अग्निपुराण अध्याय १७९
अग्निपुराण अध्याय १७९ में चतुर्थी
तिथि के व्रत का वर्णन है।
अग्निपुराणम् एकोनाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 179
अग्निपुराण एक सौ उनासीवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः १७९
अग्निपुराणम् अध्यायः १७९ – चतुर्थीव्रतानि
अथैकोनाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः
अग्निरुवाच
चतुर्थी व्रतान्याख्यास्ये
भुक्तिमुक्तिप्रदानि ते ।
माघे शुक्लचतुर्थ्यान्तु उपवासी
यजेद्गुणं ॥०१॥
पञ्चम्याञ्च तिलान्नादी
वर्षान्निर्विघ्नतः सुखी ।
गं स्वाहा मूलमन्त्रोऽयं गामाद्यं
हृदयादिकं ॥०२॥
अग्निदेव कहते हैं—
वसिष्ठ! अब मैं आपके सम्मुख भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले
चतुर्थी-सम्बन्धी व्रतों का वर्णन करता हूँ । माघ के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को
उपवास करके गणेश का पूजन करे । तदनन्तर पञ्चमी को तिल का भोजन करे। ऐसा
करने से मनुष्य बहुत वर्षोंतक विघ्नरहित होकर सुखी रहता है। 'गं स्वाहा ।'– यह मूलमन्त्र है। 'गां नमः।' आदि से हृदयादि का न्यास करे* ॥ १-२ ॥
* निम्नलिखित विधि से हृदयादि
षडङ्गों का न्यास करे-
"गां हृदयाय नमः। गीं शिरसे स्वाहा । गूं शिखायै वषट् । गैं नेत्रत्रयाय वौषट् । गौं कवचाय हुम्। गः अस्त्राय फट्।'
आगच्छोल्काय चावाह्य गच्छोल्काय
विसर्जनं ।
उल्कान्तैर्गादिगन्धाद्यैः
पूजयेन्मोदकादिभिः ॥०३॥
'आगच्छोल्काय'
कहकर गणेश का आवाहन और 'गच्छोल्काय' कहकर विसर्जन
करे। इस प्रकार आदि में गकारयुक्त और अन्त में 'उल्का'
शब्दयुक्त मन्त्र से उनके आवाहनादि कार्य करे । गन्धादि उपचारों एवं
लड्डुओं आदि द्वारा गणपति का पूजन करे ॥ ३ ॥
ओं महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय
धीमहि ।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥०४॥
मासि भाद्रपदे चापि चतुर्थीकृच्छिवं
व्रजेत् ।
चतुर्थ्यां फाल्गुने नक्तमविघ्नाख्या
व्रजेत् ॥०५॥
चतुर्थ्यां फाल्गुने
नक्तमविघ्नाख्या चतुर्थ्यपि ।
चतुर्थ्यां दमनैः पूज्य चैत्रे
प्रार्च्य गणं सुखी ॥०६॥
(तदनन्तर निम्नलिखित गणेश-गायत्री का
जप करे)
ॐ महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय
धीमहि ।
तनो दन्ती प्रचोदयात् ॥
भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को
व्रत करनेवाला शिवलोक को प्राप्त करता है। 'अङ्गारक
चतुर्थी' (मङ्गलवार से युक्त चतुर्थी) को गणेश का पूजन करके
मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को प्राप्त कर लेता है। फाल्गुन की चतुर्थी को
रात्रि में ही भोजन करे। यह 'अविघ्ना चतुर्थी' के नाम से प्रसिद्ध है। चैत्र मास की चतुर्थी को 'दमनक'
नामक पुष्पों से गणेश का पूजन करके मनुष्य सुख भोग प्राप्त करता है
।। ४-६ ।।
इत्याग्नेये महपुराणे
चतुर्थीव्रतानि नाम एकोनाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'चतुर्थी के व्रतों का कथन' नामक एक सौ उनासीयाँ
अध्याय पूरा हुआ ॥१७९॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 180
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