नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र- ग्रहों के द्वारा उत्पन्न पीड़ा का निवारण करने के लिए ब्रह्माण्डपुराणोक्त इस स्तोत्र का पाठ लाभदायक है। इसमें सूर्यादि नौ ग्रहों से क्रमश: एक-एक श्लोक के द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है।

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

नवग्रह पीडाहर स्तोत्रम्

Navagrah pidaher stotra

सूर्य

ग्रहाणामादिरादित्यो लोकरक्षणकारकः ।

विषमस्थानसंभूतां पीडां हरतु मे रविः ॥ १॥

ग्रहों में प्रथम परिगणित, अदिति के पुत्र तथा विश्व की रक्षा करने वाले भगवान सूर्य विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा का हरण करें ।

चंद्र

रोहिणीशः सुधामूर्तिः सुधागात्रः सुधाशनः ।

विषमस्थानसंभूतां पीडां हरतु मे विधुः ॥ २॥

दक्षकन्या नक्षत्र रूपा देवी रोहिणी के स्वामी, अमृतमय स्वरूप वाले, अमतरूपी शरीर वाले तथा अमृत का पान कराने वाले चंद्रदेव विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा को दूर करें ।

मंगल

भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा ।

वृष्टिकृद्वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुजः ॥ ३॥

भूमि के पुत्र, महान् तेजस्वी, जगत् को भय प्रदान करने वाले, वृष्टि करने वाले तथा वृष्टि का हरण करने वाले मंगल (ग्रहजन्य) मेरी पीड़ा का हरण करें ।

बुध

उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युतिः ।

सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुधः ॥ ४॥

जगत् में उत्पात करने वाले, महान द्युति से संपन्न, सूर्य का प्रिय करने वाले, विद्वान तथा चन्द्रमा के पुत्र बुध मेरी पीड़ा का निवारण करें ।

गुरु

देवमन्त्री विशालाक्षः सदा लोकहिते रतः ।

अनेकशिष्यसम्पूर्णः पीडां हरतु मे गुरुः ॥ ५॥

सर्वदा लोक कल्याण में निरत रहने वाले, देवताओं के मंत्री, विशाल नेत्रों वाले तथा अनेक शिष्यों से युक्त बृहस्पति मेरी पीड़ा को दूर करें ।

शुक्र

दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामतिः ।

प्रभु: ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगुः ॥ ६॥

दैत्यों के मंत्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देने वाले, तारा ग्रहों के स्वामी, महान् बुद्धिसंपन्न शुक्र मेरी पीड़ा को दूर करें ।

शनि

सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः ।

मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनिः ॥ ७॥

सूर्य के पुत्र, दीर्घ देह वाले, विशाल नेत्रों वाले, मंद गति से चलने वाले, भगवान् शिव के प्रिय तथा प्रसन्नात्मा शनि मेरी पीड़ा को दूर करें ।

राहु

अनेकरूपवर्णैश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक् ।

उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तमः ॥ ८॥

विविध रूप तथा वर्ण वाले, सैकड़ों तथा हजारों आंखों वाले, जगत के लिए उत्पातस्वरूप, तमोमय राहु मेरी पीड़ा का हरण करें ।

केतु

महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबलः ।

अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी ॥ ९॥

महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर वाले तथा ऊपर की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।

॥ इति नवग्रहपीडाहरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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