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विष्णु स्तोत्र
बृहन्नारदीयपुराण पूर्वभाग अध्याय
४/८३-८७ में वर्णित मृकण्डु ऋषि रचित इस विष्णु स्तोत्र का पाठ करने से महापातकी
मनुष्य का पापों का नाश होता तथा कामना पूर्ण होता है।
विष्णुस्तोत्रम्
Vishnu stotram
मृकण्डुकृतं विष्णुस्तोत्रम्
विष्णुस्तोत्रम्
विष्णु स्तोत्र
मृकण्डुरुवाच ॥
नमः परेशाय परात्मरूपिणे
परात्परस्मात्परतः पराय ।
अपारपाराय परानुकर्त्रे नमः
परेभ्यः
परपारणाय ॥८३॥
मृकण्डुजी बोले-परमात्मस्वरुप
परमेश्वर को नमस्कार है। जो पर से भी अति परे हैं, जिनका पार पाना असम्भव है, जो दूसरों पर अनुग्रह
करनेवाले तथा दूसरों को संसार- सागर के उस पार पहुँचा देनेवाले है, उन भगवान् श्रीहरि को नमस्कार है।
यो नामजात्यादिविकल्पहीनः
शब्दादिदोषव्यति रेकरूपः ।
बहुस्वरूपोऽपि निरञ्जनो
यस्तमीशमीड्यं परमं भजामि ॥८४॥
जो नाम और जाति आदि की कल्पनाओं से
रहित है,
जिनका स्वरुप शब्दादि विषयों के दोष से दूर है, जिनके अनेक स्वरुप हैं तथा जो तमोगुण से सर्वथा शुन्य हैं, उन स्तुति करनेयोग्य परमेश्वर का मैं भजन करता हूँ।
वेदान्तवेद्यं पुरुषं पुराणं
हिरण्यगर्भादिजगत्स्वरूपम् ।
अनूपमं भक्ति जनानुकम्पिनं
भजामि
सर्वेश्वरमादिमीड्यम् ॥८५॥
जो वेदान्तवेद्य और पुराणपुरुष हैं,
ब्रह्मा आदि से लेकर सम्पूर्ण जगत् जिनका स्वरुप है, जिनका कहीं भी उपमा नहीं है तथा जो भक्तजनों पर अनुग्रह करनेवाले हैं,
उन स्तवन करनेयोग्य आदिपरमेश्वर की मैं आराधना करता हूँ।
पश्यन्ति य वीतसमस्तदोषा
ध्यानैकनिष्ठा विगतस्पृहाश्च ।
निवृत्तमोहाः परमं पवित्र
नतोऽस्मि
संसारनिवर्त्तक तम् ॥८६॥
जिनके समस्त दोष दूर हो गये हैं,
जो एकमात्र ध्यान मे स्थित रहते हैं, जिनकी
कामना निव्रत और मोह दूर हो गये हैं, ऎसे महात्मा पुरुष
जिनका दर्शन करते है, संसार- बन्धन को नष्ट करनेवाले उन परम
पवित्र परमात्मा को मैं प्रणाम करता हूँ।
स्मृतातिनाशनं विष्णुं शरणागतपालकम्
।
जगत्सेव्यं जगाद्धाम परेशं
करुणाकरम् ॥८७॥
जो स्मरणमात्र से समस्त पीडाओं का
नाश कर देते है, शरण में आये हुए भक्तजनों का
पालन करते हैं, जो समस्त संसार के सेव्य हैं तथा सम्पूर्ण
जगत् जिनके भीतर निवास करता है, उन कारुणासागर परमेश्वर
विष्णु को मैं नमस्कार करता हूँ।
इति नारदपुराणे पूर्वभागे चतुर्थाध्यायान्तर्गतं मृकण्डुकृतं विष्णुस्तोत्रं समाप्तम् ।
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