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अग्निपुराण अध्याय ७१
अग्निपुराण
अध्याय ७१ गणपतिपूजन की विधि का वर्णन
है।
अग्निपुराणम् अध्यायः ७१
Agni puran chapter 71
अग्निपुराण इकहत्तरवाँ अध्याय
अग्नि पुराण अध्याय ७१
अग्निपुराणम् अध्यायः ७१ गणेशपूजाविधिः
अथ
एकसप्ततितमोऽध्यायः
ईश्वर उवाच
गणपूजां
प्रवक्ष्यामि निर्विघ्नामखिलार्थदाम् ।
गणाय स्वाहा
हृदयमेकदंष्ट्राय वै शिरः ॥१॥
गजकर्णिने च
शिखा गजवक्त्राय वर्ग च ।
महोदराय
स्वदन्तहस्तायाति तथास्त्रकम् ॥२ ॥
गणो गुरुः
पादुका च शक्त्यनन्तौ च धर्मकः ।
मुख्यास्थिमण्डलं
चाधश्चोर्ध्वच्छदनमर्चयेत् ॥३ ॥
पद्मकर्णिकवीजांश्च
ज्वालिनीं नन्दयार्चयेत् ।
सूर्येशा
कामरूपा च उदया कामवर्तिनी ॥४ ॥
सत्या च
विघ्ननाशा च ग्रासनं गन्धमृत्तिका ।
यं शोषो रं च
दहनं प्लवो लं वं तथामृतम् ॥५ ॥
लम्बोदराय
विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
गणपतिर्गणाधिपो
गणेशो गणनायकः।
गणक्रीडो
वक्रतुण्ड एकदंष्ट्रो महोदरः ॥६॥
गजवक्त्रो
लम्बकुक्षिर्विकटो विघ्ननाशनः।
धूम्रवर्णा
महेन्द्राद्याः पूज्या गणपतेः स्मृताः ॥७॥
भगवान्
महेश्वर ने कहा- कार्तिकेय ! मैं विघ्नों के विनाश के लिये गणपतिपूजा की विधि बतलाता
हूँ, जो सम्पूर्ण अभीष्ट अर्थो को सिद्ध करनेवाली है। 'गणंजयाय स्वाहा० ' -
हृदय, 'एकदंष्ट्राय हुं फट्'
- सिर,
'अचलकर्णिने
नमो नमः । - शिखा,
'गजवक्त्राय
नमो नमः ।'-कवच,
'महोदराय
चण्डाय नमः ।'
– नेत्र एवं 'सुदण्डहस्ताय हुं फट् । '
- अस्त्र है। इन मन्त्रों द्वारा
अङ्गन्यास करे। गण, गुरु, गुरु पादुका, शक्ति, अनन्त और धर्म- इनका मुख्य कमल – मण्डल के ऊर्ध्व तथा निम्न
दलों में पूजन करे एवं कमलकर्णिका में बीज की अर्चना करे। तीव्रा,
ज्वालिनी, नन्दा, भोगदा, कामरूपिणी, उग्रा, तेजोवती, सत्या एवं विघ्ननाशिनी – इन नौ पीठशक्तियों की भी पूजा करे। फिर चन्दन के चूर्ण का
आसन समर्पित करे। 'यं' शोषकवायु, 'रे' अग्नि, 'लं' प्लव (पृथिवी) तथा 'वं' अमृत का बीज माना गया है। 'ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।'-
यह गणेश गायत्री- मन्त्र है। गणपति,
गणाधिप, गणेश, गणनायक, गणक्रीड, वक्रतुण्ड, एकदंष्ट्र, महोदर, गजवक्त्र, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, धूम्रवर्ण तथा इन्द्र आदि दिक्पाल - इन सबका गणपति की पूजा में
अङ्गरूप से पूजन करे ॥ १-७ ॥
इत्यादिमहापुराणे
ग्राग्नेये विनायकपूजाकथनं नाम एकसप्ततितमोऽध्यायः॥
इस प्रकार आदि
आग्नेय महापुराण में 'गणपतिपूजा-विधिकथन' नामक इकहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ७१ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 72
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