्राय योगान्तर्भाविताय
च ।
तार्क्ष्यासनाय देवाय गोविन्दाय नमो
नमः ॥१६॥
योग ही जिनकी निद्रा है,
योग के द्वारा अन्तःकरण में जिनका ध्यान किया जाता है और जो गरुडजी के
ऊपर आसीन होते हैं, उन आप भगवान् गोवन्द को नमस्कार है ।
नमः क्षीराब्धिकल्लोलस्पृष्टमात्राय
शार्ङ्गिणे ।
नमोऽरविन्दपादाय पद्मनाभाय विष्णवे
॥१७॥
क्षीरसागर की लहरें जिनके शरीर का
स्पर्श करती हैं, जो ' शार्ङ्ग ' नामक धनुष धारण करते हैं, जिनके चरण कमल के समान हैं तथा जिनकी नाभि से कमल प्रकट हुआ है, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ।
भक्तार्चितसुपादाय नमो योगाप्रियाय
वै ।
शुभाङ्गाय सुनेत्राय माधवाय नमो नमः
॥१८॥
जिनके सुन्दर चरण भक्तों द्वारा
पूजित हैं, जिन्हें योग प्रिय है तथा जिनके
अङ्ग और नेत्र सुन्दर हैं, उन भगवान् लक्ष्मीपति को बारंबार
नमस्कार है ।
सुकेशाय सुनेत्राय सुललाटाय चक्रिणे
।
सुवक्त्राय सुकर्णाय श्रीधराय नमो
नमः ॥१९॥
जिनके केश,
नेत्र, ललाट, मुख और कान
बहुत ही सुन्दर हैं, उन चक्रपाणि भगवान् श्रीधर को प्रणाम है
।
सुवक्षसे सुनाभाय पद्मनाभाय वै नमः
।
सुभ्रुवे चारुदेहाय चारुदन्ताय
शार्ङ्गिणे ॥२०॥
जिनके वक्षः स्थल और नाभि मनोहर हैं,
उन भगवान् पद्मनाभ को नमस्कार है । जिनकी भौंहें सुन्दर, शरीर मनोहर और दाँत उज्ज्वल हैं, उन भगवान्
शार्ङ्गधन्वा को प्रणाम है ।
चारुजङ्घाय दिव्याय केशवाय नमो नमः
।
सुनखाय सुशान्ताय सुविद्याय गदाभृते
॥२१॥
रुचिर पिंडलियोंवाले दिव्यरुपधारी
भगवान् केशव को नमस्कार है । जो सुन्दर नखोंवाले, परमशान्त और सद्विद्याओं के आश्रय हैं, उन भगवान्
गदाधर को नमस्कार है ।
धर्माप्रियाय देवाय वामनाय नमो नमः
।
असुरघ्नाय चोग्राय रक्षोघ्नाय नमो
नमः ॥२२॥
धर्मप्रिय भगवान् वामन को बारंबार
प्रणाम है । असुर और राक्षसों के हन्ता उग्र (नृसिंह)- रुपधारी भगवान को नमस्कार
है ।
देवानामार्तिनाशाय भीमर्ककृते नमः ।
नमस्ते लोकनाथाय रावणान्तकृते नमः
॥२३॥
देवताओं की पीड़ा हरने के लिये भयंकर
कर्म करनेवाले तथा रावण के संहारक आप भगवान् जगन्नाथ को प्रणाम है ।
इति श्रीनरसिंहपुराणे ब्रह्मोक्तं श्रीविष्णुस्तुती: ॥
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