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नवग्रह पीडाहर स्तोत्र

नवग्रह पीडाहर स्तोत्र

ग्रहों के द्वारा उत्पन्न पीड़ा का निवारण करने के लिए श्रीभविष्य महापुराण के ब्राह्म पर्व अध्याय १७५ श्लोक ३६-५० में वर्णित नवग्रह पीडाहर स्तोत्र का पाठ लाभदायक है। इसमें सूर्यादि नौ ग्रहों से क्रमश: एक-एक श्लोक के द्वारा समस्त लोकों के कल्याण, शांति और पीड़ा दूर करने के लिए प्रार्थना की गई है।

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

नवग्रह पीडाहर स्तोत्रम्

Navagrah pidaher stotra

नवग्रह पीडाहर स्तोत्र

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

नवग्रहपीडाहरस्तोत्रम्

सिन्दूरासनरक्ताभः रक्तपद्माभलोचनः ।

सहस्रकिरणो देवः सप्ताश्वरथवाहनः ।।१ ।।

गभस्तिमाली भगवान्सर्वदेवनमस्कृतः ।

करोतु ते महाशांतिं ग्रहपीडानिवारिणीम् ।।२ ।।

रक्त कमल के समान नेत्रोंवाले, सहस्रकिरणोंवाले, सात अश्वों से युक्त रथ पर आरूढ़, सिन्दूर के समान रक्त आभावाले, सभी देवताओं द्वारा नमस्कृत भगवान् सूर्य ग्रहपीडा निवारण करनेवाली महाशान्ति आपको प्रदान करें ।

त्रिचक्ररथमारूढ अपां सारमयं तु यः ।

दशाश्ववाहनो देव आत्रेय श्चामृतस्रवः ।।३।।

शीतांशुरमृतात्मा च क्षयवृद्धिसमन्वितः ।

सोमः सौम्येन भावेन ग्रहपीडां व्यपोहतु ।। ४ ।।

क्षय तथा वृद्धि की कलाओं से युक्त, दस अश्वों से युक्त तीन पहियों वाले रथ पर आरूढ़, शीतल किरणों से युक्त, अमृतात्मा, अत्रि के पुत्र चन्द्रदेव सौम्यभाव से आपकी ग्रहपीड़ा दूर करें ।

पद्मरागनिभो भौमो मधुपिंगल लोचनः ।

अंगारकोऽग्निसदृशो ग्रहपीडां व्यपोहतु ।। ५ ।।

पद्मराग के समान वर्णवाले, मधु के समान पिङ्गल नेत्रवाले, अग्नि-सदृश अङ्गारक, भूमिपुत्र भौम आपकी ग्रहपीड़ा दूर करें ।

पुष्परागनिभेनेह देहेन परिपिंगलः ।

पीतमाल्यांबरधरो बुधः पीडां व्यपोहतु ।। ६ ।।

पुष्पराग के समान आभायुक्त, पिङ्गल वर्णवाले, पीत माल्य तथा वस्त्र धारण करनेवाले बुध आपकी पीड़ा दूर करें ।

तप्तगैरिकसंकाशः सर्वशास्त्रविशारदः ।

सर्वदेवगुरुर्विप्रो ह्यथर्वणवरो मुनिः ।। ७ ।।

बृहस्पतिरिति ख्यात अर्थशास्त्रपरश्च यः ।

शांतेन चेतसा सोपि परेण सुसमाहितः ।। ८ ।।

ग्रहपीडां विनिर्जित्य करोतु तव शांतिकम् ।

तप्त स्वर्ण के समान आभायुक्त, सर्व-शास्त्र-विशारद, अथर्वणवेद-शास्त्र के ज्ञाता श्रेष्ठ मुनि, शांत मन और चित्त से परम समाहित, देवताओं के गुरु बृहस्पति आपकी ग्रहपीडा दूर कर आपको शान्ति प्रदान करें ।

सूर्यार्चनपरो नित्यं प्रसादाद्भास्करस्य तु ।। ९ ।।

हिमकुंदेंदुवर्णाभो दैत्यदानवपूजितः ।

महेश्वरस्ततो धीमान्महासौरो महामतिः ।। १० ।।

सूर्यार्चनपरो नित्यं शुक्रः शुक्लनिभस्तदा ।

नीतिशास्त्रपरो नित्यं ग्रहपीडां व्यपोहतु ।। ११ ।।

हिम, कुन्दपुष्प तथा चन्द्रमा के समान स्वच्छ वर्णवाले दैत्य तथा दानवों से पूजित, सूर्यार्चन में तत्पर रहनेवाले, महामति, नीतिशास्त्र में पारङ्गत शुक्राचार्य आपकी प्रहपीडा दूर करें ।

 नानारूपधरोव्यक्त अविज्ञातगतिश्च यः ।

नोत्पत्तिर्जायते यस्य नोदयपीडितैरपि ।। १२ ।।

एकचूलो द्विचूलश्च त्रिशिखः पंचचूलकः ।

सहस्रशिररूपस्तु चन्द्रकेतुरिव स्थितः ।।१३।।

सूर्यपुत्रोग्निपुत्रस्तु ब्रह्मविष्णुशिवात्मकः ।

अनेकशिखरः केतुः स ते पीडां व्यपोहतु ।। १४।।

विविध रूपों को धारण करनेवाले, अविज्ञात-गति-युक्त, अजन्मा, पीड़ारहित,  सूर्यपुत्र शनैश्चर, अनेक शिखरोंवाले केतु एवं राहु आपकी पीड़ा दूर करें ।

एते ग्रहा महात्मानः सूर्यार्चनपराः सदा ।

शांतिं कुर्वंतु ते हृष्टाः सदा कालं हितेक्षणाः ।। १५ ।।

सर्वदा कल्याण की दृष्टि से देखनेवाले तथा भगवान् सूर्य को नित्य अर्चना करने में तत्पर ये सभी ग्रह प्रसन्न होकर आपको शान्ति प्रदान करे ।

इति श्रीभविष्ये महापुराणे ब्राह्मे पर्वणि नवग्रहपीडाहरस्तोत्रम् पंचसप्तत्युत्तरशततमोऽध्यायः ।।

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