Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
July
(56)
- अग्निपुराण अध्याय १९९
- अग्निपुराण अध्याय १९८
- मनुस्मृति
- मनुस्मृति अध्याय १२
- मनुस्मृति ग्यारहवाँ अध्याय
- मनुस्मृति अध्याय ११
- मनुस्मृति अध्याय १०
- अग्निपुराण अध्याय १९७
- अग्निपुराण अध्याय १९६
- अग्निपुराण अध्याय १९५
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ८
- नवग्रह मंगल स्तोत्र
- नवग्रह कवच सार
- प्राणसूक्त
- ध्रुवसूक्त
- मनुस्मृति नौवाँ अध्याय
- मनुस्मृति अध्याय ९
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ७
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ६
- अग्निपुराण अध्याय १९४
- अग्निपुराण अध्याय १९३
- अग्निपुराण अध्याय १९२
- अग्निपुराण अध्याय १९१
- अग्निपुराण अध्याय १९०
- अग्निपुराण अध्याय १८९
- अग्निपुराण अध्याय १८८
- अग्निपुराण अध्याय १८७
- अग्निपुराण अध्याय १८६
- अग्निपुराण अध्याय १८५
- अग्निपुराण अध्याय १८४
- अग्निपुराण अध्याय १८३
- अग्निपुराण अध्याय १८२
- अग्निपुराण अध्याय १८१
- अग्निपुराण अध्याय १८०
- अग्निपुराण अध्याय १७९
- अग्निपुराण अध्याय १७८
- अग्निपुराण अध्याय १७७
- अग्निपुराण अध्याय १७६
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ५
- मनुस्मृति अष्टम अध्याय
- मनुस्मृति आठवाँ अध्याय
- मनुस्मृति अध्याय ८
- अग्निपुराण अध्याय १७५
- अग्निपुराण अध्याय १७४
- अग्निपुराण अध्याय १७३
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ४
- ब्रह्मा पूजन विधि
- अग्निपुराण अध्याय १७१
- अग्निपुराण अध्याय १७०
- अग्निपुराण अध्याय १६९
- अग्निपुराण अध्याय १६८
- अग्निपुराण अध्याय १६७
- अग्निपुराण अध्याय १६६
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय ३
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय २
- बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १
-
▼
July
(56)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
अग्निपुराण अध्याय १७६
अग्निपुराण अध्याय १७६ में प्रतिपदा तिथि के व्रत का वर्णन है।
अग्निपुराणम् षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 176
अग्निपुराण एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः १७६
अग्निपुराणम् अध्यायः १७६ – प्रतिपद्व्रतानि
अथ षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः
अग्निरुवाच
वक्ष्ये प्रतिपदादीनि
व्रतान्यखिलदानि ते ।
कार्त्तिकाश्वयुजे चैत्रे
प्रतिपद्ब्रह्मणस्तिथिः ॥०१॥
पञ्चदश्यान्निराहारः
प्रतिपद्यर्चयेदजं ।
ओं तत्सद्ब्रह्मणे नमो गायत्र्या वाब्दमेककं
॥०२॥
अक्षमालां स्रुवं दक्षे वामे स्रुचं
कमण्डलु ।
लम्बकूर्चञ्च जटिलं हैमं
ब्रह्माणमर्चयेत् ॥०३॥
शक्त्या क्षीरं प्रदद्यात्तु
ब्रह्मा मे प्रीयतामिति ।
निर्मलो भोगभुक् स्वर्गे भूमौ
विप्रो धनी भवेत् ॥०४॥
अग्निदेव कहते हैं- अब मैं आपसे
प्रतिपद् आदि तिथियों के व्रतों का वर्णन करूँगा, जो सम्पूर्ण मनोरथों को देनेवाले हैं। कार्तिक, आश्विन
और चैत्र मास में कृष्णपक्ष की प्रतिपद् ब्रह्माजी की तिथि है। पूर्णिमा को
उपवास करके प्रतिपद्को ब्रह्माजी का पूजन करे। पूजा 'ॐ तत्सद्ब्रह्मणे नमः। - इस मन्त्र से अथवा गायत्री मन्त्र से करनी चाहिये। यह व्रत एक वर्षतक करे। ब्रह्माजी के सुवर्णमय विग्रह का
पूजन करे, जिसके दाहिने हाथों में स्फटिकाक्ष की माला और स्रुवा
हों तथा बायें हाथों में स्रुक् एवं कमण्डलु हों। साथ ही लंबी दाढ़ी और सिर पर जटा
भी हो। यथाशक्ति दूध चढ़ावे और मन में यह उद्देश्य रखे कि 'ब्रह्माजी
मुझ पर प्रसन्न हों।' यों करनेवाला मनुष्य निष्पाप होकर
स्वर्ग में उत्तम भोग भोगता है और पृथ्वी पर धनवान् ब्राह्मण के रूप में जन्म लेता
है ॥ १-४ ॥
धन्यं व्रतं प्रवक्ष्यामि अधन्यो
धन्यतां व्रजेत् ।
मार्गशीर्षे प्रतिपदि नक्तं
हुत्वाप्युपोषितः ॥०५॥
अग्नये नम इत्यग्निं प्रार्च्याब्दं
सर्वभाग्भवेत् ।
अब 'धन्यव्रत' का वर्णन करता हूँ। इसका अनुष्ठान करने से
अधन्य भी धन्य हो जाता है। पहले मार्गशीर्ष मास की प्रतिपद्को उपवास करके रात में 'अग्नये नमः।' इस मन्त्र से होम और अग्नि की पूजा
करे। इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक मास की प्रतिपद्को अग्नि की आराधना करने से
मनुष्य सब सुखों का भागी होता है।
प्रतिपद्येकभक्ताशी समाप्ते
कपिलाप्रदः ।
वैश्वानरपदं याति शिखिव्रतमिदं
स्मृतं ॥०६॥
प्रत्येक प्रतिपदा को एक भुक्त (दिन
में एक समय भोजन करके) रहे। सालभर में व्रत की समाप्ति होने पर ब्राह्मण कपिला गौ
दान करे। ऐसा करनेवाला मनुष्य 'वैश्वानर'
पद को प्राप्त होता है। यह 'शिखिव्रत' कहलाता है ॥५-६॥
इत्याग्नेये महापुराणे
प्रतिपद्व्रतानि नाम षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'प्रतिपद् व्रतोंका वर्णन' नामक एक सौ छिहत्तरवाँ
अध्याय पूरा हुआ ॥ १७६ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 177
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (37)
- Worship Method (32)
- अष्टक (55)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (192)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (79)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (56)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: