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अग्निपुराण अध्याय १९४

अग्निपुराण अध्याय १९४                    

अग्निपुराण अध्याय १९४ में अशोकपूर्णिमा आदि व्रतों का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय १९४

अग्निपुराणम् चतुर्नवत्यधिकशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 194                 

अग्निपुराण एक सौ चौरानबेवाँ अध्याय

अग्निपुराणम्/अध्यायः १९४                   

अग्निपुराणम् अध्यायः १९४ – अशोकपूर्णिमादिव्रतं

अथ चतुर्नवत्यधिकशततमोऽध्यायः

अग्निरुवाच

अशोकपूर्णिमां वक्ष्ये भूधरं च भुवं यजेत् ।

फाल्गुन्यां सितपक्षायां वर्षं स्याद्भुक्तिमुक्तिभाक् ॥१॥

कार्त्तिक्यान्तु वृषोत्सर्गं कृत्वा नक्तं समाचरेत् ।

शैवं पदमवाप्नोति वृषव्रतमिदं परं ॥२॥

पित्र्या यामावसी तस्यां पितॄणां दत्तमक्षयं ।

उपोष्याब्दं पितॄनिष्ट्वा निष्पापः स्वर्गमाप्नुयात् ॥३॥

पञ्चदश्यां च माघस्य पूज्याजं सर्वमाप्नुयात् ।

वक्ष्ये सावित्र्यमावास्याम्भुक्तिमुक्तिकरीं शुभां ॥४॥

पञ्चदश्यां व्रती ज्यैष्ठे वटमूले महासतीं ।

त्रिरात्रोपोषिता नारी सप्तधान्यैः प्रपूजयेत् ॥५॥

प्ररूढैः कण्ठसूत्रैश्च रजन्यां कुङ्कुमादिभिः ।

वटावलम्बनं कृत्वा नृत्यगीतैः प्रभातके ॥६॥

नमः सावित्र्यै सत्यवते नैवेद्यं चार्पयेद्द्विजे ।

वेश्म गत्वा द्विजान् भोज्य स्वयं भुक्त्वा विसर्जयेत् ॥७॥

सावित्री प्रीयतां देवी सौभाग्यादिकमाप्नुयात् ॥८॥

अग्निदेव कहते हैंअब मैं 'अशोकपूर्णिमा के विषय में कहता हूँ। फाल्गुन के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को भगवान् वराह और भूदेवी का पूजन करे। एक वर्ष ऐसा करने से मनुष्य भोग और मोक्ष- दोनों को प्राप्त कर लेता है। कार्तिक की पूर्णिमा को वृषोत्सर्ग करके रात्रिव्रत का अनुष्ठान करे। इससे मनुष्य शिवलोक को प्राप्त होता है। यह उत्तम व्रत'वृषोत्सर्गव्रत' के नाम से प्रसिद्ध है। आश्विन के पितृपक्ष की अमावास्या को पितरों के उद्देश्य से जो कुछ दिया जाता है, वह अक्षय होता है। मनुष्य किसी वर्ष इस अमावास्या को उपवासपूर्वक पितरों का पूजन करके पापरहित होकर स्वर्ग को प्राप्त कर लेता है। माघ मास की अमावास्या को (सावित्री सहित ) ब्रह्मा का पूजन करके मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्ट कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। अब मैं 'वटसावित्री' सम्बन्धी अमावास्या के विषय में कहता हूँ, जो पुण्यमयी एवं भोग और मोक्ष की प्राप्ति करानेवाली है। व्रत करनेवाली नारी (त्रयोदशी से अमावास्या तक) 'त्रिरात्रव्रत' करे और ज्येष्ठ की अमावास्या को वटवृक्ष के मूलभाग में महासती सावित्री का सप्तधान्य से पूजन करे। जब रात्रि कुछ शेष हो, उसी समय वट के कण्ठ-सूत्र लपेटकर कुङ्कुमादि से उसका पूजन करे। प्रभातकाल में वट के समीप नृत्य करे और गीत गाये। 'नमः सावित्र्यै सत्यवते' (सत्यवान्- सावित्री को नमस्कार है) ऐसा कहकर सत्यवान्- सावित्री को नमस्कार करे और उनको समर्पित किया हुआ नैवेद्य ब्राह्मण को दे। फिर अपने घर आकर ब्राह्मणों को भोजन कराके स्वयं भी भोजन करे । 'सावित्रीदेवी प्रीयताम्।' (सावित्रीदेवी प्रसन्न हों ) - ऐसा कहकर व्रत का विसर्जन करे। इससे नारी सौभाग्य आदिको प्राप्त करती है ॥ १-८ ॥

इत्याग्नेये महापुराणे तिथिव्रतानि नाम चतुर्नवत्यधिकतशततमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'तिथि- व्रत का वर्णन' नामक एक सौ चौरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १९४ ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 195 

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