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- गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र
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- रूद्रयामल चतुर्थ पटल
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गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र के नित्य
पाठ करने से सर्वतीर्थ, सर्वयज्ञ, सर्वव्रत का पुण्यफल प्राप्त होता है । इसके पाठ
से श्रेयार्थी को श्रेय, धनार्थी को धन, कामी को कामना, पुत्रार्थी को उत्तम संतान
तथा मोक्षार्थी को मोक्ष की प्राप्ति प्राप्त होता है । ब्रह्मघ्नी, मद्यपान,
स्वर्णचोर, भ्रूणहंता, मातृहंता, पितृहंता, विश्वासघाती, कृतघ्न, मित्रघाती, गोवध,
गुरुद्रव्यापहार आदि महापातक श्रद्धापूर्वक गंगा सहस्रनाम स्तोत्र के पाठ से नष्ट
हो जाता है ।
गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र
।। अगस्त्य उवाच ।।
विना स्नानेन गंगाया नृणां
जन्मनिरथर्कम् ।।
उपायांतरमस्त्यन्यद्येन स्नानफलं
लभेत् ।।१।।
अगस्त्यजी बोले –गंगा में स्नान
किये बिना मनुष्यों का जन्म व्यर्थ ही बीतता है। क्या कोई दुसरा उपाय भी है,
जिससे गंगास्नान का फल प्राप्त हो सके?
।। स्कंद
उवाच ।। ।।
अस्त्युपाय इह त्वेकः
स्याद्येनाविकलं फलम् ।।
स्नानस्य देवसरितो महागुह्यतमो
मुने।। २ ।।
स्कन्द ने कहा--अगस्त्यजी ! जान
पड़ता है,
यही सोचकर देवाधिदेव भगवान् शंकर ने अपने मस्तक पर गंगाजी को धारण
कर रखा है। एक परम गोपनीय उपाय है, जिससे देवनदी गंगा में
स्नान करने का पूरा फल प्राप्त होता है।
शिवभक्ताय शांताय विष्णुभक्तिपराय च
।।
श्रद्धालवे त्वास्तिकाय
गर्भवासमुपुक्षवे ।। ३ ।।
वह उपाय उसी को बतलाना चाहिये,
जो भगवान् शिव और विष्णु का भक्त, शान्त,
श्रद्धालु, आस्तिक तथा गर्भवास से छूटने की
इच्छा रखनेवाला हो।
कथनीयं न चान्यस्य
कस्यचित्केनचित्क्वचित् ।।
इदं रहस्यं परमं महापातकनाशनम् ।। ४
।।
दूसरे किसी के सामने कहीं भी उसकी
चर्चा नहीं करनी चाहिये। वह परम रहस्यमय साधन महापातकों का नाश करनेवाला हैं।
महाश्रेयस्करं पुण्यं मनोरथकरं परम्
।।
द्युनदीप्रीतिजनकं शिवसंतोषसंतति ।।
५ ।।
नाम्नां सहस्रगंगायाः स्तवराजेषुशो
भनम् ।।
जप्यानां परमं जप्यं वेदोपनिषदासमम्
।। ६ ।।
बह उपाय है - भगवती गंगा का
सहस्रनामस्तोत्र। वह सम्पूर्ण उत्तम स्तोत्रो में श्रेष्ठ है,
जपने योग्य मन्त्रों में सर्वोत्तम है और वेदों के उपनिषद्-भाग के
समान मनन करने योग्य है।
जपनीयं प्रयन्नेन मौनिना वाचकं विना
।।
शुचिस्थानेषु शुचिना
सुस्पष्टाक्षरमेव च ।। ७ ।।
साधक को मौन होकर प्रयत्नपूर्वक इसका
जप करना चाहिये। यदि पवित्र स्थान हो तो वहाँ स्वयं भी पवित्रभाव से बैठकर
सुस्पष्ट अक्षरों में इसका पाठ करना चाहिये।
गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्रम्
स्कंद उवाच ।। ।।
ॐनमो गंगादेव्यै ।।
ॐकाररूपिण्यजराऽतुलाऽनमताऽमृतस्रवा
।।
अत्युदाराऽभयाऽशोकाऽलकनंदाऽमृताऽमला
।। १७ ।।
अनाथवत्सलाऽमोघाऽपांयोनिरमृतप्रदा
।।
अव्यक्तलक्षणाऽक्षोभ्या
ऽनवच्छिन्नाऽपराजिता ।। १८ ।।
अनाथनाथाऽभीष्टार्थसिद्धिदाऽनंगवर्धिनी
।।
अणिमादिगुणाऽधाराग्रगण्याऽलीकहारिणी
।। १९ ।।
अचिंत्यशक्तिरनघाऽद्भुतरूपाऽघहारिणी
।।
अद्रिराजसुताऽष्टांगयोगसिद्धिप्रदाऽच्युता
।। 4.1.29.२० ।।
अक्षुण्णशक्तिरसुदाऽनंततीर्थाऽमृतोदका
।।
अनंतमहिमाऽपाराऽनंतसौख्यप्रदाऽन्नदा
।। २१ ।।
अशेषदेवतामूर्तिरघोराऽमृतरूपिणी ।।
अविद्याजालशमनी
ह्यप्रतर्क्यगतिप्रदा ।। २२ ।।
अशेषविघ्नसंहर्त्री
त्वशेषगुणगुंफिता ।।
अज्ञानतिमिरज्योतिरनुग्रहपरायणा ।।
२३ ।।
अभिरामाऽनवद्यांग्यनंतसाराऽकलंकिनी
।।
आरोग्यदाऽऽनंदवल्ली
त्वापन्नार्तिविनाशिनी ।। २४ ।।
आश्चर्यमूर्तिरायुष्या
ह्याढ्याऽऽद्याऽऽप्राऽऽर्यसेविता ।।
आप्यायिन्याप्तविद्याऽऽख्यात्वानंदाऽऽश्वासदायिनी
।। २५ ।।
आलस्यघ्न्यापदां हंत्री
ह्यानंदामृतवर्षिणी ।।
इरावतीष्टदात्रीष्टा
त्विष्टापूर्तफलप्रदा ।। २६ ।।
इतिहासश्रुतीड्यार्था
त्विहामुत्रशुभप्रदा।। ।।
इज्याशीलसमिज्येष्ठा
त्विंद्रादिपरिवंदिता ।। २७।।
इलालंकारमालेद्धा
त्विंदिरारम्यमंदिरा ।।
इदिंदिरादिसंसेव्या
त्वीश्वरीश्वरवल्लभा ।। २८ ।।
ईतिभीतिहरेड्या च त्वीडनीय
चरित्रभृत् ।।
उत्कृष्टशक्तिरुत्कृष्टोडुपमंडलचारिणी
।।२९।।
उदितांबरमार्गोस्रोरगलोकविहारिणी ।।
उक्षोर्वरोत्पलोत्कुंभा
उपेंद्रचरणद्रवा ।।4.1.29.३०।।
उदन्वत्पूर्तिहेतुश्चोदारोत्साहप्रवर्धिनी
।।
उद्वेगघ्न्युष्णशमनी उष्णरश्मिसुता
प्रिया ।।३१।।
उत्पत्ति स्थिति
संहारकारिण्युपरिचारिणी ।।
ऊर्जं वहंत्यूर्जधरोर्जावती
चोर्मिमालिनी ।। ३२ ।।
ऊर्ध्वरेतःप्रियोर्ध्वाध्वा
ह्यूर्मिलोर्ध्वगतिप्रदा ।।
ऋषिवृंदस्तुतर्द्धिश्च
ऋणत्रयविनाशिनी ।। ३३ ।।
ऋतंभरर्द्धिदात्री च ऋक्स्वरूपा
ऋजुप्रिया ।।
ऋक्षमार्गवहर्क्षार्चिर्ऋजुमार्गप्रदर्शिनी
।। ३४ ।।
एधिताऽखिलधर्मार्थात्वेकैकामृतदायिनी
।।
एधनीयस्वभावैज्या त्वेजिता शेषपातका
।। ३५ ।।
ऐश्वर्यदैश्वर्यरूपा ह्यैतिह्यं
ह्यैंदवी द्युतिः ।।
ओजस्विन्योषधीक्षेत्रमोजोदौदनदायिनी
।। ३६ ।।
ओष्ठामृतौन्नत्यदात्री त्वौषधं
भवरोगिणाम् ।।
औदार्यचंचुरौपेंद्री
त्वौग्रीह्यौमेयरूपिणी ।। ३७ ।।
अंबराध्ववहांऽवष्ठां
वरमालांबुजेक्षणा ।।
अंबिकांबुमहायोनिरंधोदांधकहारिणी ।।
३८ ।।
अंशुमालाह्यंशुमती त्वंगीकृतषडानना
।।
अंधतामिस्रहंत्र्यंधुरं
जनाह्यंजनावती ।। ३९ ।।
कल्याणकारिणी काम्या कमलोत्पलगंधिनी
।।
कुमुद्वती कमलिनी कांतिः
कल्पितदायिनी ।। 4.1.29.४० ।।
कांचनाक्षी कामधेनुः
कीर्तिकृत्क्लेशनाशिनी ।।
क्रतुश्रेष्ठा क्रतुफला
कर्मबंधविभेदिनी ।। ४१ ।।
कमलाक्षी क्लमहरा कृशानुतपनद्युतिः
।।
करुणार्द्रा च कल्याणी
कलिकल्मषनाशिनी ।। ४२ ।
कामरूपाक्रियाशक्तिः कमलोत्पलमालिनी
।।
कूटस्था करुणाकांता कर्मयाना कलावती
।। ४३ ।।
कमलाकल्पलतिका कालीकलुषवैरिणी ।।
कमनीयजलाकम्रा कपर्दिसुकपर्दगा ।।
४४ ।।
कालकृटप्रशमनी कदंबकुसुमप्रिया ।।
कालिंदी केलिललिता कलकल्लोलमालिका
।। ४५ ।।
क्रांतलोकत्रयाकंडूः कंडूतनयवत्सला
।।
खड्गिनी खड्गधाराभा खगा
खंडेंदुधारिणी ।। ४६ ।।
खेखेलगामिनी खस्था
खंडेंदुतिलकप्रिया।।
खेचरीखेचरीवंद्या ख्यातिः
ख्यातिप्रदायिनी ।।४७।।
खंडितप्रणताघौघा खलबुद्धिविनाशिनी
।।
खातैनः कंदसंदोहा खड्गखट्वांग(?)
खेटिनी।। ।। ४८ ।।
खरसंतापशमनी खनिः पीयूषपाथसाम् ।।
गंगा गंधवती गौरी गंधर्वनगरप्रिया
।। ४९ ।।
गंभीरांगी गुणमयी गतातंका गतिप्रिया
।।
गणनाथांबिका गीता गद्यपद्यपरिष्टुता
।। 4.1.29.५० ।।
गांधारी गर्भशमनी गतिभ्रष्टगतिप्रदा
।।
गोमती गुह्यविद्यागौर्गोप्त्री
गगनगामिनी ।। ५१ ।।
गोत्रप्रवर्धिनी गुण्या गुणातीता
गुणाग्रणीः ।।
गुहांबिका गिरिसुता
गोविंदांघ्रिसमुद्भवा ।। ५२ ।।
गुणनीयचरित्रा च गायत्री
गिरिशप्रिया ।।
गूढरूपा गुणवती गुर्वी गौरववर्धिनी
।। ५३ ।।
ग्रहपीडाहरा गुंद्रा गरघ्नी
गानवत्सला ।।
घर्महंत्री घृतवती
घृततुष्टिप्रदायिनी ।। ५४ ।।
घंटारवप्रिया घोराऽघौघविध्वंसकारिणी
।।
घ्राणतुष्टिकरी घोषा घनानंदा
घनप्रिया ।।५५।।
घातुका घृर्णितजला घृष्टपातकसंततिः
।।
घटकोटिप्रपीतापा घटिताशेषमंगला ।।
५६ ।।
घृणावती घृणनिधिर्घस्मरा घूकनादिनी
।।
घुसृणा पिंजरतनुर्घर्घरा घर्घरस्वना
।।५७।।
चंद्रिका चंद्रकांतांबुश्चंचदापा
चलद्युतिः।।
चिन्मयी चितिरूपा च चंद्रायुतशनानना
।। ५८ ।।
चांपेयलोचना चारुश्चार्वंगी
चारुगामिनी ।।
चार्या चारित्रनिलया
चित्रकृच्चित्ररूपिणी ।। ५९ ।।
चंपश्चंदनशुच्यंबुश्चर्चनीया
चिरस्थिरा ।।
चारुचंपकमालाढ्या चमिताशेष दुष्कुता
।। 4.1.29.६० ।।
चिदाकाशवहाचिंत्या चंचच्चामरवीजिता
।।
चोरिताशेषवृजिना चरिताशेषमंडला ।।
६१ ।।
छेदिताखिलपापौघा छद्मघ्नी छलहारिणी
।।
छन्नत्रिविष्टप तला छोटिताशेषबंधना
।। ६२ ।।
छुरितामृतधारौघा
छिन्नैनाश्छंदगामिनी ।।
छत्रीकृतमरालौघा छटीकृतनिजामृता
।।६३।।
जाह्नवी ज्या जगन्माता जप्या
जंघालवीचिका ।।
जया जनार्दनप्रीता जुषणीया जगद्धिता
।।६४।।
जीवनं जीवनप्राणा जगज्ज्येष्ठा
जगन्मयी ।।
जीवजीवातुलतिका जन्मिजन्मनिबर्हिणी
।। ।। ६५ ।।
जाड्यविध्वंसनकरी जगद्योनिर्जलाविला
।।
जगदानंदजननी जलजा जलजेक्षणा ।। ६६
।।
जनलोचनपीयूषा जटातटविहारिणी ।।
जयंती जंजपूकघ्नी जनितज्ञानविग्रहा
।। ६७ ।।
झल्लरी वाद्यकुशला झलज्झालजलावृता
।।
झिंटीशवंद्या झांकारकारिणी
झर्झरावती ।। ६८ ।।
टीकिताशेषपाताला टंकिकैनोद्रिपाटने
।।
टंकारनृत्यत्कल्लोला टीकनीयमहातटा
।।६९।।
डंबरप्रवहाडीन राजहंसकुलाकुला।।
डमड्डमरुहस्ता च डामरोक्त महांडका
।।4.1.29.७०।।
ढौकिताशेषनिर्वाणा ढक्कानादचलज्जला
।।
ढुंढिविघ्नेशजननी ढणड्ढुणितपातका
।।७१।।
तर्पणीतीर्थतीर्था च त्रिपथा
त्रिदशेश्वरी ।।
त्रिलोकगोप्त्री तोयेशी त्रैलोक्यपरिवंदिता।।
७२।।
तापत्रितयसंहर्त्री तेजोबलविवर्धिनी
।।
त्रिलक्ष्या तारणी तारा
तारापतिकरार्चिता ।। ७३ ।।
त्रैलोक्यपावनी पुण्या तुष्टिदा
तुष्टिरूपिणी ।।
तृष्णाछेत्त्री तीर्थमाता
त्त्रिविक्रमपदोद्भवा।। ७४ ।।
तपोमयी तपोरूपा तपःस्तोम फलप्रदा ।।
त्रैलोक्यव्यापिनी
तृप्तिस्तृप्तिकृत्तत्त्वरूपिणी ।। ७५ ।।
त्रैलोक्यसुंदरी तुर्या
तुर्यातीतपदप्रदा ।।
त्रैलोक्यलक्ष्मीस्त्रिपदी
तथ्यातिमिरचंद्रिका ।। ७६ ।।
तेजोगर्भा तपःसारा त्रिपुरारि
शिरोगृहा ।।
त्रयीस्वरूपिणी तन्वी
तपनांगजभीतिनुत् ।।७७।।
तरिस्तरणिजामित्रं
तर्पिताशेषपूर्वजा ।।
तुलाविरहिता तीव्रपापतूलतनूनपात् ।।
।। ७८ ।।
दारिद्र्यदमनी दक्षा दुष्प्रेक्षा
दिव्यमंडना ।।
दीक्षावतीदुरावाप्या
द्राक्षामधुरवारिभृत् ।। ७९ ।।
दर्शितानेककुतुका
दुष्टदुर्जयदुःखहृत् ।।
दैन्यहृद्दुरितघ्नी च दानवारि
पदाब्जजा ।। 4.1.29.८० ।।
दंदशूकविषघ्री च दारिताघौघसंततिः ।।
द्रुतादेव द्रुमच्छन्ना दुर्वाराघविघातिनी ।। ८१
।।
दमग्राह्या देवमाता
देवलोकप्रदर्शिनी ।।
देवदेवप्रियादेवी दिक्पालपददायिनी
।। ८२ ।।
दीर्घायुःकारिणी दीर्घा दोग्ध्री
दूषणवर्जिता ।।
दुग्धांबुवाहिनी दोह्या दिव्या
दिव्यगतिप्रदा ।। ८३ ।।
द्युनदी दीनशरणं देहिदेहनिवारिणी ।।
द्राघीयसी दाघहंत्री दितपातकसंततिः
।। ८४ ।।
दूरदेशांतरचरी दुर्गमा देववल्लभा।।
दुर्वृत्तघ्नी दुर्विगाह्या दयाधारा
दयावती ।। ८५ ।।
दुरासदा दानशीला द्राविणी
द्रुहिणस्तुता ।।
दैत्यदानवसंशुद्धिकर्त्री दुर्बुद्धिहारिणी
।।८६।।
दानसारा दयासारा
द्यावाभूमिविगाहिनी।।
दृष्टादृष्टफलप्राप्तिर्देवतावृंदवंदिता।।।।
८७ ।।
दीर्घव्रता दीर्घदृष्टिर्दीप्ततोया
दुरालभा ।।
दंडयित्री
दंडनीतिर्दुष्टदंडधरार्चिता ।। ८८ ।।
दुरोदरघ्नी
दावार्चिर्द्रवद्रव्यैकशेवधिः ।।
दीनसंतापशमनी दात्री दवथुवैरिणी ।।
८९ ।।
दरीविदारणपरा दांता दांतजनप्रिया ।।
दारिताद्रितटा दुर्गा
दुर्गारण्यप्रचारिणी ।। 4.1.29.९० ।।
धर्मद्रवा धर्मधुरा धेनुर्धीरा
धृतिर्ध्रुवा ।।
धेनुदानफलस्पर्शा
धर्मकामार्थमोक्षदा ।। ९१ ।।
धर्मोर्मिवाहिनी धुर्या धात्री
धात्रीविभूषणम् ।।
धर्मिणी धर्मशीला च
धन्विकोटिकृतावना ।। ९२ ।।
ध्यातृपापहरा ध्येया धावनी
धूतकल्मषा ।।
धर्मधारा धर्मसारा धनदा धनवर्धिनी
।। ९३ ।।
धर्माधर्मगुणच्छेत्त्री
धत्तूरकुसुमप्रिया ।।
धर्मेशी धर्मशास्त्रज्ञा
धनधान्यसमृद्धिकृत् ।। ९४ ।।
धर्मलभ्या धर्मजला धर्मप्रसवधर्मिणी
।।
ध्यानगम्यस्वरूपा च धरणी धातृपूजिता
।। ९५ ।। ?
धूर्धूर्जटिजटासंस्था धन्या
धीर्धारणावती।।
नंदा निर्वाणजननी नंदिनी नुन्नपातका
।। ।। ९६ ।।
निषिद्धविघ्ननिचया निजानंदप्रकाशिनी
।।
नभोंगणचरी नूतिर्नम्या नारायणीनुता
।। ९७ ।।
निर्मला निर्मलाख्याना
नाशिनीतापसंपदाम् ।।
नियता नित्यसुखदा
नानाश्चर्यमहानिधिः ।। ९८ ।।
नदीनदसरोमाता नायिका नाकदीर्घिका ।।
नष्टोद्धरणधीरा च नंदनानंददायिनी ।।
९९ ।।
निर्णिक्ताशेषभुवना निःसंगा
निरुपद्रवा ।।
निरालंबा निष्प्रपंचा
निर्णाशितमहामला ।। 4.1.29.१०० ।।
निर्मलज्ञानजननी निःशेषप्राणितापहृत्
।।
नित्योत्सवा नित्यतृप्ता नमस्कार्या
निरंजना ।। १ ।।
निष्ठावती निरातंका निर्लेपा
निश्चलात्मिका ।।
निरवद्या निरीहा च नीललोहितमूर्धगा
।। २ ।।
नंदिभृंगिगणस्तुत्या नागानंदा
नगात्मजा ।।
निष्प्रत्यूहा नाकनदी
निरयार्णवदीर्घनौः ।। ३ ।।
पुण्यप्रदा पुण्यगर्भा पुण्या
पुण्यतरंगिणी ।।
पृथुः पृथुफला पूर्णा
प्रणतार्तिप्रभंजिनी ।। ४ ।।
प्राणदा प्राणिजननी प्राणेशी
प्राणरूपिणी ।।
पद्मालया पराशक्तिः
पुरजित्परमप्रिया ।। ५ ।।
परापरफलप्राप्तिः पावनी च पयस्विनी
।।
परानंदा प्रकृष्टार्था
प्रतिष्ठापालनी परा ।। ६ ।।
पुराणपठिता प्रीता प्रणवाक्षररूपिणी
।।
पार्वतीप्रेमसंपन्ना पशुपाशविमोचनी
।। ७ ।।
परमात्मस्वरूपा च परब्रह्मप्रकाशिनी
।।
परमानंदनिष्पंदा
प्रायश्चित्तस्वरूपिणी ।। ८ ।।
पानीयरूपनिर्वाणा परित्राणपरायणा ।।
पापेंधनदवज्वाला पापारिः पापनामनुत्
।। ९ ।।
परमैश्वर्यजननी प्रज्ञा प्राज्ञा
परापरा ।।
प्रत्यक्षलक्ष्मीः पद्माक्षी
परव्योमामृतस्रवा ।। 4.1.29.११० ।।
प्रसन्नरूपा प्रणिधिः पूता
प्रत्यक्षदेवता ।।
पिनाकिपरमप्रीता पग्मेष्ठिकमंडलुः
।। ११ ।।
पद्मनाभपदार्घ्येण प्रसूता
पद्ममालिनी ।।
परर्द्धिदा पुष्टिकरी पथ्या पूर्तिः
प्रभावती ।। १२ ।।
पुनाना पीतगर्भघ्नी पापपर्वतनाशिनी
।।
फलिनी फलहस्ता च फुल्लांबुजविलोचना
।। १३ ।।
फालितैनोमहाक्षेत्रा फणिलोकविभूषणम्
।।
फेनच्छलप्रणुन्नैनाः
फुल्लकैरवगंधिनी ।। १४ ।।
फेनिलाच्छांबुधाराभा
फुडुच्चाटितपातका ।।
फाणितस्वादुसलिला फांटपथ्यजलाविला
।। १५ ।।
विश्वमाता च विश्वेशी विश्वा
विश्वेश्वरप्रिया ।।
ब्रह्मण्या ब्रह्मकृद्ब्राह्मी
ब्रह्मिष्ठा विमलोदका ।। १६ ।।
विभावरी च विरजा
विक्रांतानेकविष्टपा ।।
विश्वमित्रं विष्णुपदी वैष्णवी
वैष्णवप्रिया ।। १७ ।।
विरूपाक्षप्रियकरी
विभूतिर्विश्वतोमुखी ।।
विपाशा वैबुधी वेद्या वेदाक्षररसस्रवा
।। १८ ।।
विद्यावेगवती वंद्या बृंहणी
ब्रह्मवादिनी ।।
वरदा विप्रकृष्टा च वरिष्ठा च
विशोधनी ।। १९ ।।
विद्याधरी विशोका च वयोवृंदनिषेविता
।।
बहूदका बलवती व्योमस्था विबुधप्रिया
।। 4.1.29.१२० ।।
वाणी वेदवती वित्ता
ब्रह्मविद्यातरंगिणी ।।
ब्रह्मांडकोटिव्याप्तांबुर्ब्रह्महत्यापहारिणी
।। २१ ।।
ब्रह्मेशविष्णुरूपा च
बुद्धिर्विभववर्धिनी ।।
विलासिसुखदा वैश्या व्यापिनी च
वृषारणिः ।। २२ ।।
वृषांकमौलिनिलया
विपन्नार्तिप्रभंजिनी ।।
विनीता विनता ब्रध्नतनया
विनयान्विता ।। २३ ।।
विपंचीवाद्यकुशला
वेणुश्रुतिविचक्षणा ।।
वर्चस्करी बलकरी वलोन्मूलितकल्मषा
।। २४ ।।
विपाप्मा विगतातंका
विकल्पपरिवर्जिता ।।
वृष्टिकर्त्री वृष्टिजला
विधिर्विच्छिन्नबंधना ।। २५ ।।
व्रतरूपा वित्तरूपा
बहुविघ्नविनाशकृत् ।।
वसुधारा वसुमती विचित्रांगी
विभावसुः ।। २६ ।।
विजया विश्वबीजं च वामदेवी वरप्रदा
।।
वृषाश्रिता विषघ्नी च
विज्ञानोर्म्यंशुमालिनी ।।२७ ।।
भव्या भोगवती भद्रा भवानी भूतभाविनी
।।
भूतधात्री भयहरा
भक्तदारिद्र्यघातिनी ।। २८ ।।
भुक्तिमुक्तिप्रदाभेशी
भक्तस्वर्गापवर्गदा ।।
भागीरथी भानुमती भाग्यभोगवती भृतिः
।। २९ ।।
भवप्रिया भवद्वेष्टी भूतिदा भूतिभूषणा
।।
भाललोचनभावज्ञा भूतभव्यभवत्प्रभुः
।। 4.1.29.१३० ।।
भ्रांतिज्ञानप्रशमनी
भिन्नब्रह्मांडमंडपा ।।
भूरिदा भक्तिसुलभा
भाग्यवद्दृष्टिगोचरी ।। ३१ ।।
भंजितोपप्लवकुला
भक्ष्यभोज्यसुखप्रदा ।।
भिक्षणीया भिक्षुमाता
भावाभावस्वरूपिणी ।। ।। ३२ ।।
मंदाकिनी महानंदा माता
मुक्तितंरगिणी ।।
महोदया मधुमती महापुण्या मुदाकरी ।।
३३ ।।
मुनिस्तुता मोहहंत्री महातीर्था
मधुस्रवा ।।
माधवी मानिनी मान्या मनोरथपथातिगा
।। ३४ ।।
मोक्षदा मतिदा मुख्या
महाभाग्यजनाश्रिता ।।
महावेगवतीमेध्या महामहिमभूषणा ।। ३५
।।
महाप्रभावा महती मीनचंचललोचना ।।
महाकारुण्यसंपूर्णा महर्द्धिश्च
महोत्पला ।। ३६ ।।
मूर्तिमन्मुक्तिरमणी
मणिमाणिक्यभूषणा ।।
मुक्ताकलापनेपथ्या मनोनयननंदिनी ।।
३७ ।।
महापातकराशिघ्नी महादेवार्धहारिणी
।।
महोर्मिमालिनी मुक्ता महादेवी
मनोन्मनी ।। ३८।।
महापुण्योदयप्राप्या मायातिमिरचंद्रिका।।
महाविद्या महामाया महामेधा महौषधम्
।। ३९ ।।
मालाधरी महोपाया महोरगविभूषणा ।।
महामोहप्रशमनी महामंगलमंगलम्।। 4.1.29.१४०।।
मार्तंडमंडलचरी
महालक्ष्मीर्मदोज्झिता ।।
यशस्विनी यशोदा च योग्या
युक्तात्मसेविता ।। ४१ ।।
योगसिद्धिप्रदा याज्या
यज्ञेशपरिपूरिता ।।
यज्ञेशी यज्ञफलदा यजनीया यशस्करी
।।४२।।
यमिसेव्या योगयोनिर्योगिनी
युक्तबुद्धिदा ।।
योगज्ञानप्रदा युक्ता
यमाद्यष्टांगयोगयुक् ।।४३।।
यंत्रिताघौघसंचारा यमलोकनिवारिणी।।
यातायातप्रशमनी यातनानामकृंतनी
।।४४।।
यामिनीशहिमाच्छोदा युगधर्मविवर्जिता
।।
रेवतीरतिकृद्रम्या रत्नगर्भा रमा
रतिः ।।४५।।
रत्नाकरप्रेमपात्रं रसज्ञा
रसरूपिणी।।
रत्नप्रासादगर्भा च
रमणीयतरंगिणी।।४६।।
रत्नार्ची रुद्ररमणी
रागद्वेषविनाशिनी।।
रमा रामा रम्यरूपा
रोगिजीवातुरूपिणी।।४७।।
रुचिकृद्रोचनी रम्या रुचिरा
रोगहारिणी ।।
राजहंसा रत्नवती राजत्कल्लोलराजिका ।।४८।।
रामणीयकरेखा च रुजारी रोगरोषिणी।।
राकारंकार्तिशमनी रम्या रोलंबराविणी
।। ४९ ।।
रागिणीरंजितशिवा रूपलावण्यशेवधिः ।।
लोकप्रसूर्लोकवंद्या
लोलत्कल्लोलमालिनी ।। 4.1.29.१५० ।।
लीलावती लोकभूमिर्लोकलोचनचंद्रिका
।।
लेखस्रवंती लटभा लघुवेगा लघुत्वहृत्
।। ५१ ।।
लास्यत्तरंगहस्ता च ललिता लयभंगिगा
।।
लोकबंधुर्लोकधात्री
लोकोत्तरगुणोर्जिता ।। ५२ ।।.
लोकत्रयहिता लोका
लक्ष्मीर्लक्षणलक्षिता ।।
लीलालक्षितनिर्वाणा
लावण्यामृतवर्षिणी ।। ५३ ।।
वैश्वानरी वासवेड्या
वंध्यत्वपरिहारिणी ।।
वासुदेवांघ्रिरेणुघ्नी
वज्रिवज्रनिवारिणी ।। ५४ ।।
शुभावती शुभफला शांतिः शांतनुवल्लभा
।।
शूलिनी शैशववयाः शीतलाऽमृतवाहिनी ।।
५५ ।।
शोभावती शीलवती शोषिताशेषकिल्बिषा
।।
शरण्या शिवदा शिष्टा शरजन्मप्रसूः
शिवा ।। ५६ ।।
शक्तिः शशांकविमला शमनस्वसृसंमता ।।
शमा शमनमार्गघ्नी शितिकंठमहाप्रिया
।।५७।।
शुचिः शुचिकरी शेषा शेषशायिपदोद्भवा
।।
श्रीनिवास श्रुतिः श्रद्धा श्रीमती
श्रीः शुभव्रता ।। ।। ५८ ।।
शुद्धविद्या शुभावर्ता श्रुतानंदा
श्रुतिस्तुतिः ।।
शिवेतरघ्नी शबरी शांबरीरूपधारिणी ।।
५९ ।।
श्मशानशोधनी शांता
शश्वच्छतधृतिष्टुता ।।
शालिनी शालिशोभाढ्या
शिखिवाहनगर्भभृत् ।। 4.1.29.१६० ।।
शंसनीयचरित्रा च शातिताशेषपातका ।।
षड्गुणैश्वर्यसंपन्ना
षडंगश्रुतिरूपिणी ।। ६१ ।।
षंढताहारि सलिलाष्ट्यायन्नदनदीशता
।।
सरिद्वरा च सुरसा सुप्रभा
सुरदीर्घिका ।। ६२ ।।
स्वःसिंधुः सर्वदुःखघ्नी
सर्वव्याधिमहौषधम् ।।
सेव्यासिद्धिः सती सूक्तिः स्कंदसूश्च
सरस्वती ।।६३।।
संपत्तरंगिणी स्तुत्या
स्थाणुमौलिकृतालया ।।
स्थैर्यदा सुभगा सौख्या स्त्रीषु
सौभाग्यदायिनी ।। ६४ ।।
स्वर्गनिःश्रेणिका सूक्ष्मा स्वधा
स्वाहा सुधाजला ।।
समुद्ररूपिणी स्वर्ग्या
सर्वपातकवैरिणी ।। ६५ ।।
स्मृताघहारिणी सीता संसाराब्धितरंडिका
।।
सौभाग्यसुंदरी संध्या
सर्वसारसमन्विता ।। ६६ ।।
हरप्रिया हृपीकेशी हंसरूपा हिरण्मयी
।।
हृताघसंघा हितकृद्धेला
हेलाघगर्वहृत् ।।६७।।
क्षेमदा क्षालिताघौघा
क्षुद्रविद्राविणी क्षमा ।।
गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र फलश्रुति
इति नामसहस्रं हि गंगायाः कलशोद्भव
।।
कीर्तयित्वा नरः सम्यग्गंगास्नानफलं
लभेत् ।।१ ।।
अगस्त्यजी ! इस प्रकार गङ्गाजी के
सहस्त्रनामों का कीर्तन करके मनुष्य गङ्गा स्नान का उत्तम फल पा लेता है।
सर्वपापप्रशमनं सर्वविघ्न विनाशनम्
।।
सर्वस्तोत्रजपाच्छ्रेष्ठं
सर्वपावनपावनम् ।।२ ।।
यह गङ्गासहस्त्रनाम सब पापों का नाश
और सम्पूर्ण विघ्नों का निवारण करनेवाला है। समस्त स्तोत्रों के जप से इसका जप
श्रेष्ठ है। यह सबको पवित्र करनेवाली वस्तुओं को भी पवित्र करनेवाला है ।
श्रद्धयाभीष्टफलदं
चतुर्वर्गसमृद्धिकृत् ।।
सकृज्जपादवाप्नोति
ह्येकक्रतुफलंमुने ।।३ ।।
श्रद्धापूर्वक इसका पाठ करने पर यह
मनोवाञ्छित फल देनेवाला है । धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थो की प्राप्ति करानेवाला है। मुने!
इसका एक बार पाठ करने से भी एक यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।
आयुरारोग्यजननं सर्वोपद्रवनाशनम् ।।
सर्वसिद्धिकरं पुंसां
गंगानामसहस्रकम् ।। ४ ।।
गङ्गासहस्त्रनाम आयु तथा आरोग्य
देनेवाला और सम्पूर्ण उपद्रयों का नाश करनेवाला है। यह मनुष्यों को सब प्रकार की
सिद्धि देनेवाला है ।
सदाचारी स विज्ञेयः सशुचिस्तु सदैव
हि ।।
कृतसर्वसुरार्चः स कीर्तयेद्य इमां स्तुतिम्
।।५।।
जो इस स्तुति का पाठ करता है,
उसे सदाचारी जानना चाहिये । वह सदा पवित्र है तथा उसने सम्पूर्ण
देवताओं की पूजा सम्पन्न कर ली है।
तस्मिंस्तृप्ते भवेत्तृप्ता जाह्नवी
नात्र संशयः ।।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन गंगाभक्तं
समर्चयेत् ।। ६ ।।
उसके तृप्त होने से साक्षात्
गङ्गाजी तृप्त हो जाती है। अतः सर्वथा प्रयत्न करके गङ्गाजी के भक्त का पूजन करे ।
स्तवराजमिमं गांगं शृणुयाद्यश्च वै
पठेत् ।।
श्रावयेदथ तद्भक्तान्दंभलोभ
विवर्जितः ।।७।।
मुच्यते त्रिविधैः पापैर्मनोवाक्काय
संभवैः ।।
क्षणान्निष्पापतामेति पितॄणां च प्रियो
भवेत् ।।८।।
जो गङ्गाजी के इस स्तोत्रराज का श्रवण
और पाठ करता है या दम्भ और लोभ से रहित होकर उनके भक्तों को सुनाता है,
वह मानसिक, वाचिक और शारीरिक तीनों प्रकार के
पापों से मुक्त हो जाता है तथा पितरो का प्रिय होता है।
एतत्स्तोत्रं गृहे यस्य लिखितं परिपूज्यते
।।
तत्र पापभयं नास्ति शुचि तद्भवनं
सदा ।। ९ ।।
जिसके घर में गङ्गाजी का यह स्तोत्र
लिखकर इसकी पूजा की जाती है। वहाँ पाप का कोई भय नहीं है । वह घर सदा पवित्र है।
इति श्रीस्कांदे महापुराण एकाशीतिसाहस्र्यां संहितायां चतुर्थे काशीखंडे पूर्वार्द्धे गंगासहस्रनाम कथनंनामैकोनत्रिंशत्तमोऽध्यायः ।। २९ ।।
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