श्वेता कल्प
डी०पी०कर्मकाण्ड के तन्त्र श्रृंखला
में काकचण्डीश्वरकल्पतन्त्र में औषिधीयों के विषय में कहा गया है। काकचण्डीश्वरकल्प तन्त्रम्
के इस भाग में श्वेता
कल्प,
श्वेतार्क ( सफेद मन्दार) को
कहा गया है।
श्वेताकल्पः
Sweta kalpa
काकचण्डीश्वरकल्पतन्त्रम्
अथ श्वेताकल्पः
पुष्यर्थेऽङ्गानि
पञ्चापि श्वेतार्कस्याहरेद् बुधः ।
चूर्णयेदथ
तच्चूर्ण मध्वाज्याभ्यां च भक्षयेत् ॥ १ ॥
पुष्य नक्षत्र
में बुद्धिमान पुरुष श्वेतार्क ( सफेद मन्दार) का पंचांग लावै,उसे चूर्ण करके मधु और घृत से भक्षण करें ॥ १ ॥
पुष्टि
तुष्टिं च मासेन याति वीर्य विवर्धते ।
एक मास प्रयोग
से पुष्टि (पोषण), तुष्टि (संतोष ) प्राप्त होता है,वीर्य बढ़ता है।
अङ्गानि पञ्च
संगृह्य छायायां शोषयेत्ततः ॥ २ ॥
चूर्णीकृत्य
ततो दुधैर्भावयेद्रव्यमाहिषैः ।
पञ्चचैव कृते
तद्धि जायते चोत्तमौषधम् ॥ ३ ॥
(श्वेतार्क)
का पंचांग ग्रहण करके छाया में सुखाबै, उसे चूर्ण करके गो या भैंस के दूध से भावना देवे,
इस प्रकार पाँच भावना से ही यह उत्तम औषध हो जाता है ।। २-३
।।
जीर्णान्ते
भोजयेत्तच्च क्षीरैः षष्टिकभुङ नरः ।
वर्जयेत्तैलमात्रं
तु मासमेव च सेवयेत् ॥ ४ ॥
औषध जीर्ण
होने पर दूब से पष्टिक ( साठी ) के चावल का सेवन करे, तैल मात्र का परित्याग करे, इस प्रकार एक मास तक सेवन करे ॥ ४ ॥
रक्तस्य
मेदसश्चापि मांसस्यापि विवर्धकम् ।
मति धृतिं च
मेधां च वर्धयेद्रार्धकापहम् ॥ ५ ॥
यह रक्त,
मेद और मांस का बढ़ाने वाला है और मति (बुद्धि) धृति(धैर्य) और मेधा ( धारणशक्ति) को बढ़ाता है तथा वृद्धावस्था
को दूर करता है ।। ५ ।।
अर्कस्येवास्य
कान्तिच देहे समुपजायते ।
अर्क (सूर्य)
के समान इसके देह में कान्ति उत्पन्न होती है।
कट्वम्लतैलवर्जे
च भक्षयेदन्नमन्वहम् ॥ ६ ॥
अनेनैव
विधानेन कार्यसिद्धिर्भवेद् ध्रुवम् ।
कटु,
अम्ल और तेल से रहित अन्न प्रतिदिन भक्षण करे,
इसी विधान से निश्चित रूप से कार्यसिद्धि होती है।।६।।
इति काकचण्डीश्वरकल्पतन्त्रम् श्वेताकल्पः ॥
आगे जारी पढ़ें ............ श्वेतगुञ्जाकल्प
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