महादेव स्तुति

महादेव स्तुति

जब कभी किसी भी भय से अधिक भयभीत हो तो कालिका पुराण अध्याय ४६ में वर्णित इस महादेव स्तुति का पूर्ण मनोभाव से पाठ करने से तत्काल सभी भयों से मुक्ति मिलती है।

महादेव स्तुति

कालिकापुराणांतर्गत महादेव स्तुति:

Mahadev stuti

।। देवा ऊचुः ।।

प्रीतये यस्य न रतिर्न कामो यन्मनोभवः ।

न यस्य जन्मनो हेतुस्तस्मै तुभ्यं नमो नमः ।। २९ ।।

देवगण बोले- मनोभव काम और रति जिसे प्रसन्न नहीं करते, जिसके जन्म का कोई कारण नहीं हैं, उस आप (शिव) को बारम्बार नमस्कार है ।। २९ ॥

यस्य लोकहितायैव जातो जायापरिग्रहः ।

त्र्यम्बकाय नमस्तस्मै स शिवो नः प्रसीदतु ।। ३० ।।

जिन्होंने लोक के कल्याण के ही लिए जायापरिग्रहण (विवाह) किया है । उन त्र्यम्बक, तीन नेत्रों वाले शिव को नमस्कार है। वे शिव हम पर प्रसन्न हों ॥ ३० ॥

यन्मन्मथं विना देवं शृङ्गाराद्या विशन्ति च ।

स्वबलेनैव तं देवं त्वां वयं प्रणता हरम् ।। ३१ ।।

जिस मन्मथ कामदेव के बिना अपने बल से शृंगारादि प्रवृत्त होते हैं, हम उस प्रकार के समर्थ देव, आप (शिव) की शरण में हैं ॥ ३१ ॥

हिरण्यरेताः स्वर्णाभो यो हिरण्यभुजाह्वयः ।

स त्वं सर्गहरो देवो नित्यं नोऽभिप्रसीदतु ।। ३२ ।।

हिरण्यरेता (स्वर्णिमवीर्य वाले), स्वर्णिम आभा वाले, जो हिरण्यभुज नाम से पुकारे जाते हैं, वे आप सृष्टि का हरण करने वाले किन्तु स्वयं नित्य शाश्वंतरूप से विराजमान रहने वाले, देवाधिदेव महादेव, हम पर सब ओर से प्रसन्न हों ॥ ३२ ॥

जगन्मयी योगनिद्रा विष्णुमाया बलीयसी ।

तस्याभवत् स्वयं जाया तस्मै तुभ्यं नमो नमः ।। ३३ ।।

स्वयं जगन्मयी, योग-निद्रा, बलशालिनी, विष्णुमाया जिनकी पत्नी बनी हैं, उन आप को बार-बार नमस्कार है ।।३३।।

पञ्चभूतमयं यस्य पञ्चशीर्षं विराजते ।

तं पञ्चवदनं देवं भक्त्या त्वां प्रणमामहे ।। ३४ ।।

पाँच महाभूतों के प्रतीक रूप जिनके पाँचशिर शोभायमान हो रहे हैं, उन पाँच- मुँहवालेदेव, आप शिव को हम सब भक्तिपूर्वक प्रणाम करते हैं ।।३४।।

सद्योजातमघोरं च वामदेवमुमापतिम् ।

ईशानं प्रणमामोऽद्य यं तत्पुरुषमाह वै ।। ३५ ।।

जिनको सद्योजात, अघोर, वामदेव, ईशान, तत्पुरुष, कहा जाता है, हम सब ऐसे उमापति शिव को आज प्रणाम करते हैं ।। ३५ ।।

योऽसतामशिवो नित्यं यो वा भक्तिमतां शिवः ।

शिवाशिवस्वरूपाय नमस्तस्मै शिवाय ते ।। ३६ ।।

जो दुष्टों के लिए नित्य अशिव अर्थात् अकल्याणकारी तथा भक्तों के लिए शिव अर्थात कल्याणकारी हैं, उस शिव और अशिव स्वरूपवाले भगवान् शिव को नमस्कार है ।।३६।।

रूपैस्त्रिभिर्य: स्थितिसृष्टिनाशं विष्ण्वात्मभिः शम्भुरिति प्रसिद्धैः ।

करोति शश्वजगतां नुमस्तं शिवं विरूपाक्षममुं शिवेशम् ।। ३७ ।।

जो शम्भु अपने विष्णु आदि तीन प्रसिद्ध रूपों से निरन्तर संसार की- स्थिति, सृष्टि एवं नाश करते हैं। उन शिव, विरूपाक्ष तथा शिवा (काली) के पति को हम सब नमस्कार करते हैं ।।३७।।

यः शूलखट्वाङ्गमृगाङ्कधारी यो गोध्वजः शक्तिमान् पञ्चरूपी ।

तस्मै तुभ्यं जातवेदः प्रभाय भूयो भूयो नो नमः शङ्कराय ।।३८।।

जो शूल, खट्वाङ्ग, मृगाङ्क धारण करने वाले हैं, जो गो (वृष) ध्वज हैं। जो शक्तिमान् और प्रपञ्च स्वरूप हैं, जो अग्नि के समान प्रभा वाले हैं, उन भगवान् शङ्कर को हम बार-बार नमस्कार करते हैं ।।३८।।

ब्रह्मर्चिष्मान् भोगभृद्दैत्यहन्ता यन्ता योद्धा वीतगर्भो जगत्याः ।

स त्वं स्तुतो नः प्रसीदत्वनन्तो नित्योद्रेकी मुक्तरूप: प्रधानः ।। ३९ ।।

आप जो ब्रह्म की किरणों से युक्त, सर्पों के आभूषण से सुसज्जित, दैत्यों का वध करने वाले, संसार के संचालक, योद्धा, संसार के जन्मदाता, मुक्तरूप, प्रधान तथा नित्यवृद्धि को प्राप्त हैं, उन आपकी हम प्रार्थना करते हैं, हे अनन्त ! आप हम पर प्रसन्न हों ।। ३९ ।।

परब्रह्मरूपी नियतैकमुक्तः परज्योतिरूपी नियतस्त्वनन्तः ।

परः पाररूपी नियतात्मभागी स नो भर्गरूपी गिरिशोऽस्तु भूत्यै ।।४०।।

जो परब्रह्मरूप वाले, नियत, एक मात्र मुक्त, परमज्योतिरूप, अनन्त, पर से भी पार, सर्वश्रेष्ठ, नियतात्मा वाले हैं, वे भर्ग (शिव) रूपधारी गिरीश, हमारे लिए ऐश्वर्य का कारण हों ॥ ४० ॥

उमापतिं महामायं महादेवं जगत्पतिम् ।

शिवं शिवकरं शान्तं नमामः स प्रसीदतु ।। ४१ ।।

उमा के पति, महान् माया वाले, महादेव, जगत्पति, कल्याण कारक, शान्त, शिव को नमस्कार करते हैं। वे हम पर प्रसन्न हों ॥ ४१ ॥

इति: श्रीकालिकापुराणांतर्गत् देवकृत: महादेवस्तुति:नाम षट्चत्वारिंशोऽध्यायः ॥

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