देवी स्तोत्र

देवी स्तोत्र

डी०पी०कर्मकाण्ड के स्तोत्र श्रृंखला में विद्वान् आचार्य अमृतवाग्भव द्वारा रचित इस  "बालकं मां पाहि" देवी स्तोत्र का नित्य पाठ करने से शरणागत की रक्षा और नित्य कल्याण होता है ।

देवी स्तोत्र

देवी स्तोत्रम्

Devi stotra

बालकं मां पाहि सद्यो निरालम्बं जगन्मातः ।

त्वमेवालम्बन मह्यमिदानीं सर्वमेकातः ॥ ध्रुवम् ॥

हे जगन्माता, अब तो मेरा सब प्रकार का आलम्बन एक मात्र तू ही है, अतः मुझ आलम्बनहीन बालक की तुरन्त रक्षा करो, अर्थात् मेरे त्रिविध दुःखों का अन्त करके मेरा वास्तविक कल्याण करो ।

मानसे त्वं मन्यसे किं महापापोऽयमस्तीति ।

न माता हीनचारित्रं सुतं त्यक्तुं समर्थाऽतः ॥ १ ॥ बा०

क्या तू मन में यह विचार कर रही है कि यह व्यक्ति महापापी है (और इसीलिए मेरी ओर ध्यान नहीं दे रही है) (तो इस पर मेरा तर्क यह है कि) अपने चरित्रहीन पुत्र को माता कभी छोड़ नहीं सकती इसलिए- हे जगन्माता०

न माता नैव मे भ्राता स्वसा नैवास्ति मे तातः ।

सुहृद्वा त्वां विहायैकां हितैषी कोऽपि हे मातः ॥ २ ॥ बा०

हे माता, अकेली तुझ को छोड़कर कोई मेरी मां नहीं, भाई नहीं, बहन नहीं, पिता नहीं, मित्र नहीं और न ही कोई मेरा हित चाहने वाला है ।

विलम्बं हेतुतः कस्मात् करोषि त्वं मुधा मातः ।

उपेक्षातो मदीयाया अधोऽधो जायते पातः ॥ ३ ॥ बा०

हे मां, तू किस कारण से व्यर्थ ही देर लगा रही है ? तुम्हारी इस उपेक्षा के कारण मेरा लगातार ही अधःपतन हो रहा है।

एकतानोऽपेक्षतेऽयं वारिवाहं यथा चातः ।

स्वामतो दीनबन्धो मां पाहि शरणागतं मातः ॥ ४ ॥ बा०

जिस तरह से चातक एकतान होकर बादल को चाहता है। वैसे ही हे मां, मैं तुम्हें चाहता हूं । अतः हे दीनों की बान्धव बनने वाली मां, मुझ शरणागत की रक्षा करो।

मयि त्वं साम्प्रतं स्तुत्या यदि प्रीतासि हे मातः ।

कृतार्थोऽनेन तर्हि स्यां त्वदीयः काशिको जातः ॥ ५ ॥ बा०

हे मां, यदि तू अब इस स्तुति से मेरे ऊपर प्रसन्न हो गई है तो तब 'कृतकृत्य हो जाऊं। मैं तो तुम्हारा ही काशीवाला पुत्र हूँ ।

श्रीदेवी स्तोत्र लेखक परिचय  

चिदाधिपमिते वर्षे काश्मीरे कार्त्तिके सिते ।

साघुगङ्गास्थले विप्रः काशिको निरमाद् वसन् ॥

विक्रम संवत् १९८६ में कश्मीर देश में साघुगङ्गा नामक तीर्थ पर निवास करते हुए काशी निवासी ब्राह्मण ने इस स्तुति का निर्माण किया ।

विशेष-कश्मीर में सोपोर कस्बे के उत्तर में "साधु माल्युन" नामक गांव में एक साधुगंगा नाम वाला प्राचीन पुण्यतीर्थ है। जब आचार्य महोदय कश्मीर यात्रा के बीच वहां ठहरे थे तब उन्होंने वहीं इस स्तुति का निर्माण किया ।

इत्याचार्यामृतवाग्भवप्रणीतं गीतम् ।

आचार्य अमृतवाग्भव के द्वारा इस गीत देवी स्तोत्र की रचना की गई ।

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