अग्निपुराण अध्याय १८१

अग्निपुराण अध्याय १८१                  

अग्निपुराण अध्याय १८१ में षष्ठी तिथि के व्रत का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय १८१

अग्निपुराणम् एकाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 181                 

अग्निपुराण एक सौ इक्यासीवाँ अध्याय

अग्निपुराणम्/अध्यायः १८१                

अग्निपुराणम् अध्यायः १८१ – षष्ठीव्रतानि

अथ एकाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः

अग्निरुवाच

षष्ठीव्रतानि वक्ष्यामि कार्त्तिकादौ समाचरेत् ।

षष्ट्यां फलाशनोऽर्घ्याद्यैर्भुक्तिमुक्तिमवाप्नुयात् ॥०१॥

स्कन्दषष्ठीव्रतं प्रोक्तं भाद्रे षष्ट्यामथाक्षयं ।

कृष्णषष्ठीव्रतं वक्ष्ये मार्गशीर्षे चरेच्च तत् ॥

अनाहारो वर्षमेकं भुक्तिमुक्तिमवाप्नुयात् ॥०२॥

अग्निदेव कहते हैं- अब मैं षष्ठी सम्बन्धी व्रतों को कहता हूँ । कार्तिक के कृष्णपक्ष की षष्ठी को फलमात्र का भोजन करके कार्तिकेय के लिये अर्घ्यदान करना चाहिये। इससे मनुष्य भोग और मोक्ष प्राप्त करता है। इसे 'स्कन्दषष्ठी व्रत' कहते हैं। भाद्रपद के कृष्णपक्ष को षष्ठी तिथि में 'अक्षयषष्ठी व्रत' करना चाहिये। इसे मार्गशीर्ष में भी करना चाहिये। इस अक्षयषष्ठी के दिन किसी भी एक वर्ष निराहार रहने से मानव भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ १-२॥

इत्याग्नेये महापुराणे षष्ठीव्रतानि नाम एकाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'षष्ठी के व्रतों का वर्णन' नामक एक सौ इक्यासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८१ ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 182

Post a Comment

0 Comments