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कर्मकाण्ड

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रूद्र अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

रूद्र अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

महादेवजी का यह सौ नामों का रूद्रअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र पाठ सम्पूर्णं मंगलों को देनेवाला है।

रूद्र अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

श्रीरूद्र अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् 

नमो रुद्राय भीमाय नीलकण्ठाय वेधसे॥

कपर्द्धिने सुरेशाय व्योमकेशाय वै नमः॥ १७.७५ ॥

वृषध्वजाय सोमाय नीलकण्ठाय वै नमः॥

दिगंबराय भर्गाय उमाकांतकपर्द्दिने॥ १७.७६ ॥

तपोमयाय व्याप्ताय शिपिविष्टाय वै नमः॥

व्यालप्रियाय व्यालाय व्यालानां पतये नमः॥ १७.७७ ॥

महीधराय व्याघ्राय पशूनां पतये नमः॥

त्रिपुरांतकसिंहाय शार्दूलोग्ररवाय च॥ १७.७८ ॥

मीनाय मीननाथाय सिद्धाय परमेष्ठिने॥

कामांतकाय बुद्धाय बुद्धीनां पतये नमः॥ १७.७९ ॥

कपोताय विशिष्टाय शिष्टाय परमात्मने॥

वेदाय वेदबीजाय देवगुह्याय वै नमः॥ १७.८० ॥

दीर्घाय दीर्घदीर्घाय दीर्घार्घाय महाय च॥

नमो जगत्प्रतिष्ठाय व्योमरूपाय वै नमः॥ १७.८१ ॥

गजासुरविनाशाय ह्यंधकासुरभेदिने॥

नीललोहितशुक्लाय चण्डमुण्डप्रियाय च॥ १७.८२ ॥

भक्तिप्रियाय देवाय ज्ञानज्ञानाव्ययाय च॥

महेशाय नमस्तुभ्यं महादेवहराय च॥ १७.८३ ॥

त्रिनेत्राय त्रिवेदाय वेदांगाय नमोनमः॥

अर्थाय अर्थरूपाय परमार्थाय वै नमः॥ १७.८४ ॥

विश्वरूपाय विश्वाय विश्वनाताय वै नमः॥

शंकराय च कालाय कालावयवरूपिणे॥ १७.८५ ॥

अरूपाय च सूक्ष्माय सूक्ष्मसूक्ष्माय वै नमः॥

श्मशानवासिने तुभ्यं नमस्ते कृत्तिवाससे॥ १७.८६ ॥

शशांकशेखरायैव रुद्रविश्वाश्रयाय च॥

दुर्गाय दुर्गसाराय दुर्गावयवसाक्षिणे॥ १७.८७ ॥

लिंगरूपाय लिंगाय लिंगानां पतये नमः॥

प्रणवरूपाय प्रणवार्थाय वै नमः॥ १७.८८ ॥

नमोनमः कारणकारणाय ते मृत्युंजयायात्मभवस्वरूपिणे॥

त्रियंबकायासितकंठ भर्ग गौरिपते सकलमंगलहेतवे नमः॥ १७.८९ ॥

(स्क पु०, मा० के० १७। ७५ – ८९)

रूद्र अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र हिन्दी अर्थ

रुद्र, नील, भीम और परमात्मा को नमस्कार है। कपर्दी (जटाजूटधारी), सुरेश्वर (देवताओं के स्वामी) तथा आकाशरूप केशवाले श्रीव्योमकेश को नमस्कार है! जो अपनी ध्वजा वृषभ का चिह्न धारण करने के कारण वृषभध्वज हैं, उमा के साथ विराजमान होने से सोम है, चन्द्रमा के भी रक्षक होने से सोमनाथ है, उन भगवान्‌ शम्भु को नमस्कार है! सम्पूर्ण दिशाओं को वस्त्ररूप में धारण करने के कारण जो दिगम्बर कहलाते है, भजनीय तेजस्वरूप होने से जिनका नाम भर्ग है, उन उमाकान्त को नमस्कार है! जो तपोमय, भव्य (कल्याणरूप), शिवश्रेष्ठ, विष्णुरूप, व्यालप्रिय (सर्पो को प्रिय माननेवाले), व्याल (सर्पस्वरूप) तथा सर्पों के पालक है, उन भगवान्‌ को नमस्कार है! जो महीधर (पृथ्वी को धारण करनेवाले), व्याघ्र (विशेषरूप से सूघनेवाले), पशुपति (जीवों के पालक), त्रिपुरनाशक, सिंहस्वरूप, शार्दूलरूप और यज्ञमय हैं, उन भगवान्‌ शिव को नमस्कार है। जो मत्स्यरूप, मत्स्यों के स्वामी, सिद्ध तथा परमेष्ठी है, जिन्होने कामदेव का नाश किया है, जो ज्ञानस्वरूप तथा बुद्धि-वृत्तियों के स्वामी है, उनको नमस्कार है! जो कपोत (ब्रह्माजी जिनके पुत्र हैं), विशिष्ट (सर्वश्रेष्ठ), शिष्ट (साधुपुरुष) तथा सर्वात्मा है, उन्हें नमस्कार है! जो वेदस्वरूप वेद को जीवन देनेवाले तथा वेदों में छिपे हुए गूढ तत्त्व हैं, उनको नमस्कार है! जो दीर्घ, दीर्घरूप, दीर्घार्थस्वरूप तथा अविनाशी है, जिनमें ही सम्पूर्ण जगत्‌ की  स्थिति है तथा जो सर्वव्यापी व्योमरूप हैं, उन्हे नमस्कार है! जो गजासुर के महान्‌ काल है, जिन्होंने अन्धकासुर का विनाश किया है, जो नील, लोहित और शुक्लरूप हैं तथा चण्ड-मुण्ड नामक पार्षद जिन्हें विशेषप्रिय हैं, उन भगवान्‌ शिव को नमस्कार है! जिनको भक्ति प्रिय है, जो द्युतिमान्‌ देवता है, ज्ञाता और ज्ञान है, जिनके स्वरूप में कभी कोई विकार नहीं होता, जो महेश, महादेव तथा हर नाम से प्रसिद्ध है, उनको नमस्कार है! जिनके तीन नेत्र है, तीनों वेद और वेदांग जिनके स्वरूप है, उन भगवान्‌ शंकर को नमस्कार है ! नमस्कार है! जो अर्थं (धन), अर्थरूप (काम) तथा परमार्थं (मोक्षरूप) हैं, उन भगवान् को नमस्कार है! जो सम्पूर्णं विश्व की भूमि के पालक, विश्वरूप, विश्वनाथ, शंकर, काल तथा कालावयवरूप है, उन्हें नमस्कार है। जो रूपहीन, विकृत रूपवाले तथा सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है, उनको नमस्कार है। जो श्मशान-भूमि मे निवास करनेवाले तथा व्याघ्रचर्ममय वस्त्र धारण करनेवाले है, उनको नमस्कार है! जो ईश्वर होकर भी भयानक भूमि में शयन करते है, उन भगवान्‌ चन्द्रशेखर को नमस्कार है। जो दुर्गम है, जिनका पार पाना अत्यन्त कठिन है तथा जो दुर्गम अवयवों के साक्षी अथवा दुर्गारूपा पार्वती के सब अंगों का दर्शन करनेवाले है, उन भगवान्‌ शिव को नमस्कार है! जो लिंगरूप, लिंग (कारण) तथा कारणों के भी अधिपति हैं, उन्हें नमस्कार है! महाप्रलयरूप रुद्र को नमस्कार है! प्रणव के अर्थभूत ब्रह्मरूप शिव को नमस्कार है! जो कारणों के भी कारण,मृत्युंजय तथा स्वयम्भूरूप हैं, उन्हे नमस्कार है! हे श्रीत्रयम्बक! हे नीलकण्ठ! हे शर्व! हे गौरीपते! आप सम्पूर्णं मंगलों के हेतु हैं; आपको नमस्कार है!  

इति स्कन्दपुराणामहेश्वरखण्ड केदारखण्डान्तर्गता श्रीरूद्राष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् ।

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