अग्निपुराण अध्याय १८०
अग्निपुराण अध्याय १८० में पञ्चमी
तिथि के व्रत का वर्णन है।
अग्निपुराणम् अशीत्यधिकशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 180
अग्निपुराण एक सौ अस्सीवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः १८०
अग्निपुराणम् अध्यायः १८० – पञ्चमीव्रतानि
अथाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः
अग्निरुवाच
पञ्चमीव्रतकं वक्ष्ये
आरोग्यस्वर्गमोक्षदं ।
नभोनभस्याश्विने च कार्त्तिके
शुक्लपक्षके ॥०१॥
वासुकिस्तक्षकः पूज्यः कालीयो
मणिभद्रकः ।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कर्कोटकधनञ्जयौ
॥०२॥
अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ ! अब मैं
आरोग्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाले पञ्चमी-व्रत का वर्णन करता हूँ। श्रावण,
भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक के शुक्लपक्ष की
पञ्चमी को वासुकि, तक्षक, कालिय मणिभद्र
ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक और धनंजय नामक
नागों का पूजन करना चाहिये ॥ १-२ ॥
एते प्रयच्छन्त्यभयमायुर्विद्यायशः
श्रियम् ॥३॥
ये सभी नाग अभय,
आयु, विद्या, यश और
लक्ष्मी प्रदान करनेवाले हैं ॥ ३ ॥
इत्याग्नेये महापुराणे
पञ्चमीव्रतानि नाम अशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'पञ्चमी के व्रतों का वर्णन' नामक एक सौ अस्सीवों
अध्याय पूरा हुआ ॥१८०॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 181
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